राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
पुनरीक्षण सं0-१५/२०१५
(जिला मंच (प्रथम), गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0-३२०/२०११ में पारित आदेश दिनांक ०१-११-२०१२ के अनुपालनार्थ योजित निष्पादन वाद सं0-१४६/२०१२ में पारित आदेश दिनांक ०५-०६-२०१४ एवं विविध वाद सं0-८५/२०१४ में पारित आदेश दिनांक १०-१०-२०१४ के विरूद्ध)
ब्रान्च मैनेजर, मै0 मुथूट फाइनेंस लि0, कारपोरेट आफिस उत्तरी, मुथूट टावर्स, अलकनन्दा, नई दिल्ली-१००१९.
............. पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी/निर्णीत ऋणी।
बनाम्
राधे श्याम शर्मा निवासी बी १/२४८, यमुना विहार, दिल्ली-११००५३.
............. प्रत्यर्थी/परिवादी/डिक्रीदार।
पुनरीक्षण सं0-१३/२०१५
(जिला मंच (प्रथम), गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0-३१९/२०११ में पारित आदेश दिनांक ०१-११-२०१२ के अनुपालनार्थ योजित निष्पादन वाद सं0-१४७/२०१२ में पारित आदेश दिनांक ०५-०६-२०१४ एवं विविध वाद सं0-८६/२०१४ में पारित आदेश दिनांक १०-१०-२०१४ के विरूद्ध)
ब्रान्च मैनेजर, मै0 मुथूट फाइनेंस लि0, कारपोरेट आफिस उत्तरी, मुथूट टावर्स, अलकनन्दा, नई दिल्ली-१००१९.
............. पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी/निर्णीत ऋणी।
बनाम्
डॉ0 उपहार शर्मा निवासी बी १/२४८, यमुना विहार, दिल्ली-११००५३.
............. प्रत्यर्थी/परिवादी/डिक्रीदार।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता फाइनेंस कं0 की ओर से उपस्थित :- श्री अदील अहमद विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण उभय की ओर से उपस्थित :- श्री एस0पी0 पाण्डेय विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : ३१-०३-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत पुनरीक्षण सं0-१५/२०१५ एवं पुनरीक्षण सं0-१३/२०१५ क्रमश: परिवाद सं0-३२०/२०११ एवं ३१९/२०११ में जिला मंच (प्रथम), गाजियाबाद द्वारा पारित संयुक्त आदेश दि0 ०१-११-२०१२
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के अनुपालनार्थ योजित क्रमश: निष्पादन वाद सं0-१४६/२०१२ एवं १४७/२०१२ में पारित आदेश दिनांक ०५-०६-२०१४ तथा क्रमश: विविध वाद सं0-८५/२०१४ एवं ८६/२०१४ में पारित आदेश दिनांक १०-१०-२०१४ के विरूद्ध योजित किए गये हैं। विद्वान जिला मंच ने दोनों निष्पादन वादों को समेकित करते हुए प्रश्नगत आदेश दिनांकित ०५-०६-२०१४ पारित किया। दोनों ही मामलों में विचारणीय बिन्दु समान होने के कारण दोनों पुनरीक्षण का निस्तारण भी समेकित करते हुए साथ-साथ किया जा रहा है। इन पुनरीक्षणों के निस्तारण हेतु पुनरीक्षण सं0-१५/२०१५ अग्रणी होगा।
पुनरीक्षणकर्ता के अनुसार प्रत्यर्थी राधेश्याम शर्मा ने उससे ८०,०००/- रू० बतौर ऋण प्राप्त किया था तथा इस ऋण की सुरक्षा हेतु सोने के आभूषण बजनी ६८ ग्राम बन्धक रखे थे। प्रत्यर्थी डॉ0 उपहार शर्मा ने १,९९,०००/- रू० बतौर ऋण प्राप्त किया था तथा इस ऋण की सुरक्षा हेतु सोने के आभूषण बजनी १७० ग्राम बन्धक रखे थे। दिनांक ०३-११-२०१० को प्रत्यर्थीगण ऋण की धनराशि ब्याज सहित लेकर पुनरीक्षणकर्ता के पास पहुँचे तथा इस ऋण की धनराशि मय ब्याज जमा करके बन्धक रखे सोने को वापस करने की मांग की। पुनरीक्षणकर्ता ने बताया कि दिनांक ३०-१०-२०१० को पुनरीक्षणकर्ता की सम्बन्धित शाखा में डकैती पड़ी थी, जिसमें गिरवी रखे सभी जेवतरात डकैत लूट ले गये, जिसकी थाना सहिबाबाद की पुलिस ने बरामदगी भी की, इसलिए पैसा जमा नहीं होगा और न ही जेवरात वापस होंगे। कुछ समय बाद आने को कहा गया, किन्तु बाद में प्रत्यर्थीगण की कोई सुनवाई नहीं हुई। अत: क्रमश: परिवाद सं0-३२०/२०१२ एवं परिवाद सं0-३१९/२०१२ प्रत्यर्थीगण द्वारा योजित किए गये। इन दोनों परिवादों को समेकित करते हुए विद्वान जिला मंच ने निर्णय दिनांकित ०१-११-२०१२ द्वारा परिवादों को स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया :-
‘’ उपरोक्त दोनों परिवादों के परिवादीगण को आदेशित किया जाता है कि वह लिए गए लोन की धनराशि तथा लोन की वापसी की तिथि तक ब्याज सहित विपक्षी को लौटा दें।
विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि लोन और ब्याज की वापसी के बीच प्रत्येक परिवादी द्वारा गिरवी रखे गए सोने के वजन का मूल्य ३१०४६/- रूपये प्रति १० ग्राम के रेट से गणना करके उसे प्रत्येक परिवादी को भुगतान कर दे। ‘’
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इस आदेश दिनांकित ०१-११-२०१२ के अनुपालन में पुनरीक्षणकर्ता ने गणना के उपरान्त प्रत्यर्थी राधेश्याम शर्मा को ६८,१०४/- रू० तथा प्रत्यर्थी उपहार शर्मा को १,७२,०४७/- रू० अदा किए। उपरोक्त धनराशि प्राप्त करने के उपरान्त प्रत्यर्थी राधेश्याम शर्मा ने निष्पादन सं0-१४६/२०१२ तथा प्रत्यर्थी उपहार शर्मा ने निष्पादन सं0-१४७/२०१२ योजित किए, जिनमें क्रमश: प्रत्यर्थी राधेश्याम शर्मा ने २३,०२७.४३ रू० एवं प्रत्यर्थी उपहार शर्मा ने ५७,२७९.८० रू० कम अदा किया जाना अभिकथित किया। इन निष्पादनों के सन्दर्भ में पुनरीक्षणकर्ता द्वारा अपनी आपत्ति प्रस्तुत की गयी। उपरोक्त निष्पादन वादों को समेकित करके एवं निष्पादन सं0-१४६/२०१२ को अग्रणी बनाते हुए प्रश्नगत आदेश दिनांकित ०५-०६-२०१४ विद्वान जिला मंच ने पारित किया, जिसमें विद्वान जिला मंच ने प्रत्यर्थी राधेश्याम शर्मा को २३,०२७.४३ रू० एवं प्रत्यर्थी डॉ0 उपहार शर्मा को ५७,२७९.८० रू० का भुगतान एक माह के अन्दर करने हेतु पुनरीक्षणकर्ता को निर्देशित किया। इस अवधि के बाद समस्त धनराशि पर ०६ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज की अदायगी हेतु भी निर्देशित किया गया।
पुनरीक्षणकर्ता के कथनानुसार आदेश दिनांकित ०५-०६-२०१४ को वापस लेने हेतु पुनरीक्षणकर्ता ने विद्वान जिला मंच के समक्ष क्रमश: विविध वाद सं0-८५/२०१४ एवं ८६/२०१४ योजित किए। इन विविध वादों को भी विद्वान जिला मंच द्वारा प्रश्नगत आदेश दिनांकित १०-१०-२०१४ द्वारा निरस्त कर दिया गया। अत: आदेश दिनांक ०५-०६-२०१४ एवं १०-१०-२०१४ के विरूद्ध प्रस्तुत दोनों पुनरीक्षण योजित किए गये।
हमने पुनरीक्षणकर्ता फाइनेंस कम्पनी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अदील अहमद तथा प्रत्यर्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सत्य प्रकाश पाण्डेय के तर्क सुने तथा पत्रावली का अवलोकन किया।
अधिवक्ता पुनरीक्षणकर्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि मूल परिवाद में पारित निर्णय दिनांकित ०१-११-२०१२ में प्रत्यर्थीगण को उनके द्वारा लिए गये ऋण की ब्याज सहित वापसी हेतु निर्देशित किया गया है। पुनरीक्षणकर्ता के अनुसार पक्षकारों के मध्य प्रश्नगत ऋण से सम्बन्धित शर्तों के अनुसार २७ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज की अदायगी की जानी थी। इस सन्दर्भ में पुनरीक्षणकर्ता द्वारा पुनरीक्षण याचिका के साथ दाखिल संलग्नक सं0-४ पृष्ठ
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सं0-४७ के पृष्ठ सं0-४८ की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया गया। अत: २७ प्रतिशत वार्षिक की दर से लिए गये ऋण पर ब्याज की गणना के उपरान्त मूल परिवाद सं0-३२०/२०११ में पारित निर्णय दिनांकित ०१-११-२०१२ के आलोक में प्रत्यर्थी राधेश्याम शर्मा द्वारा बन्धक रखे गये ६८ ग्राम सोने का मूल्य, ३१,०४६/- रू० प्रति १० ग्राम के आधार पर समायोजित करने के उपरान्त ६८,१०४/- रू० की अदायगी प्रत्यर्थी राधेश्याम शर्मा को की गयी। इसी प्रकार मूल परिवाद सं0-३१९/२०११ में पारित उपरोक्त आदेश के आलोक में उपरोक्त ब्याज की दर एवं सोने के मूल्य की गणना के आधार पर प्रत्यर्थी डॉ0 उपहार शर्मा को भी १,७२,०४७/- का भुगतान किया गया।
प्रत्यर्थीगण की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि लिए गये ऋण पर ब्याज की दर २७ प्रतिशत वार्षिक न होकर १.५८ प्रतिशत मासिक निर्धारित थी। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता द्वारा इंगित कागज सं0-४८ में ब्याज के सन्दर्भ में रिक्त स्थान की पूर्ति पेन से की गयी है। पुनरीक्षणकर्ता ने १.५८ प्रतिशत मासिक की दर से ब्याज की गणना न करके २७ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज की गणना करते हुए धनराशि का भुगतान अवैध रूप से किया है। पुनरीक्षण याचिका के साथ पुनरीक्षणकर्ता ने परिवाद सं0-३१९/२०११ एवं ३२०/२०११ में पारित आदेश दिनांकित ०१-११-२०१२ की प्रमाणित प्रतिलिपि, प्रत्यर्थीग्ण द्वारा प्रेषित किए गये परिवाद की प्रमाणित प्रति एवं पुनरीक्षणकर्ता द्वारा प्रेषित किए गये प्रतिवाद पत्र की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत की हैं।
उल्लेखनीय है कि प्रत्यर्थी/परिवादी राधेश्याम शर्मा द्वारा परिवाद सं0-३२०/२०११ की धारा-४ में स्पष्ट रूप से यह अभिकथन किया गया है कि पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी द्वारा ऋण की धनराशि पर १.५८ प्रतिशत प्रति माह की दर से ब्याज निर्धारित किया गया। इस परिवाद के सन्दर्भ में पुनरीक्षणकर्ता द्वारा प्रेषित प्रतिवाद पत्र में पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी ने यह तथ्य स्पष्ट रूप से उल्लिखित नहीं किया है कि ब्याज की दर १.५८ मासिक निर्धारित नहीं की गयी, बल्कि यह दर २७ प्रतिशत वार्षिक थी। प्रत्यर्थी/परिवादी डॉ0 उपहार शर्मा द्वारा भी परिवाद सं0-३१९/२०११ स्पष्ट रूप से यह अभिकथन किया गया है कि पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी द्वारा ऋण की धनराशि पर १.५८ प्रतिशत प्रति माह की दर से ब्याज निर्धारित किया गया। इस परिवाद के सन्दर्भ में पुनरीक्षणकर्ता द्वारा प्रेषित प्रतिवाद पत्र में पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी ने यह तथ्य स्पष्ट
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रूप से उल्लिखित नहीं किया है कि ब्याज की दर १.५८ मासिक निर्धारित नहीं की गयी, बल्कि यह दर २७ प्रतिशत वार्षिक थी। इन परिवादों के सन्दर्भ में पारित निर्णय दिनांकित ०१-११-२०१२ में भी यह तथ्य उल्लिखित है कि पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी द्वारा ऋण देने पर १.५८ प्रतिशत प्रति माह की दर से ब्याज निर्धारित किया गया। ऐसी परिस्थिति में मूल परिवाद में पारित निर्णय दिनांकित ०१-११-२०१२ के सन्दर्भ में पारित प्रभावी आदेश के सन्दर्भ में ब्याज की दर १.५८ प्रतिशत प्रति माह ही स्वीकार की जा सकती है। निष्पादन वाद के निस्तारण में पुन: ब्याज की दर की गणना नहीं की जा सकती और न ही पुनरीक्षणकर्ता निष्पादन वाद की सुनवाई के मध्य यह तथ्य प्रस्तुत करने के लिए स्वतन्त्र माना जा सकता कि ब्याज की दर १.५८ प्रतिशत मासिक न हो कर २७ प्रतिशत वार्षिक थी। ऐसी परिस्थिति में हमारे विचार से विद्वान जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश दिनांकित ०५-०६-२०१४ इस सन्दर्भ में विधिक रूप से त्रुटिपूर्ण नहीं है।
यह भी उल्लेखनीय है कि आदेश दिनांक ०५-०६-२०१४ के विरूद्ध ये पुनरीक्षण याचिका दिनांक २९-०१-२०१५ को योजित की गयी हैं। पुनरीक्षण याचिका के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को क्षमा किए जाने के सन्दर्भ में पुनरीक्षणकर्ता द्वारा प्रस्तुत किए गये प्रार्थना पत्र में यह अभिकथन किया गया है कि आदेश दिनांक ०५-०६-२०१४ के पुनर्विलोकन हेतु प्रार्थना पत्र जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। यह प्रार्थना पत्र भी दिनांक १०-१०-२०१४ को विद्वान जिला मंच द्वारा निरस्त कर दिया गया।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के प्राविधानों एवं मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा सिविल अपील सं0-4307/2007 एवं 8155/2001 राजीव हितेन्द्र पाठक व अन्य बनाम् अच्युत काशीनाथ कारेकर व अन्य में पारित निर्णय दिनांक 19/08/2011, IV (2011) CPJ 35 (SC) में दी गयी विधि व्यवस्था के आलोक में जिला मंच को अपने आदेश का पुनर्विलोकन करने का अधिकार प्राप्त नहीं है।
ओम शिपिंग एजेन्सीज प्रा0लि0 बनाम प्रभाग एक्सपोर्ट्स IV (2011) CPJ 336 (NC) में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि एक पक्षीय आदेश को वापस लेने का अधिकार जिला मंच एवं राज्य आयोग को नहीं है। अत: एक पक्षीय आदेश को निरस्त करने
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हेतु दिए गये प्रार्थना पत्र के निस्तारण में व्यतीत हुआ समय निर्धारित परिसीमा अवधि में घटाया नहीं जायेगा। ऐसी परिस्थिति में पुनरीक्षण याचिका योजित करने की परिसीमा अवधि की गणना आदेश दिनांक ०५-०६-२०१४ से की जायेगी।
पुनरीक्षण याचिका के प्रस्तुतीकरण में हुए विलम्ब को क्षमा किए जाने के सन्दर्भ में प्रस्तुत प्रार्थना पत्र के अवलोकन से यह भी विदित होता है कि जिला मंच द्वारा पारित आदेश दिनांक १०-१०-२०१४ की प्रमाणित प्रतिलिपि पुनरीक्षणकर्ता के स्थानीय अधिवक्ता द्वारा प्राप्त की गयी। दिनांक १०-१०-२०१४ को पारित आदेश की प्रति प्राप्त करने के बाबजूद पुनरीक्षण याचिका दिनांक २९-०१-२०१५ को योजित की गयी। विलम्ब का स्पष्टीकरण पुनरीक्षणकर्ता की ओर से सन्तोषजनक प्रस्तुत नहीं किया गया। अत: गुणदोष के अतिरिक्त कालबाधित होने के आधार पर भी प्रस्तुत दोनों पुनरीक्षण याचिकाऐं निरस्त होने योग्य हैं।
आदेश
प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका सं0-१५/२०१५ एवं १३/२०१५ निरस्त की जाती हैं। जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश दिनांकित ०५-०६-२०१४ एवं दिनांकित १०-१०-२०१४ की पुष्टि की जाती है।
इन दोनों पुनरीक्षण याचिकाओं के व्यय-भार के सम्बन्ध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है। इस निर्णय की मूल प्रति पुनरीक्षण सं0-१५/२०१३ में रखी जाय तथा एक प्रमाणित प्रतिलिपि पुनरीक्षण याचिका सं0-१३/२०१५ में रखी जाय।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(महेश चन्द)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-५.