जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
श्रीमति मोनिका वर्मा पत्नी श्री सुनील कुमार टेलर, निवासिनी-43 -सी, नवरंग नगर, छावनी रोड़, ब्यावर, अजमेर ।
- प्रार्थिया
बनाम
1. उप आवासन आयुक्त, राजस्थान आवासन मण्डल, वृत्त द्वितीय, मानसरोवर, जयपुर(राजस्थान)
2. सहायक सम्पदा प्रबन्धक, राजस्थान आवासन मण्डल, वैषाली नगर, अजमेर ।
3. आवासीय अभियंता, राजस्थान आवासन मण्डल, खण्ड अजमेर, वैषाली नगर, अजमेर ।
4. परियोजना अभियंता, राजस्थान आवासन मण्डल, गढी थोरियान, ब्यावर, जिला-अजमेर ।
- अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 147/2016
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
3. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री बसन्त कुमार , अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री उमाकान्त अग्रवाल, अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः-13.10.2016
1. प्रार्थिया द्वारा प्रस्तुत परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हंै कि उसने अप्रार्थी आवासन मण्डल की विषिष्ट पंजीकरण योजना, 2009 आवासीय योजना नसीराबाद/गढी थोरियान, ब्यावर में मध्यम आय वर्ग में आवास आवंटन हेतु रू. 50,000/- अदा कर पंजीकरण कराया । तत्पष्चात् अप्रार्थी द्वारा आय का आक्षेप लगा दिए जाने के कारण उसने दिनांक 31.10.2011 को रू. 70,000/- ओर जमा कराए । अप्रार्थी मण्डल के पत्र दिनांक 25.5.2010 की पालना में उसने पूर्वग्रहण की राषि 3 किष्तों में क्रमषः 40,000/-, 30,000/- व रू. 30,000/- भी जमा करा दिए । इसके बाद अप्रार्थी मण्डल द्वारा पत्र दिनांक 19.1.2015 के आवास संख्या 3-एमए-45 आवंटित करते हुए रू. 5,64,325/- जमा कराए जाने की मांग करने पर उसने दिनांक 24.2.2015 को उक्त राषि भी जरिए चालान जमा करा दी और उसने आवास का कब्जा प्राप्त कर लिया तथा आवास की षेष राषि किष्तों में अप्रार्थी मण्डल के पत्र दिनंाक 19.1.2015 के द्वारा अदा की जानी थी ।
प्रार्थिया का कथन है कि यदि उसे वर्ष 2012 में ही आवास आवंटित कर दिया जाता तो उसी के अनुरूप वह आवास की कीमत राषि मय विकास षुल्क इत्यादि के जमा कराती। किन्तु उसे वर्ष 2014 में आवास का आवंटन किया गया, इसलिए प्रार्थिया को वर्तमान दर के हिसाब से अधिक मूल्य अदा कर आवास का कब्जा प्राप्त करना पडा है तथा उसे डीएलसी/विकास षुल्क की राषि अधिक अदा करनी पडी है । प्रार्थिया ने अप्रार्थी मण्डल के उक्त कृत्य को सेवा में कमी बताते हुए परिवाद पेष कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में स्वयं का षपथपत्र पेष किया है ।
2. अप्रार्थी मण्डल ने जवाब प्रस्तुत करते हुए परिवाद की चरण संख्या 1 लगायत 4 के संबंध में कोई विवाद नहीं होने का कथन करते हुए यह दर्षाया है कि उत्तरदाता द्वारा आवास की कीमत आवास के आवंटन के समय बिना लाभ हानि के आधार पर तय की जाती है । प्रार्थिया स्वयं ने अपनी सकल आय में अपने पति की आय सम्मिलित नहीं की थी। इसलिए आवास आवंटन में देरी हुई है । उत्तरदाता ने आवास आवंटन के समय आवास की बिना लाभ हानि के वास्तविक कीमत पर बकाया राषि की मांग की है । अपने अतिरिक्त कथन में यह दर्षाया है कि आवास का पंजीकरण करते समय आवेदन पुस्तिका में जो आवास की कीमत बताई गई थी, वह अनुमानित कीमत थी । आवास की वास्तविक कीमत आवास के निर्माण में हुए वास्तविक खर्चो व अन्य सभी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष खर्चो को जोड़ते हुए तय की जाती है । अन्त में परिवाद खारिज किए जाने की प्रार्थना करते हुए जवाब के समर्थन में डी.एम.षर्मा,कार्यालय अधीक्षक का षपथपत्र पेष किया है ।
3. प्रार्थिया का प्रमुख तर्क है कि उसके द्वारा अप्रार्थी मण्डल की उक्त वर्णित योजना में आवेदन करने, पंजीकरण राषि जमा कराने, आय के संबंध में आक्षेप की पूर्ति के बाद राषि जमा करवाए जाने कें बाद अप्रार्थीगण द्वारा उक्त योजना मे आवास का आरक्षण किए जाने व इसके बाद पूर्वग्रहण राषि 3 किष्तों के जमा करवाए जाने के बाद जारी आवंटन पत्र के अनुसार मकान की कीमत जरिए चालान जमा करवाए दी गई व उसके द्वारा कब्जा भी प्राप्त कर लिया गया। किन्तु उक्त आवास का आवंटन वर्ष 2012 को दर्षित कीमत व विकास ष्षुल्क के अनुसार किया जाता तो प्रार्थिया को उपभोक्ता सन्तुष्टि के अनुसार कम राषि अदा करनी पड़ती। किन्तु अप्रार्थीगण द्वारा निष्चित समयावधि के बाद उक्त आवासीय आयोजना के अन्तर्गत वर्ष 2014 में आवंटित किया गया है, इस कारण उक्त आवास की कीमत वर्तमान दर से तथा अधिक मूल्य पर प्रार्थिया को अदा कर विवषतः उक्त आवास का कब्जा प्रापत करना पड़ा है व राषि का अधिभार उठाना पड़ा है । उसे वर्तमान दर से डीएलसी व विकास षल्क राषि अदा करनी पड़ रहीं है । प्रार्थिया को बढ़ी हुई कीमत से उक्त आवंटन का कब्जा प्राप्त करना पड़ा जो आवासन मण्डल के आधारभूत मूल्यांें का उल्लंघन है । उसे भारी आर्थिक व षारीरिक पीड़ा के कारण अप्रार्थीगण की सेवा में कमी व दोषपूर्ण कृत्य के कारण क्षतिपूर्ति दिलाई जानी चाहिए व परिवाद स्वीकार किया जाना चाहिए । अपने तर्को के समर्थन में विनिष्चय 1994क्छश्र;ैब्द्ध22 स्नबादवू क्मअमसवचउमदज ।नजीवतपजल टे डण्ज्ञण् ळनचजं पर अवलम्ब लिया है ।
4. खण्डन में इन समस्त तर्को का प्रतिवाद प्रस्तुत करते हुए अप्रार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने मात्र एक तर्क प्रस्तुत किया है कि उपभोक्ता को अप्रार्थीगण द्वारा निर्धारित आवास की कीमतों को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है । इस संबंध में उन्होने विनिष्चय त्मअपेपवद च्मजपजपवद छवण् 1209ध्2016 ैनकीं छंहसं टे त्ंरंेजींद भ्वनेपदह ठवंतक ;छब्द्ध व्तकमत क्ंजमक 10ण्5ण्2016 पर अवलम्ब लिया है ।
5. हमने परस्पर तर्क सुन लिए हैं, साथ ही पत्रावली में उपलब्ध अभिलेखों के साथ साथ प्रस्तुत विनिष्यों में प्रतिपादित सिद्वान्तों का भी ध्यानपूर्वक अवलोकन कर लिया है ।
6. इस मंच के समक्ष मात्र विचारणीय बिन्दु यह है कि क्या प्रार्थिया को आवटिंत आवास पेटे ली गई कीमत व विकास षुल्क की राषि अधिक प्राप्त की गई है ? एवं प्रार्थिया वर्ष 2012 के विकास षुल्क की दर से आवास आवंटित किए जाने की हकदार है ?
7. माननीय राष्ट्रीय आयोग ने सुधा नांगला वाले मामले में यह अभिनिर्धारित किया है कि जब तक अप्रार्थीगण या पब्लिक आॅथिरिटी द्वारा ऐसी योजनाओं के अन्तर्गत आवास की कीमतंे आरबीट्रेरी या गलत सिद्वान्तों के आधार पर तय नहीं की गई हों, जब तक इन्हें अथवा कीमतों को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती । हस्तगत मामले में प्रार्थिया द्वारा विषिष्ठ पंजीकरण योजना, 2009 के अंन्तर्गत आवेदन किया गया था तथा अप्रार्थीगण द्वारा आय के संबंध में आक्षेप के बाद उक्त आक्षेप की पूर्ति कर प्रार्थिया द्वारा तदनुसार पंजीकरण राषि जमा करवाई गई थी। इस कारण आवास के आवंटन में विलम्ब हुआ है तथा तत्मसय प्रचलित विकास दरों के अनुसार आवास की कीमत आंकी जाकर पूर्वग्रहण राषि की मांग की गई तथा इसके जमा करवाए जाने के बाद वर्ष 2015 में प्रार्थिया को आवास आवंटित किया गया था एवं तत्समय प्रचलित विकास दरों के अनुसार ही षुल्क तय किया जाकर मकान की कीमत आंकी जाकर आवंटन किया गया था । निष्चित रूप से यदि प्रार्थिया द्वारा प्रारम्भ में ही निर्धारित आय सीमा के अन्तर्गत विकास आवंटन हेतु आवेदन पत्र प्रस्तुत किया जाता व इस पर बिना आक्षेप के कार्यवाही की गई होती तो सम्भवतः उससे उक्त योजना के अन्तर्गत तत्सयम प्रचलित विकास दरों के अनुसार षुल्क प्राप्त किया गया होता । जो विनिष्चय प्रार्थिया की ओर से प्रस्तुत हुए हंै, में माननीय उच्चतम न्यायालय ने पाया था कि आवास के आवंटन में संबंधित अधिकारियों की लापरवाही व देरी का परिणाम था तथा तदनुसासर उनके विरूद्व कार्यवाही किए जाने की अनुषंषा या निर्देष दिए गए थे । चूंकि हस्तगत प्रकरण में ऐसी स्थिति नहीं है तथा यह विनिष्चय प्रार्थिया को कोई सहायता नहीं पहुंचाता ।
8. कुल मिलाकर उपरोक्त विवेचन के अनुसार स्थिति जो सामने आई है, को देखते हुए प्रार्थिया द्वारा आवेदित आवास की आय सीमा में बढ़ोतरी के कारण देरी के फलस्वरूप ली गई विकास षुल्क राषि आरबीट्रेरी अथवा मनमाना नहीं कहा जा सकता । मंच की राय में परिवाद स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है एवं आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
9. प्रार्थिया का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
आदेष दिनांक 13.10.2016 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (श्रीमती ज्योति डोसी) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
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