(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1983/2006
डा0 अजय कुमार अग्रवाल, पोपराइटर, अग्रवाल नर्सिंग एण्ड मैटरनिटी होम, निकट घण्टा घर, जूता वली गली, फिरोजाबाद
बनाम
आर.एम. अशरफ पुत्र श्री जमील अहमद, निवासी गली नं0-8, पुलिस स्टेशन जीवनगढ़, क्वारसी नगर व जिला अलीगढ़
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अवधेश शुक्ला।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री वी.एस. बिसारिया।
दिनांक : 23.01.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-87/2002, आर.एम. अशरफ बनाम डा0 अजय कुमार अग्रवाल में विद्वान जिला आयोग, फिरोजाबाद द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27.7.2006 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री अवधेश शुक्ला तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी.एस. बिसारिया को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. परिवाद के तथ्यों के अनुसार दिनांक 18.1.1993 को परिवादी द्वारा विपक्षी डा0 से किडनी स्टोन का आपेरशन कराया गया, इसके बाद दिनांक 20.5.2002 को हार्निया के आपरेशन के लिए विपक्षी डा0 के समक्ष उपस्थित हुआ, परन्तु विपक्षी डा0 द्वारा परिवादी को उच्चतर मेडिकल सेण्टर के लिए रेफर कर दिया गया।
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परिवादी का यह आरोप है कि दिनांक 18.1.1993 को किये गये आपरेशन के दौरान कारित लापरवाही से इण्टर कोस्टल नर्व को क्षति कारित हुई, इसी क्षति के कारण हार्निया उत्पन्न हुआ, इसलिए वर्ष 2002 में यह परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. विपक्षी का कथन है कि परिवाद समयावधि से बाधित है। वर्ष 1993 में आपरेशन किया गया था, जबकि परिवाद वर्ष 2002 में प्रस्तुत किया गया है तथा यह भी की इलाज के दौरान किसी प्रकार की लापरवाही नहीं बरती गयी। इण्टर कोस्टल नर्व की कोई क्षति कारित नहीं हुई है।
4. विद्वान जिला आयोग द्वारा दोनों पक्षों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात परिवाद की समयावधि के संबंध में यह निष्कर्ष दिया है कि वादकारण दिनांक 30.3.2002 को उत्पन्न हुआ है, इसलिए परिवाद समयावधि के अंतर्गत है तथा लापरवाही के संबंध में यह निष्कर्ष दिया गया है कि परिवादी की ओर से विशेषज्ञ की राय को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसके आधार पर यह साबित है कि आपरेशन के समय डा0 द्वारा लापरवाही बरतना परिलक्षित है। तदनुसार अंकन 2.00 लाख रूपये की क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया गया।
5. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि दिनांक 18.1.1993 के पश्चात परिवादी कभी भी अपीलार्थी डा0 के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ, वह दूसरी बार वर्ष 2002 में हार्निया के आपरेशन के लिए उपस्थित हुआ, जो उनके द्वारा नहीं किया गया और उच्चतर मेडिकल सेण्टर को रेफर कर दिया गया, इसलिए
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विद्वान जिला आयोग का यह निष्कर्ष विधि विरूद्ध है कि दिनांक 20.5.2002 को वादकारण उत्पन्न हुआ। परिवादी ने जिस आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया है, उस आधार को विचार में लेते हुए कहा जा सकता है कि वादकारण दिनांक 18.1.1993 को ही उत्पन्न हुआ था, जिस समय परिवादी का आपरेशन किया गया था न कि दिनांक 20.5.2002 को, जिस समय परिवादी को रेफर किया गया, इसलिए स्पष्ट है कि विद्वान जिला आयोग द्वारा समयावधि से बाधित परिवाद पर अपना निर्णय पारित किया गया है।
6. जहां तक गुणदोष का प्रश्न है। दिनांक 18.1.1993 को इण्टर कोस्टल नर्व की क्षति कारित होने का कोई सबूत पत्रावली पर मौजूद नहीं है। परिवादी को जिस समय आपरेशन के पश्चात डिसचार्ज किया गया, उस समय भी इस क्षति का कोई उल्लेख नहीं किया गया। विद्वान जिला आयोग द्वारा जिस विशेषज्ञ साक्ष्य को विचार में लिया गया, उनके द्वारा तैयार किये गये दस्तावेज में भी इण्टर कोस्टल नर्व का कोई उल्लेख नहीं है। अत: इस बिन्दु पर विद्वान जिला आयोग द्वारा साक्ष्य के विपरीत निर्णय/आदेश पारित किया गया है, जो अपास्त होने और प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
7. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27.7.2006 अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
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प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3