राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील सं0 :- 2604/1998
(जिला उपभोक्ता आयोग, लखीमपुर खीरी द्वारा परिवाद सं0- 119/1997 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 18/09/1998 के विरूद्ध)
Manager Allahabad Bank, Branch Mohammadi, District Kheri
Ram Chandra Verma, Son of Late Nanhkai Lal, resident of village Bhanpur Banwari Post Gulaoli P.S. Mohammadi, District Kheri.
समक्ष
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
- मा0 डा0 आभा गुप्ता , सदस्य
उपस्थिति:
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री दीपक मेहरोत्रा, एडवोकेट
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- कोई नहीं
दिनांक:-04-03-2022
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
- जिला उपभोक्ता आयोग, लखीमपुर खीरी द्वारा परिवाद सं0- 119/1997 रामचन्द्र वर्मा पुत्र नन्हकाई बनाम प्रबन्धक इलाहाबाद बैंक में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 18/09/1998 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- मामले के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा परिवाद पत्र इन आधारों पर प्रस्तुत किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के पिता नन्काई लाल पुत्र गयादीन ने एक ट्रैक्टर आयशर नं0 यू0पी0 31/5226 कृषि कार्य हेतु इलाहाबाद बैंक शाखा मोहम्मदी से दिनांक 28.02.1990 को ली थी। प्रत्यर्थी/परिवादी अपने पिता की मृत्यु के पश्चात दिनांक 04.10.1996 को अपीलार्थी/विपक्षी बैंक के पास हिसाब किताब करने को गया तो पता लगा कि आज तक कोई पासबुक आदि की पॉलिसी नहीं ली गयी है। प्रत्यर्थी/परिवादी के कथनानुसार वह कर्जे की धनराशि अदा करने बैंक गया, किन्तु धनराशि नहीं ली गयी। उसके स्थान पर बैंक प्रबंधक द्वारा अधिक धनराशि की मांग की गयी और प्रत्यर्थी/:परिवादी को मारपीट कर हवालात में बंद करा देने और ट्रैक्टर नीलाम कर देने की धमकी भी दी गयी। बैंक के मैनेजर द्वारा कर्जे के बावत अधिक बकाया होना बताया गया। प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन है कि उसके पिता की मृत्यु के पश्चात कर्जे के संबंध में उसे कोई नोटिस नहीं दिया गया है और वसूली हेतु आर0सी0 भेज दी गयी है। उक्त आधारों पर क्षतिपूर्ति एवं अन्य अनुतोष हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा परिवाद प्रस्तुत किया गया। अपीलकर्ता बैंक की ओर से परिवाद के दौरान वादोत्तर प्रस्तुत किया गया, जिसमें कहा गया कि परिवादी या उसके पिता उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आते हैं। परिवादी मूल ऋणी का विधिक उत्तराधिकारी है न तो बैंक का ऋणी है और न ही जमानतदार है इसलिए उपभोक्ता की परिभाषा में नहीं आता है। परिवादी को परिवाद दायर करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। मूल ऋणी नन्काई ने रूपये 76,000/- का ट्रक दिनांक 28.02.1990 को लिया था। ऋण की अदायगी नियमित छमाही किश्तों में देने का करार हुआ था तथा ट्रैक्टर विधिवत बैंक के पक्ष में हाइपोथियेटेड था तथा बैंक के पक्ष में बंधक रखा गया था। परिवादी के पिता ने अपने जीवन काल में नियमित किश्तें अदा नहीं की तथा ऋण ओवरडयू हो गया। अपीलकर्ता बैंक को मूल ऋणी से तथा उसके उपरान्त उत्तराधिकारी परिवादी से हाइपोथियेटिक ट्रैक्टर तथा ऋण की वसूली हेतु कृषि भूमि का निर्माण भू राजस्व के रूप में वसूल करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है, जिसके लिए वसूली प्रमाण पत्र विधिवत जिलाधिकारी, लखीमपुर खीरी दिनांक 28.01.1997 को भेज दिया गया है। परिवादी ने इसके उपरान्त स्वेच्छा से आकर बैंक में पिता द्वारा लिये गये ऋण की कुल अदायगी करके अपना हस्ताक्षर कर दिये तथा दिनांक 11.03.1997 को ही नोडयूज प्रमाण पत्र भी बैंक से ले लिया। इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा तय किया गया कि परिवाद स्वत: ही समाप्त हो गया है। बैंक द्वारा कथन किया गया कि परिवाद के विरूद्ध आपत्ति दाखिल करने तथा अन्य व्यय हुआ है, जिसके आधार पर बैंक की ओर से क्षतिपूर्ति की धनराशि मांगी गयी है। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी से वसूल की गयी ब्याज की धनराशि रूपये 1,911/- तथा पर्यवेक्षण में ली गयी धनराशि रूपये 700/- कलेक्शन चार्ज 6.25 प्रतिशत अधिक रूपये 4,958/- अर्थात् कुल 7,569/- मय 12 प्रतिशत ब्याज के परिवाद इन आधारों पर आज्ञप्त किया कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा उठायी गयी आपत्ति में बल है कि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा वसूल किये गये 10 प्रतिशत की दर से कलेक्शन चार्ज अवैध है। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा यह दिया गया है कि मा0 उच्च न्यायालय के निर्णय प्रावधानों के अनुसार कलेक्शन चार्जेज 3.75 प्रतिशत से अधिक नहीं लिया जा सकता है। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा यह भी निर्णीत किया गया कि निरीक्षण पर्यवेक्षण चार्जेज वसूली नहीं किया जाना चाहिए। इन आधारों पर यह वाद आज्ञप्त किया गया, जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम को यह अधिकार प्राप्त नहीं है कि वह राज्य सरकारों द्वारा लगाये गये पर्यवेक्षण तथा निरीक्षण शुल्कों और कलेक्शन चार्ज को अवैध घोषित कर दे क्योंकि यह चार्ज राज्य सरकार द्वारा लगाया जाता है तथा राज्य सरकार एवं परिवादी के मध्य उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता के संबंध नहीं हैं। परिवादी द्वारा दिनांक 11.03.1997 को कर्ज की समस्त धनराशि बिना किसी प्रतिरोध के दे दी गयी थी। अत: प्रश्नगत परिवाद अनुचित प्रकार से मात्र लाभ प्राप्त करनेके उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है। प्रश्नगत निर्णय अपास्त होने योग्य एवं अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
- अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री दीपक मेहरोत्रा को सुना। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख का अवलोकन किया तत्पश्चात पीठ के निष्कर्ष निम्नलिखित प्रकार से हैं:-
- परिवाद पत्र में वादोत्तर के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि उपभोक्ता के मध्य ऋण का कोई विवाद शेष नहीं रहा है जो मूल रूप से उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता के मध्य का विवाद था। स्वीकार्य रूप से कर्ज की अदायगी न होने पर अपीलकर्ता बैंक ने विधिनुसार वसूली हेतु वसूली प्रमाण पत्र जिलाधिकारी, लखीमपुर खीरी को प्रेषित कर दिया था। इस तथ्य को प्रत्यर्थी की ओर से गलत नहीं बताया गया। अत: विधिक रूप से राज्य सरकार द्वारा निर्धारित कलेक्शन चार्जेज तथा पर्यवेक्षण एवं निरीक्षण शुल्क लिया जाना न्यायोचित है। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा गलत रूप से एवं क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर कलेक्शन चार्जेज वापस किये जाने एवं राज्य सरकार द्वारा निर्धारित सर्वेक्षण तथा निरीक्षण शुल्क वापस दिलाये जाने का आदेश पारित किये गये हैं जो उचित प्रतीत नहीं होता है। अत: प्रश्नगत निर्णय अपास्त किये जाने योग्य एवं अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
अपील स्वीकार की जाती है। प्रश्नगत निर्णय व आदेश अपास्त किया जाता है।
अपील में उभय पक्ष वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना)(डा0 आभा गुप्ता)
संदीप आशु0कोर्ट नं0-3