Uttar Pradesh

StateCommission

A/2001/546

Vinod Kumar Sinha - Complainant(s)

Versus

R C Jindal - Opp.Party(s)

O P Duvel

05 May 2006

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2001/546
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. Vinod Kumar Sinha
a
 
BEFORE: 
 HON'ABLE MR. Ram Charan Chaudhary PRESIDING MEMBER
 HON'ABLE MR. Jugul Kishor MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, 0 प्र0 लखनऊ

                   अपील संख्‍या  546 सन  2001         सुरक्षित

 (जिला उपभोक्‍ता फोरम, इलाहाबाद के  परिवाद केस संख्‍या-255/1994 में  पारित निर्णय/आदेश दिनांक-03-08-1995 के विरूद्ध)

विनोद कुमार सिन्‍हा पुत्र जे0एन0 पी0 सिन्‍हा पूर्व प्रोपराइटर सिंगमा प्रिन्‍टर्स एण्‍ड स्‍टेशनर्स मार्ट  ई-50 एफ0एफ0 कम्‍पलेक्‍स झण्‍डेवालान रानी झांसी रोड़ नई दिल्‍ली।                                        ..अपीलार्थी/विपक्षी

                             बनाम

आर0सी0 जिन्‍दल पुत्र श्री नाथूराम मेसर्स संगम प्रिंटर्स 27/18 स्‍टेनली रोड़, इलाहाबाद।                                     .....प्रत्‍यर्थी/परिवादी                                    

समक्ष:-

  1.   मा0 श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्‍य।
  2.  मा0 जुगुल किशोर, सदस्‍य।                           

अधिवक्‍ता  अपीलार्थी       : श्री ओ0पी0 दुबैल, विद्वान अधिवक्‍ता।

अधिवक्‍ता प्रत्‍यर्थी          : श्री अरूण टण्‍डन, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक:  17-11-2014

मा0 श्री  आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित।

निर्णय

मौजूदा अपील जिला उपभोक्‍ता फोरम, इलाहाबाद के  परिवाद केस संख्‍या-255/1994 में  पारित निर्णय/आदेश दिनांक-03-08-1995 के विरूद्ध प्रस्‍तुत किया गया है। उपरोक्‍त निर्णय में यह आदेश पारित किया गया है कि प्रतिवादी को आदेशित किया जाता है कि आदेश प्राप्‍त करने के दो माह के भीतर वादी को  32,000-00 रूपये उस पर दिनांक-05-08-1993 से 12 प्रतिशत बयाज क्षतिपूर्ति तथा वाद व्‍यय 200-00 रूपये व 500-00 रूपये वादी को दे दें1 प्रतिवादी वादी को इस अवधि के भीतर रूपया का भुगतान नहीं करता है तो सम्‍पूर्ण पैसे पर 18 प्रतिशत ब्‍याज सहित प्रतिवादी वादी को देंगें।

संक्षेप में केस के तथ्‍य इस प्रकार से है कि वादी ने कम्‍प्‍यूटर खरीदने हेतु प्रतिवादी के यहॉ आर्डर बुक कराया। इस कम्‍प्‍यूटर की कीमत 32,000-00 रूपये थी, जिसका भुगतान दिनांक-29-06-1993 को 15,000-00 तथा

(2)

दिनांक-06-10-1993 को 5,000-00 एवं दिनांक-05-08-1993 को 5000-00 रूपये तथा 7,000-00 रूपये नगद भुगतान किया, जिसकी रसीद प्राप्‍त किया। विपक्षी भुगतान प्राप्‍त करने के बावजूद प्रार्थी को कम्‍प्‍यूटर नहीं दिया, जबकि कम्‍प्‍यूटर वादी को एक सप्‍ताह के भीतर मिल जाना चाहिए था। वादी को भारी क्षति हो रही है।

प्रतिवादी को सूचना रजिस्‍ट्री से भेजी गई थी, जो यह लिखकर वापस आ गया है कि बार-बार जाने पर नहीं मिलते है। अत: रजिस्‍ट्री वापस आ गई। अत: सूचना पर्याप्‍त मानते हुए परिवाद एक तरफा निर्णीत किया गया।

इस सम्‍बन्‍ध में जिला उपभोक्‍ता फोरम के निर्णय/आदेश दिनांकित-03-08-1995 का अवलोकन किया गया, अपील के आधार का अवलोकन किया गया तथा अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता श्री ओ0पी0 दुवैल तथा प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री अरूण टण्‍डन को सुना गया।

अपील के आधार में कहा गया है कि परिवादी ने एक कम्‍प्‍यूटर खरीदने हेतु अपीलकर्ता से बात किया और कम्‍प्‍यूटर तथा उसके अन्‍य सामान सी.वी.टी. खरीदने व एक प्रिन्‍टर्स शेयरर को मुबलिक 32,000-00 रूपये में खरीदने हेतु तय किया। परिवादी ने अपीलार्थी को 29-06-1993 को चेक से 15,000-00 रूपये का भुगतान किया। तत्पश्‍चात उनका कम्‍प्‍यूटर तैयार हो गया और वे दिनांक-05-08-1993 को मेरे कम्‍पनी में पहुंचे और कम्‍प्‍यूटर की मांग की, जिस पर उन्‍होंने मुझे 7,000-00 रूपये नकद और पांच हजार रूपये का बैंक आफ बडौदा का एक वियरर चेक दिनांक-05-08-1993 को दिया और साथ में एक पोस्‍टडेटेड चेक संख्‍या-298032 दिनांक-06-10-1993 का पॉच हजार रूपये का दिया और उसी दिन समस्‍त सामान अर्थात कम्‍प्‍यूटर एक सी.वी.टी. तथा एक प्रिन्‍टर शेयरर  साथ में हाथों-हाथ ले गये, जिसकी बिल रसीद अपीलार्थी ने परिवादी को तुरन्‍त दिया और उक्‍त यत्रों  की पावती का चालान परिवादी से हस्‍ताक्षर कराकर मूल प्रति उनको दे दिया तथा दूसरी प्रति अपीलार्थी के पास है। अपीलार्थी ने दिनांक-05-08-1993 को ही कम्‍प्‍यूटर व सी.वी.टी तथा प्रिन्‍टर शेयरर दे दिया था और उसकी रसीद भी दे दिया था,

(3)

लेकिन परिवादी ने झूठे कथनों पर यह परिवाद दायर कर दिया है। न्‍यायालय से अपीलार्थी को कोई नोटिस व सम्‍मन आदि प्राप्‍त नहीं हुआ है, क्‍योंकि 1993 में ही अपीलार्थी की उक्‍त फर्म टूट गई और फर्म बन्‍द हो गई। उक्‍त वाद की जानकारी दिनांक-05-03-2001 को उस समय हुई जब तीस हजारी न्‍यायालय का कोई कर्मचारी मेरे पूर्व कार्यालय को बन्‍द पाकर उसके आस पास पड़ोसियों से पूछ-तांछ किया और पड़ौसी ने जब मुझे बताया तो अपीलार्थी  इस सम्‍बन्‍ध में तीस हजारी न्‍यायालय जनपद न्‍यायालय दिल्‍ली गया और वहॉ पर इस सम्‍बन्‍ध में जॉच कराई तो प्रश्‍नगत वाद की जानकारी हुई। अपीलार्थी का पुर्नस्‍थापन प्रार्थना पत्र दिनांक-14-03-2001 को खारिज कर दिया गया और इसके बाद यह अपील दायर किया गया है।

इस सम्‍बन्‍ध में अपील दायर करने में जो देरी हुई है, उसके लिए देरी माफी का प्रार्थना पत्र भी दिया गया है और वही कारण दिये गये है कि उन्‍हें इस केस की जानकारी नहीं थी और क्षेत्राधिकार के बारे में भी आपत्ति अपीलकर्ता द्वारा उठाई गई है कि इलाहाबाद न्‍यायालय को अधिकार प्राप्‍त नहीं था और सारा लेन-देन दिल्‍ली में हुआ है और देरी क्षमा प्रार्थना पत्र अपीलकर्ता के तरफ से दिया गया है जो पत्रावली में संलग्‍न है।

अपील के विरूद्ध जो जवाब प्रत्‍यर्थी के तरफ से प्रस्‍तुत किया गया है, उसके पैरा-3 में स्‍पष्‍ट कहा गया है कि संलग्‍नक- ख जो पृष्‍ठ-14 पर लगाया गया है, वह फर्जी है और देनदारी से बचने के लिए दिया गया है और प्रत्‍यर्थी ने कोई कम्‍प्‍यूटर प्राप्‍त नहीं किया है और प्रत्‍यर्थी के हस्‍ताक्षर जाली है और अपील खारिज होने योग्‍य है।

दोनों पक्षकारों को सुनने के उपरान्‍त यह तथ्‍य स्‍पष्‍ट है कि मौजूदा केस में जो निर्णय दिनांक-03-08-1995 को पारित किया गया था, उसको निरस्‍त करने के बारे में प्रार्थना पत्र जिला फोरम इलाहाबाद के समक्ष विपक्षी अपीलकर्ता ने दिनांक-12-03-01 प्रार्थना पत्र दिया और उस प्रार्थना पत्र को दिनांक-14-03-2001 को निरस्‍त कर दिया गया, इसके बाद यह अपील दिनांक-27-03-2001 को पेश किया गया है और इस सम्‍बन्‍ध में निष्‍पादन

(4)

केस सं0-29/1997 की पूर्ण आदेश पत्र भी दाखिल किया गया है, जिससे स्‍पष्‍ट है कि सिविल जज, दिल्‍ली में वाद सं0-255/94 आर0सी0 जिन्‍दल बनाम मेसर्स सिंगमा प्रिंटर्स के निष्‍पादन वाद को दिल्‍ली न्‍यायालय  में भेजा गया और यह आदेश पत्र दिनांक-25-03-1997 से 16-03-2001 तक उसकी प्रमाणित प्रति दाखिल की गई है, इससे स्‍पष्‍ट है कि निष्‍पादन केस के बाद ही अपीलकर्ता को पता चला कि उसके विरूद्ध इजराय केस इलाहाबाद में परिवादी ने किया था। इन सब से महत्‍वपूर्ण कड़ी यह है कि कागज सं0-14 में परिवादी के द्वारा कम्‍प्‍यूटर वगैरह प्राप्‍त किये जाने का दर्शाया गया है और उसमें हस्‍ताक्षर व 05-08-1993 की तिथि स्‍पष्‍ट रूप से लिखी है और कागज सं0-15 पत्रावली में शामिल है और मौजूदा केस में जो रूपया वगैरह की अदायगी है, उसको देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता है कि जो इतने सारे रूपये जाकर देगा वह कम्‍प्‍यूटर हाथों-हाथ क्‍यों नहीं लेगा और इससे स्‍पष्‍ट है कि कागज सं0-14 में जो कम्‍प्‍यूटर वगैरह प्राप्ति के हस्‍ताक्षर किये गये है, जिसे परिवादी/प्रत्‍यर्थी फर्जी हस्‍ताक्षर बता रहा है। इन तथ्‍यों को पुन: सुनवाई के लिए और अपीलकर्ता एवं परिवादी को अपना पक्ष रखने के लिए यह आवश्‍यक है कि मौजूदा केस को रिमाण्‍ड किया जाना आवश्‍यक है और हम इस मत के है कि मौजूदा केस पुन: सुनवाई के लिए जिला उपभोक्‍ता फोरम इलाहाबाद को रिमाण्‍ड किया जाना आवश्‍यक है, जिससे यह साबित हो सके कि परिवादी को डिलेवरी मिला था या नहीं और रसीद पर उसके हस्‍ताक्षर सही है या नहीं। परिवादी को भी अपना पक्ष प्रस्‍तुत करने का मौका मिलेगा और अपीलकर्ता की अपील स्‍वीकार होने योग्‍य है और अपील रिमाण्‍ड किये जाने योग्‍य है।

आदेश

अपीलकर्ता की अपील स्‍वीकार करते हुए जिला उपभोक्‍ता फोरम, इलाहाबाद को रिमाण्‍ड किया जाता है कि जिला उपभोक्‍ता फोरम को यह निर्देश दिया जाता है कि दोनों पक्षों को उपरोक्‍त तथ्‍यों के दृष्टिगत साक्ष्‍य एवं सुनवाई का समुचित

 

(5)

अवसर प्रदान करते हुए मामले का निस्‍तारण गुणदोष के आधार पर शीघ्रातिशीघ्र करना सुनिश्चित करें।

उभय पक्ष अपना-अपना अपील व्‍यय स्‍वयं वहन करेगें।

 

 

      (राम चरन चौधरी)                        ( जुगुल किशोर )

       पीठासीन सदस्‍य                              सदस्‍य

आर0सी0वर्मा, आशु. ग्रेड-2

कोर्ट नं0-5

 
 
[HON'ABLE MR. Ram Charan Chaudhary]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'ABLE MR. Jugul Kishor]
MEMBER

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