Uttar Pradesh

StateCommission

CC/22/2016

Ghanshyam Verma - Complainant(s)

Versus

Puwotar Railway - Opp.Party(s)

parswnath tiwari

01 May 2023

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Complaint Case No. CC/22/2016
( Date of Filing : 25 Jan 2016 )
 
1. Ghanshyam Verma
Azamgarh
...........Complainant(s)
Versus
1. Puwotar Railway
Lucknow
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 01 May 2023
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

परिवाद सं0-22/2016

 

1. घनश्‍याम वर्मा पुत्र स्‍व0 किरजा शंकर ग्राम चक सेठवल, पोस्‍ट व थाना रानी की सराय तहसील सदर जिला आजमगढ़, उ0प्र0 -  (मृतक)

 

1/1-राजीव वर्मा पुत्र स्‍व0 घनश्‍याम वर्मा

1/2-रवि कुमार वर्मा पुत्र स्‍व0 घनश्‍याम वर्मा

1/3-पूजा वर्मा पुत्री स्‍व0 घनश्‍याम वर्मा

1/4-प्रीति वर्मा पुत्री स्‍व0 घनश्‍याम वर्मा

 

समस्‍त निवासीगण - ग्राम चक सेठवल, पोस्‍ट व थाना रानी की सराय तहसील सदर जिला आजमगढ़, उ0प्र0।

 ...........परिवादीगण।  

बनाम

पूर्वोत्‍तर रेलवे (भारतीय रेल) द्वारा मण्‍डल रेल प्रबन्‍धक, पूर्वोत्‍तर रेलवे, मुख्‍यालय, लखनऊ।                              ............ विपक्षी।

समक्ष:-

1. मा0 श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य।

2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

 

परिवादीगण की ओर से उपस्थित: श्री पारस नाथ तिवारी अधिवक्‍ता।

विपक्षी की ओर से उपस्थित  : श्री पी0पी0 श्रीवास्‍तव अधिवक्‍ता।

 

दिनांक :- 09-05-2023.

 

मा0 श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

 

निर्णय

संक्षेप में परिवादीगण का कथन है कि उनकी राजीव ज्‍वेलर्स के नाम से एक दुकान चक सेठवल, रानी की सराय, आजमगढ़ में स्थित है। इस दुकान पर निर्मित गहनों की बिक्री तथा अन्‍य दुकान पर बने गहनों की

 

खरीद के लिए परिवादी क्रय-विक्रय हेतु दिल्‍ली अमृतसर की बाजारों में जाया करते हैं। दिनांक 2—06-2015 को सायं 7-30 बजे मूरी एक्‍सप्रेस द्वारा अमृतसर से इलाहाबाद की यात्रा बर्थ सं0-63, एस-6 में परिवादी कर रहा था और उसके पास करीब 01.00 किलो सोने के गहने भी रखे थे। जालन्‍धर के आगे करीब एक घण्‍टा ट्रेन चलने के बाद उसे नींद आ गई और सो गया। दिल्‍ली स्‍टेशन के आगे टी0टी0आई0 द्वारा टिकट चेक किया गया तब उसकी नींद खुली तो पाया कि उसकी बनियान एवं पैजामा ब्‍लेड से काटकर जेवर अज्ञात चोरों द्वारा निकाल लिए गए हैं। उसने इसकी सूचना तत्‍काल ट्रेन में चल रहे जी0आर0पी0 को दी तो वे उसे टूण्‍डला जंक्‍शन पर जी0आर0पी0 थाने ले गए तथा उसकी प्राथमिकी दर्ज की गई। बाद में वह दूसरी ट्रेन से आया। काफी समय बीत जाने के बाद भी उसका सामान नहीं मिला। गायब सोने के जेवरात का कुल बाजारू मूल्‍य 20.00 लाख रू0 से अधिक था।

विपक्षी अपने यात्रियों की सुरक्षा के लिए उत्‍तरदायी है और यात्रा के दौरान् होने वाली किसी प्रकार की हानि के लिए वह भुगतान करने के लिए उत्‍तरदायी है। चोरी के जेवरात आज तक बरामद नहीं हो पाए। यह विपक्षी की सेवा में कमी है। अत: वर्तमान परिवाद निम्‍नलिखित अनुतोष के लिए प्रस्‍तुत किया गया :-

1.     विपक्षी को आदेश दिया जाए कि वह परिवादी को, चोरी गए जेवरात का मूल्‍य 21,00,000/- रू0 और इस पर दिनांक 25-06-2015 से अन्तिम भुगतान की तिथि तक 18 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज भी अदा करे।

2.    विपक्षी को आदेश दिया जाए कि वह परिवादी को मानसिक परेशानी व अन्‍य परेशानी तथा वाद व्‍यय के लिए 05.00 लाख रू0 का भुगतान करे।

3.    अन्‍य अनुतोष जो माननीय राज्‍य उपभोक्‍ता आयोग की दृष्टि में उचित हो वह विपक्षी से दिलाया जाए।

      विपक्षी ने अपने लिखित कथन में कहा है कि परिवादी का दिनांक 25-06-2015 को गाड़ी सं0-18110 से यात्रा करना निर्विवाद है। शेष कथन पूर्णतया गलत एवं अस्‍वीकार हैं। बनियान के जब में लगभग एक किलो सोने के जेवर रखना असम्‍भव प्रतीत होता है। परिवादी शातिर किस्‍म का व्‍यक्ति है तथा परिवादी ने जनपद आजमगढ़ में वाद सं0-213/2015 घनश्‍याम वर्मा बनाम स्‍टेशन मास्‍टर आजमगढ़ व अन्‍य का परिवाद दाखिल किया है जो माननीय जिला फोरम में विचाराधीन है। उक्‍त वाद में भी परिवादी ने आरोप लगाया है कि यात्रा के दौरान् परिवादी को बनियान के जेब से परिवादी के सो जाने पर किसी अज्ञात व्‍यक्ति ने जब काट लिया तथा एक लाख रूपया निकाल लिया।

      परिवादी का परिवाद रेल वे क्‍लेम ट्रिब्‍युनल की धारा-13 व 15 से बाधित है। परिवादी ने ऐसा कोई आरोप नहीं लगाया है कि कोच में कोई अनाधिकृत व्‍यक्ति यात्रा कर रहा था या कोच के सभी दरवाजे रात्रि में भी खुले थे। इससे भी स्‍पष्‍ट है कि किसी रेल कर्मी द्वारा न तो सेवामें कमी की गई है और न ही कोई लापरवाही बरती गई है। परिवादी की स्‍वयं की लापरवाही से घटना घटित हुई होगी। भारतीय रेलवे कान्‍फ्रेंस एसोसिएशन नं0-26 के नियम सं0-506, 1 व 2 के अनुसार ‘’ यात्रियों को अपने लगेज व सामान जो उनके द्वारा यात्रा के दौरान् अपने कब्‍जे में रखे जाते हैं, की सुरक्षा का दायित्‍व केवल उन्‍हें पर होता है। ‘’ जेब कटना लगेज एवं बैगेज की परिभाषा में नहीं आता है। भारतीय रेलवे कान्‍फ्रेंस एसोसिएशन नं0-24 के नियम 130-1 व 4 के अनुसार ‘’ यात्री को यात्रा आरम्‍भ करने वाले स्‍टेशन पर अपने बहुमूल्‍य सामानों की अतिरिक्‍त सुरक्षा हेतु उसकी घोषणा करते हुए रेल प्रशासन से आवश्‍यक बीमा करा लेना चाहिए।‘’ वर्तमान मामले में परिवादी ने यात्रा शुरू करने वाले स्‍टेशन से नतो धनराशि की घोषणा की और न ही बहुमूल्‍य जेवरों का बीमा कराया। इससे भी परिवादी की लापरवाही परिलक्षित होती है, इस निमित्‍त रेल प्रशासन जिम्‍मेदार नहीं है।

      परिवादी ने झूठी कहानी गढ़ी है। परिवादी के अनुसार घटना जलंधर के आगे पंजाब प्रान्‍त में घटित हुई इस कारण भी परिवाद पर सुनवाई करने का क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार मा0 राज्‍य आयोग उपभोक्‍ता संरक्षण उ0प्र0 लखनऊ में प्राप्‍त नहीं है। इस कारण परिवादी का परिवाद निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

      परिवादी ने जो प्रथम सूचना रिपोर्ट लिख कर दिया जी0आर0पी0 आगरा ने दर्ज किया। जी0आर0पी0 द्वारा मामले की जांच की जा रही है। विशेष रूप से कथन है कि ‘’ सुरक्षा की जिम्‍मेदारी जी0आर0पी0 (गवर्नमेण्‍ट रेलवे पुलिस) की होती है। जी0आर0पी0 पुलिस बल का एक अलग शाखा और 1861 के अधिनियम-5 के अधीन इसकी स्‍थापना की गई है। यह सिपाही लिपिकीय तथा अवर सेवाओं में अपने कर्मचारियों की भर्ती स्‍वयं करती है। घटना की सच्‍चाई का पता लगाना जी0आर0पी0 के अधीन होता है, जो प्रदेश शासन के आधीन होते हैं। प्रश्‍नगत कोच में कोई अवांछित व्‍यक्ति यात्रा नहीं कर रहा था। यदि कोई घटना घटित हुई है तो वह परिवादी की लापरवाही से घटित हुई है। परिवादी ने आराम से अपने बर्थ पर यात्रा पूरी की है। परिवादी ने जी0आर0पी0 को पक्षकार नहीं बनाया है। उचित पक्षकार न बनाने के कारण भी परिवादी का परिवाद निरस्‍त होने योग्‍य है।

      घटना संदिग्‍ध है किसी रेल कर्मी द्वारा लापरवाही व सेवा में कमी नहीं की गई है। परिवादी को उत्‍तरदाता विपक्षी के विरूद्ध कोई वाद कारण उत्‍पन्‍न नहीं हुआ है। रेल अधिनियम की धारा-100 के अनुसार ‘’ सामान के वाहक के रूप में उत्‍तरदायित्‍व ‘’ रेल प्रशासन किसी सामान की हानि, नाश, नुकसान क्षय या अपरिदान के लिए भी उत्‍तरदायी है जब सामान बुक किया हो तथा उस सामान की दाया में जो यात्री द्वारा अपने भार साधन में वहन किया जाता है, जब यह भी साबित कर दिया जाता है कि हानि, नाश, नुकसान या क्षय उसकी या उसके किसी सेवक की उपेक्षा या अपचार के कारण हुआ था। ‘’

उपरोक्‍त वाद में रेल प्रशासन व उसके किसी कर्मचारी के कृत्‍य से न तो परिवादी को कोई क्षति हुई है और नही कोई नुकसान हुआ है।

विपक्षी के कृत्‍य से न तो परिवादी को मानसिक कष्‍ट हुआ और न ही आर्थिक नुकसान। परिवादी न तो गहनों का जेवरों का व्‍यापारी है और न ही गहनों का व्‍यापार करने के सम्‍बन्‍ध में कोई प्रमाण पत्र या लाइसेंस दाखिल किया है। परिवादी का रू0 21 लाख का सोने का जेवर अपनी बनियान की जब में लेकर अकेले यात्रा करना भी संदेह उत्‍पन्‍न करता है। रेल  सफर करके झूठी रिपोर्ट लिखाकर रेल प्रशासन से उगाही करना परिवादी ने अपना पेशा बना लिया है। परिवादी ने इसी तरह का झूठा परिवाद जिला उपभोक्‍ता फोरम आजमगढ़ में दाखिल किया है। इस कारण भी परिवादी का परिवाद सव्‍यय निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।

हमारे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्‍ता द्वय की बहस विस्‍तार से सुनी गई तथा पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त प्रपत्रों/अभिलेखों/साक्ष्‍यों का सम्‍यक रूप से परिशीलन किया गया।

      विपक्षी की ओर से कहा गया कि परिवादी ने इसके पहले भी आजमगढ़ में ऐसी ही घटना के बारे में एफ0आई0आर0 लिखाई थी और यह शातिर लोग हैं और इसी तरह से रेलवे के खिलाफ कार्यवाही करते रहते हैं। परिवादी की ओर से कहा गया कि आजमगढ़ का मामला आवारा कुत्‍ते के काटने से सम्‍बन्धित था न कि जेवर चोरी से सम्‍बन्धित था। जब इस सम्‍बन्‍ध में विपक्षी के अधिवक्‍ता से पूछा गया तो उन्‍होंने इस सम्‍बन्‍ध में कोई स्‍पष्‍टीकरण नहीं दिया। विपक्षी की ओर से ऐसा कोई भी अभिलेख प्रस्‍तुत नहीं किया गया है जिससे यह स्‍पष्‍ट हो कि परिवादी के इसी तरह पहले भी ट्रेन से यात्रा के दौरान् आरक्षित बोगी में जेवर चोरी हुए हों।

परिवादी के पास जर्नी कम रिजर्वेशन टिकट था और इस बात पर कोई आपत्ति नहीं की कि उसका टिकट नियत दिनांक का न हो। इस पर भी कोई आपत्ति नहीं की कि आरक्षित बोगी में चोरी न हुई हो और चोरी से सम्‍बन्धित एफ0आई0आर0 न लिखाई गई हो।

यहॉं पर मुख्‍य विचारणीय बिन्‍दु यह है कि रेलवे नियमों के अनुसार आरक्षित श्रेणी की बोगी में अनारक्षित टिकट के साथ कोई भी यात्री यात्रा नहीं कर सकता है। किसी अनधिकृत व्‍यक्ति को आरक्षित बोगी में प्रवेश करने से रोकने का दायित्‍व टी0टी0ई0 का होता है या फिर चल रही राजकीय रेलवे पुलिस का, जो टी0टी0ई0 की इस कार्य में सहायता करती है और यदि कोई व्‍यक्ति अनारक्षित टिकट लेकर आरक्षित बोगी में यात्रा करता है तो तो वह दण्‍ड का भागी होती है और उसका चालान किया जाता है। कोई व्‍यक्ति  आरक्षित बोगी में अधिक मूल्‍य देकर टिकट खरीदता है और यात्रा करता है ताकि उसकी यात्रा निरापद रहे।

ऐसी स्थिति में यदि आरक्षित बोगी में किसी अधिकृत व्‍यक्ति का सामान चोरी होता है या उसके साथ कोई घटना घटती है तब इसका उत्‍तरदायित्‍व रेलवे विभाग का है। अनधिकृत व्‍यक्ति द्वारा आरक्षित बोगी में यात्रा करने पर चेकिंग दल द्वारा उसका चालान किया जाता है और आरोप पत्र रेलवे मैजिस्‍ट्रेट अथवा सम्‍बन्धित जिले के सी0जे0एम0 के यहॉं भेजा जाता है। इन मामलों में जो भी धनराशि बतौर पेनल्‍टी बिना टिकट यात्रियों से वसूली जाती है वह रेलवे के खाते में जाती है। अगर रेलवे आरक्षित बोगी में अनारक्षित व्‍यक्तियों द्वारा यात्रा करने पर उनके चालान से रेवेन्‍यू प्राप्‍त करता है तब उसका यह भी दायित्‍व है कि जो आरक्षित श्रेणी के व्‍यक्ति हैं उनकी यात्रा आरक्षित बोगी में निरापद रहे।

वर्तमान मामले में शीघ्रता से एफ0आई0आर0 लिखाई गई। परिवादी आरक्षित बोगी में वैध टिकट के साथ यात्रा कर रहा था। यदि उसके सामान की चोरी हुई तब इसका दायित्‍व रेलवे विभाग अथवा भारत सरकार का है।

इस प्रकार वर्तमान मामले के सभी तथ्‍यों को देखने से स्‍पष्‍ट होता है कि विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गई है और यात्री की निरापद यात्रा में उपेक्षा भी दिखाई गई है। ऐसा कोई साक्ष्‍य नहीं दिया गया है जिससे यह स्‍पष्‍ट हो कि कोई व्‍यक्ति अपने साथ 01.00 किलो जेवर लेकर नहीं चल सकता है। परिवादी की ओर से जेवर का मूल्‍य और उस पर ब्‍याज की मांग की गई है। जेवर के मूल्‍य में जेवर बनवाई का मूल्‍य भी शामिल रहता है। परिवादी इस मामले में अपना पक्ष सिद्ध करने में सफल रहा है और उसका परिवाद निम्‍नलिखित अनुतोष के लिए स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है :-

1.     परिवादी विपक्षी से 21.00 लाख रू0 और इस पर दिनांक 25-06-2015 से 12 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज पाने का अधिकारी है यदि भुगतान इस परिवाद के निर्णय के 60 दिन के अन्‍दर किया जाता है अन्‍यथा ब्‍याज की धनराशि 15 प्रतिशत वार्षिक की दर से दिनांक 25-06-2015 से अन्तिम भुगतान की तिथि तक देय होगी।

2.    परिवादी विपक्षी से मानसिक कष्‍ट और अवसाद और वाद व्‍यय के मद में कुल 05.00 लाख रू0 और इस पर दिनांक 25-06-2015 से 12 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज पाने का अधिकारी है यदि भुगतान इस परिवाद के निर्णय के 60 दिन के अन्‍दर किया जाता है अन्‍यथा ब्‍याज की धनराशि 15 प्रतिशत वार्षिक की दर से दिनांक 25-06-2015 से अन्तिम भुगतान की तिथि तक देय होगी।

3.    विपक्षी द्वारा इस मामले में की गई लापरवाही, सेवा में कमी और उपेक्षा के मद में अनुतोष सं0-3 के सम्‍बन्‍ध में विपक्षी, परिवादी को 05.00 लाख रू0 देने के लिए उत्‍तरदायी है और इस पर वह 12 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज पाने का अधिकारी है यदि भुगतान इस परिवाद के निर्णय के 60 दिन के अन्‍दर किया जाता है अन्‍यथा ब्‍याज की धनराशि 15 प्रतिशत वार्षिक की दर से दिनांक 25-06-2015 से अन्तिम भुगतान की तिथि तक देय होगी।

आदेश

वर्तमान परिवाद निम्‍न अनुतोष के लिए विपक्षी के विरूद्ध स्‍वीकार किया

जाता है :-

1.     विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि वह परिवादी को 21.00 लाख रू0 और इस पर दिनांक 25-06-2015 से 12 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज का भुगतान इस परिवाद के निर्णय के 60 दिन के अन्‍दर करे अन्‍यथा ब्‍याज की धनराशि 15 प्रतिशत वार्षिक की दर से दिनांक 25-06-2015 से अन्तिम भुगतान की तिथि तक देय होगी।

2.    विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि वह परिवादी को मानसिक कष्‍ट और अवसाद और वाद व्‍यय के मद में कुल 05.00 लाख रू0 और इस पर दिनांक 25-06-2015 से 12 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज का भुगतान   इस परिवाद के निर्णय के 60 दिन के अन्‍दर करे अन्‍यथा ब्‍याज की धनराशि 15 प्रतिशत वार्षिक की दर से दिनांक 25-06-2015 से अन्तिम भुगतान की तिथि तक देय होगी।

3.    विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि वह परिवादी को इस मामले में की गई लापरवाही, सेवा में कमी और उपेक्षा के मद में अनुतोष सं0-3 के सम्‍बन्‍ध में कुल 05.00 लाख रू0 और इस पर दिनांक 25-06-2015 से 12 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्‍याज का भुगतान इस परिवाद के निर्णय के 60 दिन के अन्‍दर करे अन्‍यथा ब्‍याज की धनराशि 15 प्रतिशत वार्षिक की दर से दिनांक 25-06-2015 से अन्तिम भुगतान की तिथि तक देय होगी।

      यदि विपक्षी इस परिवाद के निर्णय के दिनांक से 60 दिन के अन्‍दर भुगतान करने में असमर्थ रहता है तब परिवादी को यह अधिकार होगा कि वह विपक्षी के व्‍यय पर इस न्‍यायालय के समक्ष निष्‍पादन वाद प्रस्‍तुत करे।

      उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्‍ध करायी जाय।

      वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

          (सुशील कुमार)                     (राजेन्‍द्र सिंह)

             सदस्‍य                               सदस्‍य                    

 

निर्णय आज खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।

 

 

 

          (सुशील कुमार)                     (राजेन्‍द्र सिंह)

             सदस्‍य                               सदस्‍य                    

 

दिनांक : 09-05-2023.

 

 

प्रमोद कुमार,

वैय0सहा0ग्रेड-1,

कोर्ट नं.-2.     

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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