Uttar Pradesh

StateCommission

A/2013/2701

Canara Bank - Complainant(s)

Versus

Puspa Sharma - Opp.Party(s)

S M Royekwar

19 Apr 2016

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2013/2701
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Canara Bank
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Puspa Sharma
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Udai Shanker Awasthi PRESIDING MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील सं0-२७०१/२०१३

 

(जिला मंच (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-३५४/२००६ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २९-१०-२०१३ के विरूद्ध)

 

१. केनरा बैंक, कमला नगर ब्रान्‍च, आगरा द्वारा ब्रान्‍च मैनेजर।

२. चेयरमेन/मैनेजिंग डायरेक्‍टर, केनरा बैंक, हैड आफिस, बंग्‍लौर।

                                 .....................  अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।

बनाम्

पुष्‍पा शर्मा पत्‍नी हरि शंकर शर्मा निवासी १०७, कावेरी कुन्‍ज, कमला नगर, आगरा।

                                 ....................       प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी।

समक्ष:-

१-  मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य।

२-  मा0 श्री महेश चन्‍द, सदस्‍य।

 

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित  :- श्री एस.एम. रायकर विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित       :- श्री अशोक सिन्‍हा विद्वान अधिवक्‍ता।

 

दिनांक : ०१-०६-२०१६.

 

मा0 श्री उदय शंकर अवस्‍थी, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

      प्रस्‍तुत अपील, जिला मंच (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-३५४/२००६ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २९-१०-२०१३ के विरूद्ध योजित की गयी है।

      संक्षेप में तथ्‍य इस प्रकार हैं कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के कथनानुसार अपीलार्थी सं0-१ बैंक में उसका खाता संख्‍या-१२२१० है। इस खाते के सन्‍दर्भ में अपीलार्थी सं0-१ द्वारा प्रारम्‍भ में जो पासबुक जारी की गयी थी उसमें समय-समय पर इन्‍द्राज सम्‍बन्घित लिपिक द्वारा किया जाता था। इस पासबुक में वर्ष १९९४ से इन्‍द्राज किया जाना बन्‍द कर दिया गया। बैंक के कम्‍प्‍यूटरीकृत होने के पश्‍चात् प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को दिनांक २८-०७-२००६ को नई पासबुक जारी की गयी, जिसमें ०१-०८-१९९८ से इन्‍द्राज किया गया। नई पासबुक के अवलोकन से ज्ञात हुआ     कि उसमें दिनांक १०-१२-२००२ को संजय नाम के व्‍यक्ति द्वारा चेक सं0-१८७४७१ के माध्‍यम से ५०,०००/- रू० निकाला जाना दर्शित है। तत्‍पश्‍चात् परिवादिनी ने

 

 

-२-

अपनी चेक बुक को देखा तो उसमें से चेक सं0-१८७४७१ एवं चेक सं0-१८७४७२ गायब पाए। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के कथनानुसार उसने कोई चेक अपनी चेकबुक से जारी नहीं किया। संजय नाम के किसी व्‍यक्ति को वह नहीं जानती। चेक बुक से किसी समय जालसाजी द्वारा किसी व्‍यक्ति ने ०२ चेक निकाल लिए। चेक सं0-१८७४७१ पर किसी व्‍यक्ति ने फर्जी हस्‍ताक्षर कर बैंक से ५०,०००/- रू० निकाल लिए। अपीलार्थी सं0-१ के अधिकारियों/कर्मचारियों ने बिना पूर्ण जांच किए हस्‍ताक्षरों का बिना मिलान किए इतनी धनराशि का चेक पास कर दिया। ऐसा करके बैंक के अधिकारियों/कर्मचारियों ने सेवा में त्रुटि की। चेक सं0-१८७४७२ का प्रयोग नहीं कियागया। दिनांक २८-०७-२००६ को अवैध रूप से धनराशि आहरित किए जाने की जानकारी के उपरान्‍त प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने बैंक में शिकायत की, किन्‍तु कोई कार्यवाही नहीं हुई। तदोपरान्‍त दिनांक १७-०८-२००६ को लिखित रूप से भी शिकायत की, किन्‍तु कोई कार्यवाही नहीं की गयी। अत: प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने परिवाद जिला मंच के समक्ष निम्‍नलिखित अनुतोष हेतु योजित किया :-

‘’ परिवादिनी के विपक्षी सं0-२ के यहॉं बचत बैंक खाता संख्‍या-१२२१० में विपक्षीगण ५०,०००/- रू० की धनराशि दिनांक १०-१२-२००२ से १० प्रतिशत प्रति वर्ष ब्‍याज सहित जमा करें। परिवादिनी को शारीरिक एवं मानसिक कष्‍ट के लिए १०,०००/- रू० प्रतिकर तथा ५०००/- रू० वाद व्‍यय के रूप में दिलाये जायें। ‘’ 

      अपीलार्थीगण के कथनानुसार चेकबुक खाताधारक की अभिरक्षा में रहती है। उसको सुरक्षित रखने का दायित्‍व खाताधारक का होता है। पूर्ण चेकबुक गायब न होकर मात्र ०२ चेक गायब होना अस्‍वाभाविक है। अपीलार्थीगण के अनुसार वस्‍तुत: यह एक पारिवारिक विवाद है। सम्‍भवत: परिवादिनी ने चेक हस्‍ताक्षर करके किसी परिजन को दे दिया और उसने धनराशि आहरित कर ली। इस विवाद से अपीलार्थीगण का कोई सम्‍बन्‍ध नहीं है। अपीलार्थीगण का यह भी कथन है कि कथित चेकों के खोने की कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट सम्‍बन्धित थाने             में प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा नहीं दर्ज करायी गयी और न ही अपीलार्थी बैंक को

 

 

 

-३-

सम्‍बन्धित चेकों के भुगतान को रोकने हेतु कोई प्रार्थना पत्र दिया गया। अपीलार्थीगण की ओर से कोई सेवा में कमी नहीं की गयी।

      विद्वान जिला मंच ने परिवाद को स्‍वीकार करते हुए अपीलार्थीगण को आदेशित किया कि वे ५०,०००/- रू० दिनांक १०-१२-२००२ से सम्‍पूर्ण धनराशि की अदायगी तक ०६ प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज की दर से ब्‍याज सहित अदा करें। इसके अतिरिक्‍त २,०००/- रू० मानसिक कष्‍ट के लिए बतौर क्षतिपूर्ति तथा वाद व्‍यय के रूप में २,०००/- रू० भी अदा करने हेतु अपीलार्थीगण को आदेशित किया।

      इस निर्णय से क्षुब्‍ध होकर यह अपील योजित की गयी है।

      हमने अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री एस0एम0 रायकर तथा प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री अशोक सिन्‍हा के तर्क सुने तथा पत्रावली का अवलोकन किया।

      अपीलार्थीगण की ओर से यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के कथनानुसार उसकी चेकबुक से ०२ चेक क्रमश: चेक सं0-१८७४७१ एवं चेक सं0-१८७४७२ गायब किए गए तथा इन दोनों चेकों में से केवल एक ही चेक सं0-१८७४७१ का भुगतान प्राप्‍त किया गया। यह नितान्‍त अस्‍वाभाविक है कि पूरी चेकबुक में से केवल दो ही चेक गायब किए गए और उनमें से भी मात्र एक चेक से ही ५०,०००/- रू० की धनराशि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के खाते से दिनांक १०-१२-२००२ को आहरित की गयी, जबकि उक्‍त तिथि पर ३०,०००/- रू० से अधिक धनराशि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के उक्‍त खाते में और शेष थी। जिस व्‍यक्ति द्वारा ५०,०००/- रू० की धनराशि कथित रूप से फर्जी तरीके से आहरित की गयी वह व्‍यक्ति ५०,०००/- रू० से भी अधिक धनराशि उसी चेक से आहरित कर सकता था, किन्‍तु मात्र ५०,०००/- रू० ही उक्‍त खाते में अधिक धनराशि उपलब्‍ध होने के बाबजूद आहरित किया जाना अस्‍वाभाविक है।

      अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि प्रश्‍नगत चेक संजीव कुमार सिंह के पक्ष में एकाउण्‍ट पेयी जारी किया गया था तथा इसका आहरण संजीव कुमार सिंह के पंजाब नेशनल बैंक मैनपुरी के खाते में हुआ था।

 

 

-४-

अपीलार्थी बैंक ने प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के चेक पर हस्‍ताक्षर होने के कारण भुगतान पंजाब नेशनल बैंक मैनपुरी में संजीव कुमार सिंह के खाते में भुगतान हेतु भेज दिया एवं तद्नुसार चेक का भुगतान संजीव कुमार सिंह ने प्राप्‍त किया।

अपीलार्थी बैंक की ओर से यह भी तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि भुगतान के ०४ वर्ष के बाद परिवाद योजित किया गया, अत: परिवाद कालबाधित है। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि कथित रूप से गलत भुगतान की जानकारी के बाबजूद प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने इस सन्‍दर्भ में कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट सम्‍बन्धित थाने में नहीं लिखायी, बल्कि मात्र जिला मंच में परिवाद योजित करना ही उपयुक्‍त समझा। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि प्रश्‍नगत प्रकरण में कथित रूप से प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के फर्जी हस्‍ताक्षर करके ५०,०००/- रू० का धन आहरित किया जाना बताया गया है, जो स्‍वाभाविक रूप से अत्‍यन्‍त गम्‍भीर कृत्‍य है और ऐसे प्रकरण का उपभोक्‍ता मंच द्वारा संक्षिप्‍त प्रक्रिया द्वारा निस्‍तारण नहीं किया जा सकता, बल्कि दीवानी न्‍यायालय द्वारा विस्‍तृत साक्ष्‍य के परिशीलन के उपरान्‍त वाद का निस्‍तारण किया जाना चाहिए। अपीलार्थी की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि अपीलार्थी बैंक द्वारा प्रस्‍तुत हस्‍तलेख विशेषज्ञ की रिपोर्ट स्‍वीकार न करके जिला मंच द्वारा त्रुटि की गयी है। अपीलार्थी बैंक द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है।

प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की ओर से यह तर्क प्रस्‍तुत किया गया कि प्रश्‍नगत चेक पर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के फर्जी हस्‍ताक्षर करके ५०,०००/- रू० का भुगतान प्राप्‍त किया गया है। अपीलार्थी बैंक के अधिकारियों/कर्मचारियों ने प्रश्‍नगत चेक पर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के फर्जी हस्‍ताक्षर होने के बाबजूद हस्‍ताक्षर की जांच न करके भुगतान स्‍वीकार करके लापरवाही की है। तद्नुसार सेवा में त्रुटि की गयी है। उनके द्वारा यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि विद्वान जिला मंच के समक्ष प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रश्‍नगत चेक पर उसके हस्‍ताक्षर न होने के सम्‍बन्‍ध में हस्‍तलेख विशेषज्ञ की आख्‍या प्रस्‍तुत की गयी। हस्‍तलेख विशेषज्ञ द्वारा प्रेषित अपनी आख्‍या में प्रश्‍नगत चेक पर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के हस्‍ताक्षर न होना अंकित

 

 

-५-

किया गया है। अपीलार्थी बैंक ने भी प्रश्‍नगत चेक पर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के हस्‍ताक्षर के सत्‍यापन की हस्‍तलेख विशेषज्ञ की आख्‍या जिला मंच के समक्ष प्रेषित की थी, किन्‍तु इस आख्‍या में प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की ओर से प्रेषित की गयी हस्‍तलेख विशेषज्ञ की आख्‍या का प्रतिकार करते हुए कोई आख्‍या प्रेषित नहीं की गयी। विद्वान जिला मंच ने प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की ओर से प्रेषित की हस्‍तलेख विशेषज्ञ की आख्‍या एवं अपीलार्थी बैंक की ओर से प्रेषित की गयी हस्‍तलेख विशेषज्ञ की आख्‍या का अवलोकन करने के उपरान्‍त प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की ओर से प्रेषित की गयी हस्‍तलेख विशेषज्ञ की आख्‍या को विश्‍वसनीय मानते हुए प्रश्‍नगत चेक पर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के हस्‍ताक्षर न होना स्‍वीकार किया। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की ओर से यह तर्क भी प्रस्‍तुत किया गया कि ५०,०००/- रू० के फर्जी भुगतान की वर्ष २००६ में जानकारी होने के उपरान्‍त अपीलार्थी बैंक में इसकी शिकायत की गयी। बैंक में प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की कोई सुनवाई न होने पर परिवाद योजित किया गया। अत: परिवाद कालबाधित नहीं माना जा सकता।

प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्‍ता ने अपने तर्क के समर्थन में परिवाद सं0-१४६/२००२ पंकज अग्रवाल व अन्‍य बनाम एच0डी0एफ0सी0 बैंक लि0 व अन्‍य के मामले में दिनांक २८-०३-२००८ को राज्‍य आयोग, लखनऊ द्वारा दिए गये निर्णय, केनरा बैंक बनाम केनरा सेल्‍स व अन्‍य, एआईआर १९८७ एससी १६०३ के मामले में माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा दिए गये निर्णय एवं भाटिया कोपरेटिव डेवलपमेण्‍ट व केन मार्केटिंग यूनियन व अन्‍य बनाम बैंक आफ बिहार, एआईआर १९६७ एससी ३८९ के मामले में माननीय उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा दिए गये निर्णय पर विश्‍वास व्‍यक्‍त किया। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की ओर से सन्‍दर्भित उपरोक्‍त निर्णयों का हमने अवलोकन किया। इन निर्णयों में यह मत व्‍यक्‍त किया गया है कि चेक पर फर्जी हस्‍ताक्षर होने की स्थिति में चेक के भुगतान का कोई दायित्‍व बैंक का नहीं है। इस सन्‍दर्भ में लम्‍बी अवधि तक उपभोक्‍ता द्वारा कार्यवाही न किए जाने को बैंक अपनी लापरवाही के बचाव में प्रस्‍तुत नहीं कर सकता।  

 

 

-६-

प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्‍ता ने जिला मंच के समक्ष उसके द्वारा प्रस्‍तुत हस्‍तलेख विशेषज्ञ श्री अशोक कुमार जैन द्वारा प्रेषित आख्‍या पर विशेष बल दिया है तथा यह तर्क प्रस्‍तुत किया है कि अपीलार्थी बैंक की ओर से प्रस्‍तुत की गयी हस्‍तलेख विशेषज्ञ श्री राज कुमार श्रोतिया द्वारा प्रेषित की गयी आख्‍या में परिवादिनी की ओर से प्रस्‍तुत की गयी हस्‍तलेख विशेषज्ञ की आख्‍या का प्रतिकार नहीं किया गया है। परिवादिनी की ओर से प्रेषित की गयी आख्‍या को उन्‍होंने अधिक वैज्ञानिक होना बताया है।

प्रश्‍नगत निर्णय के अवलोकन से यह विदित होता है कि विद्वान जिला मंच ने प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी की ओर से प्रेषित की गयी हस्‍तलेख विशेषज्ञ की आख्‍या इस आधार पर अधिक विश्‍वसनीय होना बताया है कि उनके द्वारा प्रेषित की गयी आख्‍या अधिक विस्‍तृत है। अपीलार्थी बैंक के हस्‍तलेख विशेषज्ञ बैंक के पेनल पर हैं, अत: उनके द्वारा प्रेषित की गयी आख्‍या संदिग्‍ध है। अपीलार्थी बैंक की ओर से प्रेषित की गयी आख्‍या प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के विशेषज्ञ द्वारा प्रेषित की गयी आख्‍या के प्रत्‍युत्‍तर में प्रेषित नहीं की गयी है। मात्र इस आधार पर कि विशेषज्ञ बैंक के पेनल पर हैं अथवा बैंक के विशेषज्ञ द्वारा प्रेषित की गयी आख्‍या प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के विशेषज्ञ द्वारा प्रेषित की गयी आख्‍या के प्रत्‍युत्‍तर में प्रेषित नहीं की गयी है, बैंक के विशेषज्ञ द्वारा प्रेषित की गयी आख्‍या अविश्‍वसनीय नहीं मानी जा सकती। उल्‍लेखनीय है कि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के विशेषज्ञ की फीस का भुगतान भी प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा ही किया गया है। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के विशेषज्ञ ने भी अपीलार्थी बैंक के विशेषज्ञ की आख्‍या के प्रत्‍युत्‍तर में कोई आख्‍या प्रेषित नहीं की है।

यह निर्विवाद है कि उभय पक्ष की ओर से प्रेषित हस्‍तलेख विशेषज्ञ की आख्‍याओं में परस्‍पर विरोधी निष्‍कर्ष दिए गए हैं। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के हस्‍तलेख विशेषज्ञ द्वारा प्रेषित की गयी आख्‍या में प्रश्‍नगत चेक पर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी का हस्‍ताक्षर होना नहीं बताया गया है, जबकि अपीलार्थी बैंक के विशेषज्ञ द्वारा प्रेषित की गयी आख्‍या में प्रश्‍नगत चेक पर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के हस्‍ताक्षर होना बताया

 

 

-७-

गया है। ऐसी परिस्थिति में प्रश्‍नगत प्रकरण से सम्‍बन्धित अन्‍य परिस्थितियों पर भी विचार किया जाना न्‍यायोचित होगा।

प्रत्‍यर्थी/परिवादी ने परिवाद के अभिकथनों में स्‍वयं यह कहा है कि किसी ने जालसाजी करके उसकी चेकबुक से दो चेक क्रमश: चेक सं0-१८७४७१ एवं चेक सं0-१८७४७२ गायब कर लिए और उनमें से एक चेक सं0-१८७४७१ का दुरूपयोग करके उस चेक पर प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के फर्जी हस्‍ताक्षर बनाकर परिवादिनी के खाते से ५०,०००/- रू० निकाल लिए। इस तथ्‍य की जानकारी उसे दिनांक २८-०७-२००६ को हुई। उल्‍लेखनीय है कि दिनांक १०-१२-२००२ को अवैध रूप से खाते से ५०,०००/- रू० की धनराशि निकाले जाने के तथ्‍य की जानकारी के बाबजूद प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने सम्‍बन्धित थाने में घटना की रिपोर्ट लिखाया जाना उचित नहीं समझा। निश्चित रूप से फर्जी हस्‍ताक्षर बनाकर किसी खाते से धनराशि आहरित करना एक गम्‍भीर अपराधिक कृत्‍य है। स्‍वाभाविक रूप से तत्‍काल घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा सम्‍बन्धित थाने में लिखायी जानी चाहिए थी। यदि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी द्वारा कथित घटना की रिपोर्ट सम्‍बन्धित थाने में लिखायी गयी होती तो पुलिस द्वारा मामले की विस्‍तृत विवेचना की गयी होती। कथित रूप से फर्जी हस्‍ताक्षर के सम्‍बन्‍ध में राजकीय निष्‍पक्ष हस्‍तलेख विशेषज्ञ की आख्‍या प्राप्‍त की गयी होती।

प्रस्‍तुत मामले से सम्‍बन्धित एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण तथ्‍य यह है, जिस पर विद्वान जिला मंच द्वारा विचार नहीं किया गया, कि निर्विवाद रूप से प्रश्‍नगत चेक की धनराशि का भुगतान संजीव कुमार सिंह नाम के व्‍यक्ति के पंजाब नेशनल बैंक मैनुपरी स्थित खाते में किया गया। प्रश्‍नगत चेक एकाउण्‍ट पेयी था। यदि चेक चोरी करके खाताधारक के फर्जी हस्‍ताक्षर के द्वारा बैंक से भुगतान प्राप्‍त करना चाहा गया होता और इसमें बैंक के अधिकारियों/कर्मचारियों की भी मिली भगति होती तब प्रश्‍नगत चेक का एकाउण्‍ट पेयी किया जाना स्‍वाभाविक नहीं माना जा सकता। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने पंजाब नेशनल बैंक की सम्‍बन्धित मैनपुरी शाखा अथवा संजीव कुमार सिंह को प्रश्‍नगत परिवाद में पक्षकार नहीं बनाया है। निर्विवाद

 

 

-८-

रूप से संजीव कुमार सिंह प्रश्‍नगत प्रकरण में लाभार्थी है। यदि प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने उन्‍हें भी पक्षकार बनाया होता तो स्‍वाभाविक रूप से वे चेक के भुगतान के सम्‍बन्‍ध में स्थिति स्‍पष्‍ट कर सकते थे। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने इस सम्‍बन्‍ध में कोई स्‍पष्‍टीकरण प्रस्‍तुत नहीं किया है कि उन्‍होंने इस तथ्‍य की जानकारी के बाबजूद प्रश्‍नगत चेक का भुगतान संजीव कुमार सिंह नाम के व्‍यक्ति के पंजाब नेशनल बैंक की मैनपुरी शाखा में उसके खाते में किया गया, परिवाद में उसे अथवा पंजाब नेशनल बैंक को पक्षकार क्‍यों नहीं बनाया। प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी ने इस तथ्‍य की अनदेखी करते हुए कि मात्र इस आधार पर कि प्रश्‍नगत चेक का भुगतान अपीलार्थी बैंक द्वारा किया गया, सम्‍पूर्ण घटना के लिए अपीलार्थी बैंक के अधिकारियों/कर्मचारियों को पूर्णत: दोषी मानते हुए धनराशि की अदायगी का अनुतोष बैंक से चाहते हुए परिवाद योजित किया है।

      प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा सन्‍दर्भित निर्णयों के तथ्‍य प्रस्‍तुत मामले के तथ्‍यों से भिनन होनेके कारण इन निर्णयों का लाभ प्रस्‍तुत मामले में प्रत्‍यर्थी/परिवादिनी को प्रदान नहीं किया जा सकता।

प्रथम अपील सं0-०९/२०१५ पी.एन. खन्‍ना बनाम बैंक आफ इण्डिया व अन्‍य निर्णीत दिनांकित   २९-०१-२०१५ में माननीय राष्‍ट्रीय आयोग ने मा0 उच्‍चतम न्‍यायालय द्वारा ओरियण्‍टल इंश्‍योरेंस कं0लि0 बनाम मुनिमहेश पटेल 2006 (2) CPC 668 (SC)  एवं माननीय राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा ही ब्राइट ट्रान्‍सपोर्ट कम्‍पनी बनाम संगली सहकारी बैंक लि0 II (2012) CPJ 151 (NC), रिलायन्‍स इण्‍डस्‍ट्रीज लि0 बनाम यूनाइटेड इण्डिया इंश्‍योरेंस कं0लि0 I (1998) CPJ 13 तथा मै0 सिंघल स्‍वरूप इस्‍पात लि0 बनाम यूनाइटेड कॉमर्शियल बैंक III (1992) CPJ 50 में दिए गये निर्णयों पर विचार करते हुए, ऐसे परिवाद, जिनमें धोखाधड़ी तथा जालसाजी के विवाद निहित हैं तथा जटिल प्रश्‍नों का निस्‍तारण निहित है, का निस्‍तारण उपभोक्‍ता मंच द्वारा संक्षिप्‍त विचारण के माध्‍यम से किया जाना उपयुक्‍त नहीं माना है।  

 

 

 

-९-

मामले के सम्‍पूर्ण तथ्‍यों एवं परिस्थितियों के आलोक में हमारे विचार से प्रस्‍तुत प्रकरण में जबकि कथित रूप से जालसाजी द्वारा धन आहरित होना बताया गया है, परिवादिनी ने परिवाद में आवश्‍यक एवं विवाद के निस्‍तारण हेतु उपयुक्‍त समस्‍त पक्षकारों को पक्षकार नहीं बनाया है, संक्षिप्‍त विचारण द्वारा मामले का निस्‍तारण किया जाना न्‍यायोचित नहीं होगा। सभी सम्‍बन्धित पक्षकारों को अपना पक्ष एवं साक्ष्‍य प्रस्‍तुत करने का अवसर प्रदान करते हुए विस्‍तृत जांच एवं विचारण के उपरान्‍त सक्षम न्‍यायालय द्वारा मामले का विचारण किया जाना न्‍यायोचित होगा।

      ऐसी पर‍िस्थिति में हमारे विचार से अपील स्‍वीकार किए जाने एवं प्रश्‍नगत निर्णय अपास्‍त करते हुए परिवाद निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।    

आदेश

            प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला मंच (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-३५४/२००६ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २९-१०-२०१३ अपास्‍त करते हुए परिवाद निरस्‍त किया जाता है। परिवादी सक्षम न्‍यायालय में अनुतोष प्राप्‍त करने हेतु वाद योजित कर सकता है।  

उभय पक्ष इस अपील का व्‍यय-भार अपना-अपना स्‍वयं वहन करेंगे।

पक्षकारों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्‍ध करायी जाय।

 

           

                                               (उदय शंकर अवस्‍थी)

                                                 पीठासीन सदस्‍य

 

 

                                                  (महेश चन्‍द)

                                                     सदस्‍य

 

 

 

 

प्रमोद कुमार

वैय0सहा0ग्रेड-१,

कोर्ट-४.

 

 

 

 

 

 
 
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