Uttar Pradesh

StateCommission

A/2000/634

Indusind Bank Ltd. & other - Complainant(s)

Versus

Pushpendra Kumar - Opp.Party(s)

Brijendra Choudhary

25 Jan 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2000/634
( Date of Filing : 07 Mar 2000 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Indusind Bank Ltd. & other
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Pushpendra Kumar
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 25 Jan 2021
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-634/2000

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, ललितपुर द्वारा परिवाद संख्‍या-116/1995 में पारित निर्णय दिनांक 17.02.2000 के विरूद्ध)

 

इण्‍डसइंड बैंक लि0 आदि�ఀ।              ...........अपीलार्थीगण@विपक्षीगण

बनाम

पुष्‍पेन्‍द्र कुमार पुत्र श्री हरप्रसाद जैन निवासी तालाबपुरवा, ललितपुर

तहसील एण्‍ड जिला ललितपुर।                  .......प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

2. मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री बृजेन्‍द्र चौधरी, विद्वान

                             अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित   : श्री पुष्‍पेन्‍द्र कुमार स्‍वयं।

दिनांक 01.03.2021

मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.   पुनरीक्षण संख्‍या 204/11 जनरल मैनेजर अशोक लीलेण्‍ड फाइनेन्‍स लि0 तथा अन्‍य बनाम पुष्‍पेन्‍द्र कुमार में मा0 राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित आदेश के अनुपालन में प्रश्‍नगत अपील को पुन: दोनों पक्षकार के सुनवाई के पश्‍चात निस्‍तारित किया जा रहा है।

2.   जिला उपभोक्‍ता मंच ललितपुर के समक्ष प्रस्‍तुत किए गए परिवाद संख्‍या 116/95 में पारित निर्णय/आदेश दि. 17.02.2000 के विरूद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गई है। इस निर्णय व आदेश द्वारा जिला उपभोक्‍ता मंच ललितपुर ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षी/अपीलार्थी को निर्देशित किया है कि निर्णय के एक माह के अंदर ट्रक संख्‍या एमपी 16ए/218 परिवादी को वापस किया जाए अथवा अंकन रू. 287101/- 18 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज सहित अदा किया जाए। साथ ही अंकन रू. 20000/- व्‍यावसायिक क्षतिपूर्ति

 

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एवं रू. 1000/- मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में अदा करने का आदेश दिया गया है।

3.   परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी ने उपरोक्‍त वर्णित संख्‍या वाले ट्रक हायर परचेज के अंतर्गत क्रय किया था। उसके द्वारा विभिन्‍न तिथियों पर किश्‍ते अदा की जाती रही। परिवादी द्वारा अंकन रू. 240000/- का फाइेनन्‍स प्राप्‍त किया था। हायर परचेज शुल्‍क रू. 76800/- तथा बीमा शुल्‍क रू. 10200/- की गणना करते हुए कुल रू. 327000/- परिवादी द्वारा अदा किए जाने थे। परिवादी द्वारा कुल रू. 297000/- जमा किए जा चुके हैं।

4.   दि. 25.11.1994 को कानपुर के रास्‍ते में ट्रक रोक लिया और विपक्षी संख्‍या 3 इस ट्रक को लेकर चले गए तथा माल संबंधित व्‍यापा‍री को नहीं पहुंच सका, जिसके कारण रू. 10000/- का नुकसान हुआ।

5.   परिवादी द्वारा दि. 14.12.94 को अंकन रू. 50000/- की किश्‍त जमा कराई गई है। विपक्षी द्वारा शेष धनराशि के बारे में कभी नहीं बताया गया न ही लेखा-जोखा दिया गया। जरिए अधिवक्‍ता अनुबंध की प्रति की मांग की गई, किंतु विपक्षीगण द्वारा लेखा-जोखा उपलब्‍ध नहीं कराया गया। दि. 14.12.95 को भी परिवादी ने अंकन रू. 50000/- झांसी कार्यालय में जमा कराया। परिवादी दो बार दिल्‍ली गया, परन्‍तु कोई नोटिस के बावजूद हिसाब नहीं दिया गया। परिवादी ने दि. 28.02.95 को एक लाख रूपये के तीन ड्राफ्ट बनवाए तथा उन्‍हें लेकर दि. 03.03.95 को दिल्‍ली गया, पर कोई हिसाब नहीं दिया गया और गाड़ी वापस करने से इंकार किया गया। ट्रक की जब्‍ती उपभोक्‍ता के प्रति सेवाओं में कमी है, अत: परिवाद प्रस्‍तुत किया गया।

-3-

6.   विपक्षी संख्‍या 1 अशोका लीलेण्‍ड फाइनेन्‍स लि0 द्वारा प्रारंभिक आपत्ति के रूप में 15 बी दिनांक 22.08.1995 प्रस्‍तुत किया गया, जिसमें कथन किया गया कि अनुबंध की शर्त सं0-22 के अनुसार पक्षकारों के मध्‍य उठे विवाद को मध्‍यस्‍थता के माध्‍यम से तय किया जाना निश्चित हुआ था तथा मध्‍यस्‍थता कार्यवाही मद्रास में हुई थी। अतएव यह परिवाद धारा-34, मध्‍यस्‍थता अधिनियम से बाधित है।

7.   विपक्षी संख्‍या 1 लगायत 5 ने लिखित कथन में उल्‍लेख किया गया है कि परिवाद मध्‍यस्‍थता अधिनियम की धारा 34 से बाधित है। दि. 18.04.92 को हायर परचेज आधार पर लिए गए ट्रक का मूल्‍य रू. 346200/- था, जिसका भुगतान 43 किश्‍तों में होना था। प्रथम किश्‍त रू. 14450 थी। किश्‍त संख्‍या 2 लगायत 10 रू. 14340/- थी। नं0 1 से संख्‍या 23 तक अंकन रू. 15130/- की किश्‍त देनी थी।

8.   परिवादी के अनुरोध पर अनुबंध को पुन: लिखा गया और अनुबंध मूल्‍य रू. 370000/- रखा गया, जिसमें प्रथम किश्‍त रू. 16600/-, 2 लगायत 10 की किश्‍त रू. 14700/-, 11 लगायत 23 किश्‍त रू. 13700/- थी। परिवादी प्रारंभ से किश्‍त अदा करने में चूक करता रहा। वसूली के उद्देश्‍य से विपक्षी को कुल रू. 6861/- खर्च करना पड़ा। दि. 25.11.94 को रू. 190919/- बकाए थे, इसलिए वाहन को अपने कब्‍जे में ले लिया गया और पुलिस थाना उरई को सूचना दी गई और परिवादी को भी सूचना दी गई कि 15 दिन के अंदर ट्रक भुगतान करने के बाद ट्रक को अपने कब्‍जे में ले सकते हैं।

9.   दि. 14.12.94 को परिवादी ने रू. 50000/- का भुगतान किया। इस तिथि को रू. 140919/- अवशेष रहे। परिवादी ने एक लाख रूपये का वादा

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किया, परन्‍तु यह भुगतान नहीं किया गया, इसलिए बाध्‍यतावश वाहन को निस्‍तारित किया गया। विपक्षी इस वाहन के मालिक थे। पंजीकरण भी उनके नाम था। परिवाद के शेष तथ्‍य से इंकार किया गया।

10.  दोनों पक्षकारों द्वारा प्रस्‍तुत की गई साक्ष्‍य के आधार पर जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा उपरोक्‍त वार्णित आदेश पारित किया गया है। इस निर्णय के विरूद्ध अपील इन आधारों पर प्रस्‍तुत की गई कि जिला उपभोक्‍ता मंच हायर परचेज एक्‍ट 1972 के प्रावधानों पर अपना निर्णय आधारित किया है, जबकि एक्‍ट अस्तित्‍व में नहीं है। परिवादी की शर्तों के अनुसार प्रकरण मध्‍यस्‍थ को सुपुर्द किया जाना चाहिए था।

11.  अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता तथा प्रत्‍यर्थी को व्‍यक्तिगत रूप से सुना गया। प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया गया।

12.  अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि अनुबंध की शर्तों के अनुसार प्रश्‍नगत ट्रक को अपने कब्‍जे में लिया गया है और चूंकि परिवादी ने संपूर्ण किश्‍तें तय समय पर अदा नहीं की है, इसलिए ट्रक को विक्रय कर दिया गया है।

13.  प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह तर्क है कि विपक्षी द्वारा न तो अनुबंध की प्रति प्रदान कराई गई न ही परिवादी द्वारा जमा की गई राशि का लेखा-जोखा प्रस्‍तुत किया।

14.  परिवादी ने शपथपत्र पर दिए गए बयान में उल्‍लेख किया गया है कि उसने अंकन एक लाख रूपये के ड्राफ्ट दि. 28.02.1995 को बनवाए थे और इन ड्राफ्टों को लेकर दि. 03.03.1995 को दिल्‍ली पहुंचा था, परन्‍तु

 

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विपक्षीगण द्वारा यह ड्राफ्ट स्‍वीकार नहीं किया गया और न ही ट्रक लौटाया गया। जब परिवादी द्वारा दि. 28.02.1995 को ही अंकन एक लाख रूपये का ड्राफ्ट आफर किया गया था तब इन ड्राफ्टों को अस्‍वीकार करने का कोई कारण नहीं था, अत: स्‍पष्‍ट है कि विपक्षी द्वारा सहज/सुगम व्‍यापार नहीं अपनाया गया और उस ट्रक को अन्‍यथा विक्रय कर दिया गया, जिसके मूल्‍य का भुगतान अधिकांश रूप से परिवादी द्वारा किया जा चुका था और परिवादी ने अंकन एक लाख रूपये का ड्राफ्ट बनाकर दिल्‍ली गया था। ड्राफ्ट बनवाने के लिए ड्राफ्ट में वर्णित राशि बैंक में पूर्व में ही जमा कर दी जाती है। अंकन एक लाख रूपये का ड्राफ्ट लेने के पश्‍चात स्‍वयं विपक्षीगण के लिखित कथन के विवरण के अनुसार रू. 90919/- की राशि अवशेष रहती है।

15.  ट्रकों को जब्‍त करने से पूर्व परिवादी को नोटिस भी नहीं दिया गया। सूचना के अभाव में ट्रक का कब्‍जा लेने और उसका विक्रय कर देना निश्चित रूप से सेवा में कमी की श्रेणी में आता है।

16.  नजीर मैग्‍मा लेजिंग लि0 बनाम परसन्‍न महापात्रा सीपीजे 2011(3)पृष्‍ठ 88 में व्‍यवस्‍था दी गई है कि यदि परिवादी को बकाया ऋण अदा करने के संबंध में नोटिस नहीं दिया गया तब वाहन जब्‍त करना वैध नहीं माना गया और ऋण देने वाली कंपनी के विरूद्ध सेवा में कमी पाया गया। उपरोक्‍त नजीर प्रस्‍तुत केस के लिए पूर्णतया सुसंगत है।

17.  अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा यह बहस की गई है कि प्रश्‍नगत प्रकरण मध्‍यस्‍थता अधिनियम के अंतर्गत मध्‍यस्‍थ हेतु प्रेषित किया जाना चाहिए था। उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा 3 में यह व्‍यवस्‍था दी गई है कि इस अधिनियम के प्रावधान किसी अन्‍य कानून के अधीन नहीं

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है, अत: मध्‍यस्‍थता का उल्‍लेख अनुबंध में होने के बावजूद जिला उपभोक्‍ता मंच के समक्ष परिवाद प्रस्‍तुत किया जा सकता है।

18.  उपरोक्‍त विवेचन का निष्‍कर्ष यह है कि जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा दिया गया निर्णय विधिसम्‍मत है और इसमें कोई हस्‍तक्षेप अपेक्षित नहीं है। तदनुसार अपील निरस्‍त किए जाने योग्‍य है।  

आदेश

     प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है।

उभय पक्ष अपना-अपना अपील-व्‍यय भार स्‍वंय वहन करेंगे।

     इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्‍ध करा दी जाए।

         

     (विकास सक्‍सेना)                     (सुशील कुमार)                                                                                                                                                 सदस्‍य                             सदस्‍य         

राकेश, पी0ए0-2

कोर्ट-2

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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