AMAR NATH filed a consumer case on 04 Apr 2019 against PURVANCHAL ELEC. in the Azamgarh Consumer Court. The case no is CC/142/2013 and the judgment uploaded on 04 Apr 2019.
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जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम- आजमगढ़।
परिवाद संख्या 142 सन् 2013
प्रस्तुति दिनांक 19.03.2013
निर्णय दिनांक 04.04.2019
अमरनाथ विश्वकर्मा s/o श्रीराम विश्वकर्मा बाजार महराजगंज जिला- आजमगढ़ (उoप्रo)।
बनाम
पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड द्वारा अधिशासी अभियन्ता विद्युत वितरण खण्ड द्वितीय- आजमगढ़।
...................................................................................विपक्षी।
उपस्थितिः- अध्यक्ष- कृष्ण कुमार सिंह, सदस्य- राम चन्द्र यादव
अध्यक्ष- “कृष्ण कुमार सिंह”-
परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसने दिनांक 26.04.2012 को विपक्षी के प्राक्कलन स्वीकृति दिनांक 16.02.2012 के अनुरूप उसने 18,780/- रुपया जमा करके रसीद प्राप्त कर लिया। अन्य सुविधा शुल्क के रूप में उसको लिया गया उसको लेकर उसने 30,000/- रुपया कनेक्शन हेतु दिया। विपक्षी द्वारा दिनांक 10.05.2012 को मीटर लगाने हेतु अरपने फॉर्म नम्बर पर हस्ताक्षर करवाया गया, लेकिन उसका मीटर नहीं लगा जो मीटर नम्बर लिखा गया वह बाद में नवम्बर 12 में भेजी गयी बिल पर मीटर संख्या दूसरी अंकित कर भेजा गया। विपक्षी द्वारा नवम्बर 12 में प्रेषित पहली बिल रुपया 33202/- रुपया प्रेषित की गयी। बाद में उसे काटकर 19,981/- रुपये किया। विपक्षी को प्रथम बिल दिनांक 06.11.2012 को दिए गए और 07.11.2012 को सूचित किया कि उसकी लाइन काट दी गयी है। शिकायतकर्ता द्वारा 31.12.2012 को 3000/- रुपया जमा किया गया था और विपक्षी को प्रार्थना देकर बिल का हिसाब-किताब करने के लिए कहा गया था और कनेक्शन जोड़ने के लिए कहा गया था। बार-बार सम्पर्क करने के बाद भी दिनांक 05.08.2013 को विपक्षी द्वारा कनेक्शन जोड़ दिया गया तथा उसने
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67,000/- रुपये से अधिक की बकाया वाली बिल भेज दी गयी। इस सन्दर्भ में दिनांक 12.08.2013 को विपक्षी को कानूनी नोटिस भेजी गयी, लेकिन उसका कोई संज्ञान नहीं लिया गया। सितम्बर, माह की बिल के रूप में 76,588/- रुपया बकाये की बिल भेजी गयी। अतः विपक्षी को बिल का हिसाब-किताब करने तथा मीटर रीडिंग के अनुसार बिल भेजने हेतु तथा मीटर लगाने हेतु आदेशित किया जाए और मानसिक व शारीरिक कष्ट हेतु उससे 1,00,000/- रुपया दिलवाया जाए।
परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी द्वारा 18,780/- रुपये जमा करने की रसीद तथा अधिशासी अभियन्ता को लिखे गए पत्र की छायाप्रति, इसके पश्चात् तीन किश्तों में विद्युत बिल दाखिल किया गया है।
विपक्षी की ओर से जवाबदावा प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों से इन्कार किया गया है। अतिरिक्त कथन में यह कहा गया है कि याची ने 26.04.2012 को 18,780/- रुपये जमा किया। जिसके आधार पर दिनांक 10.05.2012 को उसके परिवाद में मीटर लगाकर विद्युत सप्लाई बहाल की गयी। जिसका विद्युत कनेक्शन नम्बर 2001/127103 है। मीटर लगने के बाद किसी कारणवश मीटर रीडिंग उपलब्ध नहीं हो पायी थी। परिवादी को एन.आर. करके विद्युत बिल जारी की गयी। बाद में जब मीटर रीडिंग उपलब्ध हो गयी तो उसके आधार पर उपभोक्ता को विद्युत बिल दुरुस्त कर दी गयी। परिवादी कनेक्शन मिलने की तिथि से बराबर विद्युत का उपयोग कर रहा है। आगे यह कहा गया है कि परिवादी को यह सूचना किया गया था कि उसे जो विद्युत बिल भेजी जा रही है और देय तिथि पर भुगतान न करने पर विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 56 के अन्तर्गत बिल में दर्शायी गयी। विद्युत विच्छेदन की तिथि अथवा अतिरिक्त सूचना के विद्युत विच्छेदन किया जा सकता है। दिनांक 31.12.2012 को जमा किया। परिवादी का विद्युत बकाया होने के कारण विच्छेदित किया
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गया था। परिवादी की मीटर रीडिंग 1724 यूनिट की थी। जिसके आधार पर बिल बनाकर पहले ही दाखिल किया जा चुका है। परिवाद चलने योग्य नहीं है। अतः खारिज किया जाए।
विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।
सुनवाई के समय कोई भी उपस्थित नहीं था। अतः पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी द्वारा कागज संख्या 6/9 जो नोटिस भेजी गयी थी उसकी छायाप्रति दाखिल की गयी है। इसमें यह कहा गया है। इसमें यह कहा गया है कि दिनांक 16.02.2012 को विद्युत कनेक्शन संख्या 127103 लिया गया था। कनेक्शन कॉमर्शियल है। इस सन्दर्भ में यदि हम न्याय निर्णय “Economic Transport Organisation vs. Charan Spinning Mills (P) Ltd. And another, I (2010) CPJ 4 (S.C.)” का अवलोकन करें तो इस सन्दर्भ में माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह अभिधारित किया है कि वह व्यक्ति जो सेवा कॉमर्शियल आधार पर लेता है तो वह कन्ज्यूमर की परिभाषा में नहीं आता है। उपरोक्त न्याय निर्णय के आलोक में हमारे विचार से परिवाद खारिज किए जाने योग्य है।
आदेश
परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
दिनांक 04.04.2019
यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।
राम चन्द्र यादव कृष्ण कुमार सिंह
(सदस्य) (अध्यक्ष)
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