Uttar Pradesh

Muradabad-II

cc/70/2010

Shri Nand Kishor - Complainant(s)

Versus

Punjab National Bank - Opp.Party(s)

30 Jul 2015

ORDER

District Consumer Disputes Redressal Forum -II
Moradabad
 
Complaint Case No. cc/70/2010
 
1. Shri Nand Kishor
Gali No-03 Shri Krishna Colony Chandra Nagar Thana Civil Lines Moradabad
...........Complainant(s)
Versus
1. Punjab National Bank
Ram Ganga Vihar Phase-2 Civil Lines Moradabad
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्‍यक्ष

  1.   इस परिवाद के माध्‍यम से परिवादी ने यह उपशम मांगा है कि विपक्षीगण से उसे 18 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज सहित उसके खाते से निकाल लिऐ गऐ 1,04,500/-  रूपया वापिस दिलाऐ जाये। शारीरिक एवं मानिसक कष्‍ट की मद में क्षतिपूर्ति हेतु उसने 3,00,000/- रूपया अतिरिक्‍त मांगे हैं।
  2.   परिवाद कथन संक्षेप में इस प्रकार हैं कि पंजाब नेशनल बैंक सिविल लाइन्‍स,   मुरादाबाद में परिवादी का एक खाता संख्‍या- 2540000100254458 कई वर्षों से चला आ रहा है। इस खाते के सापेक्ष परिवादी ने चैक बुक भी इश्‍यू करा रखी है। चैक सं0-275859 तथा 275860 गायब हो जाने की परिवादी ने लिखित एवं मौखिक सूचना दिनांक 25/07/2009 को बैंक के मैनेजर को दी थी जब दिनांक 25/08/2009 को 10,000/- रूपया जमा करने के लिए परिवादी बैंक गया और उसने अपनी पासबुक में एन्‍ट्री करायी तो परिवादी को पता चला कि उसके गुम हुऐ दो चैकों में से एक चैक से 30/07/2009 को 37,000/- रूपया किसी अंकित तिवारी ने निकाल लिये और दिनांक 04/08/2009 को गुम हुऐ दूसरे चैक से 67,000/- रूपया सेल्‍फ अंकित करके निकाल  लिये गये। परिवादी आश्‍चर्य चकित रह गया जब परिवादी ने सेल्‍फ के चैक पर हुऐ हस्‍ताक्षर का मिलान अपने स्‍वीकृत हस्‍ताक्षरों से कराया तो वे भिन्‍न थे। शाखा प्रबन्‍धक ने जानकारी करके कार्यवाही का आश्‍वासन दिया। बार-बार अनुरोध के बावजूद जब शाखा प्रबन्‍धक ने कोई कार्यवाही नहीं की तो परिवादी ने अपने अधिवक्‍ता  के माध्‍यम से उन्‍हें कानूनी नोटिस भिजवाया। परिवादी का आरोप हैं कि विपक्षीगण ने उसके खाते से रूपये निकाल कर अनुचित लाभ प्राप्‍त किया है जो गम्‍भीर अपराध है, उसने परिवाद में अनुरोधित अनुतोष स्‍वीकार किऐ जाने की प्रार्थना की।
  3.   विपक्षी सं0-1 लगायत 3 की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज  सं0- 11/1  लगायत 11/3  प्रस्‍तुत किया गया। प्रतिवाद पत्र में परिवादी का खाता पंजाब नेशनल बैंक, सिविल लाइन्‍स, मुरादाबाद में होना और उसके सापेक्ष परिवाद पत्र के पैरा सं0-2  में उल्लिखित चैक बुक परिवादी को जारी किया जाना तो स्‍वीकार किया गया है  किन्‍तु परिवाद में उत्‍तरदाता विपक्षीगण पर लगाये गये आरोपों से इन्‍कार किया गया। विशेष कथनों में कहा गया कि परिवादी ने दिनांक 31/08/2009 को पंजाब नेशनल बैंक, मुरादाबाद के रिजनल मैनेजर को एक पत्र प्रेषित कर अवगत कराया था कि उसके खाते से किसी अंकित तिवारी नाम के व्‍यक्ति ने सेल्‍फ में 37,000/-  और 67,000/- रूपये निकाल लिये हैं, यह पत्र रिजनल आफिस से पंजाब नेशनल बैंक की सिविल लाइन्‍स, मुरादबाद शाखा पर प्राप्‍त हुआ था इससे पूर्व किसी प्रकार की कोई शिकायत पंजाब नेशनल बैंक के वरिष्‍ठ प्रबन्‍धक को नहीं की गयी। परिवादी की शिकायत के सम्‍बन्‍ध में जब जांच की गई तो वीडियो क्‍लीपिंग से पता चला  कि उक्‍त पेमेन्‍ट परिवादी के भाई केदार, भाभी और भतीजी ने मिलकर लिया था। इन सब लोगों के बीच लिखित पंचनामा हुआ। प्रतिवाद पत्र में अग्रेत्‍तर कहा गया कि दिनांक समझौते के आधार पर परिवादी के भाई केदार ने परिवादी के खाते में दिनांक 14/09/2009 को 20,000/- रूपया, दिनांक 06/10/2009 को 5,000/- रूपया, 03/11/2009 को 7,000/- रूपया तथा 11/12/2009को 6,000/- रूपया जमा कराये। पंचनामें के समय  परिवादी ने बैंक के प्रबन्‍धक से प्रार्थना की थी कि उसकी भाभी व भतीजी के खिलाफ पुलिस में एफ0आई0आर0 न करायी जाये क्‍योंकि यह हमारा पारिवारिक मामला है। अख़बारों में खबर छपेगी तो बदनामी होगी। पंचनामें के समय परिवादी के भाई केदार ने यह कहा था कि धीरे-धीरे करके वह बैंक में पूरा रूपया जमा कर देगा इस पर परिवादी ने अपनी सहमति दी थी। परिवादी की बात मानकर पुलिस में एफ0 आई0आर0 दर्ज नहीं करायी गयी। प्रतिवाद पत्र में यह कहते हुऐ कि परिवादी और  उसके भाई ने मिलकर बैंक को फँसाने का षडयन्‍त्र रचा था जिसका खुलासा वीडियो क्‍लीपिंग से हो गया। परिवादी ने पंचायतनामें के बाद झूठा परिवाद योजित किया जो सव्‍यय खारिज होने योग्‍य है।
  4.   परिवाद के साथ परिवादी ने पत्र दिनांक 25/07/2009 की कार्बन प्रति, परिवादी द्वारा बैंक के शाखा प्रबन्‍धक को कथित रूप से दिये गये पत्र, अपनी पासबुक की नकल और विपक्षी सं0-1 व 2 को भेजे गये कानूनी नोटिस की नकलों तथा नोटिस भेजे जाने की डाकखाने की असल रसीदों को दाखिल किया है, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-2/6 लगायत 2/9 हैं।
  5.   प्रतिवाद पत्र के पैरा सं0-9 में उल्लिखित संलग्‍नक-1 को विपक्षीगण सं0-1  लगायत 3 ने प्रार्थना पत्र कागज सं0-20/1 के माध्‍यम से बाद में दाखिल किया, यह संलग्‍नक-1 पत्रावली का कागज सं0-20/2 है।
  6.   परिवादी ने अपना साक्ष्‍य शपथ पत्र कागज सं0-14/1 लगायत 14/4 दाखिल किया। विपक्षी सं0-1 लगायत 3 की ओर से पंजाब नेशनल बैंक, शाखा सिविल लाइन्‍स, मुरादाबाद के प्रबन्‍धक श्री हुकम सिंह ने अपना साक्ष्‍य शपथ पत्र कागज सं0-17/1 लगायत 17/3 दाखिल किया।
  7.   दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी लिखित बहस दाखिल की। विपक्षीगण सं0-1  लगायत 3 की ओर से लिखित बहस के साथ विपक्षीगण के साक्ष्‍य शपथ पत्र के पैरा सं0-15 में उल्लिखित डिपोजिट बाउचर दिनांकित 14/09/2009, 06/10/2009, 03/11/2009 तथा 07/11/2009 की फोटो प्रमाणित प्रतियों को दाखिल किया गया  है।
  8.   हमने परिवादी तथा विपक्षी सं0-1 लगायत 3 के विद्वान अधिवक्‍तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
  9.   परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता ने बैंक पासबुक की नकल कागज सं0-2/8 की ओर हमारा ध्‍यान आकर्षित किया और कथन किया कि दिनांक 30/07/2009 को परिवादी के खाते से 37,000/- रूपया तथा दिनांक 04/08/2009 को 67,500/-  रूपया बैंक के अधिकारियों/ कर्मचारियों की मिलीभगत से निकाल लिये गये। जानकारी होने पर परिवादी ने बैंक प्रबन्‍धक से इसकी शिकायत की तो जांच में पाया गया कि जिन चैकों से यह धनराशि निकाली गयी है उन पर परिवादी के हस्‍ताक्षर फर्जी बनाये गये हैं। परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि शिकायत करने के बावजूद  भी गलत तरीके से परिवादी के खाते से निकाली गयी धनराशि को परिवादी को  वापिस नहीं की गयी। विपक्षीगण के कृत्‍य सेवा में कमी की श्रेणी में आते  हैं। 
  10.   प्रत्‍युत्‍तर में बैंक के विद्वान अधिवक्‍ता ने नकल सुलहनामा कागज सं0-20/2 की ओर हमारा ध्‍यान आकर्षित  किया और कहा कि वास्‍तविकता यह है कि उक्‍त चैकों का भुगतान परिवादी के भाई केदार,परिवादी की भाभी और भतीजी ने मिलकर बैंक से लिया था। बैंक द्वारा की गई जॉंच और वीडि‍यो क्‍लीपिंग में केदार की पत्‍नी  और उसकी पुत्री को चैकों का पेमेन्‍ट लेते हुऐ पहचान लिया गया। बैंक के प्रबन्‍धक  श्री हुकम सिंह के साक्ष्‍य शपथ पत्र के पैरा सं0-14 एवं  पैरा सं0-15  में उल्लिखित तथ्‍यों के प्रकाश में विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता ने सुलहनामा कागज सं0-20/2 तथा विपक्षी की ओर से दाखिल लिखित बहस के संलग्‍नक 25/4, 25/5, 25/6 एवं  25/7 की ओर विशेष रूप से हमारा ध्‍यान आकर्षित किया और कहा कि इन अभिलेखों से यह प्रमाणित है कि बैंक ने परिवादी को सेवा प्रदान करने में न तो कोई कमी  की और न ही बैंक के अधिकारियों अथवा कर्मचारियों का परिवाद में उल्लिखित धनराशि के विड्राल में किसी प्रकार का कोई षडयन्‍त्र था। विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि वास्‍तविकता यह है कि परिवादी ने किसी परोक्ष उद्देश्‍य की पूर्ति के लिए बैंक के अध्किारियों/ कर्मचारियों को झूठा फंसाने के लिये  असत्‍य कथनों के आधार पर यह परिवाद योजित किया। हम विपक्षी के विद्वान अधिवक्‍ता  के तर्कों से सहमत हैं। साक्ष्‍य  शपथ  पत्र के पैरा सं0-14  में उल्लिखित कथनों की पुष्टि सुलहनामा की नकल  कागज सं0-20/2 से  होती है।  इस सुलहनामें में परिवादी, परिवादी के भाई केदार उसके साले दिनेश व विनोद कुमार तथा दिनेश की पत्‍नी बबीता और परिवादी की पत्‍नी भावना के हस्‍ताक्षार हैं। दिनांक 14/09/2009 को लिखे गये इस सुलहनामें में इस बात  का स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है कि  परिवादी के खाते से निकाल लिये गये 1,04,500/- रूपया का समाधान बैंक स्‍टाफ और परिवादी के रिश्‍तेदारों की मदद से परिवार में ही हो गया है। सुलहनामें में यह भी उल्‍लेख है कि निकाली गयी धनराशि किस प्रकार परिवादी के खाते में वापिस जमा की जायेगी। इस सुलहनामें का अनुपालन दिनांक 14/09/2009 को प्रारम्‍भ हो गया जैसा कि डिपोजिट बाउचर कागज सं0-25/4 से प्रकट है। डिपोजिट बाउचर कागज सं0- 25/5, 25/6 एवं 25/7 बैंक के प्रब्रन्धक के साक्ष्‍य  शपथ पत्र के पैरा सं0-15  में उल्लिखित कथनों की पुष्टि करते हैं। पत्रावली पर जो साक्ष्‍य सामग्री उपलब्‍ध हुई हैं उससे स्‍पष्‍ट है कि बैंक ने परिवादी को सेवा प्रदान करने में किसी प्रकार की कोई लापरवाही अथवा कमी नहीं की। इसके विपरीत यह पाया गया है कि परिवाद में उल्लिखित धनराशि परिवादी के खाते से उसके भाई, भाभी और भतीजी ने निकाली थी और इसमें बैंक के किसी अधिकारी अथवा कर्मचारी का कोई दोष अथवा उनका किसी प्रकार का कोई षडयन्‍त्र नहीं था। डिपोजिट बाउचर कागज सं0-25/5 के अवलोकन से प्रकट है कि दिनांक 06/10/2009 को 5,000/- रूपये की धनराशि परिवादी के भाई केदार ने परिवादी के खाते में जमा की थी। इस डिपोजिट बाउचर से लिखित बहस कागज सं0-24/1  लगायत 24/4  के पैरा सं0-11 में  परिवादी का यह कथन कि डिपोजिट बाउचरद्वारा उसके खाते में जो धनराशियां जमा की गयी हैं वे परिवादी ने ही जमा  की थी, असत्‍य हो जाता है।
  11.   उपरोक्‍त विवेचना के आधार पर हम इस निष्‍कर्ष पर पहुँचे हैं कि परिवाद खारिज होने योग्‍य है। हमारा यह भी मत है कि मामले के तथ्‍यों और परिवादी के आचरण को देखते हुए परिवाद विशेष व्‍यय सहित खारिज किया जाये। परिवादी पर  अधिरोपित किये जाने वाला विशेष व्‍यय हम 5,000/- (पाँच हजार रूपया केवल) अभिनिर्धारित करते हैं।

 

     रूपये 5,000/- (पाँच हजार रूपया केवल) विशेष व्‍यय  सहित परिवाद खारिज किया जाता है। यह धनराशि परिवादी से वसूल की जाय। वसूली की दशा  में  यह धनराशि विपक्षी सं0-1  लगायत 3 को अदा  की जाये।

 

   (श्रीमती मंजू श्रीवास्‍तव)    (सुश्री अजरा खान)     (पवन कुमार जैन)

        सदस्‍य                 सदस्‍य             अध्‍यक्ष

   जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद    जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद।   जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद

     30.07.2015           30/07/2015         30.07.2015

     हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 30.07.2015 को खुले फोरम में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया।

 

(श्रीमती मंजू श्रीवास्‍तव)    (सुश्री अजरा खान)     (पवन कुमार जैन)

      सदस्‍य               सदस्‍य               अध्‍यक्ष

  • 0उ0फो0-।। मुरादाबाद    जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद।  जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद

  30.07.2015          30/07/2015           30.07.2015

 

 

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