(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-100/2013
Mohd. Usman son of Sardar Ahmad, resident of house no. 405, Village and Post Ghosepur, Police Station-Kharkhauda, Hapur Road, District Meerut.
परिवादी
बनाम
1. Punjab National Bank, D.A.V. Branch K Block, Shastri Nagar, Meerut, through its Branch Manager.
2. National Insurance Company Ltd. Branch Office at IIIrd floor, Vardhman Plaza, Garh Road, Meerut, through its Branch Manager.
विपक्षीगण
समक्ष:-
1. माननीय सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
परिवादी की ओर से : श्री टी0एच0 नकवी, विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी सं0-1 की ओर से : श्री अवनीश पाल, विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी सं0-2 की ओर से : श्री एस0पी0 सिंह, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 11.02.2021
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 17 के अन्तर्गत विपक्षीगण के विरूद्ध अंकन 25,00,000/- रूपये 12 प्रतिशत ब्याज सहित प्राप्त करने के लिए, अंकन 5,00,000/- रूपये मानसिक प्रताड़ना के लिए तथा अंकन 25,000/- रूपये परिवाद खर्च के रूप में प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया गया है।
2. परिवाद पत्र के अनुसार परिवादी का मैसर्स, अयान प्रोविजन स्टोर, एल-321, एफ ब्लाक, लोहिया नगर, मेरठ में स्थित है, जिस पर विपक्षी संख्या-1 से ऋण प्राप्त किया हुआ है। विपक्षी संख्या-1 ने परिवादी के जनरल स्टोर के लिए विपक्षी संख्या-2 के माध्यम से अंकन 45,00,000/- रूपये की बीमा पालिसी प्राप्त की हुई है, जो दिनांक 09.04.2012 से दिनांक 08.04.2013 तक की अवधि के लिए वैध है। चूंकि जनरल स्टोर विपक्षी संख्या-1 के पक्ष में बंधक है, इसलिए यह पालिसी विपक्षी संख्या-1 के द्वारा ही रखी एवं संरक्षित की गई और उनके द्वारा ही प्रीमियम ऋण खाता संख्या-4442008700000382 से काटा गया। उपरोक्त अवधि की समाप्ति के पश्चात् नवीनीकरण की व्यवस्था भी विपक्षी संख्या-1 द्वारा की जानी थी। दिनांक 11.04.2013 को सुबह 8.30 बजे जब परिवादी अपने जनरल स्टोर पर पहुँचा तो पाया कि दुकान का ताला चोरो द्वारा दिनांक 10/11.04.2013 की रात्रि में तोड़ लिया गया। परिवादी पुलिस थाने गया और समाचार पत्र में भी चोरी की घटना प्रकाशित हुई। घटनास्थल पर वापस आने पर परिवादी ने पाया कि अंकन 25,00,000/- रूपये का नुकसान हुआ है और परिवादी यह मानता रहा था कि अंकन 45,00,000/- रूपये की बीमा पालिसी ली हुई है, इसलिए उसने विपक्षी संख्या-1 के समक्ष दावा प्रस्तुत किया और बीमा पालिसी की मांग की गई। बीमा पालिसी परिवादी को देने के बजाए एक पत्र दिनांक 13.04.2013 को प्रेषित किया गया, जिसमें उल्लेख किया गया कि बीमा पालिसी दिनांक 08.04.2013 को समाप्त हो चुकी है और बीमा पालिसी को चालू रखने का दायित्व परिवादी का बताया गया, जबकि इसका उत्तरदायित्व विपक्षी संख्या-1 पर था। दिनांक 25.04.2013 को विपक्षी संख्या-1 के वरिष्ठ अधिकारी को भी पत्र लिखा गया और अपनी शिकायत दर्ज कराई गई तथा बीमा पालिसी की प्रति की मांग की गई। विपक्षी संख्या-1 द्वारा बीमा पालिसी की समाप्ति के संबंध में कोई नोटिस या कोई सूचना नहीं दी गई। परिवादी ने दिनांक 06.05.2013 को विधिक नोटिस भेजते हुए अंकन 25,00,000/- रूपये की मांग की गई। परिवाद पत्र में यह भी उल्लेख किया गया कि दिनांक 24.04.2013 को परिवादी के खाते से अंकन 33,773/- रूपये इसी पालिसी की प्रीमियम अदा करने के लिए काटे गए और परिवादी द्वारा आपत्ति करनेपर अंकन 28,705/- रूपये परिवादी के खाते में जमा कर दिए गए। इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा सेवा में कमी कारित की गई है।
3. परिवादी ने अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथपत्र तथा अनेग्जर 1 लगायत 9 प्रस्तुत किए गए हैं। सुसंगत दस्तावेजों की चर्चा निर्णय के अगले भाग में चलकर की जाएगी।
4. विपक्षी संख्या-1 ने अपने लिखित कथन में उल्लेख किया है कि उनके द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई है। पालिसी दिनांक 08.04.2013 को समाप्त हो चुकी थी, जबकि घटना दिनांक 10/11.04.2013 को घटित हुई है। पालिसी को चालू रखने का दायित्व परिवादी पर था।
5. विपक्षी संख्या-2 ने अपने लिखित कथन में उल्लेख किया है कि बीमा पालिसी घटना की तिथि को यानी दिनांक 08.04.2013 को समाप्त हो चुकी थी, इसलिए बीमा कम्पनी का कोई उत्तरदायित्व नहीं है।
6. विपक्षीगण द्वारा अपने लिखित कथन के समर्थन में शपथपत्र तथा सुसंगत दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं।
7. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री टी0एच0 नकवी तथा विपक्षी संख्या-1 के विद्वान अधिवक्ता श्री अवनीश पाल तथा विपक्षी संख्या-2 के विद्वान अधिवक्ता श्री एस0पी0 सिंह की बहस सुनी गई तथा पत्रावली का अवलोकन कया गया।
8. प्रस्तुत केस में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि बीमा पालिसी चालू रखने का दायित्व विपक्षी संख्या-1 पर था, जैसा कि परिवाद पत्र में वर्णित किया गया है या स्वंय परिवादी पर था।
9. प्रथम पालिसी की अवधि दिनांक 09.04.2012 से दिनांक 08.04.2013 तक थी। सूचना के अधिकार के तहत परिवादी द्वारा बैंक से प्राप्त की गई सूचना पत्रावली पर दस्तावेज संख्या-42 है, के मद 4 में उल्लेख किया गया है कि बीमा कराने की जिम्मेदारी खाताधारक की होती है, परन्तु खाताधारक द्वारा बीमा न कराए जाने पर बैंक द्वारा बीमा करा दिया जाता है। यह भी सूचना दी गई कि प्रथम बीमा की अवधि समाप्त होने के बाद परिवादी को बीमा कराने के लिए कहा गया था, परन्तु परिवादी द्वारा बीमा न कराए जाने के कारण बैंक द्वारा दिनांक 24.04.2013 को बीमा करा दिया गया था। स्वंय परिवादी ने अनेग्जर संख्या-5 के रूप में पत्र दाखिल किया है, जिसमें बैंक द्वारा परिवादी, मो0 उसमान को सूचित किया गया है कि बैंक के साथ किए गए अनुबंध के अनुसार यह आपका कर्तव्य है कि आप बीमा पालिसी को जीवित रखें। यह पत्र दिनांक 13.04.2013 को लिखा गया है। स्वंय परिवाद पत्र के पैरा संख्या-8 में इस तथ्य का उल्लेख किया गया है कि बैंक द्वारा अनेग्जर संख्या-5 में वर्णित पत्र लिखा गया। बीमा प्रीमियम परिवादी के खाते से काटा गया है। बीमा पालिसी में प्रथम नाम बैंक का ही लिखा है, वह अनुबंध प्रस्तुत नहीं किया गया है, जिसमें बीमा कराने का दायित्व परिवादी पर सौंपा गया है, यह पत्र चोरी की घटना के बाद लिखा गया है। बैंक द्वारा दिनांक 24.04.2013 को बीमा कराया गया है। तथ्यों के उपरोक्त विश्लेषण से स्पष्ट हो जाता है कि बीमा प्रीमियम परिवादी के खाते से धनराशि लेकर बीमा कम्पनी को अदा करने का दायित्व बैंक का था। बैंक ने अपने इस कर्तव्य में लापरवाही कारित की है।
10. अब प्रश्न उठता है कि क्या परिवादी चोरी के तथ्य, चुराए गए सामान एवं उनके मूल्य तथा इस कीमत का सामान दुकान के स्टाक में होने के तथ्य को साबित कर पाया है ? इस प्रश्न का उत्तर परिवादी द्वारा प्रस्तुत की गई साक्ष्य के आधार पर नकारात्मक है और इस निष्कर्ष पर पहुँचने के निम्न आधार हैं :-
I. परिवाद पत्र में अनुमानत: 25 लाख रूपये के सामान की चोरी का उल्लेख किया गया, परन्तु क्या-क्या सामान चोरी हुआ, उसकी क्या कीमत थी, इसका विवरण परिवाद पत्र में वर्णित नहीं किया है।
II. चोरी की घटना की रिपोर्ट में चोरी किए गए सामान का विवरण अंकित किया जाता है, वह सूची इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गई है। अत: एक महत्वपूर्ण साक्ष्य को छिपाया गया है।
III. चोरी का अपराध दर्ज होने के पश्चात् पुलिस द्वारा विवेचना में चोरी होना पाया गया या नहीं, इस बिन्दु पर विवेचना के निष्कर्ष की प्रति इस आयोग के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गई है, इस साक्ष्य के प्रस्तुत न करने पर उपधारणा की जा सकती है कि पुलिस द्वारा चोरी की घटना को सही नहीं पाया गया।
IV. परिवादी ने ऋण का भुगतान नहीं किया है, उसके विरूद्ध सरफेसी एक्ट के अन्तर्गत कार्रवाई संचालित है, जैसा के बैंक के पत्र दिनांक 06.04.2014 के अवलोकन से साबित है। यह कार्रवाई काफी समय पूर्व से ऋण अदायगी की विफलता के बाद प्रारम्भ होती है। अत: चोरी की घटना बनावटी प्रतीत होती है।
V. अनेज्गर 2 के रूप में परिवादी ने बैंक लेखा विवरण प्रस्तुत किया है, परन्तु स्टाक रजिस्टर प्रस्तुत नहीं किया है, जिससे आभास मिलता कि परिवादी के स्टोर में इतना माल मौजूद था, जितना चोरी होना बताया गया है। स्टाक रजिस्टर का प्रस्तुत न करना भी चोरी की घटना को संदिग्ध बनाता है।
VI. अंकन 25 लाख रूपये का सामान चोरी होने का मतलब है कि परिवादी एक व्यापारी के रूप में ट्रेड टैक्स विभाग में पंजीकृत होगा और क्रय-विक्रय का ब्यौरा प्रस्तुत करता होगा, परन्तु ऐसा विवरण भी प्रस्तुत नहीं किया गया।
VII. परिवादी द्वारा चोरी की घटना से संबंधित अखबार की एक कटिंग पृष्ठ 16 प्रस्तुत की गई है, इसमें वर्णित विवरण इस तथ्य का सबूत नहीं है कि वास्तव में वह सामान चोरी हुआ है।
11. निष्कर्षत: चोरी का तथ्य साबित नहीं है। परिवाद खारिज होने योग्य है।
आदेश
12. प्रस्तुत परिवाद खारिज किया जाता है।
13. पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वंय वहन करेंगे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2