Uttar Pradesh

StateCommission

A/786/2023

Hari Narayan - Complainant(s)

Versus

Punjab National Bank - Opp.Party(s)

Akhilesh Trivedi

26 May 2023

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/786/2023
( Date of Filing : 10 May 2023 )
(Arisen out of Order Dated 20/03/2023 in Case No. C/2013/360 of District Kanpur Nagar)
 
1. Hari Narayan
House no.109/28 C Neharu Nagar Kanpur
...........Appellant(s)
Versus
1. Punjab National Bank
Gumati No-5, its through Branch Manager
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 HON'BLE MR. Rajendra Singh JUDICIAL MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 26 May 2023
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

(मौखिक)                                                                                  

अपील संख्‍या:-786/2023

श्री हरि नारायण पुत्र स्‍व0 गोपाल सिंह, निवासी मकान नं0-109/28सी, नेहरू नगर, कानपुर नगर।

                    ........... अपीलार्थी/परिवादी                                             

बनाम              

पंजाब नेशनल बैंक, गुमटी नं0-5 कानपुर द्वारा शाखा प्रबन्‍धक।

 …….. प्रत्‍यर्थी/विपक्षी

समक्ष :-

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष

मा0 श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य

मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य                       

अपीलार्थी के अधिवक्‍ता         : श्री अखिलेश त्रिवेदी

प्रत्‍यर्थी के अधिवक्‍ता           : कोई नहीं।

दिनांक :- 26.5.2023

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय

प्रस्‍तुत अपील, अपीलार्थी/ श्री हरि नारायण द्वारा इस आयोग के सम्‍मुख धारा-41 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के अन्‍तर्गत जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, कानपुर नगर द्वारा परिवाद सं0-360/2013 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20.3.2023 के विरूद्ध योजित की गई है।

संक्षेप में वाद के तथ्‍य इस प्रकार है कि अपीलार्थी/परिवादी की सगी मॉ श्रीमती सूरज कली का खाता न्‍यू बैंक आफ इण्डिया में था, जिसमें दिनांक 21.11.1993 को रू0 3318.00 शेष था एवं दिनांक 20.12.1993 को उक्‍त सूरज कली की मृत्‍यु हो गई, तदोपरांत न्‍यू बैंक आफ इण्डिया का विलय पंजाब नेशनल बैंक में हो गया और न्‍यू बैंक आफ इण्डिया का समस्‍त उत्‍तरदायित्‍व पंजाब नेशनल बैंक में हो गया। अपीलार्थी/परिवादी ने दिनांक 06.9.2010 को जन सूचना अधिकार के

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तहत जानकारी मॉगी तब दिनांक 25.10.2010 को अपीलार्थी/परिवादी को सूचित किया कि उक्‍त नाम से कोई खाता प्रत्‍यर्थी/विपक्षी बैंक में नहीं है, पुन: एक नोटिस प्रत्‍यर्थी बैंक दी गई जिसके जवाब में दिनांक 30.3.2013 को सूचित किया गया कि उक्‍त खाते में दिनांक 31.3.2013 को मात्र 70.00 रू0 शेष था और उक्‍त खाता दिनांक 27.9.2001 को बन्‍द कर दिया गया है एवं अपीलार्थी/परिवादी को किसी भी धनराशि का भुगतान नहीं किया गया है जबकि उपरोक्‍त धनराशि को अपीलार्थी/परिवादी मय ब्‍याज के वापस प्राप्‍त करने का अधिकारी है। अत्एव क्षुब्‍ध होकर अपीलार्थी/परिवादी द्वारा जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख परिवाद प्रस्‍तुत किया गया।

प्रत्‍यर्थी/विपक्षी बैंक की ओर से जिला उपभोक्‍ता आयोग के सम्‍मुख अपना प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत कर परिवाद पत्र के कथनों से इंकार किया गया तथा यह कथन किया गया कि अपीलार्थी/परिवादी के कथनानुसार उसकी मॉ सूरज कली का खाता सं0-5382 न्‍यू बैंक आफ इण्डिया में था, जिसमें दिनांक 11.11.2013 को रू0 3318.00 अवशेष था एवं खाताधारक की मृत्‍यु दिनांक 20.12.1993 को हो गई थी एवं वर्ष-1993 से 2010 तक अपीलार्थी/परिवादी ने अपनी मॉ के उक्‍त खाते की कोई जानकारी नहीं ली गई, न ही 17 वर्षों तक कोई पता किया गया एवं 20 वर्षों बाद कालबाधित परिवाद दायर किया गया है। यह भी कथन किया कि भारतीय रिजर्व बैंक की गाइड लाइन के अनुसार खाते का रिकार्ड मात्र 10 वर्ष तक रखा जाता है। इस प्रकार अपीलार्थी/परिवादी द्वारा स्‍वयं 17 वर्षों तक जानकारी न करने के कारण खाता समाप्‍त हो गया एवं परिवाद खारिज होने योग्‍य है।

विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्‍ध साक्ष्‍य पर विस्‍तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को

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खारिज कर दिया है, जिससे क्षुब्‍ध होकर अपीलार्थी/परिवादी द्वारा प्रस्‍तुत अपील योजित की गई है।

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा कथन किया गया कि जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश पूर्णत: तथ्‍य और विधि के विरूद्ध है। यह भी कथन किया गया कि अपीलार्थी की मॉ श्रीमती सूरज कली का खाता न्‍यू बैंक आफ इण्डिया में था, जिसमें दिनांक 21.11.1993 को रू0 3318.00 अवशेष था एवं उसकी मॉ की मृत्‍यु दिनांक 20.12.1993 के पश्‍चात न्‍यू बैंक आफ इण्डिया का विलय पंजाब नेशनल बैंक में हो गया, इसलिए बैंक में जमा सम्‍पूर्ण धनराशि के भुगतान का उत्‍तरदायित्‍व पंजाब नेशनल बैंक का है।

यह भी कथन किया गया कि अपीलार्थी द्वारा प्रत्‍यर्थी बैंक को कई पत्र विभिन्‍न तिथियों पर खाते के सम्‍बन्‍ध में जानकारी उपलब्‍ध कराये हेतु भेजे गये, परन्‍तु बैंक द्वारा खाते की जानकारी नहीं दी गई। तदोपरांत प्रत्‍यर्थी बैंक द्वारा प्रथम बार दिनांक 30.3.2013 को यह स्‍वीकार किया गया कि अपीलार्थी की मॉ का खाता उनकी शाखा में उपलब्‍ध है, जिसमें 70.00 रू0 की धनराशि दिनांक 31.3.2001 को अवशेष थी, जो दिनांक 27.9.2001 को बन्‍द कर दिया गया है, जो कि बैंक की सेवा में कमी को दर्शाता है। यह भी कथन किया गया कि प्रत्‍यर्थी बैंक द्वारा बिना किसी पूर्व सूचना के अपीलार्थी की मॉ का खाता बन्‍द कर दिया गया, जो कि बैंक के नियमों के विरूद्ध है।

यह भी कथन किया गया कि वर्ष-1993 में 10 ग्राम सोने की कीमत 3200.0 रू0 थे और वर्तमान में 10 ग्राम सोने की कीमत लगभग 62,000.00 रू0 हो चुकी है, जो कि वर्तमान समय में एक छोटी धनराशि है, परन्‍तु वर्ष-1993 में एक बड़ी धनराशि रही होगी।

 

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अपीलार्थी के अधिवक्‍ता द्वारा कथन किया गया कि प्रत्‍यर्थी/बैंक द्वारा सेवा में कमी की गई है अत्एव अपील स्‍वीकार कर जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश को अपास्‍त किया जावे।

हमारे द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता को सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं समस्‍त प्रपत्रों का अवलोकन किया गया।

वर्तमान प्रकरण में निर्विवादित रूप से यह पाया जाता है कि अपीलार्थी/परिवादी की मॉ का खाता प्रत्‍यर्थी बैंक में वर्ष-1993 में था एवं प्रश्‍नगत खाते में दिनांक 31.3.2001 को मात्र रू0 70.00 अवशेष था तथा प्रत्‍यर्थी/बैंक द्वारा खाता न चलाये जाने के कारण एक निश्चित धनराशि की कटौती की जाती है और वर्ष-1993 से खाता न चलाये जाने के कारण वर्ष-2001 में उक्‍त खाते में मात्र रू0 70.00 अवशेष था तथा बैंक के विलय के बाद ग्राहकों को समाचार पत्रों के माध्‍यम से अवगत कराया जाता है कि वह अपना ट्रांसफर खाता देख लें, इसके बावजूद भी अपीलार्थी द्वारा 17 वर्षों तक खाते के सम्‍बन्‍ध में कोई जानकारी एवं कार्यवाही प्राप्‍त न किया जाना अपीलार्थी की स्‍वयं की ही लापरवाही को दर्शाता है। उपरोक्‍त सम्‍बन्‍ध में विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा अपने प्रश्‍नगत निर्णय में विस्‍तार से चर्चा करते हुए जो निष्‍कर्ष अंकित किया गया है वह पूर्णत: विधि सम्‍मत है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश में किसी प्रकार कोई अवैधानिकता अथवा विधिक त्रुटि अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा अपीलीय स्‍तर पर इंगित नहीं की जा सकी है, अत्एव प्रस्‍तुत अपील बलहीन होने के कारण अंगीकरण के स्‍तर पर ही निरस्‍त की जाती है।

प्रस्‍तुत अपील को योजित करते समय यदि कोई धनराशि अपीलार्थी द्वारा जमा की गयी हो, तो उक्‍त जमा धनराशि मय अर्जित

-5-

ब्‍याज सहित सम्‍बन्धित जिला उपभोक्‍ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

    (न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)     (राजेन्‍द्र सिंह)      (सुशील कुमार)                  

            अध्‍यक्ष                             सदस्‍य            सदस्‍य                                                                                                 

 

हरीश सिंह

वैयक्तिक सहायक ग्रेड-2.,

कोर्ट नं0-1

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
JUDICIAL MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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