Chhattisgarh

Durg

CC/295/2013

Pravin Chand Dadsena - Complainant(s)

Versus

Principal, Rawatpura Sarkar Institute - Opp.Party(s)

Shri Utpal

12 Feb 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM, DURG (C.G.)
FINAL ORDER
 
Complaint Case No. CC/295/2013
 
1. Pravin Chand Dadsena
Sambalpur
Bastar
C.G.
...........Complainant(s)
Versus
1. Principal, Rawatpura Sarkar Institute
Durg
Durg
C.G.
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर् PRESIDENT
 HON'BLE MRS. श्रीमती शुभा सिंह MEMBER
 
For the Complainant:Shri Utpal, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

                                                  प्रकरण क्र.सी.सी./13/295

                                                                                                  प्रस्तुती दिनाँक 30.09.2013

प्रवीण चंद्र डडसेना, आ. श्री कंवलसिंह डडसेना आयु-33 वर्ष, निवासी - ग्राम व पोस्ट संबलपुर, तह भनुप्रतापपुर, जिला-उत्तर बस्तर (छ.ग.)

                                                                                                - - - -            परिवादी

विरूद्ध 

प्राचार्य, रावतपुरा सरकार इंस्टीट्यूट आफ फार्मेसी, हालीडे रिर्सोट के पीछ, कुम्हारी, जिला-दुर्ग (छ.ग.)

                                                                                                                                - - - -    अनावेदक

आदेश

(आज दिनाँक 12 फरवरी 2015 को पारित)

श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष

                                परिवादी द्वारा अनावेदक से डी-फार्मेसी कोर्स वर्ष 2012 -13 में प्रवेश हेतु जमा की गई रजिस्टेªशन फीस राशि 20,000रू., मानसिक कष्ट हेतु 40,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।

परिवाद-

                                (2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी के द्वारा अनावेदक स्ंास्था से डी-फार्मेसी के कोर्स हेतु वर्ष 2012-13 में प्रवेश हेतु रजिस्टेªशन फीस दि.27.06.12 को 20,000रू. जमा किया गया था, उक्त रजिस्ट्रशन फीस लेने के पश्चात से दिनांक 01.08.12 को परिवादी की काउंसलिंग भी की गई, परंतु परिवादी को उक्त कोर्स में प्रवेश नहीं दिया गया। परिवादी के द्वारा कई बार अनावेदक की संस्था के चक्कर लगाए गए किंतु अनावेदक के द्वारा परिवादी को किसी प्रकार की जानकारी प्रदान नहीं की गई एव न ही रजिस्टेªशन हेतु जमा किया शुल्क ही वापस किया गया, जिसके कारण परिवादी को मानसिक वेदना का सामना करना पड़ा तथा अन्य शिक्षण संस्था में प्रवेश लेना पड़ा परिवादी का अमूल्य समय अनावेदक के संस्था में आने जाने में नष्ट हुआ।  अनावेदक का उपरोक्त कृत्य सेवा में कमी एवं व्यवसायिक दुराचरण की श्रेणी में आता है। अतः परिवादी को अनावेदक से जमा की गई रजिस्टेªशन फीस की राशि 20,000रू., मानसिक कष्ट हेतु 40,000रू., आने जाने मे हुआ व्यय 40,000रू. इस प्रकार कुल 1,00,000रू. दिलाया जावे।

जवाबदावाः-

                                (3) प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि अनावेदक द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत नहीं किया गया है।

                                (4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-

1.             क्या परिवादी, अनावेदक से जमा की गई रजिस्टेªशन फीस की राशि 20,000रू. ब्याज प्राप्त करने का अधिकारी है?     हाँ

2.             क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज में 40,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है?   हाँ

3.             अन्य सहायता एवं वाद व्यय?           आदेशानुसार परिवाद स्वीकृत

निष्कर्ष के आधार

                                (5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है। 

फोरम का निष्कर्षः-

                                (6) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि अनावेदक ने अपने लिखित तर्क में परिवादी द्वारा 20,000रू. रजिस्ट्रेशन फीस जमा करना स्वीकार किया है और यह भी स्वीकार किया है कि परिवादी को प्रवेश नहीं दिया गया था, परिवादी द्वारा एनेक्चर-1 अनुसार अनावेदक के पास 20,000रू. जमा करने के संबंध में दस्तावेज प्रस्तुत किया गया है और एनेक्चर-4 अनुसार अनावेदक को उक्त नोटिस प्राप्ति स्वीकृति भी है।

(7) अनावेदक ने अपने लिखित तर्क में यह व्यक्त किया है कि अनावेदक उक्त रजिस्ट्रेशन फीस परिवादी को वापस करने के लिए तत्पर रहा है, उक्त संबंध में अनावेदक ने परिवादी से रसीद की मांग की थी, परंतु परिवादी ने रसीद नहीं दी और न ही पैसा वापस प्राप्त किया।

(8) हम अनावेदक के इन तर्कों से सहमत नहीं है यदि अनावेदक का आशय उक्त राशि वापिस करने का होता तो परिवादी को एनेक्चर-2 अधिवक्ता मार्फत नोटिस देने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।  उक्त एनेक्चर-2 नोटिस में यह स्पष्ट लिखा है कि परिवादी कई बार अनावेदक के पास गया था, परंतु अनावेदक द्वारा रजिस्ट्रेशन फीस वापस नहीं की गई।  उक्त नोटिस में परिवादी ने अनावेदक को एक सप्ताह का समय भी दिया था कि रजिस्ट्रेशन फीस वापस नहीं किये जाने पर वह उपभोक्ता फोरम जायेगा, उसके पश्चात् भी अनावेदक ने उक्त रकम परिवादी को वापस नहीं की, जबकि ऐसा सिद्ध नहीं है कि अनावेदक के पास परिवादी के निवास के पते संबंध विवरण उपलब्ध नहीं थे, क्योंकि स्वाभाविक है कि परिवादी ने एडमीशन के लिए अपना विवरण अनावेदक के पास प्रस्तुत किया होगा।  अनावेदक सद्भावनापूर्वक परिवादी को उक्त राशि वापस करने का आशय रखता तो निश्चित रूप से वह परिवादी द्वारा प्रस्तुत प्रपत्र के आधार पर उसके पते पर संपर्क करता या उसके पते पर चेक या डी.डी. के माध्यम से उक्त रकम वापस करता, परंतु अनावेदक ने ऐसा नहीं किया, बल्कि परिवादी द्वारा अनेकों बार अनावेदक के पास जाने पर और अधिवक्ता मार्फत नोटिस के बावजूद भी उक्त रकम वापस नहीं की, जिससे यह सिद्ध होता है कि अनावेदक ने परिवादी से एनेक्चर-1 अनुसार दि.27.06.2012 को 20,000रू. की मोटी राशि प्राप्त की, परंतु आज तक वह राशि परिवादी को वापस नहीं कर निश्चित रूप से सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण किया है। यह सामाजिक चेतना का विषय है किस प्रकार ऐसी शैक्षणिक संस्था भोलेभाले छात्रों के माता-पिता की मेहनत की गाढ़ी कमाई रजिस्ट्रेशन फीस के रूप में प्राप्त कर लेते हैं और फिर बिना किसी उचित कारण के उसे अपने पास रखकर उस राशि का उपयोग करते है, जबकि उनका कर्तव्य रहता है कि तुरंत उक्त राशि छात्रों को वापस कर दें। इतनी बड़ी राशि बिना किसी कारण के यदि अनावेदक द्वारा रखी गई है तो वह निश्चित रूप से परिवादी के लिए मानसिक वेदना का कारण है, क्योंकि प्रकरण के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादी एक ग्रामीण परिवेश का निवासी है, जिसको अनावेदक के कार्यालय आने में अत्यधिक परेशानियों का सामना करना पड़ा होगा, जिसके लिए परिवादी ने 40,000रू. मानसिक क्षतिपूर्ति राशि की मांग की है तो उसे अत्यधिक नहीं कहा जा सकता।

(9) फलस्वरूप हम अनावेदक को उपरोक्त परिस्थितियों में सेवा में निम्नता और व्यवसायिक दुराचरण किया जाना पाते हैं और परिवादी का परिवाद स्वीकार करने का समुचित आधार पाते हैं।

                                (10) अतः उपरोक्त संपूर्ण विवेचना के आधार पर हम परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद स्वीकार करते है और यह आदेश देते हैं कि अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से एक माह की अवधि के भीतर निम्नानुसार राशि अदा करे:-

(अ)    अनावेदक, परिवादी को रजिस्ट्रेशन फीस राशि 20,000रू. (बीस हजार रूपये) अदा करे।

(ब)    अनावेदक द्वारा निर्धारित समयावधि के भीतर उपरोक्त राशि का भुगतान परिवादी को नहीं किये जाने पर अनावेदक, परिवादी को आदेश दिनांक से भुगतान दिनांक तक 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करने के लिए उत्तरदायी होगा।

(स)    अनावेदक, परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 40,000रू. (चालीस हजार रूपये) अदा करेे।

(द)    अनावेदक, परिवादी को वाद व्यय के रूप में 5,000रू. (पांच हजार रूपये) भी अदा करे।

 

 
 
[HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर्]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. श्रीमती शुभा सिंह]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.