Kesa Ram filed a consumer case on 04 Feb 2015 against President,J.V.V.N.L in the Jalor Consumer Court. The case no is C.P.A 107/2013 and the judgment uploaded on 16 Mar 2015.
न्यायालयःजिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,जालोर
पीठासीन अधिकारी
अध्यक्ष श्री दीनदयाल प्रजापत,
सदस्य श्री केशरसिंह राठौड
सदस्या श्रीमती मंजू राठौड,
1.केशाराम पुत्र मोडाजी, जाति रेबारी, उम्र 50 वर्ष, निवासी बालवाडा, तहसील व जिला जालोर।
प्रार्थी।
बनाम
1. अध्यक्ष, जो0 वि0 वि0 निगम लि0,
जोधपुर, नया पावर हाउस, जोधपुर ।
2. अधीक्षण अभियन्ता,
जो0 वि0 वि0 निगम लि0, जालोर।
3. सहायक अभियन्ता, जो0 वि0 वि0 निगम लि0,
उम्मेदाबाद,तहसील व जिला- जालोर।
...अप्रार्थीगण।
सी0 पी0 ए0 मूल परिवाद सं0: 107/2013
परिवाद पेश करने की दिनांक 18.07.2013
अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ।
उपस्थित:-
1. श्री भंवरलाल सोलंकी, अधिवक्ता प्रार्थी।
2. श्री दिलीप शर्मा, अधिवक्ता अप्रार्थीगण।
निर्णय दिनांक: 04-02-2015
1. संक्षिप्त में परिवाद के तथ्य इसप्रकार हैं कि प्रार्थी का
रहवासीय मकान ग्राम बालवाडा तहसील, जालोर में आया हुआ हैं। जिसमें प्रार्थी ने अप्रार्थीगण से घरेलू विद्युत कनैक्शन लिया हुआ हैं। जिसके खाता संख्या-2406-0142 हैं, तथा अप्रार्थी क्रमांक 3 के द्वारा दिनांक 14-04-2013 को विद्युत बिल रूपयै 11,294 का जारी किया, जो बिल में वर्णित खर्च यूनिट 299 के अनुसार न होकर अधिक राशि का होने से प्रार्थी ने दिनांक 08.07.2013 को अप्रार्थीगण क्रमांक 2 व 3 को प्रार्थनापत्र प्रस्तुत कर बिल में सुधार करने का निवेदन किया, लेकिन अप्रार्थीगण ने बिल में सुधार नहीं किया, जिसके कारण अप्रेल 2013 का विद्युत बिल प्रार्थी, अप्रार्थीगण को अदा नहीं कर सका, तथा जून 2013 के विद्युत बिल में पिछला बकाया रूपयै 11,713/- बताकर कुल बिल राशि रूपयै 12,233/- का जारी किया हैं, जो गलत हैं। जिससे प्रार्थी को मानसिक व शारीरिक कष्ट, वेदना, तथा आर्थिक हानि उठानी पड रही हैं। इसप्रकार प्रार्थी ने यह परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्व अप्रेल व जून के विद्युत बिल रूपयै 12,233/- मे सुधार कराने व मानसिक वेदना के रूपयै 10,000/-, शारीरिक कष्ट व पीडा के रूपयै 10,000/-, आर्थिक नुकसान के रूपयै 10,000/-, परिवाद व्यय के रूपयै 5,000/-, बतौर क्षतिपूर्ति व हर्जाना दिलाने हेतु यह परिवाद जिला मंच में पेश किया हैं।
2. प्रार्थी केे परिवाद को कार्यालय रिपोर्ट के बाद दर्ज रजिस्टर कर अप्रार्थीगण को जरिये रजिस्टर्ड ए0डी0 नोटिस जारी कर तलब किया । अप्रार्थीगण की ओर से अधिवक्ता श्री दिलीप शर्मा ने उपस्थिति पत्र प्रस्तुत कर पैरवी की। तथा अप्रार्थीगण ने प्रथम दृष्टया प्रार्थी का परिवाद अस्वीकार कर, जवाब परिवाद प्रस्तुत कर कथन किये, कि गा्रम कुआबेर में प्रार्थी का एक घरेलू विद्युत सम्बन्ध आया हुआ हैं। जिसके खाता संख्या- 2406-0142 हैं, प्रकरण विवादित कनैक्शन को रिकार्ड में आये अकंन अनुसार प्रार्थी को बिल निगम के प्रावधानो के तहत दिये गये हैं। विद्युत बिलो की राशि विद्युत निगम के प्रावधानो के अनुसार रिकार्ड में आये अकंन के आधार पर अधिरोपित की हैं, जो राशि अधिकारीयों द्वारा अधिरोपित की गई हैं। प्रार्थी को जो बिल जारी किये गये हैं। जिसका पूर्ण विवरण प्रार्थी को दिया हैं, जिसे अदा करने का दायित्व खाताधारक का हैं। उक्त राशि जनरल कंडीशन आफ सप्लाई के प्रावधानो के अनुसार रिकार्ड में आये अकंन के आधार पर निर्धारण कर राशि के उक्त विद्युत बिल, विद्युत निगम के प्रावधानो के अनुसार दिये हैं, जो सही हैं, जो विधि सम्मत हैें। विद्युत निगम के द्वारा सामान्य प्रकिया में निगम के प्रावधानो के अनुसार बिना किसी बदनियती के प्रार्थी के उक्त खाते की राशि रिकार्डस् के आधार पर जारी की हैं। उक्त राशि को अदा करने का दायित्व खाता धारक का हैं। तथा विद्युत निगम पब्लिक सर्विस काॅरपोरेशन हैं, जो बिना किसी लाभ की मंशा के जनहितार्थ विद्युत की सुचारू व्यवस्था हेतु प्रयासरत हैं तथा प्रार्थी को विभागीय समझौता समिति के तहत विवाद को प्रस्तुत कर निस्तारण करवाना चाहिए। तथा प्रार्थी ने प्रकरण को विभागीय समझौता समिति के समक्ष पेश नहीं किया हैं। जिससे यह परिवाद प्रथम दृष्टया ही विधि की मंशा के प्रतिकूल होने से खारीज योग्य हैं। इसप्रकार अप्रार्थीगण ने जवाब परिवाद प्रस्तुत कर प्रार्थी का परिवाद खारीज किये जाने का निवदन किया हैं।
3. हमने उभय पक्षो को साक्ष्य सबूत प्रस्तुत करने के पर्याप्त समय/अवसर देने के बाद, उभय पक्षो के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस एवं तर्क-वितर्क सुने, जिस पर मनन किया तथा पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन एवं अध्ययन किया, तो हमारे सामने मुख्य रूप से तीन विवाद बिन्दु उत्पन्न होते हैं जिनका निस्तारण करना आवश्यक हैें:-
1. क्या प्रार्थी, अप्रार्थीगण का उपभोक्ता हैं ? प्रार्थी
2. क्या अप्रार्थीगण ने अप्रेल व जून 2013 के विद्युत बिल अधिक
व गलत राशि के प्रार्थी के नाम जारी किये , जिसे प्रार्थी के
द्वारा लिखित निवेदन/आवेदन करने पर भी सही एवं
संशोधित नहीं कर सेवा प्रदान करने में गलती एवं लापरवाही
कारित की हैं ?
प्रार्थी
3. अनुतोष क्या होगा ?
प्रथम विधिक विवाद बिन्दु
क्या प्रार्थी, अप्रार्थीगण का उपभोक्ता हैं ? प्रार्थी
उक्त प्रथम विधिक विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं। जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने परिवाद पत्र एवं साक्ष्य शपथपत्र प्रस्तुत कर कथन किये हैं कि ग्राम बालवाडा में प्रार्थी के नाम अप्रार्थीगण से घरेलू विद्युत कनैक्शन स्थापित करवा रखा हैं। जिसके खाता संख्या 2406 0142 हैं। तथा प्रार्थी, अप्रार्थीगण द्वारा जारी विद्युत बिलो का भुगतान समय पर करता आ रहा हैं। तथा प्रार्थी ने अप्रेल व जून 2013 के विद्युत बिलो की प्रतियां पेश की हैं। जो अप्रार्थी विद्युत विभाग ने प्रार्थी के नाम खाता संख्या 2406 0142 से जारी किये हैं। तथा अप्रार्थीगण ने जवाब परिवाद में प्रार्थी के नाम विद्युत कनैक्शन जारी होना स्वीकार किया हैं। इसप्रकार प्रार्थी एवं अप्रार्थीगण के मध्य ग्राहक सेवक का सीधा सम्बन्ध स्थापित होना सिद्व एवं प्रमाणित हैं। तथा प्रार्थी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 1 डी के तहत उपभोक्ता की परिभाषा में आता हैं, इसप्रकार प्रथम विवाद बिन्दु प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थीगण के विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।
द्वितीय विवाद बिन्दु
क्या अप्रार्थीगण ने अप्रेल व जून 2013 के विद्युत बिल अधिक
व गलत राशि के प्रार्थी के नाम जारी किये , जिसे प्रार्थी के
द्वारा लिखित निवेदन/आवेदन करने पर भी सही एवं
संशोधित नहीं कर सेवा प्रदान करने में गलती एवं लापरवाही
कारित की हैं ?
प्रार्थी
उक्त द्वितीय विवाद बिन्दु को सिद्व एवं प्रमाणित करने का भार प्रार्थी पर हैं। जिसके सम्बन्ध में प्रार्थी ने परिवादपत्र एवं साक्ष्य शपथपत्र प्रस्तुत कर कथन किये हैं कि प्रार्थी के घर सिर्फ एक बल्ब 40 वाल्ट का लगा हुआ हैं। और पूर्व के समस्त बिल 400-500 रूपयै के लगभग ही आते रहते थे। जिसका भुगतान प्रार्थी , अप्रार्थी को करता रहा। लेकिन अप्रेल 2013 का विद्युत बिल रूपयै 11,294 का आया, जिसमें उपभोग यूनिट 299 थे, जो यूनिट के हिसाब से न आकर ज्यादा था, जिसे सुधार हेतु प्रार्थी ने अप्रार्थीगण को कहा , जो अप्रार्थीगण ने नहीं किया। जिसके कारण अप्रेल 2013 का बिल प्रार्थी भुगतान नहीं कर सका, तथा जून 2013 में पुनः अप्रार्थीगण ने पिछला बिल बकाया बताकर रूपयै 12,233 का बिल भेज दिया, जिसे भी अप्रार्थीगण ने सुधार नहीं किया। उक्त कथनो के सम्बन्ध में प्रार्थी ने अप्रेल 2013 का विद्युत बिल की प्रति पेश की हैं। जिसमें नियमित विद्युत उपभोग के अलावा काॅलम संख्या 17 में अन्य देय/ जमा कोड निगम राशि रूपयै 9043 व काॅलम संख्या - 18 में अन्य देय/निगम कोड, विद्युत शुल्क रूपयै 702/-, योग रूपयै 9,745/- लिखा गया हैं। तथा नियमित उपभोग 299 यूनिट का खर्च मिलाकर अप्रेल 2013 का योग बिल रूपयै 11,294/- का जारी किया गया हैं। तथा उक्त बिल भुगतान नहीं किये जाने के कारण अप्रार्थीगण ने जून 2013 का विद्युत बिल जारी किया, जिसमें पिछला बकाया रूपयै 11713/- अंकित कर रूपयै 12,233/- का बिल जारी किया हैं। यानि विवादित राशि अप्रेल 2013 के विद्युत बिल में काॅलम संख्या- 17 व 18 में दर्शित राशि रूपयै 9,745/- हैं। उक्त राशि अप्रार्थीगण ने किस पेटे एवं किस हिसाब एवं गणित से अंकित की हैं, इसका स्पष्टीकरण अप्रार्थीगण ने अपने जवाब परिवाद में कहीं भी नहीं दिया हैं। तथा न ही अप्रार्थीगण ने उक्त राशि प्रार्थी से बकाया होने का कोई साक्ष्य सबूत या दस्तावेज, पेश किया हैं। तथा हमारी राय में जब उक्त राशि प्रार्थी के विद्युत बिल में जोडने का कोई हिसाब, गणना या रिकार्ड नहीं हैें, तो उक्त राशि अप्रार्थीगण ने प्रार्थी के विद्युत बिल में बेहिसाब जोडकर गलती एवं त्रुटि कारित की हैं, तथा उक्त गलती प्रार्थी द्वारा अप्रार्थीगण को ध्यान में लाने पर भी अप्रार्थीगण ने प्रार्थी का विद्युत बिल नहीं सुधार कर सेवा प्रदान करने में कमी एवं लापरवाही कारित की हैं, जो सिद्व एवं प्रमाणित हैं। इसप्रकार विवाद का द्वितीय बिन्दु भी प्रार्थी के पक्ष में तथा अप्रार्थीगण के विरूद्व निस्तारित किया जाता हैं।
तृतीय विवाद बिन्दु-
अनुतोष क्या होगा ?
जब प्रथम एवं द्वितीय विवाद बिन्दु प्रार्थी के पक्ष में निस्तारित हो जाने से तृतीय विवाद बिन्दु का निस्तारण स्वतः ही प्रार्थी के पक्ष में हो जाता हैं। लेकिन हमे यह देखना हैं कि प्रार्थी विधिक रूप से क्या एवं कितनी उचित सहायता अप्रार्थीगण से प्राप्त करने का अधिकारी हैं। या उसे दिलाई जा सकती हैं। जिसके बारे में हमारी राय में प्रार्थी के नाम अप्रेल 2013 के विद्युत बिल में काॅलम संख्या- 17 व 18 में दर्शित अन्य देय/निगम राशि रूपयै 9,745/- अप्रार्थीगण प्रार्थी से प्राप्त करने के अधिकारी नहीं होने से प्रार्थी अप्रेल 2013 के विद्युत बिल में से उक्त राशि बाहर या कम करवाने का अधिकारी माना जाता हैं। तथा अप्रार्थीगण ने प्रार्थी के विद्युत बिलांे में संशोधन/सुधार नहीं कर सेवा प्रदान करने में गलती, त्रुटि एवं लापरवाही कारित कर सेवा दोष कारित किया हैं। जिससे प्रार्थी को मानसिक, शारीरिक, आर्थिक क्षति कारित हुई हैं। जिसके पेटे प्रार्थी को रूपयै 3,000/-एवं परिवाद व्यय के रूप में रूपयै 2000/- अप्रार्थी से दिलाये जाना उचित प्रतीत होता हैं। इस प्रकार प्रार्थी का परिवाद आशिंक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य हैं।
आदेश
अतः प्रार्थी केशाराम का परिवाद विरूद्व अप्रार्थीगण अध्यक्ष, जो0 वि0 वि0 निगम लि0, जोधपुर, नया पावर हाउस, जोधपुर व अन्य के विरूद्व आशिंक रूप से स्वीकार कर आदेश दिया जाता हैं कि निर्णय की तिथी से 30 दिन के भीतर अप्रार्थीगण प्रार्थी को अप्रेल 2013 के विद्युत बिल में काॅलम संख्या- 17 व 18 में वर्णित अन्य देय/निगम राशि रूपयै 9,745/- अक्षरे नौ हजार सात सौ पैतालीस रूपयै मात्र प्राप्त करने के अधिकारी नहीं होने से बाहर/कम कर विद्युत बिल संशोधित करे। तथा उक्त विद्युत राशि रूपयै 9,745/- अक्षरे नौ हजार सात सौ पैतालीस रूपयै मात्र आगामी विद्युत बिलो में दर्शित/सम्मिलित नहीं करे, तथा मानसिक, शारीरिक व आर्थिक क्षति के रूपयै 3,000/- अक्षरे तीन हजार रूपयै मात्र एवं परिवाद व्यय के रूपयै 2000/- अक्षरे दो हजार रूपयै मात्र भी अप्रार्थीगण, प्रार्थी को एक माह के भीतर अदा नहीं करने पर प्रार्थी उक्त राशि पर 9 नौ प्रतिशत वार्षिकी दर से ब्याज परिवाद प्रस्तुत करने की तिथी 18-07-2013 से तारीख प्राप्ति तक प्राप्त करने का अधिकारी होगा।
निर्णय व आदेश आज दिनांक 04-02-2015 को विवृत मंच में लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
मंजू राठौड केशरसिंह राठौड दीनदयाल प्रजापत
सदस्या सदस्य अध्यक्ष
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