( मौखिक )
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :1830/2010
सीनियर ब्रांच मैनेजर, बैंक आफ बड़ौदा शाख डेरवा, प्रतापगढ़ व एक अन्य
बनाम्
श्रीमती प्रेमा देवी पत्नी श्री नन्द लाल व एक अन्य
समक्ष :-
1-मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
दिनांक : 17-09-2024
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवाद संख्या-237/2008 श्रीमती प्रेमा देवी बनाम श्रीमान वरिष्ठ शाखा प्रबन्धक, बैंक आफ बड़ौदा व एक अन्य में जिला आयोग, प्रतापगढ़ द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांकित 14-07-2010 के विरूद्ध प्रस्तुत अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस न्यायालय के सम्मुख योजित की गयी है।
आक्षेपित निर्णय एवं आदेश के द्वारा विद्धान जिला आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए निम्नलिखित निर्णय एवं आदेश पारित किया है:-
‘’परिवाद संख्या-237/2008 श्रीमती प्रेमा देवी बनाम वरिष्ठ शाखा प्रबन्धक, बैंक आफ बड़ौदा शाखा डेरवा प्रतापगढ़ आदि विपक्षी संख्या-1 वरिष्ठ शाखा प्रबन्धक बैंक आफ बड़ौदा शाखा डेरवा प्रतापगढ़ तथा विपक्षी संख्या-2 शाखा प्रबन्धक बैंक आफ बड़ौदा सर्विस शाखा इलाहाबाद के विरूद्ध आशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा उपरोक्त विपक्षी संख्या-1 व 2 को आदेश दिया जाता है कि वे 30 दिन के अंदर परिवादी को 1 लाख 22 हजार 7 सौ 60 रूपये के मूलधन पर दिनांक 01-09-2007 से अदायगी की तिथि तक 10 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज अदा करें तथा विपक्षी संख्या-1 व 2 परिवादी को 30 दिन के अदंर 50 हजार रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में अदा करें।
-2-
मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों में दोनों पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करें।‘’
जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण बैंक आफ बड़ौदा की ओर से यह अपील इस न्यायालय के सम्मुख योजित की गयी है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी को खटाऊ मकन्जी मिल्स से 1 लाख 22 हजार 7 सौ 60 रूपया का चेक प्राप्त हुआ। इस चेक की धनराशि का भुगतान विपक्षी संख्या-3 की शाखा से होना था। परिवादी ने उपरोक्त चेक अपने बैंक विपक्षी संख्या-1 बैंक आफ बड़ौदा के यहॉं दिनांक 17-08-2007 को जमा किया और परिवादी ने कई बार विपक्षी के यहॉं सम्पर्क किया परन्तु विपक्षी द्वारा यह कहते हुए उसे बार-बार लौटा दिया गया कि अभी भुगतान प्राप्त नहीं हुआ है।
विपक्षी संख्या-1 ने अपने पत्र दिनांकित 12-02-2008 के माध्यम से अवगत कराया कि चेक विपक्षी संख्या-2 की शाखा से कहीं खो गया है। इस प्रकार विपक्षीगण की लापरवाही एवं कार्य के प्रति उदासीनता के कारण परिवादी की धनराशि बैंक में फसी है जो कि विपक्षीगण की सेवा में कमी है। अत: विवश होकर परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के सम्मुख योजित किया है।
जिला आयोग द्वारा विपक्षीगण को लिखित कथन का अवसर प्रदान किया गया परन्तु विपक्षीगण द्वारा लिखित कथन जिला आयोग के सम्मुख प्रस्तुत नहीं किया गया अत: विपक्षीगण के विरूद्ध एकपक्षीय कार्यवाही अमल में लाई गयी।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री राजीव जायसवाल उपस्थित आए जब कि प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव एवं प्रत्यर्थी संख्या-2 की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री आदित्य सिंह उपस्थित आए।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश साक्ष्य एवं विधि के विरूद्ध है और जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों पर गहनतापूर्वक विचार किये बिना विधि विरूद्ध ढंग से निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है अत: अपील स्वीकार
-3-
करते हुए जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश को अपास्त किया जावे।
प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है। अत: अपील निरस्त करते हुए जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जावे।
मेरे द्वारा उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण को विस्तारपूर्वक सुना गया एवं विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण को विस्तारपूर्वक सुनने एवं जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों पर गहनतापूर्वक विचार करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है किन्तु विद्धान जिला आयोग द्वारा जो 10 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज की देयता निर्धारित की गयी है वह अत्यधिक प्रतीत होती है जिसे न्यायहित में संशोधित करते हुए 10 प्रतिशत के स्थान पर 08 प्रतिशत किया जाना उचित प्रतीत होता है साथ ही जिला आयोग द्वारा जो क्षतिपूर्ति के मद में रू0 50,000/- की देयता निर्धारित की गयी है उसे भी संशोधित करते हुए 50,000/-रू0 के स्थान पर रू0 30,000/- किया जाना न्याय की दृष्टि से उचित प्रतीत होता है। तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है तथा विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश को संशोधित करते हुए ब्याज का प्रतिशत 10 प्रतिशत के स्थान पर 08 प्रतिशत किया जाता है साथ ही क्षतिपूर्ति के मद में पारित आदेश को संशोधित करते हुए रू0 50,000/- के स्थान पर रू0 30,000/- किया जाता है। निर्णय का शेष भाग यथावत कायम रहेगा।
इस निर्णय एवं आदेश का अनुपालन निर्णय से 45 दिन की अवधि में सुनिश्चित किया जावे।
-4-
अपील योजित करते समय अपीलार्थी द्वारा अपील में जमा धनराशि (यदि कोई हो) तो नियमानुसार अर्जित ब्याज सहित जिला आयोग को विधि अनुसार निस्तारण हेतु यथाशीघ्र प्रेषित की जावे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट नं0-1