राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-1049/2012
(जिला उपभोक्ता फोरम, महाराजगंज द्वारा परिवाद संख्या-03/2009 में पारित निर्णय दिनांक 22.02.2012 के विरूद्ध)
परमानन्द पुत्र सोमनाथ पाठक, निवासी मौजा सिसवां पोस्ट, खखरा
थाना मोहना तहसील नौगढ़ जिला सिद्धार्थ नगर। .........अपीलार्थी@परिवादी
बनाम्
प्रेम कोल्ड स्टोरेज, आनन्द नगर जिला महाराजगंज द्वारा स्वामी श्री हरी
प्रसाद निवासी कस्बा व पोस्ट आनन्द नगर, तहसील परेन्दा, जिला
महाराजगंज। ........प्रत्यर्थी/विपक्षी
समक्ष:-
1. मा0 श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :कोई नहीं।
दिनांक 14.09.15
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम महाराजगंज के परिवाद संख्या 03/2009 में पारित निर्णय एवं आदेश दि. 22.02.2012 के विरूद्ध को योजित की गई, जिसके अंतर्गत परिवाद को निरस्त किया गया है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने दि. 27.03.2008 को लाट संख्या 1208 से 76 बारी आलू तथा लाट संख्या 1842 में 25 बोरे आलू रखा। दि. 12.02.08 को 100 बोरे आलू रखने हेतु अग्रिम बुकिंग कराया। आलू रखने का किराया 100 रूपये बोरे के हिसाब से देना था। परिवादी ने दि. 2.02.2008 को रू. 1000/- व दि. 29.03.2008 को रू. 1500/- जमा करया। सितम्बर में आलू को दिए जाने की मांग की, परन्तु आलू वापस नहीं किया गया। परिवादी ने जिला उपभोक्ता फोरम में परिवाद दाखिल कर एक लाख रूपये क्षतिपूर्ति, रू. 2500/- आने जाने का व्यय, रू. 20000/- शारीरिक व मानसिक कष्ट, रू. 2000/- व्यय हेतु और रू. 5000/- अधिवक्ता शुल्क कुल रू. 129500/- की धनराशि की मांग की।
सुनवाई के समय उभय पक्ष की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ, अत: पीठ ने यह निर्णय लिया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा-30 के उपधारा (2) के
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अंतर्गत निर्मित उ0प्र0 उपभोक्ता संरक्षण नियमावली 1987 के नियम 8 के उपनियम (6) के दृष्टिगत प्रस्तुत अपील का निस्तारण गुणदोष के आधार पर कर दिया जाए।
जिला मंच का आदेश दि. 22.02.12 का है और अपील दि. 22.05.12 को प्रस्तुत की गई है। इस प्रकार अपील लगभग 55 दिन विलम्ब से प्रस्तुत की गई हैं। अपीलार्थी ने विलम्ब को क्षमा किए जाने हेतु प्रार्थना पत्र दिया है, जो शपथपत्र से समर्थित है, परन्तु जो विलम्ब से अपील दाखिल करने के कारण दर्शाए गए हैं वे पर्याप्त नहीं हैं। अपीलार्थी ने अपने प्रार्थना पत्र में दिन-ब-दिन का विवरण नहीं दिया है तथा सरसरी तौर पर प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया है।
In Mahindra & Mahindra Financial Services Ltd. Vs. Naresh Singh, I(2013) CPJ 407 (NC), where the delay was of 71 days only, it was held by the Hon'ble National Commission that:
"condonation cannot be a matter to routine and the petitioner is required to explain delay for each and every date after expiry of the period of limitation".
Similarly, in U.P. Avas Evam Vikas Parishad Vs. Brij Kishore Pandy, IV (2009) CPJ 217 (NC), the delay of 111 days was not condoned as day-to-day delay was not explained. In Delhi Development Authority Vs. V.P. Narayanan, IV (2011) CPJ 155 (NC), where the delay was of only 84 days, it was held that "this is enough to demonstrate that there was no reason for this delay, much less a sufficient cause to warrant its condonation. In
Anshul Agarwal Vs. NOIDA, IV(2011) CPJ 63 (SC), it has been observed by the Hon'ble Apex Court at para 7 that:
"it is also apposite to observe that while deciding an application filed in such cases for condonation of delay, the court has to keep in mind that the special period of limitation has been prescribed under the Consumer Protection Act, 1986 for filing appeals and revisions in consumer matters and the object of expeditious adjudication of the consumer disputes will get defeated if this court was to entertain highly belated petition filed against the orders of the Consumer Fora."
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उपरोक्त के दृष्टिगत अपील कालबाधित है।
अपीलार्थी का कथन है कि जिला मंच ने विपक्षी/प्रत्यर्थी के इस कथन को सही मानकर गलत निर्णय दिया है कि अपीलार्थी अपना समस्त आलू ले गया, जबकि साक्ष्यों से यह सिद्ध नहीं है।
जिला मंच ने साक्ष्यों का परिशीलन करते हुए यह पाया कि विवाद का मुख्य बिन्दु यह है कि कोल्ड स्टोरेज में जमा किया गया आलू परिवादी ने प्राप्त किया या नहीं। प्रत्यर्थी/विपक्षी का कथन है कि परिवादी/अपीलार्थी अपना आलू वापस ले गया और इसके समर्थन में गेट पास की पर्ची प्रस्तुत की, जबकि परिवादी/अपीलार्थी द्वारा कहा गया कि ये गेट पास फर्जी है। जिला मंच ने यह पाया कि गेट पास में बने हस्ताक्षर फर्जी है अथवा सही है, यह विस्तृत साक्ष्यों का विषय है और इसका निर्णय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के समरी कार्यवाही में नहीं किया जा सकता है।
हम जिला मंच के निष्कर्ष से सहमत हैं कि ऐसे प्रकरणों का निस्तारण उपभोक्ता संरक्षण के अंतर्गत समरी कार्यवाही में नहीं किया जा सकता है, जिसमें विस्तृत साक्ष्य की आवश्यकता हो।
मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग नई दिल्ली ने समतुल्य तथ्यों पर आधारित प्रकरण Vishamber Sunderdas Badlani And Vs. Indian Bank and Ors.I (2008)CPJ 76 NC में निम्नांकित मत अभिव्यक्त किया:-
"Seeing various judgment of the Supreme Court and this Commission, It is evident that whenever not only the complicated questions of law but disputed questions of facts, relating to unauthorized representations made about paying higher rate of interest and requirement of recording voluminous evidence etc. and relating to forgery and conspiracy involving eight persons and other points mentioned earlier are involved. It would be desirable that the matter should not be dealt with by this Commission and could be relegated to the Civil Court. We feel that in the present state of law and the observations of the Supreme Court itself and the aforesaid circumstances, we cannot take any other view."
उपरोक्त विवेचना के दृष्टिगत अपील कालबाधित व सारहीन होने के कारण खारिज किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील कालबाधित व सारहीन होने के कारण खारिज की जाती है।
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पक्षकरान अपना-अपना अपील व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(राम चरन चौधरी) (राज कमल गुप्ता)
पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-5