राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-९२७/२०००
(जिला फोरम (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-७०३/१९९५ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक २२-०३-२००० के विरूद्ध)
यूनियन आफ इण्डिया द्वारा दी सीनियर सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिसेज, आगरा डिवीजन, आगरा।
..................... अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
प्रेम बाबू पुत्र श्री नारायण बाबू, निवासी ५९/१०८/I, २-ए, सुमन विहार, अजीत नगर, आगरा।
...................... प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- डॉ0 उदयवीर सिंह विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक : ०१-०५-२०१५
मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला फोरम (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-७०३/१९९५ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक २२-०३-२००० के विरूद्ध योजित की गयी है, जिसके अन्तर्गत निम्नवत् आदेश पारित किया गया है:-
‘’ Thus in the result, the O.P.s are directed to pay Rs. 30/- the booking charge alongwith compensation Rs. 1000/- for mental torture and harassment to complainant. This order will be complied with within two months from the date of this order, failing which the O.P.s. is liable to pay the interest @ 15% on the above amount. ’’
दिनांक १८-०३-२०१५ को अपील सुनवाई हेतु ली गयी। सुनवाई के समय अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदयवीर सिंह उपस्थित आये थे, परन्तु प्रत्यर्थी की ओर से न तो वह स्वयं और न ही उसके विद्वान अधिवकता श्री एस0के0 श्रीवास्तव उपस्थित आये। चूँकि यह अपील पिछले १४ वर्ष से अधिक समय से निस्तारण हेतु लम्बित है, अत: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ (अधिनियम ६८) की धारा-३० की उपधारा (२) के अन्तर्गत निर्मित उत्तर प्रदेश उपभोक्ता संरक्षण नियमावली १९८७ के नियम ८ के उप नियम (६) में दिये गये
-२-
प्राविधान को दृष्टिगत रखते हुए अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को एकल रूप से सुना गया एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख/साक्ष्य का गहनता से परिशीलन किया गया।
पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी प्रेम बाबू भारतीय वायु सेना से सेवा निवृत्त आरक्षी है। उन्होंने रेलवे चयन बोर्ड गोरखपुर के पते पर एक आवेदन पत्र दिनांक २२-०८-१९९५ को स्पीड पोस्ट के माध्यम से भेजा था जो दिनांक ०१-०९-१९९५ को इस रिपोर्ट के साथ लौटाया गया कि रेलवे चयन बोर्ड द्वारा उक्त स्पीड पोस्ट को प्राप्त करने से इन्कार कर दिया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी का कहना है कि दिनांक २२-०८-१९९५ को स्पीड पोस्ट से भेजी गयी डाक ०६ दिन में दिये गये पते पर नहीं पहुँचायी गयी। फलस्वरूप वह बोर्ड द्वारा ली गयी परीक्षा में सम्मिलित होने से वंचित रह गया। प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा डाक विभाग के इसी कृत्य को सेवा में कमी मानते हुए प्रश्नगत परिवाद सं0-७०३/१९९५ योजित किया जिसे दिनांक २२-०३-२००० को अधीनस्थ फोरम द्वारा स्वीकार करते हुए अपीलार्थी डाक विभाग के विरूद्ध प्रतिकर स्वरूप १,०००/- रू० एवं स्पीड पोस्ट के ३०/- रू० तथा इस सम्पूर्ण धनराशि पर १५ प्रतिशत वार्षिक ब्याज हेतु आज्ञप्ति जारी की गयी। अधीनस्थ फोरम के इसी आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी द्वारा यह अपील योजित की गयी है।
अपीलार्थी का कहना है कि अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथ्यों एवं विधि विरूद्ध होने के कारण अपास्त होने योग्य है एवं इसे यदि अपास्त नहीं किया जाता है तो अपीलार्थी/डाक विभाग को अपूर्णनीय क्षति होगी। अपीलार्थी डाक विभाग के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों के परिप्रेक्ष्य में पीठ द्वारा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा समस्त अभिलेख/साक्ष्य का गहनता से परिशीलन किया गया। यहॉं यह उल्लेखनीय है कि भारतीय डाक अधिनियम १८९८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) की धारा-६ में निम्नवत् प्राविधान है कि -
Section 6 of the Indian Post Office Act. 1898 reads as under :
“6. Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage - The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of, or damage to, any postal article in course of transmission by post, except insofar as such liability may in express terms be undertaken by the
-३-
Central Government as hereinafter provided and no officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage, unless he has caused the same fraudulently or by his willful act or default.”
इसके अतिरिक्त पोस्ट आफिस गाइड के प्रस्तर ८४ में यह प्राविधान दिया गया है कि डाक विभाग को किसी डाक के खो जाने, विलम्ब से पहुँचने एवं क्षतिग्रस्त हो जाने के लिए दोषी नहीं माना जा सकता है। इस प्रकरण में डाक विभाग के किसी अधिकारी/कर्मचारी पर व्यक्तिगत रूप से कोई लांछन नहीं लगाया गया है।
उपरोक्त प्राविधान तथा मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा टीकाराम बनाम इण्डियन पोस्टलडिपार्टमेण्ट IV (2007) CPJ 123 (NC) में दिये गये विधिक सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए हमारे विचार से अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि अनुरूप नहीं है। इस प्रकार विद्वान फोरम द्वारा विधि विरूद्ध आदेश पारित किया गया है जो किसी भी दृष्टिकोण से पोषणीय नहीं है। वर्णित परिस्थिति में अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथ्य एवं विधि के विपरीत होने के कारण अपास्त होन तथा अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला फोरम (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-७०३/१९९५ में पारित निर्णय/आदेश दिनांक २२-०३-२००० अपास्त किया जाता है। पक्षकार अपीलीय व्यय-भार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे। उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(आलोक कुमार बोस)
पीठासीन सदस्य
(संजय कुमार)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-४.