(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1018/2011
Tata Motors Finance Limited & other
Versus
Praveen Kumar S/O Shri Om Prakash Sharma
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री राजेश चड्ढा, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित: कोई नहीं
दिनांक :06.08.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
- परिवाद सं0-190/2009, श्री प्रवीन कुमार बनाम मैसर्स टाटा मोटर्स फाइनेंस व अन्य मे विद्धान जिला आयोग, (द्वितीय) आगरा द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.03.2011 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर केवल अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता को सुना गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। पत्रावली एवं प्रश्नगत निर्णय/आदेश का अवलोकन किया गया।
- परिवाद के तथ्यों के अवलोकन से जाहिर होता है कि परिवादी द्वारा ट्रक क्रय करने के लिए अंकन 15,41,120/-रू0 का ऋण प्राप्त किया गया था, जो 47 किश्तों में अदा होना था। प्रथम किश्त की राशि 34,620/-रू0 तथा अन्य 46 किश्तों की राशि 32,750/-रू0 थी। परिवाद पत्र में आगे उल्लेख है कि दो किश्तों की राशि अंकन 66,000/- दिनांक 10.11.2008 को नकद भुगतान किया तथा अन्य विभिन्न तिथियों पर धनराशि जमा की गयी, परंतु ट्रक को बलपूर्वक खिंचवा लिया गया, जिसकी प्रथम सूचना रिपोर्ट थाने में दर्ज करायी गयी। सम्पर्क करने पर विपक्षीगण द्वारा बताया गया कि 55,000/-रू0 जमा करने पर जुलाई 2009 तक की किश्त पूर्ण हो जायेगी और ट्रक वापस दे देंगे। परिवादी द्वारा 55,000/-रू0 भी जमा कर दिये गये, परंतु ट्रक वापस नहीं किया गया। इस प्रकार जुलाई 2009 की सम्पूर्ण किश्त अदा करने के बावजूद भी ट्रक जब्त कर लिया गया।
- विपक्षीगण का कथन है कि परिवादी ट्रांसपोर्ट का व्यापार करता है, इसलिए उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है। परिवादी द्वारा किश्त की अदायगी में चेक दिये गये थे, जो बाउंस हो गये थे। धारा 138 एन0जे0 एक्ट के तहत नोटिस दिया गया, परंतु राशि जमा नहीं की गयी। सोल आर्वीट्रेटर के द्वारा विवाद का निस्तारण किया जा चुका है। इस आधार पर जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष परिवाद संधारणीय नहीं है।
- दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादी को ट्रक सभी दस्तावेज सहित वापस लौटाये जाए।
- अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि एक ही बिन्दु पर 02 बार वाद योजित नहीं किया जा सकता। आर्वीट्रेशन द्वारा अपना एवार्ड दिया जा चुका है, इसलिए उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है। चूंकि एवार्ड की प्रति पत्रावली पर मौजूद नहीं है, इसलिए एवार्ड के आधार पर उपभोक्ता परिवाद के वर्जित होने के बिन्दु पर कोई निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता।
- अपीलार्थी की ओर से ऋण खाते के विवरण की प्रति प्रस्तुत की गयी है, जिसके अवलोकन से ज्ञात होता है कि दिनांक 26.06.2009 को 2,70,188/-रू0 किशत की राशि के रूप में बकाया हो चुके थे। इसके पश्चात दिनांक 02.09.2009 को 3,20,838/-रू0 बकाया हो चुके थे। अत: अपीलार्थी द्वारा किश्त की राशि बकाया होने पर अपने अधिकार का प्रयोग किया है। प्रत्यर्थी/परिवादी स्वयं डिफाल्टर रहा है, इसलिए डिफाल्टर रहने की स्थिति में वाहन का स्वामित्व चूंकि ऋण प्रदाता/अपीलार्थी के पास ही मौजूद है, इसलिए अपीलार्थी के स्तर से सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है, अपितु स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादी डिफाल्टर रहा है। अत: जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने योग्य है।
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अपील स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2