(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1373/2012
Bareilly Development Authority, Bareilly through Vice-Chairman.
………Appellant
Versus
Smt. Pratibha Sisodia W/o Shri Harish Chand Sisodia, R/o-262, Biharipur, Civil Lines, Bareilly.
……….Respondent
समक्ष:-
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री वी0पी0 श्रीवास्तव, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 15.06.2023
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 217/2009 श्रीमती प्रतिभा सिसौदिया बनाम बरेली विकास प्राधिकरण में जिला उपभोक्ता आयोग द्वितीय, बरेली द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 26.05.2012 के विरुद्ध यह अपील योजित की गई है।
2. जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद अंशत: आज्ञप्त करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’परिवादिनी का प्रस्तुत परिवाद अंशत: आज्ञप्त किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादिनी को 5000/-रू0 की धनराशि तथा इस धनराशि पर जमा करने की तिथि 06.09.82 से भुगतान की तिथि तक 12 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज अदा करेगा।
विपक्षी को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह शारीरिक व मानसिक कष्ट के लिए परिवादिनी को 2000/-रू0 तथा वाद व्यय के लिए 2000/-रू0 अदा करें।
विपक्षी आदेश का अनुपालन आदेश की तिथि से एक माह के अन्दर करना सुनिश्चित करे।‘’
3. प्रत्यर्थी/परिवादिनी का परिवाद पत्र में संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि वह एक विकलांग महिला है और उसकी आय का कोई साधन नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दि0 06.09.1982 को मध्यम आय वर्ग का भवन लेने हेतु अपीलार्थी/विपक्षी से एम0आई0जी0 मकान बुक कराया था तथा 5000/-रू0 नकद चालान क्र0सं0- 9309 के माध्यम से जमा की थी। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को आश्वासन दिया गया कि दो साल के भीतर विकास प्राधिकरण के अधीन बरेली की योजना में उसे मकान आवंटित कर दिया जायेगा, लेकिन कोई मकान अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा नहीं दिया गया। प्रत्यर्थी/परिवादिनी लगातार अपीलार्थी/विपक्षी के कार्यालय का चक्कर लगाती रही, लेकिन उसे केवल आश्वासन ही दिया गया। जब प्रत्यर्थी/परिवादिनी दि0 05.08.2009 को अपीलार्थी/विपक्षी के कार्यालय गई तो अपीलार्थी/विपक्षी के अधीनस्थ कर्मचारियों से मकान आवंटन की बात की तो उन्होंने उसे अधिकारियों से मिलने नहीं दिया और जब प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति अपीलार्थी/विपक्षी के कार्यालय गए तो अपीलार्थी/विपक्षी ने कहा कि जब मकान उपलब्ध होगा तो मकान दे दिया जायेगा, परन्तु मकान नहीं मिल पाया जिससे व्यथित होकर प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
4. अपीलार्थी/विपक्षी ने अपने उत्तर पत्र में यह स्वीकार किया है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा मकान खरीदने हेतु 5,000/-रू0 जमा किए थे। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दि0 06.09.1982 को भवन प्राप्त करने हेतु रूपया जमा किया था जब कि परिवाद दिनांक 20.08.2009 को 27 वर्ष बाद दायर किया जो कालबाधित होने के कारण पोषणीय नहीं है। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने वर्ष 1982 में न्यू बरेली योजना के नाम से भवन हेतु पंजीकरण कराया था, किन्तु अपरिहार्य कारणों से उस योजना को समाप्त करना पड़ा। योजना समाप्ति के बाद बरेली विकास प्राधिकरण द्वारा रूपयों की वापसी हेतु समाचार पत्रों में सूचना प्रकाशित की गई, जिन्होंने रूपये की वापसी हेतु प्रार्थना पत्र दिया उनको रूपया वापस कर दिया गया, किन्तु प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने रूपयों की वापसी हेतु कोई प्रार्थना पत्र नहीं दिया। पंजीकरण कराने के बाद उक्त योजना के निरस्त होने की जानकारी होने पर भी जानबूझकर प्रत्यर्थी/परिवादिनी रूपये लेने प्राधिकरण नहीं आयी। अपीलार्थी/विपक्षी पहले भी रूपया वापस करने को तैयार था और आज भी तैयार है। अत: अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा परिवाद को निरस्त करने का अनुरोध किया गया है।
5. पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि वर्ष 2021 में प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री संजय सक्सेना का देहांत हो जाने के उपरांत कार्यालय द्वारा दि0 27 सितम्बर 2021 को प्रत्यर्थी को नोटिस प्रेषित की गई है, किन्तु उसके उपरांत भी प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया और आज भी प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। अत: अपील की सुनवाई का पर्याप्त आधार है। हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0पी0 श्रीवास्तव को सुना। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया।
6. प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी की जमा की गई धनराशि को अपीलार्थी/विपक्षी से मय ब्याज वापस दिलाये जाने के आदेश दिए हैं। पीठ के अनुसार निर्णय में कोई दोष परिलक्षित नहीं होता है, जिस आधार पर उक्त निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप करने का आधार हो।
7. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा अन्य तर्कों के साथ-साथ यह भी कथन किया गया कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को 12 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज अदा करने हेतु आदेशित किया है, जो अत्यधिक है।
8. पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि प्रश्नगत निर्णय व आदेश साक्ष्य पर आधारित है, जिसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादिनी को देय राशि पर ब्याज 12 प्रतिशत साधारण वार्षिक अत्यधिक उच्च दर से लगाया गया है। अत: ब्याज दर 08 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से सुनिश्चित किया जाना विधिसम्मत है। तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 26.05.2012 इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को देय राशि पर ब्याज 12 प्रतिशत के स्थान पर ब्याज 08 प्रतिशत साधारण वार्षिक की दर से देय होगी। शेष निर्णय व आदेश की पुष्टि की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय व आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुधा उपाध्याय) (विकास सक्सेना)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 3