(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-583/2014
(जिला आयोग, द्वितीय आगरा द्वारा परिवाद संख्या-266/2011 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 15.06.2013 के विरूद्ध)
राज राजेश्वरी मॉं कोल्ड स्टोरेज (पी) लि0, मेवली कला, फतेहाबाद रोड, आगरा द्वारा डायरेक्टर राज कुमार पुत्र मुंशी लाल।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
प्रताप सिंह पुत्र स्व0 रघुवर दयाल कटारा, निवासी बमरौली कटारा, थाना डौकी, जिला आगरा।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार , सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आलोक कुमार सिंह,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 31.03.2023
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-266/2011, प्रताप सिंह बनाम राज राजेश्वरी मॉं कोल्ड स्टोरेज में विद्वान जिला आयोग, द्वितीय आगरा द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 15.06.2013 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। इस निर्णय एवं आदेश द्वारा विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए अंकन 1,02,490/-रू0 09 प्रतिशत ब्याज सहित अदा करने का आदेश पारित किया है।
2. इस निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध शीतगृह द्वारा अपील इन आधारों पर प्रस्तुत की गई है कि विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश तथ्य एवं विधि के विपरीत है। लिखित कथन में उल्लेख किया गया था कि परिवादी ने कभी भी आलू भंडारित नहीं किया और शीतगृह द्वारा कभी भी रसीद जारी नहीं की गई, इसलिए परिवादी उपभोक्ता नहीं है। सैम्पल स्लिप दिनांक 14.10.2011 पर असत्य रूप से विश्वास किया गया है, जो कभी भी जारी नहीं की गई थी।
3. अपीलार्थी एवं प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
4. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी द्वारा मार्च 2011 में 277 आलू के पैकेट विपक्षी कोल्ड स्टोरेज में रखे गए थे। यह आलू बीज के लिए रखे गए थे। आलू की रसीद जारी की गई थी। दिनांक 14.10.2011 को परिवादी अपना आलू देखने गया था तब आलू यथास्थान रखे थे, जिसकी सैम्पल पर्ची परिवादी को दी गई थी। दिनांक 21.10.2011 को जब परिवादी आलू लेने पहुँचा तब विपक्षी द्वारा आलू देने से मना कर दिया और यह कहा गया कि आलू विक्रय कर दिया गया है। परिवादी द्वारा विपक्षी के मांगने पर आलू की जमा रसीद दी गई, जो विपक्षी द्वारा फाड़ के फेंक दी गई। शिकायत करने पर जान से मारने की धमकी दी गई तब परिवादी द्वारा अंकन 900/-रू0 प्रति कुन्टल की दर से आलू का नया बीज क्रय किया गया और बुआई की गई।
5. विपक्षी का कथन है कि परिवादी द्वारा उनके शीतगृह में कोई आलू नहीं रखा गया, कोई रसीद नहीं दी गई। वर्ष 2011 में आलू सस्ता होने के कारण तथा व्यापार में घाटा होने के कारण असत्य कथनों पर यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है। परिवादी आलू का व्यापार करता है, वह कदाचित विपक्षी का उपभोक्ता नहीं है।
6. विद्वान जिला आयोग ने परिवादी के इस कथन पर विश्वास करते हुए आलू जमा होना पाया कि शीतगृह के मालिक द्वारा आलू की पर्ची फाड़ दी गई थी, क्योंकि मुनीम द्वारा आलू रखने की पर्ची दी गई थी। विद्वान जिला आयोग के समक्ष इस तथ्य से इंकार नहीं किया गया कि दस्तावेज संख्या-ए 3 पर राकेश के हस्ताक्षर नहीं हैं तथा पर्ची पर राकेश के हस्ताक्षर फर्जी बनाए गए हैं। अपील के ज्ञापन में भी इस तथ्य से इंकार नहीं किया गया कि राकेश उनका मुनीम नहीं है। परिवादी द्वारा सशपथ साबित किया गया है कि राकेश शीतगृह का मुनीम है और उनके द्वारा सैम्पल पर्ची दी गई थी। सैम्पल पर्ची का तात्पर्य यह होता है कि परिवादी द्वारा जो आलू रखे गए थे, उनको निकालकर देखा गया। तदनुसार सैम्पल पर्ची जारी की गई, इसलिए विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई अवसर नहीं है। प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
7. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
अपील प्रस्तुत करते समय अपील में जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित विधि अनुसार संबंधित जिला आयोग को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय एवं आदेश आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2