राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-194/1997
(जिला उपभोक्ता फोरम, जौनपुर द्वारा परिवाद संख्या-182/95 में पारित निर्णय दिनांक 17.10.96 के विरूद्ध)
1.एक्जीक्यूटिव इंजीनियर इलेक्ट्रिकसिटी डिस्ट्रीब्यूशन डिवीजन 2 जौनपुर।
2.यू0पी0 स्टेट इलेक्ट्रिकसिटी बोर्ड, शक्ति भवन, लखनऊ द्वारा चेयरमैन।
...........अपीलार्थीगण@विपक्षीगण
बनाम
प्रताप ग्रामोद्योग समिति, राजा बाजार, जौनपुर द्वारा चेयरमैन श्री
बृजेश कुमार सिंह निवासी राजाबाजार परगना गेरवारा तहसील बदलापुर
जौनपुर, जिला जौनपुर। .......प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री दीपक मेहरोत्रा, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 13.09.2021
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या 182/95 प्रताप ग्रामोद्योग समिति जौनपुर बनाम अधिशासी अभियंता विद्युत वितरण खंड में पारित निर्णय/आदेश दि. 17.10.96 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। इस निर्णय और आदेश द्वारा परिवाद स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया गया है:-
‘’ विपक्षीगण को आदेश दिया जाता है कि वे परिवादी को 215 यूनिट प्रति माह औसत विद्युत उपभोग के आधार पर दिनांक 08.12.91 से माह मई सन् 92 तक 1.49/- रू0 प्रति यूनिट, माह जून सन् 92 से जुलाई सन् 94 तक 1.35/रू. प्रति यूनिट की दर से माह अगस्त सन् 94 से माह अगस्त 95 तक 2.05/- रू. प्रति यूनिट की दर से तथा माह सितम्बर 95 से परिवादी का मीटर विपक्षी द्वारा ठीक करने के पश्चात वास्तविक मीटर
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रीडिंग आने तक की अवधि का बिल विद्युत परिषद द्वारा मान्य प्रति यूनिट जो देय हो उक्त दर से नवीन बिल बनाकर भेजे तथा परिवादी द्वारा उपभोग किये गये विद्युत का वास्तविक विवरण परिवादी को दें तथा परिवादी द्वारा अब तक जमा की गई धनराशि का समायोजन नवीन बिल में करें तथा मीटर खराब होने की तिथि से मीटर चार्ज परिवादी से न लें। शेष याचना अस्वीकार की जाती है।‘’
2. परिवाद पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि दिनांक 08.12.91 को परिवादी ने 10 हार्स पावर विद्युत कनेक्शन लिया था। उसी दिन मीटर स्थापित किया गया। 20 यूनिट तक मीटर चल चुका था, जिसका प्रमाणपत्र सीलिंग के समय दिया गया। जनवरी, फरवरी, मार्च 1992 में मीटर रीडिंग 860 यूनिट ली गई थी, बाद में मीटर ने कार्य करना बंद कर दिया। विपक्षीगण ने आईडीएफ करके बिल भेजना प्रारंभ कर दिया। मीटर संख्या एस.एम 9554 दर्ज की जाती रही। अनुरोध पर भी मीटर नहीं बदला, मीटर खराब होने की स्थिति में केवल न्यूनतम शुल्क वसूल किया जा सकता है। अगस्त 1995 से कुल 45 प्रतिमाह की बिजली 172 यूनिट प्रतिमाह की दर से 7740 यूनिट का उपभोग परिवादी द्वारा किया गया। दिसम्बर 1991 से मार्च 1992 तक का मूल्य 1-49 पैसा प्रति यूनिट की दर से रूपया 1537-78 तथा 4472 यूनिट माह जून 92 से जुलाई 94 तक का विद्युत मूल्य 6037.20 रूपया, 1 रूपया 35 पैसा प्रति यूनिट की दर से तथा 2236 यूनिट माह अगस्त 94 से माह अगस्त 1995 तक का विद्युत मूल्य रू. 4583.80 2.05/- पैसा प्रति यूनिट की दर से कुल 12148.78/- रू. विद्युत उपभोग परिवादी ने किया मगर विपक्षी ने माह जून 1995 तक का ही विद्युत बिल मु0 86784.80/- रू. का परिवादी को भेज दिया जो कि
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उपभोग की गई बिजली के मूल्य से 7 गुना ज्यादा है। विपक्षी ने गलत तौर पर बकाया दिखाकर दिनांक 11.07.95 को परिवादी का विद्युत कनेक्शन विच्छेदित कर दिया जिससे परिवादी को रू. 3000/- प्रतिमाह की दर से क्षति हो रही है। विपक्षी द्वारा कोई सुनवाई नहीं की गई है।
3. लिखित कथन में उल्लेख किया गया है कि कनेक्शन दिनांकित 27.08.90 को जारी किया गया। मीटर उपलब्ध न होने के कारण दिनांक 08.12.91 को 20 यूनिट पर मीटर लगा दिया गया। सीधे कनेक्शन की स्थिति में बिल निर्गत होने पर काल्पनिक मीटर नम्बर कंप्यूटर में फीड किया जाना आवश्यक है। कनेक्शन दिनांक 08.12.91 को जारी नहीं किया गया, यह तथ्य असत्य है। दिनांक 08.12.91 से मार्च 1992 तक 860 यूनिट विद्युत उपभोग स्वयं परिवादी ने स्वीकार किया है। नियमानुसार मार्च 1995 से 190 यूनिट प्रतिमाह की दर से बिल चार्ज किया जा रहा है। जून 1995 से रू. 86920.50 पैसे का शुल्क बकाया है।
4. दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता मंच द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि दिनांक 08.12.91 से मार्च 92 की अवधि में परिवादी का मीटर सही ढंग से चला और इस अवधि में 860 यूनिट का उपभोग किया गया है, जो औसतन प्रतिमाह 215 यूनिट आती है। इस दौरान 1.49 रूपये प्रति यूनिट की दर से शुल्क देय था। माह अप्रैल एवं मई 1992 के औसत के अनुसार भी 1.49 प्रति यूनिट की दर से विद्युत शुल्क देय था। जून 1992 से जुलाई 1994 तक 1.55 पैसे प्रति यूनिट की दर से विद्युत शुल्क देय था और अगस्त 1994 से अगस्त 1995 तक 2.05 पैसे प्रति यूनिट की दर विद्युत शुल्क देय था। इस पूरी अवधि में
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215 यूनिट प्रतिमाह की दर से बिल भेजा जाना उचित है। तदनुसार उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया गया।
5. इस निर्णय व आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि 5 वर्ष की अवधि के बिल की गणना के लिए परिवाद प्रस्तुत किया गया, जो संधारणीय नहीं था। जिला उपभोक्ता मंच ने विद्युत कनेक्शन जारी करने की वास्तविक तिथि पर निष्कर्ष नहीं दिया, यथार्थ में दिनांक 27.08.90 को विद्युत कनेक्शन जारी किया गया था। दिनांक 08.12.91 से 11.07.95 तक की अवधि के लिए विद्युत उपभोग करने के बिल का कोई विवरण परिवादी द्वारा नहीं दिया गया। उपभोक्ता ने 4 वर्ष तक विद्युत का उपभोग किया और भुगतान नहीं किया गया, इसलिए किसी भी अनुतोष को प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं है। जिस मीटर को खराब होना कहा गया, उसे कभी भी विद्युत विभाग के पास जमा नहीं कराया गया। टेस्ट कराने के लिए कोई शुल्क जमा नहीं किया गया। मीटर परिवर्तन का भी कोई शुल्क जमा नहीं किया गया। परिवादी ने प्रतिमाह विद्युत उपभोग करने का कोई विवरण प्रस्तुत नहीं किया। जिला उपभोक्ता मंच ने तथ्यों के विपरीत जाकर निर्णय पारित किया है, जो अपास्त होने योग्य है।
6. केवल अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना। प्रश्नगत निर्णय/आदेश व पत्रावली का अवलोकन किया गया।
7. निर्णय के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादी द्वारा जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष विद्युत बिल दिनांकित 16.03.92, 07.06.95 तथा 08.07.95 प्रस्तुत किया। मीटर मूल्य की रसीद तथा अंकन 15000/- रूपये जमा करने की रसीद प्रस्तुत की गई है। अपने परिवाद में वर्णित तथ्यों के समर्थन में शपथपत्र प्रस्तुत किया गया, जबकि विद्युत विभाग की ओर से
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अधिशासी अभियंता का शपथपत्र प्रस्तुत किया गया। अन्य कोई दस्तावेज विद्युत विभाग की ओर से प्रस्तुत नहीं किया गया। पत्रावली पर इस बिन्दु पर निष्कर्ष देने के लिए कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है कि दिनांक 08.12.91 से पूर्व किस तिथि को विद्युत कनेक्शन परिवादी के पक्ष में जारी हो चुका था। यदि यथार्थ में दिनांक 08.12.91 से पूर्व विद्युत कनेक्शन जारी किया गया तब इस तथ्य का सबूत विद्युत विभाग द्वारा जिला उपभोक्ता मंच के समक्ष या पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए था। परिवादी ने श-शपथ साबित किया है कि दिनांक 08.12.91 से परिवादी 1992 तक 860 यूनिट का प्रयोग किया गया, इसके बाद मीटर खराब हो गया और कभी भी नहीं बदला गया, इसलिए मीटर खराब होने की अवधि के दौरान प्रत्येक माह की औसत दर के आधार पर विद्युत उपभोग किए जाने का निष्कर्ष देने में किसी प्रकार की अवैधानिकता जिला उपभोक्ता मंच द्वारा कारित नहीं की गई है। यदि यथार्थ में मीटर दुरूस्त अवस्था में नहीं है तब विद्युत शुल्क औसत उपभोग के आधार पर ही प्राप्त किया जा सकता है। मीटर को सुचारू अवस्था में रखने का दायित्व विद्युत विभाग पर है, अत: जिला उपभोक्ता मंच द्वारा दिया गया निर्णय/आदेश में किसी प्रकार का हस्तक्षेप उचित प्रतीत नहीं होता है। तदनुसार अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश
अपील खारिज की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की
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वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-3