राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील संख्या-301/2020
श्रीमती निरजा प्रकाश उर्फ रजनी पत्नी श्री कृष्ण कुमार
बनाम
प्रकाश रेडियोलाजी (आई) प्रा0लि0 व दो अन्य
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री आनन्द भार्गव,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 12.09.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख जिला उपभोक्ता आयोग, वाराणसी द्वारा परिवाद संख्या-343/2012 श्रीमती निरजा प्रकाश उर्फ रजनी बनाम प्रकाश रेडियोलाजी (आई) प्रा0लि0 व दो अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 24.07.2019 के विरूद्ध योजित की गयी है।
प्रस्तुत अपील विगत लगभग साढ़े चार वर्षों से लम्बित है। अपीलार्थी के अधिवक्ता लगातार अनेकों तिथियों से अनुपस्थित हैं। उनके द्वारा न तो अनुपस्थिति हेतु कोई प्रार्थना पत्र, न ही वाद स्थगन प्रार्थना पत्र तथा न ही कोई सूचना उपलब्ध करायी जाती है। प्रत्यर्थीगण की ओर से पूर्व की भांति पुन: विद्वान अधिवक्ता श्री आनन्द भार्गव उपस्थित हैं।
विगत दिनांक 04.07.2024 को निम्न आदेश पारित किया गया था:-
''04.07.2024
पुकार करायी गयी।
अपील विगत् कई तिथियों से अपीलार्थी के अधिवक्ता की
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अनुपस्थिति के कारण स्थगित की जाती रही है।
आज पुन: अपीलार्थी के अधिवक्ता अनुपस्थित हैं। अपीलार्थी की ओर से श्री कौशलेन्द्र कुमार, अधिवक्ता का नाम वाद सूची में उल्लिखित है। तदनुसार प्रस्तुत अपील आज अन्तिम रूप से स्थगित की जा रही है।
प्रस्तुत अपील पुन: दिनांक 06.09.2024 को प्रथम 20 वादों में सुनवाई हेतु सूचीबद्ध की जावे।''
तदोपरान्त अगली तिथि पर भी अपील स्थगित की गयी। पुन: आज अपीलार्थी की ओर से अधिवक्ता अनुपस्थित हैं। सम्भवत: अपीलार्थी के अधिवक्ता/अपीलार्थी को प्रस्तुत अपील में कोई रूचि नहीं है।
मेरे द्वारा प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री आनन्द भार्गव को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का सम्यक परीक्षण व परिशीलन किया गया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादिनी को डा0 मधु जैन द्वारा एच0एस0जी0 टेस्ट विपक्षी संख्या-1 प्रकाश रेडियोलाजी (आई) प्रा0लि0 के यहॉं दिनांक 18.11.2011 को कराने की सलाह दी गयी, जिस पर परिवादिनी अपने पति के साथ दिनांक 21.11.2011 को विपक्षी संख्या-1 के यहॉं जांच हेतु गयी व 950/-रू0 फीस अदा किया। फीस जमा कराने के बाद करीब 02:00 बजे दोपहर को परिवादिनी को एच0एस0जी0 जांच हेतु अन्दर कक्ष में ले जाया गया तथा परिवादिनी के पति को बाहर ही रहने हेतु कहा गया।
परिवादिनी को जांच के दौरान जो इंजेक्शन दिया गया, वह रियेक्शन की जांच के बिना दिया गया, जिस कारण वह इंजेक्शन रियेक्शन कर गया। परिवादिनी बेहोश हो गयी, उसे काफी पीड़ा होने लगी तथा परिवादिनी के शरीर पर चकत्ते निकलने लगे।
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परिवादिनी के पति द्वारा तत्काल इसकी सूचना विपक्षी संख्या-1 के जांच करने वाले कर्मचारियों तथा काउंटर पर उपस्थित कर्मचारीगण को दी गयी, परन्तु उनके द्वारा कोई ध्यान न देते हुए फीस की रसीद के पीछे ही दो-तीन दवायें लिख दी गयी तथा कहा गया कि दो-तीन दिन में आराम मिल जाएगा। परिवादिनी के पति के द्वारा तत्काल प्रकाश पैथोलाजी के नीचे स्थित दवा की दुकान से दवा लेकर निर्देशानुसार परिवादिनी को दवा दी गयी, परन्तु दवा खाने के बाद भी परिवादिनी की तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ तथा उसके शरीर पर चकत्ते निकलने लगे व सांस लेने में परेशानी होने लगी। परिवादिनी के पति द्वारा विपक्षी संख्या-1 के कर्मचारियों से किसी वरिष्ठ चिकित्सक से तुरन्त दिखाने हेतु कहा गया, परन्तु उनके द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया तथा कहा गया कि दो-तीन दिन में आराम मिल जाएगा।
परिवादिनी के पति परिवादिनी को लेकर पैथोलाजी से नीचे आए तभी परिवादिनी बेहोश हो गयी, उसका शरीर फूल गया, उसकी सांस बन्द हो रही थी तथा शरीर में बुरी तरह खुजली हो रही थी। तदोपरान्त परिवादिनी के पति, देवर आनंद प्रकाश द्वारा उसे तत्काल बी0एच0यू0 आपात चिकित्सा विभाग में ले जाया गया, जहॉं चिकित्सक द्वारा बताया गया कि यह सब बिना जांच के दिए गए इंजेक्शन के रियेक्शन के कारण हुआ है। परिवादिनी कई घण्टे तक बी0एच0यू0 आपात कक्ष में भर्ती रही तथा उसके दवा इलाज में काफी रूपए खर्च हुए। परिवादिनी के पेट में दर्द व जलन भी रहने लगी, जिसके उपचार हेतु परिवादिनी को दिनांक 30.12.2011 को बी0एच0यू0 अस्पताल में दिखाया गया।
इस प्रकार विपक्षीगण द्वारा जांच के दौरान इंजेक्शन देते समय लापरवाही व उपेक्षा बरती गयी, जिससे परिवादिनी को शारीरिक, मानसिक व आर्थिक क्षति हुई, अत: क्षुब्ध होकर
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परिवादिनी द्वारा विपक्षीगण के विरूद्ध परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत करते हुए वांछित अनुतोष की मांग की गयी।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख विपक्षीगण की ओर से जवाबदावा प्रस्तुत किया गया तथा मुख्य रूप से यह कथन किया गया कि परिवादिनी द्वारा जांच कराने के एक वर्ष बाद परिवाद प्रस्तुत किया गया, जो स्वीकार होने योग्य नहीं है। विपक्षीगण द्वारा जांच में कोई लापरवाही व उपेक्षा नहीं की गयी।
विपक्षी द्वारा परिवादिनी की मात्र एच0एस0जी0 जांच की गयी, जो एक विशिष्ट जांच है, जिसमें महिला के बच्चाजन करने अंग की जांच कैबुला से रंगीन तरल पदार्थ महिला के गर्भाशय में डाला जाता है, जो गर्भाशय से फेलोपियन ट्यूब में भर जाता है, जिससे अल्ट्रासाउण्ड में उक्त अंगों की वस्तुस्थिति का ज्ञान होता है। उक्त जांच अनुभवी पैरामेडिकल महिला सहायक के द्वारा बिना किसी पुरूष की उपस्थिति में बन्द कक्ष में किया जाता है।
एच0एस0जी0 जांच की पद्धति कन्ट्रास के नाम से जानी जाती है, जिसमें कन्ट्रास (रंगीन तरल पदार्थ) गर्भाशय में छोड़ा जाता है। उक्त जांच से पूर्व कोर्इ परीक्षण नहीं होता तथा न ही इसकी कोई आवश्यकता होती है तथा न ही मरीज के नश में कोई दवा/तरल पदार्थ डाला जाता है। एच0एस0जी0 जांच में कुछ मरीजों को दर्द व बेचैनी होती है। रंगीन तरल पदार्थ के अन्दर जाते समय फेलोपियन ट्यूब जो बाल जैसे पतले होते हैं, में तरल पदार्थ के भर जाने व उसके दबाव से दर्द व बेचैनी होती है।
विपक्षी द्वारा परिवदिनी के एच0एस0जी0 जांच से पूर्व दर्द निवारण व बेचैनी निवारण हेतु एनिल/बेबोरान की सुई लगायी गयी थी, तदोपरान्त जांच की गयी थी। मरीज के शरीर की बनावट के अनुसार कभी-कभी जांच के दौरान तरल पदार्थ छोड़े जाने से कुछ
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न कुछ तकलीफें हो सकती हैं, जिनके निदान के लिए दवा ही दी जाती है। विपक्षी द्वारा जांच में कोई त्रुटि अथवा लापरवाही नहीं की गयी। परिवाद निरस्त होने योग्य है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्यों/प्रपत्रों पर विचार करने के उपरान्त परिवाद खारिज किया गया।
प्रत्यर्थीगण के विद्वान अधिवक्ता को सुनने तथा समस्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए एवं विचारित करने के उपरान्त मेरे द्वारा यह पाया जाता है कि जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश में न तो कोई विधिक त्रुटि है तथा न ही उल्लिखित की गयी है।
अतएव विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश पूर्ण रूप से विधिसम्मत पाते हुए प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1