(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 190/2019
टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0।
बनाम
प्रदीप कुमार सिंह पुत्र स्व0 राम सरण सिंह व दो अन्य
समक्ष:-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 1 की ओर से उपस्थित : श्री अजय वाही,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 2 की ओर से उपस्थित : श्री एम0एच0 खान,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 3 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
एवं
अपील सं0- 846/2015
मोटर एण्ड जनरल सेल्स लि0।
बनाम
प्रदीप कुमार सिंह पुत्र स्व0 राम सरण सिंह व दो अन्य
समक्ष:-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री एम0एच0 खान,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 1 की ओर से उपस्थित : श्री अजय वाही,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 2 की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 3 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक:- 29.08.2023
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 243/2003 प्रदीप कुमार सिंह बनाम डी0वि0 विजन प्राइवेट लि0 व दो अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, वाराणसी द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दि0 09.04.2015 के विरुद्ध परिवाद के विपक्षी सं0- 3 टाटा फाइनेंस लि0 की ओर से अपील सं0- 190/2019 तथा परिवाद के विपक्षी सं0- 2 मोटर एण्ड जनरल सेल्स लि0 की ओर से अपील सं0- 846/2015 प्रस्तुत की गई है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रश्नगत निर्णय व आदेश के माध्यम से परिवाद स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया है:-
‘’परिवादी प्रदीप कुमार सिंह का परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को संयुक्त एवं एकाकी रूप में आदेशित किया जाता है कि वे इस आदेश की तिथि से एक माह में परिवादी को गाड़ी के न चलने एवं 126 दिन के नुकसानी स्वरूप मु0 1,00,000/- (एक लाख रूपये) तथा बारातियों को लखनऊ से लाने के लिए दूसरी वाहन का दिया गया मु0 25,000/- (पच्चीस हजार रूपये) व दूसरे जिलों में मुकदमे लड़कर गाड़ी छुड़वाने में हुये खर्च मु0 10,000/- (दस हजार रूपये) एवं वाद व्यय के रूप में मु0 3,000/- (तीन हजार रूपये) परिवादी को अदा करें, अन्यथा अवधि बीत जाने पर समस्त धनराशि पर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि तक 8 प्रतिशत (आठ प्रतिशत) वार्षिक ब्याज देय होगा।‘’
परिवाद पत्र में परिवादी का संक्षेप में कथन इस प्रकार है कि परिवादी बस वाहन सं0- यू0पी065आर01659 हायर परचेज एग्रीमेंट फाइनेंसियल लोन द्वारा विपक्षीगण से क्रय करके संचालन कराता है जो परिवादी के जीविकोपार्जन का एक मात्र साधन है। विपक्षीगण द्वारा उपरोक्त वाहन को दि0 27/28-11-2002 को अवैध रूप से रात्रि 1:30 बजे असलहे के बल पर अपने कब्जे में ले लिया गया, जब कि वाहन चालक बारात ले कर वाराणसी से लखनऊ गया था। जिसके सम्बन्ध में बारात मालिक द्वारा एफ0आई0आर0 दि0 28.11.2002 थाना मानक नगर, लखनऊ में दर्ज करायी गई।
फाइनेंसर विपक्षीगण ने हायर परचेज एग्रीमेंट का उल्लंघन कर संविदा को समाप्त कर दिया। दि0 26.11.2002 को परिवादी द्वारा मु0 40,000/-रू0 जमा किया गया तथा उक्त तिथि पर मात्र मु0 2,576/-रू0 बकाया धनराशि देय शेष थी जो स्वत: विपक्षी द्वारा दाखिल कार्डेक्स सेकेण्ड रिपेमेंट दि0 25.05.2004 से स्पष्ट है। परिवादी ने उक्त तिथि को मु0 40,000/-रू0 जमा करने के बाद दि0 11.12.2002 को मु0 50,000/-रू0 विपक्षी डी0बी0 वीजन प्रा0लि0 को अदा किया। कथन किया कि परिवादी कभी डिफाल्टर नहीं रहा है, किन्तु विपक्षीगण वाहन चलाने को अकारण बाधित करते रहे।
परिवादी द्वारा वाहन सं0- यू0पी065आर01669 के सम्बन्ध में सिविल जज सि0डि0 वाराणसी के न्यायालय में वाद सं0- 247/2006 प्रदीप कुमार सिंह बनाम जे0पी0 दुबे व अन्य उक्त वाहन के संचालन में विपक्षीगण कोई बाधा उत्पन्न न करें के सम्बन्ध में निषेधाज्ञा हेतु दाखिल किया गया, जब कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष क्षतिपूर्ति हेतु दाखिल किया गया। विपक्षीगण द्वारा अपहृत बस ड्राइवर-क्लीनर की मुक्ति के पश्चात वाहन सं0- यू0पी0 65आर01669 को ए0सी0जे0एम0 पंचम वाराणसी के आदेश से दि0 04.04.2003 को परिवादी को मा0 न्यायालय के अभिकर्ता के रूप में सशर्त सुपुर्द किया गया। परिणामत: वाहन उपरोक्त विपक्षीगण के अनाधिकृत कब्जे में कुल 126 दिन तक रहा। अत: परिवादी को मु0 1,89,000/-रू0 की क्षति कारित हुई और मु0 25,000/-रू0 बारात मालिक को हर्जाना देना पड़ा, जिससे व्यथित होकर परिवादी ने यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
विपक्षीगण की ओर से कोई लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया गया है और विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उपरोक्त परिवाद में एकपक्षीय कार्यवाही की गई है।
अपील सं0- 190/2019 के विरुद्ध परिवादी द्वारा मुख्य रूप से प्राथमिक आपत्ति यह ली गई है कि अपील परिसीमा से बाहर प्रस्तुत की गई है, क्योंकि निर्णय दि0 09.04.2015 को पारित किया गया था एवं यह अपील लगभग 04 वर्ष बाद दि0 11.02.2019 को प्रस्तुत की गई है, अत: अपील परिसीमा से बाहर है।
अपील सं0- 190/2019 के साथ अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 3 टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 की ओर से अपील परिसीमा में क्षमा किये जाने हेतु प्रार्थना पत्र दिनांकित 08.02.2019 प्रस्तुत किया गया है जिसमें यह कथन किया गया है कि परिसीमा का आरम्भ निर्णय की प्रतिलिपि प्राप्त करने की तिथि से आरम्भ होता है। परिवादी ने टेलीफोन के माध्यम से विपक्षी सं0- 3 टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 के लखनऊ के कार्यालय में दि0 16.10.2018 को निर्णय के सम्बन्ध में बताया। इसके उपरांत विपक्षी सं0- 3 टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 द्वारा आफिस से सम्पर्क करने पर उन्हें प्रश्नगत निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि दि0 17.11.2018 को प्राप्त हुई। इसके उपरांत विपक्षी सं0- 3 टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 द्वारा लखनऊ के स्थानीय अधिवक्ता से दिसम्बर 2018 में सम्पर्क किया गया तथा निर्णय की प्रतिलिपि दिसम्बर 2018 में प्रस्तुत की। दिल्ली में दि0 18.01.2019 को प्रतिलिपि प्राप्त हुई। इसके उपरांत क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा दि0 22.01.2019 को अपील की अनुमति दी गई तथा दि0 29.01.2019 को मूलत: अन्तिम अनुमति प्राप्त हुई जिसके उपरांत समस्त जानकारी करके दि0 11.02.2019 को अपील योजित की गई। इस प्रकार अपील परिसीमा से बाहर हो गई है।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 3 टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 द्वारा दर्शाये गये अपील प्रस्तुत करने में हुई देरी के जो आधार हैं प्रमाणित प्रतिलिपि दि0 17.11.2018 को प्राप्त हो जाने के उपरांत जो भी दर्शाये हैं उनके अनुसार स्वयं अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 3, उसके प्रतिनिधि अथवा उसके कर्मचारियों द्वारा देरी करने के आधार लिये गये हैं जो पर्याप्त प्रतीत नहीं होते हैं। अत: अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 3 टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 की ओर से जो कारण देरी से अपील प्रस्तुत करने के दिये गये हैं वे उचित प्रतीत नहीं होते हैं, क्योंकि प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त होने के उपरांत देरी से अपील प्रस्तुत करने का कारण पर्याप्त नहीं है।
अपील के स्तर पर दोनों पक्षों के मध्य विवाद का विषय यह है कि विपक्षी सं0- 3 टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 तथा परिवादी के मध्य ऋण की संविदा हुई थी जिसमें रू0 5,50,000/- समस्त धनराशियों को सम्मिलित करते हुये रू0 7,57,400/- के ऋण की संविदा हुई जो 35 किश्तों में वापस की जानी थी।
विपक्षी सं0- 3 का कथन है कि परिवादी ने बीमे की किश्तें अदा नहीं की तथा दि0 16.01.2019 को रू0 12,37,883/- बकाया हो गया। इसके अतिरिक्त उभयपक्ष के मध्य हुई संविदा में पंचाट के माध्यम से मुम्बई में मामला तय कराने का करार हुआ है। अत: जिला उपभोक्ता आयोग को इस संविदा के कारण निर्णय का क्षेत्राधिकार नहीं है। इसके अतिरिक्त परिवादी द्वारा प्रश्नगत वाहन को अपने कब्जे में लिये जाने का कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। परिवादी ने रू0 1500/- की मांग की है जो अनुचित है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने रू0 1,00,000/- की धनराशि विवादित क्षति हेतु अवार्ड की है जो गलत है। रू0 25,000/- बारातियों को ले जाने के लिए दूसरा वाहन तय करने हेतु दिलाया गया है जो उचित नहीं है। अत: अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
हमारे द्वारा परिवादी के विद्वान अधिवक्ता श्री अजय वाही एवं विपक्षी सं0- 3 टाटा मोटर्स फाइनेंस लि0 के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा तथा विपक्षी सं0- 2 मोटर एण्ड जनरल सेल्स के विद्वान अधिवक्ता श्री एम0एच0 खान को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परीक्षण एवं परिशीलन किया गया। विपक्षी सं0- 1 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
इस मामले में परिवादी का कथन है कि उससे प्रश्नगत वाहन विपक्षी सं0- 3 ने जबर्दस्ती बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक छीन करके अपने कब्जे में ले लिया। विपक्षी सं0- 3 द्वारा कोई नोटिस वाहन की बकाया धनराशि दिये जाने के सम्बन्ध में कोई विवरण नहीं है जिससे स्पष्ट हो सके कि वाहन को अपने कब्जे में लिये जाने के पूर्व बकाया धनराशि का कोई नोटिस दिया गया था न ही अभिलेख पर ऐसा कोई प्रपत्र लाया गया हो जिससे स्पष्ट होता हो कि ऐसा कोई नोटिस परिवादी को दिया गया था जिससे स्पष्ट होता हो कि धनराशि बकाया होने के कारण उससे वाहन वापस लिया जा सकता है।
यह स्थापित विधि है कि यदि उभयपक्ष के मध्य ऐसी संविदा है कि वाहन को कब्जे में लेने के पूर्व फाइनांसर द्वारा नोटिस दिया जाना आवश्यक नहीं है तो ऐसी दशा में बिना नोटिस के वाहन को ऋणदाता (फाइनांसर) अपने कब्जे में ले सकता है, किन्तु इस प्रकार की कोई संविदा एवं शर्त भी इस पीठ के समक्ष नहीं रखी गई है जिससे यह तथ्य स्पष्ट होता हो। अत: बिना साक्ष्य के अभाव में विपक्षी का यह तथ्य मानने योग्य नहीं है कि उनको बिना नोटिस या पूर्व सूचना के प्रश्नगत वाहन अपने कब्जे में लेने का अधिकार था।
इस सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय अंजन कुमार राय बनाम ओरियण्टल इंश्योरेंस कं0लि0 प्रकाशित II(2021)सी0पी0जे0 पृष्ठ 108(एन0सी0) इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है, जिसमें मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि जिस मामले में एक तथ्य के साथ विश्लेषण सम्भव हो तो वह विश्लेषण न्यायालय अथवा पीठ अपने प्रसंज्ञान में लेगी जो उपभोक्ता के पक्ष में हो। प्रस्तुत मामले में संविदा की ऐसी कोई शर्त प्रस्तुत नहीं की गई है जिससे यह स्पष्ट हो सके कि विपक्षी सं0- 3 को प्रश्नगत वाहन बिना नोटिस के अपने पक्ष में ले लेने का अधिकार था। अत: यह माना जाता है कि इस प्रकार की कोई नोटिस दोनों पक्ष के मध्य संविदा में सम्मिलित नहीं थी और ऐसी दशा में विपक्षी सं0- 3 द्वारा प्रश्नगत वाहन को जबर्दस्ती अपने कब्जे में लिया गया है वह अनुचित माना जायेगा। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उचित प्रकार से उक्त कृत्य को अविधिक मानते हुए उपरोक्त प्रश्नगत निर्णय पारित किया है। अत: प्रश्नगत निर्णय में कोई अवैधता अथवा अनियमितता प्रतीत नहीं होती है। तदनुसार प्रश्नगत निर्णय पुष्ट होने योग्य एवं अपील सं0- 190/2019 अस्वीकार तथा निरस्त किये जाने योग्य है।
अपील सं0- 846/2015 वाहन के डीलर जिसके द्वारा आरम्भ में वाहन का विक्रय परिवादी को किया गया उसके द्वारा योजित की गई है, जिसमें वाहन के डीलर द्वारा यह कथन किया गया है कि परिवादी ने ऋणदाता के विरुद्ध वाहन को अवैध रूप से अपने कब्जे में ले लेने का कथन किया है। डीलर द्वारा वाहन को अपने कब्जे में लेने का कोई कथन या साक्ष्य नहीं है। अत: डीलर के विरुद्ध परिवाद आज्ञप्त होना उचित नहीं है, क्योंकि वाहन के विक्रेता/डीलर की कोई भूमिका वाहन को अवैध रूप से कब्जे में ले लेने की नहीं है।
विक्रेता/डीलर का यह कथन उचित है। डीलर की कोई भूमिका परिवादी द्वारा नहीं दर्शायी गई है। अत: विक्रेता/डीलर के विरुद्ध पारित प्रश्नगत निर्णय व आदेश उचित नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा डीलर एवं ऋणदाता (फाइनांसर) सभी के विरुद्ध वाद आज्ञप्त किया गया है। अत: विपक्षी डीलर को अनुतोष से उन्मोचित किया जाना उचित है। तदनुसार अपील सं0- 846/2015 स्वीकार किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील सं0- 190/2019 अस्वीकार एवं निरस्त की जाती है तथा सम्बन्धित अपील सं0- 846/2015 इस प्रकार स्वीकार की जाती है कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 09.04.2015 के उत्तरदायित्व से डीलर/विक्रेता को उन्मोचित किया जाता है। निर्णय व आदेश दि0 09.04.2015 के अनुपालन हेतु विपक्षी सं0- 3 टाटा फाइनेंस लि0 उत्तरदायी हैं।
अपील सं0- 190/2019 में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये तथा सम्बन्धित अपील सं0- 846/2015 में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाये।
इस निर्णय व आदेश की मूल प्रति अपील सं0- 190/2019 में रखी जाये एवं इसकी प्रमाणित प्रति सम्बन्धित अपील सं0- 846/2015 में रखी जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
शेर सिंह, आशु0, कोर्ट नं0- 1