(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या: 910/2007
पोस्ट मास्टर बनाम प्रदीप कुमार
समक्ष :-
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य
माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित –विद्वान अधिवक्ता श्री श्रीकृष्ण पाठक।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- कोई नहीं।
दिनांक : 04.08.2023
माननीय सदस्य श्री विकास सक्सेना द्वारा उदघोषित
प्रस्तुत अपील, अपीलार्थी पोस्ट मास्टर व अन्य की ओर से विद्वान जिला आयोग हमीरपुर द्वारा परिवाद संख्या 148/2003 प्रदीप कुमार बनाम पोस्ट मास्टर व अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 07.03.2007 के विरूद्ध योजित की गयी है।
वाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने परिवाद में यह अभिकथन किया है कि परिवादी प्रदीप कुमारर ने कर्मचारी चयन आयोग (मध्य क्षेत्र) कार्मिक तथा प्रशिक्षण विभाग के जरिये कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित संयुक्त स्नातक स्तरीय मुख्य परीक्षा के लिए दिनांक 07.08.2003 को आवेदन-पत्र जरिये स्पीड पोस्ट भरूआ सुमेर पुर से आर्टिकिल संख्या 0138 दिनांक 07.08.2003 को क्षेत्रीय निदेशक कर्मचारी चयन आयोग इलाहाबाद के पते से वाछित डाक टिकट से भेजा था। याची द्वारा भेजा गया आवेदन पत्र संयुक्त स्नातक स्तरीय मुख्य परीक्षा क्षेत्रीय निदेशक कर्मचारी आयोग इलाहाबाद में समय से नहीं पहुंचा, जिससे याची वाली संयुक्त स्नातक स्तरीय प्रारंभिक परीक्षा 21.09.2003 में सम्मलित नहीं हो सका, जबकि डाक विभाग की आवश्यक कार्य
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प्रणाली के तहत स्पीड पोस्ट का आशय व्यर्थ है। विपक्षीगणों ने जानबूझकर इस कार्य में शिथिलता बरती है एवं सेवा मे कमी की है। याची के कर्मचारी चयन आयोग में मुख्य परीक्षा में आवेदन पत्र पहुंचने तक की जानकारी करने पर दिनांक 19.09.2003 को लिखित रूप से पता चला कि याची द्वारा भेजा गया चयन आयोग परीक्षा का पत्र दिनांकित 07.08.2003 निर्धारित समय के अंदर पर्याप्त समय होने के बावजूद नहीं पहुंचा। जिससे प्रार्थी मुख्य परीक्षा में बैठने व परीक्षा देने से वंचित हो गया। प्रार्थी द्वारा पूरी सत्र की तैयारी व फीस में 1,50,000/-रू0 की क्षति हुयी तथा एक वर्ष का समय बावजूद तैयारी व भविष्य में उन्नति के आसार रखने का लगभग 100000/-रू0 की क्षति हुयी। परीक्षा में सम्मलित न हो पाने से मानसिक क्षति भी हुयी ऐसी परिस्थितियों में वादी के द्वारा 300000/-रू0 क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु यह वाद प्रस्तुत किया गया है।
विपक्षीगण को जिला फोरम द्वारा नोटिस / सम्मन जारी किये गये विपक्षीगण सूचना के बावजूद भी उपस्थित नहीं आये और ना ही कोई वादोत्तर दाखिल किया गया अतः उनके विरुद्ध परिवाद एकपक्षीय रूप से सुना गया। विपक्षीगण के विरुद्ध एकपक्षीय आदेश हुआ।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवादी को सुनने के उपरांत एकपक्षीय निम्न निर्णय व आदेश पारित किया:- वादी की ओर से प्रस्तुत यह वाद विपक्षीगणों के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। वादी विपक्षीगणों से 70,000/-रू0 की धनराशि वास्ते क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है।
उक्त आदेश से व्यथित होकर परिवाद के विपक्षी की ओर से यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री श्रीकृष्ण पाठक को सुना। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध सभी अभिलेखों का अवलोकन किया गया।
प्रश्नगत निर्णय के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि इस मामले में परिवादी जो प्रतियोगी परीक्षा का प्रतियोगी दर्शाया गया है, विपक्षी इस आधार पर परिवाद योजित किया है कि स्पीड पोस्ट के माध्यम से कर्मचारी चयन आयोग का आवेदन पत्र प्रेषित किया गयाजो समय के बाद पहुंचा। परिवादी के परीक्षा की तिथि क्या
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थी यह कहीं भी अंकित नहीं है। अत: विद्वान जिला फोरम का यह निष्कर्ष की पोस्ट आफिस के द्वारा देरी से डाक प्रेषित किया जाने के कारण ही परिक्षार्थी की परीक्षा का नुकसान हुआ, उचित नहीं कहा जा सकता है। साक्ष्यों के आधार पर यह निष्कर्ष उचित नहीं है एवं परिवादी क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। इस संबंध में अपीलार्थी की ओर से The Indian Post Office Act 1898 की धारा-6 पर बल दिया गया एवं यह भी तर्क दिया गया कि उपरोक्त धारा-6 के अनुसार पोस्ट ऑफिस तथा राज्य को डाक को पहुंचने में देरी अथवा प्रेषित की गयी डाक की हानि या गलत पते पर इसकी डिलीवरी होने संबंधी उत्तरदायित्व से मुक्त किया गया। धारा-6 भारतीय डाकघर अधिनियम 1898 निम्न प्रकार से है –
Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage.- The [Government] shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of, or damage to, any postal article in course of transmission by post, except in so far as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provided; and no officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage, unless he has caused the same fraudulently or by his willful act or default.
प्रस्तुत मामले में धारा-6 का लाभ लाभार्थी को दिया जाना उचित है, क्योंकि इस मामले परिवादी ने यह अभिवचन नहीं किया है कि उसके द्वारा प्रेषित स्पीड पोस्ट देरी से गयी थी अथवा गणतव्य स्थान पर पहुंचायी नहीं गयी। परिवादी का कथन यह है कि यह पोस्ट देरी से पहुंचने के कारण परिवादी का आवेदन पत्र समय सीमा से बाहर होने के कारण स्वीकार नहीं किया गया। जिस कारण उसे क्षति हुयी थी। उक्त के संदर्भ में परिवादी ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि वास्तव में स्पीट पोस्ट कितने दिन में पहुंचनी थी, एवं कब पहुंची थी, यह कितनी देरी से पहुंची थी। परिवादी द्वारा स्पीडपोस्ट पहुंचने की तिथि भी अंकित नहीं की गयी। इसके अतिरिक्त उसके द्वारा आवेदन पहुंचने की अंतिम तिथि भी स्पष्ट नहीं की गयी। अत: इन सभी विवरणों के अभाव में परिवादी का यह कथन नहीं माना जा सकता है कि विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा डाक वितरण में देरी की गयी जिस कारण परिवादी को कोई क्षति हुयी। अत: परिवादी का परिवाद विवेचना एवं साक्ष्य के अभाव में स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है। विद्वान जिला आयोग ने उपरोक्त साक्ष्य के अभाव में परिवादी का यह परिवाद स्वीकार किया है। अत: प्रश्नगत निर्णय अपास्त किये जाने योग्य है तथा अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
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आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। प्रश्नगत निर्णय अपास्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गयी हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाये।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुधा उपाध्याय)
सदस्य सदस्य
शोभना त्रिपाठी- आशु0 कोर्ट नं0 3