Uttar Pradesh

StateCommission

A/2003/867

Amity Business School - Complainant(s)

Versus

Prabhat Tewari - Opp.Party(s)

Rajesh Chadha

24 Sep 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2003/867
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. Amity Business School
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Prabhat Tewari
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Sanjay Kumar PRESIDING MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

                                                   (सुरक्षित)

अपील संख्‍या :867/2003

(जिला मंच, प्रथम लखनऊ द्धारा परिवाद सं0-164/1996 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 27.11.2000 के विरूद्ध)

1.       Amity Business School, Sector-44, Post Box No. 503, Noida-201303

2.       The Registrar, Amity Business School, Sector-44, Noida-03

                                                           ........... Appellants/Opp. Parties

Versus       

Prabhat Tewari, S/o Shri S.C. Tewari 88, Society Park, Narhi, Lucknow-01

                                                       .......... Respondent/Complainant.

पुनरीक्षण संख्‍या :66/2003

1.       Amity Business School, Sector-44, Post Box No. 503, Noida-201303

2.       The Registrar, Amity Business School, Sector-44, Noida-03

                                                           ........... Revisionist/Opp. Parties

Versus       

Prabhat Tewari, S/o Shri S.C. Tewari 88, Society Park, Narhi, Lucknow-01

                                                       .......... Respondent/Complainant.

समक्ष :-

मा0 श्री जितेन्‍द्र नाथ सिन्‍हा, पीठासीन सदस्‍य

मा0 श्री संजय कुमार, सदस्‍य

अपीलार्थी के अधिवक्‍ता :    श्री राजेश चडढा

प्रत्‍यर्थी के अधिवक्‍ता   :    कोई नहीं।

दिनांक : 02/12/2015

          मा0 श्री जे0एन0 सिन्‍हा, पीठासीन सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

            परिवाद सं0 164/1996 प्रभात तिवारी बनाम अमिटि बिजनेस स्‍कूल नोएडा, गाजियाबाद व एक अन्‍य में जिला मंच, प्रथम लखनऊ द्वारा दिनांक 27.11.2000 निर्णय/आदेश, जिसके माध्‍यम से परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षीगण सं0-1 व 2 को आदेशित किया गया कि वह 50 दिन के अन्‍दर परिवादी से प्राप्‍त की गई धनराशि रू0 18,000.00 दिनांक 26.7.1995 से 12 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज की दर से वास्‍तविक भुगतान तक अदा कर दे एवं वाद व्‍यय के रूप में भी निश्चित धनराशि अदा करें।

     -2-

उक्‍त वर्णित आदेश से क्षुब्‍ध होकर विपक्षी/अपीलार्थी की ओर से वर्तमान अपील योजित की गई है।

प्रश्‍नगत परिवाद में ही दिनांक 23.8.1999 को विपक्षी/पुनरीक्षणकर्ता की प्रारम्भिक आपत्ति का निस्‍तारण करते हुए जिला मंच द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया कि वाद कारण जनपद लखनऊ में ही उत्‍पन्‍न हुआ है, अत: क्षेत्राधिकार जिला मंच, लखनऊ को ही प्राप्‍त है, इसलिए परिवाद को पोषणीय होना भी बताया गया, जिससे क्षुब्‍ध होकर पुनरीक्षणकर्ता द्वारा वर्तमान पुनरीक्षण प्रस्‍तुत किया गया है।

     चूंकि प्रश्‍नगत परिवाद में ही आदेश दिनांक 23.8.1999 से क्षुब्‍ध होकर पुनरीक्षण प्रस्‍तुत है और बाद में प्रश्‍नगत परिवादनिर्णीत कर दिया गया, जिससे क्षुब्‍धहोकर अपील भी योजित है, अत: अपील और पुनरीक्षण का निस्‍तारण एक साथ किया जाना उचित प्रतीत होता है।

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री राजेश चड्ढा उपस्थित आये। प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है, जबकि प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता मो0 अलताफ मंसूर का वकालतनाम पत्रावली पर दाखिल है। अत: अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता को सुना तथा प्रश्‍नगत निर्णय व उपलब्‍ध अभिलेखों का गम्‍भीरता से परिशीलन किया गया।

परिवाद पत्र का अभिवचन संक्षेप में इस प्रकार है कि परिवादी द्वारा विपक्षी की संस्‍था में अभिवचित पढ़ाई की बावत दिनांक 15.7.1995 को रू0 23,000.00 जमा किया गया एवं परिवादी बाद की किस्‍त की अदायगी करने में असमर्थ रहा, अत: उसके द्वारा यह निश्चित किया गया कि वह अपनी पढ़ाई को वापस ले लें, इसलिए परिवादी द्वारा इस आशय का प्रार्थनापत्र दिया गया, जिसके फलस्‍वरूप विपक्षी द्वारा परिवादी के संदर्भ में प्रोविजनल एडमीशन निरस्‍त कर दिया गया और रू0 5,000.00 वापस किया गया, अत: परिवादी द्वारा बकाया धनराशि 18,000.00 रू0 को प्राप्‍त किये जाने हेतु परिवाद प्रस्‍तुत किया गया।

विपक्षी द्वारा जिला मंच के समक्ष परिवाद का विरोध किया गया और स्‍पष्‍ट रूप से यह अभिवचित किया गया कि प्रश्‍नगत पढ़ाई के संदर्भ में जो शर्ते थी, उसकी बावत ब्रोशर में स्‍पष्‍ट उल्‍लेख किया गया था और उसके अनुसार परिवादी केवल रू0 5,000.00 जो सिक्‍योरिटी के रूप में जमा किया गया था, वही प्राप्‍त करने का अधिकारी था और विपक्षी द्वारा

-3-

रू0 5,000.00 परिवादी को वापस कर दिया गया। ऐसी स्थिति में परिवाद खण्डित किये जाने योग्‍य है।

जिला मंच द्वारा उभय पक्ष के अभिवचन और अभिलेख पर विचार करते हुए यह कहा गया कि प्रश्‍नगत पढ़ाई की बावत प्रोविजनल एडमीशन प्रश्‍नगत कोर्स के संदर्भ में किया गया था और फीस जो जमा की गई थी, वह भी प्रोविजनल थी, ऐसी स्थिति में परिवादी शेष धनराशि 18,000.00रू0 प्राप्‍त करने का अधिकारी है, जिसके फलस्‍वरूप उपरोक्‍त वर्णित आदेश पारित किया गया, जिससे क्षुब्‍ध होकर वर्तमान अपील योजित की गई है।

आधार अपील में स्‍पष्‍ट रूप से यह अभिवचित किया गया कि वर्तमान प्रकरण में विपक्षी/अपीलार्थी को अपना पक्ष करने का अवसर जिला मंच द्वारा नहीं प्रदान किया गया एवं दिनांक 27.5.1999 को विपक्षी/अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता द्वारा केवल प्रारम्भिक आपत्ति के संदर्भ बहस की गई एवं जिला मंच द्वारा आदेश सुरक्षित किया गया था और दिनांक 23.8.1999 को आदेश पारित किया गया और उस आदेश के तहत दिनांक 11.10.1999 को परिवादी के साक्ष्‍य के लिए नियत की गई और दिनांक 11.10.1999 को आदेश पत्र में इस आशय का उल्‍लेख किया गया कि कोई पक्षकार उपस्थित नहीं था और परिवादी के विद्वान अधिवक्‍ता को सूचित किया जाय और दिनांक 20.01.2000 की तिथि नियत की गई और दिनांक 20.01.2000 को उपस्थित नहीं थी, परन्‍तु निर्णय सुरक्षित किया गया। ऐसी स्थिति में प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश अपास्‍त किये जाने योग्‍य है। आधार अपीलमें यह भी अभिवचित किया गया कि अपीलार्थी द्वारा यह भी अभिवचित किया गया कि जिला मंच द्वारा दिनांक 23.8.1999 को पारित आदेश के विरूद्ध पुनरीक्षण प्रस्‍तुत किया गया है, जो विचाराधीन है एवं प्रारम्भिक आपत्ति के रूप में मुख्‍य रूप से यह मामला उठाया गया कि लखनऊ के जिला मंच को वर्तमान परिवाद को सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं था क्‍योकि प्रश्‍नगत संस्‍था गाजियाबाद में स्थित थी और उसकी कोई शाखा लखनऊ में नहीं है एवं प्रश्‍नगत परिवाद में परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में भी नहीं आता है एवं तथ्‍य के संदर्भ में यह अभिवचित किया गया कि परिवादी प्रश्‍नगत कोर्स में दाखिले के लिए उपर्युक्‍त पाया गया। दिनांक 15.7.1995 तक रू0 23,000.00 जमा किये

-4-

जाने की बात कही गई एवं दिनांक 14.7.1995 को प्रथम किस्‍त के रूप में परिवादी द्वारा रू0 23,000.00 जमा किया गया, जिसमें रू0 5,000.00 सिक्‍योरिटी डिपाजिट था और ब्रोशर के अनुसार परिवादी द्वारा नियत तिथि को उक्‍त कोर्स में दाखिला के लिए उपस्थित नहीं हो सका, अत: परिवादी का दाखिला निरस्‍त कर दिया गया और रू0 5,000.00 परिवादी को सिक्‍योरिटी के रूप में वापस कर दिया गया और यह अभिवचित किया गया कि परिवादी का प्रश्‍नगत कोर्स में एडमीशन प्रोविजनल नहीं था और ब्रोशर के अनुसार केवल सिक्‍योरिटी की धनराशि वापस किया जाना सम्‍भव था, जो वापस कर दिया जाय, अत: प्रश्‍नगत आदेश अपास्‍त किये जाने योग्‍य है।

आदेश पत्र की जो प्रतिलिपियॉ प्रस्‍तुत की गई है, उसके परिशीलन से स्‍पष्‍ट है कि दिनांक 27.5.1999 को टेरिटोरियल जुरिडेक्‍शन और परिवाद की पोषणीयता के संदर्भ में जिला मंच द्वारा बहस सुनी गई और आदेश सुरक्षित किया गया और दिनांक 23.8.1999 को इस आशय का आदेश पारित किया गया कि जनपद लखनऊ के जिला मंच को क्षेत्राधिकार प्राप्‍त है और दिनांक 11.10.1999 की तिथि परिवादी के साक्ष्‍य के लिए नियत की गई एवं दिनांक 11.10.1999 को कोई पक्ष उपस्थित नहीं था और उस दिन दिनांक 20.01.2000 की तिथि बहस के लिए नियत की गई और पक्षकारान के विद्वान अधिवक्‍ता को सूचित किये जाने हेतु आदेशित किया गया एवं दिनांक 20.01.2000 को कोई पक्ष उपस्थित नहीं था और निर्णय सुरक्षित किया गया। ऐसी स्थिति में परिवादी और विपक्षी दोनों की ही बहस को जिला मंच द्वारा नहीं सुना गया। परिवादी द्वारा कोई साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं किया गया, इसका भी उल्‍लेख आदेश पत्र में नहीं है। विपक्षी को अविवादित गुण-दोष के आधार पर लिखित कथन प्रस्‍तुत करने का भी कोई अवसर नहीं प्रदान किया गया। विपक्षी को साक्ष का भी अवसर प्रदान नहीं किया गया और अविवादित रूप से बिना सुने प्रश्‍नगत आदेश पारित किया गया है।

     जिला मंच द्वारा दिनांक 27.11.2000 आदेश पारित करते हुए करते हुए मुख्‍य रूप से वाद कारण के संदर्भ में परिवादी के अभिवचन पर निष्‍कर्ष दिया, अत: यह निष्‍कर्ष तथ्‍य पर आधारित है और यह पाया गया कि वर्तमान परिवाद को गुणदोष के आधार पर निर्णीत किये जाने हेतु

-5-

मामला जिला मंच को प्रति प्रेषित किया जाए, ऐसी स्थिति में पोषणीयता और क्षेत्राधिकार के संदर्भ में भी विपक्षी/अपीलार्थी की आपत्ति के त‍हत जिला मंच द्वारा निष्‍कर्ष दिया जाना उचित होगा क्‍योंकि तथ्‍यात्‍मक बिन्‍दु निहित है और ऐसी स्थिति में पक्षकारान साक्ष्‍य भी प्रस्‍तुत करेंगे, अत: आदेश दिनांक 23.8.1999 अपास्‍त एवं दिनांक 27.11.2000 को अपास्‍त करते हुए मामला सम्‍बन्धित जिला मंच को इस टिप्‍पणी के साथ प्रति प्रेषित किये जाने योग्‍य है कि वे तथ्‍यों का विश्‍लेषण कर दोनों पक्षों को साक्ष्‍य एवं सुनवाई का समुचित अवसर प्रदान करते हुए प्रकरण का निस्‍तारण गुण-दोष के आधार पर त्‍वरित गति से करना सुनिश्चित करें। तदनुसार प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

आदेश

     प्रस्‍तुत अपील एवं पुनरीक्षण उपरोक्‍त स्‍वीकार करते हुए जिला मंच, प्रथम लखनऊ द्वारा परिवाद सं0 164/1996 प्रभात तिवारी बनाम अमिटि बिजनेस स्‍कूल नोएडा, गाजियाबाद व एक अन्‍य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 27.11.2000 एवं आदेश दिनांक 23.8.1999 को अपास्‍त करते हुए प्रस्‍तुत प्रकरण सम्‍बन्धित जिला मंच को इस निर्देश के साथ प्रति-प्रेषित किया जाता है कि वे तथ्‍यों का विश्‍लेषण कर, दोनों पक्षों को साक्ष्‍य एवं सुनवाई का समुचित अवसर प्रदान करते हुए गुण-दोष के आधार पर परिवाद का निर्णय त्‍वरित गति से करना सुनिश्चित करें।

     इस निर्णय/आदेश की एक प्रमाणित प्रतिलिपि पुनरीक्षण सं0-66/2003 पर भी रखी जाय।

      

 

         (जे0एन0 सिन्‍हा)                   (संजय कुमार)

         पीठासीन सदस्‍य                   सदस्‍य

हरीश आशु.,

कोर्ट सं0-3

 

 
 
[HON'BLE MR. Sanjay Kumar]
PRESIDING MEMBER

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