राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1735/2015
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम कोर्ट नं0- 01, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0- 342/2011 में पारित आदेश दि0 27.09.2014 के विरूद्ध)
N.I.M.T.B. School, G.T. Road, Delhi Ghaziabad Haighway, Near Hindun River pul, Mohan nagar, Ghaziabad, Through Director
………………. Appellant
Versus
Prabhakar singh S/o Bhupendra pratap singh, R/o 2334/1, Vivek nagar, Sultanpur, (U.P.)
…………….Respondent
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री आलोक रंजन, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री शैलेष पाठक, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 04.07.2017
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित
निर्णय
परिवाद सं0- 342/2011 प्रभाकर सिंह बनाम एन0आई0एम0टी0बी0 स्कूल में जिला फोरम कोर्ट नं0- 01, गाजियाबाद द्वारा पारित निर्णय और आदेश दि0 27.09.2014 के विरूद्ध यह अपील उपरोक्त परिवाद के विपक्षी एन0आई0एम0टी0बी0 स्कूल की ओर से धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद विपक्षी के विरूद्ध स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है :-
‘’परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी एन0आई0एम0टी0बी0 स्कूल जी0टी0 रोड मोहन नगर, गाजियाबाद को आदेशित किया जाता है कि परिवादी के द्वारा जमा की गई 75,000/-रू0 की धनराशि 12 प्रतिशत ब्याज तथा मानसिक, आर्थिक क्षतिपूर्ति के लिए 16,000/-रू0 एवं वाद व्यय के लिए 5,000/-रू0 एक माह में अदा करे। ऐसा न करने पर समस्त देय धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज भी देय होगा’’।
अपीलार्थी की ओर से उसके विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक रंजन और प्रत्यर्थी की ओर से उसके विद्वान अधिवक्ता श्री शैलेष पाठक उपस्थित आये हैं।
मैंने उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि अपीलार्थी/विपक्षी एन0आई0एम0टी0बी0 ने विज्ञापन निकाला कि उसे ए0आई0सी0टी0ई0 अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद से पी0जी0डी0बी0एम0 की मान्यता प्राप्त है। अत: अपीलार्थी/विपक्षी के विज्ञापन पर विश्वास करते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी ने वर्ष 2008 से 2010 के पी0जी0डी0बी0एम0 कोर्स में अपीलार्थी/विपक्षी के स्कूल में दि0 01.07.2008 को प्रवेश लिया और कुल फीस 75,000/-रू0 जमा कर रसीद प्राप्त किया, परन्तु बाद में उसे पता चला कि अपीलार्थी/विपक्षी का विद्यालय इस कोर्स के लिए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त नहीं है। अत: उसने अपीलार्थी/विपक्षी से फीस वापसी की मांग की और अपीलार्थी/विपक्षी के मौखिक निर्देशानुसार उसने दि0 01.08.2008 को फीस वापसी हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया। अपीलार्थी/विपक्षी ने फीस वापस करने का आश्वासन दिया, परन्तु फीस वापस नहीं किया और टालता रहा। अंत में प्रत्यर्थी/परिवादी ने विद्वान अधिवक्ता के माध्यम से नोटिस भेजा और परिवाद जिला फोरम कोर्ट नं0- 01, गाजियाबाद के समक्ष प्रस्तुत किया।
उल्लेखनीय है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद जिला फोरम ने निर्णय और आदेश दि0 19.11.2012 के द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध एकपक्षीय रूप से निर्णीत किया तब अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से राज्य आयोग के समक्ष अपील प्रस्तुत की गई, जिसे राज्य आयोग ने स्वीकार करते हुए जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश अपास्त कर पत्रावली पुन: निस्तारण हेतु जिला फोरम को इस निर्देश के साथ प्रत्यावर्तित किया कि उभयपक्ष को साक्ष्य और सुनवाई का अवसर देकर पुन: निस्तारण किया जाए। अत: जिला फोरम, गाजियाबाद ने परिवाद को पुराने नम्बर पर पुनर्स्थापित किया और परिवाद की पुन: सुनवाई की, परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी जिला फोरम के समक्ष पुन: नोटिस के तामीला के बाद भी उपस्थित नहीं हुआ। अत: जिला फोरम ने परिवाद की कार्यवाही पुन: एकपक्षीय रूप से करते हुए आक्षेपित निर्णय और आदेश परिवाद पत्र के कथन एवं परिवादी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर पारित किया है और यह माना है कि अपीलार्थी/विपक्षी को पी0जी0डी0बी0एम0 कोर्स की मान्यता प्राप्त नहीं थी, फिर भी उसने गलत विज्ञापन देकर प्रत्यर्थी/परिवादी को उक्त कोर्स में एडमीशन हेतु प्रेरित किया है और फीस प्राप्त कर उसे एडमीशन दिया है। अत: जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए उपरोक्त प्रकार से आदेश पारित किया है।
अपीलार्थी/विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी की संस्था को ऑल इंडिया काउंसिल फार टेक्निकल एजूकेशन से पी0जी0डी0बी0एम0 कोर्स की मान्यता प्राप्त है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित निर्णय और आदेश तथ्य के विपरीत है। अत: निरस्त किये जाने योग्य है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि अपीलार्थी के विरूद्ध जिला फोरम ने एकपक्षीय रूप से निर्णय पारित किया है और उसे सुनवाई का अवसर नहीं दिया है।
प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी नोटिस के तामीला के बाद भी जिला फोरम के समक्ष उपस्थित नहीं हुआ तब जिला फोरम ने उसके विरूद्ध एकपक्षीय रूप से कार्यवाही कर निर्णय और आदेश दि0 19.11.2012 पारित किया जिसके विरूद्ध उसने आयोग के समक्ष अपील प्रस्तुत की। आयोग द्वारा अपील स्वीकार कर पत्रावली जिला फोरम के समक्ष प्रत्यावर्तित की गई तब वह पुन: जिला फोरम के समक्ष नोटिस के तामीला के बाद भी उपस्थित नहीं आया है। अत: जिला फोरम ने उसके विरूद्ध एकपक्षीय रूप से कार्यवाही कर कोई त्रुटि नहीं की है। प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अपीलार्थी के विद्यालय को पी0जी0डी0बी0एम0 कोर्स की मान्यता प्राप्त नहीं है और उसने गलत विज्ञापन प्रकाशित कर प्रत्यर्थी/परिवादी को उक्त कोर्स में प्रवेश लेने हेतु प्रेरित किया है जो अनुचित व्यापार पद्धति है। अत: जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश विधि के अनुकूल है और उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।
मैंने उभयपक्ष के तर्क पर विचार किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने अपील का संलग्नक 5 बहस के समय दिखाया है जिसमें अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद द्वारा यह प्रमाणित किया गया है कि अपीलार्थी की संस्था को पी0जी0डी0एम0 फुल टाइम कोर्स की मान्यता प्रदान की गई है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी के विद्यालय में पी0जी0डी0बी0एम0 कोर्स में उसके विज्ञापन से प्रभावित होकर प्रवेश लिया है। अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से अपील में इस बात से इनकार नहीं किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को पी0जी0डी0बी0एम0 में प्रवेश दिया गया है।
अपील मेमो के साथ ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजूकेशन द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रेषित पत्र की प्रति पृष्ठ 21 पर संलग्न की गई है जिसमें अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ने यह प्रमाणित किया है कि अपीलार्थी की संस्था को पी0जी0डी0बी0एम0 की मान्यता प्राप्त नहीं है। अपीलार्थी/विपक्षी ने ऐसा कोई अभिलेख या आखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद का पत्र प्रस्तुत नहीं किया है जिससे यह प्रमाणित हो कि उसे पी0जी0डी0बी0एम कोर्स की मान्यता प्राप्त है।
अत: सम्पूर्ण तथ्यों और साक्ष्यों व परिस्थितियों पर विचार करने के उपरांत यह मानने हेतु उचित आधार है कि अपीलार्थी की संस्था को पी0जी0डी0बी0एम0 कोर्स की मान्यता प्राप्त नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने बहस के समय मेरा ध्यान प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा अपीलार्थी के समक्ष प्रस्तुत प्रार्थना पत्र दि0 01.08.2008, 07.11.2008 और 20.01.2009 व 09.11.2010 की ओर दिलाया है और तर्क किया है कि अपीलार्थी ने पत्र दि0 01.08.2008 में स्पष्ट रूप से कहा है कि घरेलू परिस्थितियों के कारण वह अपीलार्थी के गाजियाबाद स्थित कॉलेज में पढ़ने में असमर्थ है जिससे यह स्पष्ट है कि उसने स्वयं विद्यालय अपने निजी कारणों से छोड़ा है, विद्यालय को कोर्स की मान्यता प्राप्त होने के कारण नहीं।
मैंने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क पर विचार किया है।
निर्विवाद रूप से प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी के विद्यालय में दि0 01.07.2008 को प्रवेश लिया है और दि0 01.07.2008 को 35,000/-रू0 तथा दि0 31.07.2008 को 40,000/-रू0 जमा किया है। उसके बाद दि0 01.08.2008 को उसने जमा फीस वापस करने का निवेदन अपीलार्थी से किया है। फीस जमा करने के दूसरे दिन बाद ही प्रार्थना पत्र फीस वापसी हेतु प्रस्तुत करना यह दर्शाता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी अपीलार्थी के विद्यालय से संतुष्ट नहीं रहा है और प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद पत्र में स्पष्ट रूप से कहा है कि उसने अपीलार्थी के मौखिक निर्देशों के अनुसार पत्र दि0 01.08.2008 लिखा है। अत: इस पत्र दि0 01.08.2008 के आधार पर कोई प्रतिकूल निष्कर्ष प्रत्यर्थी/परिवादी के विरूद्ध निकाला जाना उचित नहीं है।
उपरोक्त विवेचना और ऊपर निकाले गये निष्कर्ष से स्पष्ट है कि अपीलार्थी/विपक्षी के विद्यालय को पी0जी0डी0बी0एम0 कोर्स की मान्यता प्राप्त होना कदापि प्रमाणित नहीं है। अत: उसने इस कोर्स में प्रत्यर्थी/परिवादी को फीस लेकर जो प्रवेश अनाधिकृत ढंग से प्रदान किया है वह अनुचित व्यापार पद्धति है। अत: जिला फोरम ने जो प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा जमा फीस वापस करने का आदेश दिया है वह उचित है। जिला फोरम ने 16,000/-रू0 मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति के मद में क्षतिपूर्ति प्रदान की है। मेरी राय में क्षतिपूर्ति की यह धनराशि अधिक है यह कम कर 6,000/-रू0 निर्धारित किया जाना उचित है। जिला फोरम ने जो 5,000/-रू0 वाद व्यय दिया है वह उचित है उसमें किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। मेरी राय में जिला फोरम ने जो 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिया है उसे घटाकर 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज दिलाया जाना उचित है।
उपरोक्त निष्कर्षों के आधार पर अपीलार्थी द्वारा प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश एतद्द्वारा संशोधित किया जाता है। अपीलार्थी/विपक्षी प्रत्यर्थी/परिवादी को उसकी फीस की जमा धनराशि 75,000/-रू0 09 प्रतिशत वार्षिक की दर से अदायगी की तिथि तक ब्याज सहित अदा करेगा। इसके साथ ही वह उसे 6,000/-रू0 मानसिक व आर्थिक क्षतिपूर्ति हेतु और 5,000/-रू0 वाद व्यय प्रदान करेगा।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत अपील में जमा धनराशि 25,000/-रू0 ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाये।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान)
अध्यक्ष
शेर सिंह आशु0
कोर्ट नं0-1