Uttar Pradesh

StateCommission

A/2007/1605

Union Of India - Complainant(s)

Versus

Prabhakar Gupta - Opp.Party(s)

Dr. Uday Veer Singh

16 Aug 2021

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2007/1605
( Date of Filing : 20 Jul 2007 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Union Of India
A
...........Appellant(s)
Versus
1. Prabhakar Gupta
A
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 16 Aug 2021
Final Order / Judgement

                                                           (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-1605/2007

(जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम, कानपुर नगर द्वारा परिवाद संख्‍या-445/2006 में पारित निणय/आदेश दिनांक 26.04.2007 के विरूद्ध)

                                    

1. यूनियन आफ इण्डिया द्वारा सेक्रेटरी, मिनिस्‍ट्री आफ पोस्‍ट्स एण्‍ड कम्‍यूनिकेशंस, गवर्नमेंट आफ इण्डिया, नई दिल्‍ली।

2. दि चीफ पोस्‍ट मास्‍टर जनरल, हेड पोस्‍ट आफिस, कानपुर सिटी, कानपुर।

 अपीलार्थीगण/विपक्षी सं0-1 व 2

बनाम

श्री प्रभाकर गुप्‍ता निवासी 90, एमआईजी, दयानन्‍द विहार फेस I, कल्‍याणपुर, कानपुर सिटी, कानपुर।

                                     प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-                           

1. माननीय श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य।

2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : डा0 उदय वीर सिंह, विद्वान

                                                       अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित    : कोई नहीं।

दिनांक:   20.09.2021  

माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य  द्वारा उद्घोषित                                                 

निर्णय

1.         परिवाद संख्‍या-445/2006, प्रभाकर गुप्‍ता बनाम पोस्‍ट मास्‍टर तथा दो अन्‍य में विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग, कानपुर नगर द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 26.04.2007 के विरूद्ध यह अपील योजित की गई है। इस निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग ने परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षी संख्‍या-1 व 2  को यह निर्देशित किया गया है कि 30 दिन के अन्‍दर परिवादी द्वारा जमा की गई राशि परिपक्‍वता तिथि दिनांक 30.03.2001 से 12 प्रतिशत ब्‍याज सहित अदा करें।

2.         परिवाद पत्र के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी ने दिनांक 30.03.1995 को हेड पास्‍ट आफिस बड़ा चौराहा कानपुर से अंकन 10,000/- रूपये का 06 वर्षीय राष्‍ट्रीय बचत पत्र प्रमाण पत्र क्रय किया था, जिसकी परिपवक्‍ता तिथि दिनांक 30.03.2001 थी तथा परिपवक्‍ता राशि अंकन 20,150/- रूपये होनी थी, परन्‍तु विपक्षीगण ने इस बचत पत्र को भारतीय स्‍टेट बैंक, शाखा लाजपत नगर में गिरवी रख ऋण प्राप्‍त करने का कारण दर्शाते हुए अदा नहीं किया, इसलिए परिवाद प्रस्‍तुत किया गया।

3.         विपक्षी संख्‍या-1 व 2 का कथन है कि परिवादी ने बैंक का कोई प्रपत्र प्रेषित नहीं किया और न ही बैंक को सूचना दी कि उसके द्वारा प्रेषित पत्र दिनांकित 29.03.1997 गलत है, कि परिवादी ने कोई ऋण प्राप्‍त किया है। परिवादी जब परिपवक्‍ता पर एनएससी का भुगतान प्राप्‍त करने हेतु आया तो उसे रिलीज सर्टिफिकेट तथा ऋण से संबंधित पेपर प्रस्‍तुत करने हेतु कहा गया, लेकिन उसके द्वारा प्रस्‍तुत नहीं किया गया।

4.         विपक्षी संख्‍या-3 की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ, इसलिए उसके विरूद्ध एकतरफा सुनवाई की गई।

5.         उपस्थित पक्षकारों की साक्ष्‍य पर विचार करने के पश्‍चात  विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया कि परिवादी ने अंकन 10,000/- रूपये की एनएससी क्रय की थी, जिसकी परिपक्‍वता पर उसे अंकन 21,150/- रूपये देय थे। बैंक द्वारा निर्गत पत्र दिनांकित 15.02.2003 से साबित होता है कि उपरोक्‍त बचत पत्र संख्‍या-205931 पर कोई ऋण प्राप्‍त नहीं किया गया है। तदनुसार उपरोक्‍त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।

6.         इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश मनमाना एवं अवैध है। विपक्षी संख्‍या-1 व 2 के लिखित कथन पर विचार नहीं किया गया। भारतीय स्‍टेट बैंक ने अपने पत्र दिनांकित 29.03.1997 के द्वारा अपीलार्थीगण को सूचित किया था कि श्री प्रभाकर गुप्‍ता द्वारा ली गई एनएससी बैंक में गिरवी रखने के पश्‍चात ऋण प्राप्‍त किया गया है। परिवादी को सभी तथ्‍यों से अवगत करा दिया गया था। यह भी उल्‍लेख किया गया कि परिवादी स्‍टेट बैंक आफ इण्डिया से निर्मुक्‍त पत्र प्राप्‍त करने के पश्‍चात केवल सर्टिफिकेट राशि ब्‍याज रहित प्राप्‍त करने के लिए अधिकृत है। परिवादी को सूचित किया गया था कि वे बैंक से निर्मुक्ति पत्र प्राप्‍त कर प्रस्‍तुत करें, किन्‍तु निर्मुक्ति पत्र प्रस्‍तुत नहीं किया गया, इसलिए विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश विधि विरूद्ध है, अत: अपास्‍त होने योग्‍य है।

7.         अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता डा0 उदय वीर सिंह उपस्थित आए। प्रत्‍यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। अत: केवल अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्‍ता की बहस सुनी गई तथा प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।

8.         विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग ने अपने निर्णय में उल्‍लेख किया है कि बैंक द्वारा निर्गत पत्र दिनांक 15.02.2003 से प्रमाणित होता है कि परिवादी द्वारा जेजेईई 205931 पर कोई ऋण प्राप्‍त नहीं किया गया है और न ही इस संबंध में कोई विवाद लम्बित है। अपील के ज्ञापन में यह उल्‍लेख नहीं है कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा दिया गया यह निष्‍कर्ष साक्ष्‍य के विपरीत है। यथार्थ में बैंक द्वारा दिनांक 15.02.2003 का ऐसा कोई पत्र प्रस्‍तुत नहीं किया है, जिसका उल्‍लेख निर्णय में किया गया है।

9.         अपीलार्थीगण की ओर से बैंक के जिस पत्र का उल्‍लेख किया गया है, वह लिखित कथन में अनेग्‍जर संख्‍या ए तथा बी के रूप में संलग्‍न करना बताया है। अपील के ज्ञापन के साथ लिखित कथन अनेग्‍जर संख्‍या-3 के रूप में प्रस्‍तुत किया गया है, परन्‍तु इस लिखित कथन में वर्णित पत्र लिखित कथन के साथ इस पीठ के अवलोकनार्थ प्रस्‍तुत नहीं किया गया है, इसलिए माना जा सकता है कि विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा जो निर्णय/आदेश पारित किया गया है, जिसमें बैंक द्वारा प्रेषित पत्र का उल्‍लेख किया गया है, वह विधिसम्‍मत है। तदनुसार कोई हस्‍तक्षेप अपेक्षित नहीं है। सिवाय इस बिन्‍दु के कि 12 प्रतिशत की दर से साधारण ब्‍याज अदा करने का आदेश दिया गया है, वह उच्‍च श्रेणी का है। परिपवक्‍ता अवधि के पश्‍चात 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्‍याज अदा करने का आदेश देना विधिसम्‍मत होगा। अपील तदनुसार आंशिक रूप से स्‍वीकार होने योग्‍य है।

आदेश

 

10.        प्रस्‍तुत अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम/आयोग द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश दिनांक 26.04.2007 इस रूप में परिवर्तित किया जाता है कि परिवादी को देय राशि पर परिपक्‍वता अवधि के पश्‍चात 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से साधारण ब्‍याज देय होगा। शेष निर्णय पुष्‍ट किया जाता है।

           पक्षकार अपना-अपना अपीलीय व्‍यय स्‍वंय वहन करेंगे।

           आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

  (राजेन्‍द्र सिंह)                           (सुशील कुमार)

   सदस्‍य                                 सदस्‍य

 

 

 

निर्णय/आदेश आज खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।

 

 

(राजेन्‍द्र सिंह)                           (सुशील कुमार)

 सदस्‍य                                  सदस्‍य

 

 

लक्ष्‍मन, आशु0,

    कोर्ट-3

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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