Madhya Pradesh

Seoni

CC/36/2013

RAHUL PARTE - Complainant(s)

Versus

PRABANKHAK KRISCHEN HOSPITAL LEKHNADOND - Opp.Party(s)

17 Sep 2013

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, सिवनी(म0प्र0)

 

 प्रकरण क्रमांक- 36-2013                              प्रस्तुति दिनांक-12.04.2013


समक्ष :-
अध्यक्ष - रवि कुमार नायक
सदस्य - श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत,

राहुल परते, आत्मज श्री नाथूराम परते,
आयु लगभग 17 वर्श 6 माह, नाबालिग 
वली एवं वाद संरक्षक, पिता-नाथुराम
परते, निवासी-ग्राम भालपानी, पोस्ट
खमरिया, तहसील धनौरा, जिला सिवनी
(म0प्र0)।...................................................................आवेदकपरिवादी।


                :-विरूद्ध-:                  
(1)    डाक्टर सालोम पटोले क्रिषिचयन 
    हासिपटल, लखनादौन।
(2)    अध्यक्ष प्रबंध समिति लखनादौन,
    क्रिषिचयन हासिपटल, जिला सिवनी
    (म0प्र0)।.........................................................अनावेदकगणविपक्षगण।        

            
                 :-आदेश-:
    
     (आज दिनांक- 17.09.2013 को पारित)

द्वारा-अध्यक्ष:-

(1)        परिवादी ने यह परिवाद, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत, अनावेदकगण के विरूद्ध चिकित्सकीय उपेक्षा के आधार पर हर्जाना दिलाने के अनुतोश हेतु पेष किया है।
(2)        यह अविवादित तथ्य है कि-लखनादौन सिथत क्रिष्चयन हासिपटल, प्रायवेट हासिपटल है और दिनांक-27.10.2012 को परिवादी को उक्त अस्पताल में परिवादी के दांहिने कूल्हे में फोड़ा और सूजन हो जाने के इलाज हेतु भर्ती किया था, जो कि-दिनांक-27.10.2012 से 01.11.2012 तक उक्त अस्पताल में भर्ती रहा, जो कि-चीरा लगाकर उक्त फोड़े से मवाद निकाला गया था और उक्त इलाज, अस्पताल में पदस्थ चिकित्सक अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा किया गया था। यह भी विवादित नहीं कि- दिनांक-01.11.2012 को परिवादी ने उक्त अस्पताल से छुटटी कराकर, अन्य जगह अगि्रम इलाज कराया।
(3)        स्वीकृत तथ्यों के अलावा, परिवाद का सार यह है कि- परिवादी को उक्त दांहिने कूल्हे में उत्पन्न हुआ फोड़ा और उसके आसपास के सूजन के इलाज हेतु अनावेदक क्रमांक-2 के प्रबंधन में चल रहे क्रिषिचयन हासिपटल में लाया गया था और अनावेदक क्रमांक-1 ने परीक्षण करने के बाद उसे भर्ती करने की सलाह दी, जो कि-अनावेदक के अस्पताल में उपचार किये जाने पर भी दिन-प्रतिदिन तकलीफ बढ़ती गर्इ और इस बीच अनावेदक क्रमांक-1 ने फोड़ा वाले भाग में फोड़ा बिना पके ही चीरा लगा दिया, जिससे परिवादी की पीड़ा और अधिक बढ़ गर्इ और चीरा वाले भाग में सेप्टीसिमिया प्रारम्भ हो गया, जिससे परिवादी के षरीर के अन्य अंग भी प्रभावित होने लगे, बड़ी मात्रा में पस परिवादी के अण्डकोष, लीवर व किडनी तक फैलने लगा और इस संबंध में रोकथाम किये जाने के अनुरोध पर भी अनावेदक क्रमांक-1 ने कोर्इ ध्यान नहीं दिया और जब अधिक तकलीफ होने की जानकारी दी गर्इ, तो अनावेदक क्रमांक-1 द्वारा, परिवादी के पिता से कह दिया गया कि-परिवादी को बचाना संभव नहीं है, तो परिवादी के पिता ने तत्काल अनावेदक के क्रिषिचयन हासिपटल, लखनादौन की एम्बुलेन्स से ही परिवादी को जांच व उपचार के लिए तत्काल सिवनी लाया, जहां आषीर्वाद हासिपटल में सोनोग्राफी के बाद सिवनी के डाक्टर विनोद नावकर से परीक्षण कराया और दिनांक-01.11.2012 से 02.11.2012 की सबेरे तक सिवनी के जिला चिकित्सालय में इलाज कराया जाकर, डाक्टरों की सलाह पर बेहतर इलाज होकर, परिवादी को एम्बुलेन्स से नागपुर लाकर, दिनांक-02.11.2012 से 28.11.2012 तक नागपुर के ष्योरटेक मल्टीस्पेषिलटी हासिपटल में भर्ती रखकर उसका सघन उपचार और आपरेषन किया जाकर बड़ी मात्रा में एकत्रित पस को निकाला गया, जो कि-अनावेदक क्रमांक-1 की लापरवाही का षिकार होने से परिवादी के इलाज में लगभग 5,00,000-रूपये खर्च हुये और उसे चार माह से अधिक षारीरिक व मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ा, जो कि-दिनांक-28.11.2012 को पैसों के आभाव में परिवादी को उसके परिजनों द्वारा नागपुर से वापस लाकर सिवनी में पुन: उसका उपचार कराया जाता रहा और फिर चिकित्सकीय परामर्ष के उपरांत पुन: नागपुर के ष्योरटेक मल्टीस्पेषिलटी हासिपटल में दिनांक-08.12.2012 से 13.12.2012 तक भर्ती रखकर सघन उपचार किया गया, जो कि-सेप्टीसिमिया के कारण खून की कमी को देखते हुये, बड़ी मात्रा में खून भी चढ़ाया गया और नागपुर के डाक्टरों के अथक प्रयास से परिवादी की जान बचार्इ जा सकी और बड़ी मात्रा में दवा, गोली, इंजेक्षन आदि से परिवादी को षारीरिक कमजोरी आ गर्इ और अभी भी उसे नियमित ड्रेसिंग करानी पड़ रही है। और परिवादी का एक वर्श का षैक्षणिक-सत्र बर्बाद हो गया, जो कि-उक्त सब अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा किये गये गलत उपचार के कारण हुआ है और अनावेदकगण द्वारा की गर्इ लापरवाही, परिवादी के प्रति-की गर्इ सेवा में कमी है। परिवादी-पक्ष से अनावेदकों को दिनांक-13.02.2013 को जरिये अधिवक्ता पंजीकृत-डाक से नोटिस भी भेजे गये थे, जिनका कोर्इ जवाब अनावेदकों ने नहीं दिया, जो कि-सभी आधारों पर कुल-5,00,000-रूपये हर्जाना चाहा गया। 
(3)        अनावेदक क्रमांक-1 व 2 की ओर से पृथक-पृथक पर एक से पेष किये गये जवाब का सार यह है कि-दिनांक-27.10.2012 की षाम भर्ती किये जाते समय परिवादी की हालत चिंताजनक थी, वह अत्यंत कमजोर था, उसका वजन 47 किलोग्राम था और उसके परिजनों द्वारा बताया गया था कि-15 दिनों से दांहिने कूल्हे में सूजन होने से फोड़ा होने से निरंतर बुखार आ रहा है, जो कि-भर्ती करते समय परिवादी का ब्लडप्रेषर अत्यंत कम 9050 रहा है, जो कि-भर्ती के दौरान औसतन 3- 4 घण्टे के अंतराल में ब्लडप्रेषर नापा जाता रहा, जो औसतन सामान्य से कम स्तर का ही होना पाया गया, परिवादी के बुखार को अनावेदकों के द्वारा दूसरे-तीसरे दिन नियंत्रित कर लिया गया और जो अनेक दिनों से मल विसर्जन नहीं हो रहा था, उसका भी इलाज किया जाकर, उसे सामान्य स्तर पर लाया गया है और जांच में यह पाया गया था कि-जो फोड़ा दांहिने कूल्हे पर है, उसमें अत्यधिक पस जमा है और परिवादी को अत्यधिक पीड़ा हो रही थी, फोड़ा आंतरिक मुंह किये हुआ था, जिसे चीरा लगाने के लिए परिपक्व अवस्था में लाने हेतु संबंधित देवार्इयां दी गर्इं और तीन दिन बाद दिनांक-30.10.2012 को जब उक्त फोड़ा चीरा हेतु परिपक्व अवस्था में आया, तो चीरा लगाया जाकर, पस निकाला गया और परिवादी को एन्टीबायोटिक व दर्द निवारक दवायें दी गर्इं, जो कि-बिना पस निकाले फोड़े का इलाज संभव नहीं था और बिना चीरा लगाये पस निकाला जाना संभव नहीं था, जो कि-अनावेदकों के द्वारा, पस निकाले जाने के बाद परिवादी द्वारा दर्द में आराम होना बताया गया, जो कि-पस निकालने व दवार्इयां देने के पष्चात भी फोड़े के ठीक होने में कोर्इ प्रगति न होने पर, अनावेदकों ने, परिवादी के उक्त फोड़े से निकलने वाली पस की वास्तविक सिथति की जानकारी और पस का संक्रमण किन-किन अंगों में हो रहा है, इस हेतु फोड़े वाले स्थान का अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह परिवादी-पक्ष को दी थी और क्योंकि अल्ट्रासाउंड मषीन अनावेदकगण के अस्पताल में नहीं होने से परिवादी को अनावेदकगण द्वारा, एम्बुलेस उपलब्ध कराकर उनकी सुविधा अनुसार सिवनी दिनांक-31.10.2012 को भेजा था, ताकि अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद अगि्रम इलाज किया जा सके। जो कि-परिवादी के परिजनों द्वारा दिनांक-31.10.2012 को परिवादी को अल्ट्रासाउंड कराने सिवनी लाया गया, लेकिन दिनांक-01.11.2012 को अनावेदकों के अस्पताल में परिवादी को उसके परिजन, बिना अल्ट्रासाउंड कराये ही वापस लाये और अनावेदकगण से निवेदन कर परिवादी को डिस्चार्ज कराकर ले गये, जो कि-इलाज में अनावेदकगण द्वारा कोर्इ लापरवाही नहीं बरती गर्इ है और उचित व नियमानुसार षुल्क परिवादी से प्राप्त की गर्इ है, जो कि-अनावेदक के ख्याति प्राप्त हासिपटल की प्रतिश्ठा धूमिल करने के लिए परिवादी-पक्ष द्वारा जानबूझकर मिथ्या आरोप लगाये गये हैं, जबकि-परिवादी जब भर्ती किया गया, उसकी हालत से स्पश्ट है कि-वह भर्ती किये जाने के पूर्व से ही सेप्टीसिमिया से पीडि़त था, किन्तु बिना अल्ट्रासाउंड किये सिथति जानना मुमकिन नहीं होता, इसलिए परिवादी को अल्ट्रासाउंड की सलाह दी गर्इ थी, जिसे जानबूझकर परिवादी के परिजनों द्वारा नहीं कराया गया, परिवादी व उसके परिजनों ने परिवादी को अत्यधिक विलम्ब से भर्ती कराया जाकर घोर लापरवाही बरती है व स्वयं के कृत्यों व लापरवाही का झूठा आरोप अनावेदकों पर लगाया जा रहा है, जो कि-इलाज, अनावेदक क्रमांक-1 कुषल व अनुभवी चिकित्सक के द्वारा किया गया और अनावेदकों पर अनुचित दवाब डालने व दुर्भावना से मिथ्या व आधारहीन परिवाद प्रस्तुत किया गया है, जो सव्यय निरस्त किया जावे। 
(4)        मामले में निम्न विचारणीय प्रष्न यह है कि:-

        (अ)    क्या अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी के
            कूल्हे के फोड़ा की षल्य चिकित्सा व उपचार 
            बाबद चिकित्सकीय उपेक्षा की गर्इ, जिसके कारण,
            उक्त फोड़ा दूशित हुआ?
        (ब)    क्या परिवादी, अनावेदकगण से हर्जाना पाने का
            अधिकारी है?
        (स)    सहायता एवं व्यय?
                -:सकारण निष्कर्ष:-
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(अ) :-

(5)        उभयपक्ष के अभिवचनों में यह स्वीकृत तथ्य है कि-दांहिने कूल्हे में परिवादी को सूजन सहित फोड़ा होने और निरन्तर बुखार होने का आधार बताकर, परिवादी को अनावेदक क्रमांक-2 के अस्पताल में भर्ती किया गया था, जहां अनावेदक क्रमांक-1 ने परिवादी का परीक्षण किया था, जो कि-स्वयं परिवादी-पक्ष की ओर से अनावेदक के अस्पताल की डिस्चार्ज समरी पेष की गर्इ है, उसमें भी दो सप्ताह पूर्व से परिवादी को बुखार होने का इतिहास बताया जाना अनावेदक-पक्ष की ओर से पेष ओ0पी0डी0 पर्चा की प्रति प्रदर्ष आर-11 में भी उक्त का उल्लेख है और प्रदर्ष आर-1 के क्लीनिकल नोटस, प्रदर्ष आर-2 की डिस्चार्ज समरी, प्रदर्ष आर-3 की डाक्टर्स आर्डरषीट, प्रदर्ष आर-4 के तापमान रिचार्ज, प्रदर्ष आर-5 के मेडिसिन चार्ट, प्रदर्ष आर-6 की नर्सनोट, प्रदर्ष आर-9 की इनटैक आउटपुट व प्रदर्ष आर-7 का परिवादी के पिता से प्राप्त की गर्इ आपरेषन के लिए लिखित अनुमति व आपरेषन रिकार्ड के रूप में अनावेदक के अस्पताल में किये गये आपरेषन व इलाज के रिकार्ड का पूर्ण अभिलेख अनावेदक-पक्ष की ओर से जो पेष हुआ है, उससे यह दर्षित है कि- परिवादी को इलाज हेतु अनावेदक के अस्पताल में भर्ती किये जाने के समय व उसके बाद परिवादी को कोर्इ बुखार होने की सिथति नहीं रही है, परन्तु उसका रक्तचाप भर्ती किये जाने के समय से ही कम रहा है, जो दो-तीन दिन तक दवायें देने के बाद, 30 अक्टूबर-2012 को अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा कूल्हे के उक्त फोड़ा में इन्सीजर व ड्रेनिंग अर्थात चीरा लगाकर मवाद निकालने (आर्इ एण्ड डी) किया जाकर, ड्रेसिंग की गर्इ, इस बीच के इतने दिनों में जो मलअवरोध रोग था, वह भी दूर किया गया और आपरेषन के बाद कुछ समय के लिए रक्तचाप जो काफी कम था, वह सामान्य स्तर की ओर आना प्रारम्भ किया, पर षाम के पष्चात पुन: रक्तचाप की सिथति 9060 की ही रही और मरीज की सामान्य सिथति अच्छी न होना डाक्टर व नर्स के नोट में लिखा जाता रहा, जो कि- दिनांक-01.11.2012 की सुबह 8:00 बजे भी रक्तचाप की सिथति 9060 ही रही, जो प्रदर्ष आर-6 की नर्स नोट से स्पश्ट है। और दिनांक-31 अक्टूबर व 1 नवम्बर के डाक्टर के आर्डरषीट से भी मरीज की सामान्य सिथति में सुधार न रहा होना दर्षित है। तो दिनांक-31.10.2012 को परिवादी का, अनावेदक की अस्पताल के द्वारा ही पूरे समय नर्स नोट बनवाया जाना, यह अनावेदक के अस्पताल के पेष अभिलेखों से ही पुश्ट है और अनावेदकगण के अस्पमाल से ही परिवादी को एम्बुलेन्स, सिवनी भेजने के लिए उपलब्ध कराया जाना उभयपक्ष का स्वीकृत तथ्य है। 
(6)        स्वयं परिवादी-पक्ष की ओर से ही यह परिवाद में कहा गया है कि-एम्बुलेन्स से लखनादौन से सिवनी लाकर आषीर्वाद अस्पताल में सोनोग्राफी के बाद डाक्टर विनोद नावकर से परिवादी का परीक्षण कराया गया, परन्तु ऐसी सोनोग्राफी कराये जाने का अभिलेख व डाक्टर विनोद नावकर से परीक्षण कराये जाने का कोर्इ अभिलेख परिवादी-पक्ष से पेष नहीं, बलिक उसके पष्चात जिला चिकित्सालय, सिवनी में दिनांक-01.11.2012 से 02.11.2012 तक परिवादी के भर्ती रहे होने बाबद डिस्चार्ज टिकिट प्रदर्ष सी-23 परिवादी-पक्ष की ओर से पेष हुर्इ है, जो कि-परिवादी-पक्ष का ऐसा कथन नहीं है कि-परिवादी को सोनोग्राफी रिपोर्ट के साथ पुन: अनावेदक की अस्पताल वापस ले जाया गया। और स्वयं परिवादी के पिता द्वारा, परिवादी को स्वेच्छा से अनावेदक की अस्पताल से डिस्चार्ज कराया जाना विवादित नहीं, यह प्रदर्ष आर-12 के पत्र से भी पुश्ट है, जो कि- अनावेदकगण के चिकित्सालय द्वारा परिवादी के पेट का एक्सरे और सोनोग्राफी (यू0एस0जी0) कराये जाने की सलाह दिया जाना जो प्रदर्ष सी-27 (आर-2) की डिस्चार्ज समरी में उल्लेख है, वह इससे भी सही होना दर्षित है, क्योंकि परिवाद में भी आषीर्वाद अस्पताल लाकर, सोनोग्राफी कराने के बाद डाक्टर विनोद नावकर से परीक्षण कराने की कहानी परिवादी-पक्ष द्वारा दर्षार्इ गर्इ है। 
(7)        तब बहुत ही स्पश्ट है कि-सोनोग्राफी की कोर्इ रिपोर्ट परिवादी-पक्ष द्वारा ले जाकर अनावेदक-पक्ष को पेष नहीं की गर्इ, बलिक परिवादी को स्वेच्छा से डिस्चार्ज करा लिया गया और जिला चिकित्सालय, सिवनी में एक दिन भर्ती रहने पर भी मेडिकल कालेज के लिए जब रिफर कर दिया गया, जैसा प्रदर्ष सी-23 की डिस्चार्ज टिकिट से प्रकट है। 
(8)        तब परिवादी को उसके परिजनों द्वारा ष्योरटेक मल्टीस्पेषिलटी हासिपटल, नागपुर ले जाकर, इलाज के लिए भर्ती किया जाना और वहां पुन: आपरेषन व डेनिंग किये जाने और विभिन्न रक्त व पैथालाजी की जांच व दवा एन्टीबायोटिक व अन्य दवा दिये जाने और फिर दिनांक-28.11.2012 को कुछ समय के लिए डिस्चार्ज किया जाना प्रदर्ष सी-44 के परिवादी द्वारा पेष ओरिजनल डिस्चार्ज कार्ड से स्पश्ट हो रहा है, जो कि- प्रदर्ष सी-26बी की रोगी कल्याण समिति रसीद और प्रदर्ष सी-24 व सी- 26ए की प्रायवेट वार्ड के किराया की रसीदों की पेष प्रतियों से यह भी स्पश्ट है कि-दिनांक-29.11.2012 से 07.12.2012 तक परिवादी को फिर जिला चिकित्सालय, सिवनी में मेडिकल देखरेख में रखा गया और ष्योरटेक अस्पताल, नागपुर के डिस्चार्ज कार्ड प्रदर्ष सी-40 से यह भी पुश्ट है कि- पुन: परिवादी उक्त अस्पताल में दिनांक-08.12.2012 से 13.12.2012 तक इलाज के लिए भर्ती रहा है और उक्त इलाज कराने के पष्चात, पुन: जिला चिकित्सालय, सिवनी में परिवादी को लाया जाकर, दिनांक-13.12.2012 से 12.01.2013 तक भर्ती रखा जाना प्रदर्ष सी-16 के जिला चिकित्सालय के डिस्चार्ज टिकिट व सी-17 के रूमरेन्ट रसीद से स्पश्ट है।
(9)        और परिवादी को फिर आराम हो जाने के पष्चात दिनांक-05.02.2013 को पुन: ष्योरटेक अस्पताल, नागपुर के चिकित्सक को दिखाया जाना प्रदर्ष सी-39 के इलाज पर्चा से प्रकट है, जिसमें डाक्टर द्वारा एक माह के आराम की सलाह दी गर्इ और पुन: दिनांक-28.06.2013 को उक्त ष्योरटेक अस्पताल के चिकित्सक को दिखाया जाना प्रदर्ष सी-54 के इलाज पर्चे से स्पश्ट है, जिसमें और परीक्षण कराये जाने की सलाह देते हुये दवायें लेख की गर्इं और प्रदर्ष सी-52 के डिस्चार्ज टिकिट से स्पश्ट है कि-दिनांक-5 जुलार्इ-2013 को परिवादी को पुन: अस्पताल में भर्ती किया गया, जहां उसे भर्ती किया जाकर, पुन: जांच, इलाज किया गया और अगले दिन 6 जुलार्इ-2013 को एक सप्ताह पष्चात दिखाने की सलाह के साथ डिस्चार्ज किया गया, जो कि-दिनांक-27.07.2013 को पुन: परिवादी को ष्योरटेक अस्पताल के चिकित्सक को दिखाया जाना प्रदर्ष सी-48 के इलाज पर्चे से स्पश्ट है। 
(10)        उक्त इलाज के चिकित्सकीय अभिलेखों से यह दर्षित हो रहा है कि-वास्तव में जो परिवादी को फोड़ा हुआ था, वह साधारण फोड़ा नहीं था, बलिक वह दूशित फोड़ा रहा है, जो कि-पुटठे व कमर के क्षेत्र में अन्दर पनपता रहा है, जो कि-दांहिने पुटठे के बाहरी क्षेत्र में भी जब उसकी लालिमा दिखने लगी, दर्द रहने लगा और बुखार आने लगा, उसके भी दो सप्ताह पष्चात परिवादी उसका इलाज कराने अनावेदक की अस्पताल में गया था, जो कि-अनावेदक-पक्ष की ओर से प्रदर्ष आर-1 से आर-11 तक के परिवादी के इलाज से संबंधी अस्पताल का जो अभिलेख पेष किया गया है, उससे भी यह दर्षित है कि-दिनांक-30.11.2012 को जब परिवादी के पुटठे के उक्त फोड़ा को चीरा लगाकर जो मवाद निकाला गया, वह बदबूदार रहा है। यह भी दर्षित है कि-उक्त फोड़े का इंफेक्षन लगातार काफी पूर्व से बने रहने के कारण ही परिवादी की स्वास्थ्य की सिथति अच्छी नहीं रही है उसका रक्तचाप भी सामान्य से काफी कम लगातार रहा है, तो परिवादी-पक्ष के इस कथानक हेतु कोर्इ आधार दर्षित नहीं कि-अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा फोड़ा पके बिना ही, कच्चे फोड़ा में चीरा लगा दिया गया।
(11)        यह भी स्पश्ट है कि-दिनांक-30.11.2012 को परिवादी के उक्त दांहिने पुटठे के फोड़ा में चीरा लगाकर मवाद निकाल देने के पष्चात ही एन्टीबायोटिक दवायें देने के बावजूद, सुधार की सिथति न दिखने पर, अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा अन्य भीतरी अंगों में भी पस के फैलाव रहे होने की आषंका के कारण ही सोनोग्राफी करवाने की सलाह दी गर्इ थी और स्वयं परिवादी-पक्ष द्वारा आपरेषन के एक दिन बाद ही अनावेदक की अस्पताल से परिवादी को भीतरी अंगों में भी इन्फेक्षन के फैलाव की गंभीर सिथति को देखते हुये, डिस्चार्ज कराकर, जिला अस्पताल, सिवनी लाया गया, जहां से उसी दिन परिवादी को बड़ी चिकित्सा केन्द्र मेडिकल कालेज के लिए रिफर भी किया गया। और दिनांक-02.11.2012 को ष्योरटेक अस्पताल, नागपुर, जहां परीक्षण और इलाज की बेहतर सुविधायें रहीं हैं, वहां के चिकित्सक द्वारा भी उक्त फोड़ा का पुन: आपरेषन व मवाद निकालकर सफार्इ की गर्इ और उसके बावजूद भी उसे 27 दिन तक लगातार भर्ती रखना पड़ा, जो कि-प्रदर्ष सी-44 के ओरिजनल डिस्चार्ज कार्ड में एसवियोरेक्टल व पेलीरेक्टल फोड़ा रहा होना और उसमें सेप्टीसिमिया रहा होने का मत व्यक्त किया गया है।
(12)        तो अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी के उक्त फोड़ा का चीरा लगाकर आपरेषन करने के बाद ही दो दिन में सेप्टीसिमिया हो गया हो, ऐसा सामान्यत: संभव प्रतीत नहीं होता। स्पश्ट है कि-उक्त फोड़ा मात्र बाहरी फोड़ा नहीं रहा है, बलिक फोड़े की जड़ अन्दर रही है, जिसका संक्रमण अंदरूनी भाग में फैला रहा है। अभिलेख से यह भी स्पश्ट है कि- ष्योरटेक अस्पताल में भी आपरेषन व इलाज के बाद भी कर्इ बार निषिचत अंतरालों में परिवादी को भर्ती करना पड़ा और मवाद का निर्माण व रिसाव उसके बाद भी 4-6 महिने तक के इलाज में होता रहा और 6-8 माह तक भी एन्टीबायोटिक दवायें देने के बावजूद, बार-बार इन्फेक्षन बढ़ जाता रहा है, जो प्रदर्ष सी-48 के पर्चे से भी दर्षित है।
(13)        जब-तक कि-परिसिथतियां स्वयं प्रमाण के सिद्धांत बाबद ऐसे तथ्य दर्षित हों, जिनके आधार पर चिकित्सक की उपेक्षा की अवधारणा की जा सकती हो, तब-तक अनावेदक-पक्ष पर कोर्इ उसके भाग में उपेक्षा न रहे होने का प्रमाण पेष करने का दायित्व होना संभव नहीं, जो कि-प्रस्तुत मामले में परिसिथतियों के प्रमाण के सिद्धांत बाबद कोर्इ सिथतियां नहीं हैं। और इसलिए परिवादी-पक्ष को ही यह प्रमाणित करना था कि-अनावेदक ने, परिवादी के प्रति-परिवादी के फोड़े में चीरा लगाकर, आपरेषन करने बाबद कोर्इ चिकित्सकीय उपेक्षा किया।
(14)        इस बाबद जहां यह स्पश्ट है कि-वास्तव में फोड़ा पक चुका था, उसके अन्दर मवाद था और इसलिए चीरा लगाकर फोड़े का मवाद निकाल देना और एन्टीबायोटिक दवाओं से इलाज करना मेडिकल सार्इंस की सामान्य प्रचलित मान्य प्रथा होना अनावेदक-पक्ष से जो कहा गया है, उससे इतर अनावेदक द्वारा किया गया इलाज किसी भी तरह अनुचित रहा हो, सदभाविक न रहा हो, ऐसा दर्षाने बाबद परिवादी-पक्ष की ओर से न तो कोर्इ विषेशज्ञ की राय या विषेशज्ञ की साक्ष्य पेष की गर्इ, न ही कोर्इ चिकित्सकीय साहित्य, अनावेदक द्वारा किये इलाज को अमानक दर्षाने बाबद पेष किया गया है और ष्योरटेक अस्पताल के इलाज का जो अभिलेख परिवादी-पक्ष की ओर से पेष हुआ है, उससे भी यह दर्षित नहीं होता है कि-अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा कोर्इ गलत चिकित्सा पद्धति या प्रक्रिया अपनार्इ गर्इ, तो मात्र परिवाद में लांछन लगा देने व अनावेदक के द्वारा किये गये चिकित्सकीय उपेक्षा का अनावेदक पर लगाया गया लांछन स्थापित नहीं होता है, जो कि-किसी भी चिकित्सक की षल्य क्रिया या इलाज से वांछित सफलता या लाभ न मिल पाना किसी भी रूप में चिकित्सकीय उपेक्षा का प्रमाण नहीं है, तो परिवादी यह प्रमाणित कर पाने में असफल रहा है कि-अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी के फोड़े में चीरा लगाकर आपरेषन करने के फलस्वरूप, उक्त फोड़ा दूशित हुआ था और इसलिए अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी के प्रति कोर्इ चिकित्सकीय उपेक्षा किया जाना स्थापित नहीं पाया जाता है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ को निश्कर्शित किया जाता है।
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(ब):- 

(15)        क्योंकि अनावेदक क्रमांक-1 के द्वारा, परिवादी के प्रति-कोर्इ चिकित्सकीय उपेक्षा किया जाना प्रमाणित नहीं, जबकि-आपरेषन पष्चात कोर्इ उचित देखरेख की उपेक्षा का लांछन नहीं है, तो परिवादी, अनावेदकगण से कोर्इ हर्जाना पाने का अधिकारी नहीं है। तदानुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'ब को निश्कर्शित किया जाता है।    
        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-(स):-

        
(16)        विचारणीय प्रष्न क्रमांक-'अ और 'ब के निश्कर्शो के आधार पर, प्रस्तुत परिवाद स्वीकार योग्य न होने से निरस्त किया जाता है। पक्षकार अपना-अपना कार्यवाही-व्यय वहन करेंगे।
            
   मैं सहमत हूँ।                              मेरे द्वारा लिखवाया गया।         

(श्री वीरेन्द्र सिंह राजपूत)                          (रवि कुमार नायक)
      सदस्य                                                    अध्यक्ष
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