Rajasthan

Jhunjhunun

220/2013

Vikash Kumar - Complainant(s)

Versus

Prabandhk Aatmaram Vinod Kumar - Opp.Party(s)

Kanchan Singh

01 Mar 2016

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 220/2013
 
1. Vikash Kumar
Jhunjhunu
...........Complainant(s)
Versus
1. Prabandhk Aatmaram Vinod Kumar
Jhunjhunu
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE Sh sukhpalBundel PRESIDENT
 HON'BLE MS. Ms. Sabana Farooqui MEMBER
 HON'BLE MR. Mr. Ajay Kumar Mishra MEMBER
 
For the Complainant:Kanchan Singh, Advocate
For the Opp. Party: Kamles Singh, Advocate
ORDER

              जिला फोरम उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, झुन्झुनू (राज0)
              परिवाद संख्या - 199/12
     दिनांक 15.05.14 को पुनः नम्बर पर दर्ज किया गया।

 

    समक्ष:-    1. श्री सुखपाल बुन्देल, अध्यक्ष।     
            2. श्रीमती शबाना फारूकी, सदस्या।
            3. श्री अजय कुमार मिश्रा, सदस्य।


श्रीमती रमेष देवी पत्नी स्व0 बुद्धराम उम्र 50 साल जाति यादव निवासी सिमनी वाया कलाखरी तहसील बुहाना जिला झुंझुनू (राज0)                     - परिवादिया 
                बनाम
भारतीय जीवन बीमा निगम जरिये शखा प्रबंधक, चिड़ावा तहसील चिड़ावा जिला, झुंझुनू।                                                      - विपक्षी
          परिवाद पत्र अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम 1986 

उपस्थित:-
1.    श्री फूलचंद सैनी, अधिवक्ता -परिवादिया की ओर से।
2.    श्री लालबहादुर जैन अधिवक्ता -विपक्षी की ओर से।

                  - निर्णय -              दिनांकः 02.03..2016 
       परिवादिया ने यह परिवाद पत्र मंच के समक्ष पेष किया, जिसे सर्व प्रथम दिनांक 22.05.2012 को संस्थित किया गया। परिवादपत्र में इस मंच के द्वारा दिनांक 15.06.2012 को पारित पूर्व आदेष के विरूद्ध अपील होने पर माननीय राज्य आयोग द्वारा प्रकरण को रिमाण्ड किया जाने पर दिनांक 15.05.2014 को पुनः नम्बर पर लिया गया।
       संक्षेप में परिवाद पत्र के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादिया ने इस मंच के समक्ष एक परिवाद संख्या 199/12 पेष किया था। उक्त परिवाद में दिनांक15.06.2012 को  इस मंच द्वारा पूर्व में निम्न आदेष पारित किया गया:- 
   “श्प्रस्तुत प्रकरण में यह स्वीकृत तथ्य है कि परिवादिया के पुत्र अनिल यादव ने विपक्षी से बीमा पोलिसी ली थी, बीमाधारी अनिल यादव की मृत्यु हो गई, विपक्षी, द्वारा बीमा पोलिसी का बीमाधन का भुगतान परिवादिया को कर दिया गया। परन्तु विपक्षी बीमा कम्पनी ने बीमा पोलिसी का दुर्घटना हित लाभ व बोनस नहीं दिया जो दिलवाया जाना युक्तियुक्त एवं उचित है। अतः विपक्षी बीमा कम्पनी को आदेषित किया जाता है कि बीमाधारी/मृतक अनिल यादव की बीमा पोलिसी पर देय दुर्घटना हित लाभ जो भी बनता हो एवं बोनस यदि कोई देय हो, तो दुर्घटना हित लाभ एवं बोनस की राषि का एक माह में परिवादिया को भुगतान करे। परिवादिया विपक्षी से 7500/-रूपये मानसिक एवं शारीरिक संताप व परिवाद व्यय के प्राप्त करेगी।’’ 

        उक्त आदेष के विरूद्ध विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा माननीय राज्य आयोग में अपील संख्या 900/2012 पेष की गई। माननीय राज्य आयोग द्वारा दिनांक        18.03.2014 को अपील में निम्न आदेष पारित किया: -
       “ परिणामतः उपरोक्त विवेचन के आधार पर अपीलार्थी बीमा निगम की अपील स्वीकार कर विद्वान् जिला मंच का आलौच्य निर्णय दिनांकित 15.06.2012 अपास्त किया जाकर पत्रावली विद्वान् जिला मंच को प्रतिप्रेषित कर यह आदेष दिया जाता है कि वह विपक्षी का जवाब लेने के बाद मामले को गुणावगुण पर निस्तारित करे, चूंकि प्रत्यर्थी हमारे समक्ष उपस्थित नहीं हुये हैं, इसलिये विद्वान् जिला मंच प्रत्यर्थी/परिवादिया को उपस्थिति के लिये भी नोटिस जारी करेगे। अपीलार्थी जिला मंच के समक्ष दिनांक 21.04.2014 को उपस्थित हो।”

 ्      माननीय राज्य आयोग, जयपुर द्वारा उक्त आदेष पारित किये जाने के बाद रिमाण्ड होकर यह पत्रावली इस मंच के समक्ष पेष हुई । उभयपक्षों को सूचित किया गया तथा उभयपक्षकारान के उपस्थित होने पर विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से जवाब पेष हुआ । उभयपक्ष की बहस सुनी गई।  
 विद्वान् अधिवक्ता परिवादिया ने परिवाद पत्र मे अंकित तथ्यों को उजागर करते हुए  बहस के दौरान यह कथन किया है कि परिवादिया के पुत्र अनिल यादव ने विपक्षी भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय, चिड़ावा से दिनांक 24.09.2004 को एक पोलिसी संख्या 194758257 तालिका संख्या 93-25 बीमा राषि एक  लाख रूपये, वार्षिक किष्त राषि 5026/-रूपये नगद जमा करवाकर ली थी। उक्त पालिसी का बीमाधन एक लाख रूपये का  पालिसी बोण्ड जारी किया गया । अनिल यादव की नोमिनी परिवादिया श्रीमती रमेष देवी है। अनिल यादव की दिनांक 28.04.2010 को गोद बलावा के पास बने सर्विस स्टेषन के नजदीक बिजली का कार्य करने से बिजली के पोल पर काम करते समय अचानक करंट लगने से मृत्यु हो गई।  दुर्घटना के संबंध में पुलिस थाना सदर, नारनोल (हरियाणा) में एफ.आई.आर. संख्या 84/10, दर्ज करवाई गई। परिवादिया ने अपने पुत्र का मृत्यु प्रमाण पत्र, बीमा पोलिसी बोण्ड मय दस्तावेजात लिखित प्रार्थना पत्र के साथ विपक्षी के कार्यालय में पेष किया । विपक्षी बीमा कम्पनी के शाखा प्रबंधक ने परिवादिया को 2,27,000/-रूपये का चैक भेजने का आष्वासन दिया। विपक्षी की ओर से परिवादिया को 1,27,000/-रूपये का चैक भेजा गया जबकि पोलिसी बोण्ड की शर्तो के अनुसार क्लेम दावा बीमाधन एक लाख रूपये का डबल दुर्घटना हित़बोनस मिलता है। परिवादिया ने पुनः माह अप्रेल,2012 में विपक्षी बीमा कम्पनी के कार्यालय में सम्पर्क किया तो विपक्षी ने परिवादिया को भुगतान करने से साफ-साफ इन्कार कर दिया। जो विपक्षी की सेवा में कमी है।
अन्त में विद्वान् अधिवक्ता परिवादिया ने अपना परिवाद पत्र मय खर्चा स्वीकार कर विपक्षी से 1,00,000/-रूपये बीमा राषि तथा मानसिक,  शारीरिक परेषानी के लिये  50,000/रुपये एवं परिवाद व्यय के 5000/-रूपये दिलाये जाने का निवेदन किया।  
विद्धान् अधिवक्ता विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपने जवाब के अनुसार बहस के दौरान परिवादिया के पुत्र स्व0 अनिल यादव द्वारा विपक्षी बीमा निगम से एक लाख रूपये की एक बीमा पालिसी संख्या 194758257 वार्षिक नगद भुगतान योजना किष्त राषि 5026/-रूपये दिनांक 24.09.2004 को लिया जाना तथा परिवादिया को अपने अवयस्क पुत्र अनिल यादव की नोमिनी होना एवं उक्त पालिसी के पेटे परिवादिया को 1,27,000/-रूपये का भुगतान प्राप्त हो जाना विवादित नहीं होना स्वीकार करतेे हुये कथन किया है कि बीमा पोलिसी की शर्तो के अनुसार दुर्घटना हित लाभ लेने के लिये परिवादिया को एक रूपया प्रति हजार अतिरिक्त प्रीमियम देना था, जो विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा नहीं लिया गया है। परिवादिया का पुत्र मृतक अनिल यादव पालिसी लेने के दिन अवयस्क था। इसलिये विपक्षी निगम द्वारा मृतक अवयस्क होने के कारण एवं अतिरिक्त प्रीमियम नहीं लेने के कारण उक्त पोलिसी में दुर्घटना हित लाभ देय नहीं था। 
       विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से अपने जवाब में यह भी कथन किया गया है कि बीमा पोलिसी लेते समय बीमित की आयु 14 वर्ष थी। बीमाकंन निर्णय OR Cl. 10  (A)  के साथ पोलिसी जारी की गई थी। विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा उक्त पोलिसी दुर्घटना हित लाभ के साथ जारी नहीं की गई थी तथा न ही दुर्घटना का प्रीमियम पोलिसी धारक से लिया गया न ही बीमित ने अपने जीवनकाल में पोलिसी में दुर्घटना हित लाभ जोड़ने के लिये आवेदन प्रस्तुत किया। इसलिये उक्त बीमा पालिसी का नियमानुसार दुर्घटना हित लाभ सहित भुगतान नहीं किया जा सकता। परिवादिया द्वारा बिना विवाद के राषि प्राप्त कर पोलिसी बोण्ड सरेण्डर कर दिया गया है । इसलिये परिवादिया विपक्षी बीमा कम्पनी की उपभोक्ता नहीं होने से कोई अनुतोष प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है।
      
अन्त में विपक्षी निगम ने परिवादिया का परिवाद पत्र मय खर्चा खारिज किये जाने का निवेदन किया। 
उभयपक्ष की बहस सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
प्रस्तुत प्रकरण के विवरण से यह स्पष्ट हुआ है कि परिवादिया के पुत्र स्व0 अनिल यादव द्वारा विपक्षी बीमा निगम से एक लाख रूपये की एक बीमा पालिसी संख्या 194758257 वार्षिक नगद भुगतान योजना के अंतर्गत दिनांक 24.09.2004 को ली गई थी। परिवादिया अपने अवयस्क पुत्र अनिल यादव की नोमिनी थी। बीमाधारी अनिल यादव की मृत्यु होने पर विपक्षी द्वारा उक्त पालिसी के पेटे परिवादिया को 1,27,000/-रूपये का भुगतान किया जा चुका है। 
बीमाधारी अनिल यादव पालिसी लेने के दिन तथा प्रस्ताव की दिनांक के दिन अवयस्क था। बीमा कवरनोट के अनुसार उक्त पालिसी में अवयस्क को दुर्घटना हित लाभ देय नही था। दुर्घटना हित लाभ लेने के लिये पाॅालिसी की शर्तो के अनुसार एक रूपया प्रति हजार अतिरिक्त प्रीमियम देना था, जो बीमा कम्पनी द्वारा नहीं लिया गया क्योंकि पाॅलिसी जारी करते वक्त बीमाधारी अवयस्क था। बीमा पालिसी लेते समय बीमित की आयु 14 वर्ष दर्षाइ गई है। बीमाकंन निर्णय OR Cl. 10 (A)  के साथ पाॅलिसी जारी की गई थी। विपक्षी द्वारा पाॅलिसी दुर्घटना हित लाभ के साथ जारी नहीं की गई थी।
पत्रावली के अवलोकन से यह भी स्पष्ट होता है कि परिवादिया की ओर से ऐसा कोई प्रलेख पत्रावली में पेष नहीं किया गया है जिससे इस बात का निर्धारण किया जा सके कि पालिसी के दौरान बीमाधारी की मृत्यु हो जाने पर उसे दुगुनी राषि का भुगतान किया जावेगा । परिवाद पत्र में परिवादिया द्वारा (DAB) डबल दुर्घटना बेनिफिट की रिलिफ नहीं ली गई है। परिवादपत्र में संलग्न पाॅलीसी बोण्ड की फोटो प्रति में भी इस आषय का कोई नोट या मुहर नहीं लगी हुई है, जिससे यह माना जा सके कि बीमाधारी की बीमा परिपक्कव होने से पूर्व मृत्यु की स्थिति में पालिसी का दुगुना भुगतान किया जावेगा। विपक्षी बीमा कम्पनी द्धारा पालिसी संख्या 194758257 के पेटे परिवादिया को 1,27,000/-रूपये का भुगतान किया जा चुका है, जिसे परिवादिया ने अपने परिवादपत्र में भी स्वीकार किया है।  परिवादिया किस आधार पर उक्त पालिसी की डबल राषि का भुगतान प्राप्त करना चाहती है, इस संबंध में परिवादिया की ओर से कोई युक्तियुक्त स्पष्टीकरण पेष नहीं किया गया है। 
उपरोक्त विवेचन के फलस्वरूप निष्कर्ष यह रहता है कि पालिसी की शर्तो के अनुसार 1,27,000/-रूपये की राषि परिवादिया, विपक्षी बीमा कम्पनी से बतौर मृत्यु दावा स्व. अनिल यादव क्षतिपूर्ति के रूप में प्राप्त करने की अधिकारी है, जो विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा परिवादिया को अदा की जा चुकी है। इस प्रकार अब इस प्रकरण में कोई विवाद शेष नहीं रहता है। 
अतः परिवादिया की ओर से प्रस्तुत यह परिवाद पत्र सारहीन होने से खारिज किए जाने योग्य है, जो एतद्द्वारा खारिज किया जाता है।
           पक्षकारान खर्चा मुकदमा अपना-अपना वहन करेगें।
 निर्णय आज दिनांक 02.03.2016 को लिखाया जाकर मंच द्धारा सुनाया गया। 
      

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


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[HON'BLE MR. JUSTICE Sh sukhpalBundel]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MS. Ms. Sabana Farooqui]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. Mr. Ajay Kumar Mishra]
MEMBER

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