Rajasthan

Jhunjhunun

591/2011

Shisharam - Complainant(s)

Versus

Prabandhak Shakha india bulls ltd. - Opp.Party(s)

Subhas Sarma

07 Aug 2018

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 591/2011
( Date of Filing : 29 Nov 2011 )
 
1. Shisharam
Khetari, Jhunjhunu
...........Complainant(s)
Versus
1. Prabandhak Shakha india bulls ltd.
Jhunjhunu
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Mahendra Sharma PRESIDENT
  Dr.Pradeep Kumar Joshi MEMBER
 
For the Complainant:Subhas Sarma, Advocate
For the Opp. Party: Manoj Kumar Varma, Advocate
Dated : 07 Aug 2018
Final Order / Judgement

                 जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, झुन्झुनू (राज0)
     परिवाद संख्या - 591/11, पुनः दर्ज दिनांक 18.06.2014

अध्यक्ष               -                  महेन्द्र शर्मा
सदस्य               -                  डा0 प्रदीप कुमार जोशी 
         
शीशराम पुत्र महावीर प्रसाद जाति सैनी बावड़ी की ढाणी (बनवास) तहसील खेतड़ी जिला झुंझुनू (राज0)                                 - प्रार्थी/परिवादी।
                        बनाम
1.    प्रबंधक,शाखा इण्डिया बूल्स लि0 गुढा मोड़, झुंझुनू
2.    मुख्य प्रबंधक, इण्डिया बूल्स लि0 इण्डिया बूल्स हाउस, 446-451 उद्योग विहार फेज-ट गुड़गांव हरियाणा।                            - अप्रार्थी/विपक्षीगण।    

        परिवाद पत्र अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम 1986 

उपस्थित:-
1.    श्री फूलचंद सैनी, एडवोकेट - वास्ते प्रार्थी/परिवादी ।
2.    श्री मनोज कुमार वर्मा, एडवोकेट - वास्ते अप्रार्थी/विपक्षी ।

                            - निर्णय -             दिनांक 06.08.2018
 प्रार्थी/परिवादी की ओर से दिनांक 08.11.2011 को प्रस्तुत परिवाद अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, (जिसे इस निर्णय में आगे अधिनियम कहा जावेगा) के संक्षिप्त तथ्य इस प्रकार है कि उसने परिवाद के चरण संख्या 1 में वर्णित वाहन फरवरी,2008 में गुलझारीलाल से अपने परिवार के जीवन यापन के लिये खरीदा था। तत्समय उक्त वाहन पर विपक्षी के यहां से वित्तिय सहायता ली गई थी और परिवादी ने विपक्षी से दिनांक 20.02.2008 को पुनः फाइनेंस कराया, जिस पर विपक्षी संख्या 1 ने परिवादी को संबंधित वाहन पर 6,89,843/-रूपये ऋण स्वीकृत किया। इकरार की शर्तो के अनुसार परिवादी लगातार ऋण की अदायगी करता रहा है। अंत में परिवादी को अदेय प्रमाण पत्र की आवश्यकता होने पर उसने दिनांक 19.08.2011 को 95,000/-रूपये जमा करवाकर रसीद प्राप्त करली तथा परिवादी को सात दिन में अदेय प्रमाण पत्र देने का आश्वासन दिया गया, लेकिन सितम्बर, 2011 तक उसे चक्कर लगवाये गये। इस संबंध में उसे बताया कि परिवादी ने दूसरे वाहन की गारंटी दे रखी है, जिस बाबत लगभग छः लाख रूपये बकाया है। परिवादी के अनुसार उसने एक ट्रक की गारंटी ली थी, जिसकी राशि अदा हो चुकी है। ऋण के समय परिवादी से 100/-रूपये के तीन स्टाम्प पर हस्ताक्षर व 18 खाली चैक पर हस्ताक्षर करवाये गये थे जो भी उसे नहीं लौटाये गये हैं और सितम्बर,2011 से उसे ट्रक जप्त करने की धमकी दी जा रही है। इन तथ्यों के परिपेक्ष में परिवादी ने विपक्षीगण से अदेय प्रमाण पत्र, खाली स्टाम्प, 18 खाली चैक व आवश्यक कागजत एवं खर्चे पेटे 50,000/-रूपये मानसिक पीडा के लिये 20,000/-रूपये, आर्थिक नुकसान पेटे 50,000/-रूपये तथा परिवाद व्यय पेटे 3300/-रूपये विपक्षी से दिलाये जाने की प्रार्थना की है।
विपक्षीगण की ओर से दिनांक 21.02.2012 को जवाब प्रस्तुत किया गया था। उसके पश्चात पक्षकारान को सुनकर हमारे पूर्वाधिकारी द्वारा दिनांक 13.02.2012 के आदेश से परिवादी का परिवाद खारिज कर दिया।
उक्त आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत अपील माननीय राज्य आयोग द्वारा स्वीकार कर मामला पुनः प्रेषित किया गया। जिसके पश्चात दिनांक 11.02.2016 केा विपक्षीगण की ओर से संशोधित जवाब रिकोर्ड पर पर लिये जाने हेतु आवेदन इस आशय का पेश किया कि हमारे पूर्वाधिकारी द्वारा पारित आदेश दिनांक 13.02.2012 के पश्चात पक्षकारान के बीच विवाद के संबंध में अंतिम रूप से पंचाट पारित हो चुका है, जिसकी इजराय कार्यवाही लम्बित है। अतः इन पश्चातवर्ती तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत जवाब रिकोर्ड पर लिया जावे।
उक्त आवेदन के साथ संशेधित जवाब पेश कर प्रारंभिक आपति इस आशय की पेश की गई है कि माननीय राज्य आयोग द्वारा अपील संख्या 852/2008 में पारित निर्णय दिनांक 13.07.2009 के अनुसार मध्यस्थ कार्यवाही शुरू होने एवं अवार्ड पारित होने की स्थिति में जिला मंच को परिवाद की सुनवाई का अधिकार नहीं है, जो निर्णय माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा पुनरीक्षण याचिका संख्या 3586/2009 में सम्पुष्ट किया जा चुका है। यह भी आपति ली गई है कि पक्षकारान के बीच निष्पादित इकरार में इनके बीच के विवाद की सुनवाई दिल्ली स्थित न्यायालय में ही हो सकती है। वाणिज्यक प्रयोजन हेतु क्रय किये गये वाहन के संबंध में जिला उपभोक्ता मंच को सुनवाई का अधिकार नहीं है। परिवादी द्वारा संशोधित जवाब के चरण संख्या 4 में वर्णित ऋण खाते बाबत श्री महेश कुमार गोदारा के पक्ष में गारंटी दी थी, जिस बाबत संबंधित पंच महोदय ने दिनांक 13.06.2012 को अर्थात बकाया राशि परिवादी व उक्त महेश कुमार गोदारा की चल व अचल सम्पति से वसूल करने का विपक्षीगण को अधिकारी माना है। माननीय राज्य आयोग ने अपील संख्या 1344/2008 में दिनांक 11.06.2012 को यह निर्णय पारित किया कि यदि गारंटर द्वारा स्वयं द्वारा लिये गये ऋण की पूर्ण राशि अदा कर भी दी हो, परन्तु मूल ऋणी की राशि बकाया हो, तो ऐसी स्थिति में गारंटर का अदेय प्रमाण पत्र रोकने का वित्तिय संस्था को अधिकार है। इन्हीं तथ्यों को मदवार जवाब में दोहराते हुये परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने की प्रार्थना की गई है। 
विपक्षीगण की ओर से जवाब में वर्णित उपरोक्त तथ्यों के परिपेक्ष में लिखित बहस भी दिनांक 10.01.2017 को प्रस्तुत की गई है। 
उभयपक्षों को सुना गया एवं पत्रावली का परिशीलन किया गया। 
विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत जवाब व जवाब के समर्थन में संलग्न प्रलेखों क परिशीलन से यह प्रकट है कि परिवादी ने विपक्षी के समक्ष महेश कुमार गोदारा के पक्ष में उसके द्वारा लिये गये ऋण बाबत गारंटी दी थी और संबंधित विद्वान् मध्यस्थ द्वारा दिनांक 13.06.2012 को उक्त महेश कुमार गोदारा एवं परिवादी के विरूद्ध पंचाट पारित किया जा चुका है, जिस संबंध में इजराय कार्यवाही विद्वान् जिला न्यायाधीश, झुंझुनू के समक्ष विचाराधीन है।
माननीय राष्ट्रीय आयोग एवं माननीय राज्य आयोग द्वारा प्रतिपादित न्यायिक निर्णयों में प्रतिपादित सिद्धांतों के अनुसार मध्यस्थम एवं सुलह अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही शुरू होने व अवार्ड पारित कर दिये जाने के पश्चात किसी उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता के बीच विवाद जिला उपभोक्ता प्रतितोष मंच के समक्ष पोषणीय नहीं है। मौजूदा मामले में उपर अंकितनुसार महेश कुमार गोदारा एवं उसके गारंटर के रूप में प्रार्थी के विरूद्ध सक्षम मध्यस्थ द्वारा अवार्ड पारित किया जा चुका है, जिसके विरूद्ध इजराय कार्यवाही लम्बित होने बाबत भी परिवाद के जवाब में वर्णित तथ्यों का परिवादी की ओर से कोई खण्डन नहीं किया गया है। अतः विपक्षीगण के इस अभिकथन को न मानने का कोई कारण नहीं है । 
उपरोक्त विवेचन के फलस्वरूप उक्त श्री महेश कुमार गोदारा व परिवादी के विरूद्ध पारित पंचाट के परिपेक्ष में, परिवादी के मौजूदा विवाद पर सुनवाई का अधिकार इस मंच को नहीं है। 
                                                                  आदेश   
        अतः प्रार्थी/परिवादी का यह परिवाद विरूद्ध अप्रार्थी/विपक्षीगण खारिज किया जाता है। परिस्थितियों को देखते हुये दोनो पक्षकार खर्चा अपना-अपना वहन करेगें। 
         निर्णय आज दिनांक 06 अगस्त, 2018 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
 
                डा0 प्रदीप कुमार जोशी                     महेन्द्र शर्मा

 

 
 
[HON'BLE MR. Mahendra Sharma]
PRESIDENT
 
[ Dr.Pradeep Kumar Joshi]
MEMBER

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