Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/96/2015

VINOD KUMAR YADAV - Complainant(s)

Versus

POST OFFICE - Opp.Party(s)

SHUBH KARAN SINGH

20 Apr 2022

ORDER

 

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 96 सन् 2015

प्रस्तुति दिनांक 23.05.2015  

 निर्णय दिनांक 20.04.2022

विनोद कुमार यादव पुत्र शोभनाथ यादव ग्राम व पोस्ट- चितारा महमूदपुर, तहसील- फूलपुर, जिला- आजमगढ़।     

     .........................................................................................परिवादी।

बनाम

  1. हेड पोस्ट ऑफिस आजमगढ़ जरिए पोस्ट मास्टर आजमगढ़।
  2. पोस्ट ऑफिस दीदारगंज जरिए पोस्ट मास्टर दीदारगंज आजमगढ़।
  3. हेड पोस्ट ऑफिस जौनपुर जरिए हेड पोस्ट मास्टर जिला जौनपुर।
  4. विपक्षीगण।

उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”

  •  

गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”

परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि वह ग्राव व पोस्ट चितारा महमूदपुर तहसील फूलपुर, जिला- आजमगढ़ का रहने वाला है। उसने प्रशिक्षु शिक्षक चयन 2011 में जिला जौनपुर में आवेदन दिया था, जिसमें कुछ त्रुटियाँ थीं, जिसके सम्बन्ध में शासन से प्रत्यावेदन त्रुटि सही करने की मांग की गयी तथा परिवादी ने उस त्रुटि को सही करके प्रत्यावेदन प्राचार्य जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) जौनपुर को विपक्षी संख्या 02 के यहाँ से स्पीड पोस्ट द्वारा दिनांक 11.07.2014 को भेजने के लिए दिया गया जिसकी रसीद विपक्षी संख्या 02 ने परिवादी को दिया। उक्त प्रत्यावेदन को पहुंचने की अन्तिम निर्धारित तिथि 21.07.2014 तक थी। उक्त प्रत्यावेदन प्राधानाचार्य जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान जौनपुर को दिनांक 13.07.2014 तक प्राप्त हो जाना चाहिए था। परिवादी को यह विश्वास हो गया कि विपक्षीगण ने उक्त प्रत्यावेदन गन्तव्य स्थान पर पहुंचा दिया होगा। सही समय पर पहुंचाने की जिम्मेदारी विपक्षीगण की है। दिनांक 05.08.2014 को विपक्षीगण ने परिवादी का प्रत्यावेदन बिना कारण बताए वापस कर दिया तो परिवादी सख्त ताज्जुब हुआ, जिससे उसे काफी नुकसान हुआ। परिवादी का प्रत्यावेदन विपक्षीगण ने समय से नहीं पहुंचाया जिसके कारण परिवादी कौंसिलिंग नहीं करा पाया और नौकरी से वंचित रह गया। विपक्षीगण परिवादी का उक्त प्रत्यावेदन दिनांक 13.07.2014 तक प्राचार्य जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान जौनपुर तक पहुंचा दिए होते तो परिवादी को नौकरी मिल जाती और कम से कम बीस लाख रुपए का कार्य कर लेता। परिवादी ने विपक्षीगण को दिनांक 25.08.2014 को कानूनी नोटिस के माध्यम से सूचना दिया, नोटिस पाने के 15 दिन के अन्दर परिवादी को मुo बीस लाख रुपया अदा करें अन्यथा बाध्य होकर परिवादी विपक्षीगण के विरुद्ध वाद प्रस्तुत करेगा, लेकिन विपक्षीगण ने परिवादी के नोटिस का कोई माकूल जवाब नहीं दिया। अतः परिवादी को विपक्षीगण से मुo 20,00,000/- रुपए दिलाया जाए। साथ ही विपक्षीगण से खर्चा मुकदमा भी दिलाया जाए।    

परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने कागज संख्या 6ग² आवेदन पत्र के लिफाफे की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।   

कागज संख्या 10क² विपक्षी संख्या 01व02 द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र की धारा-03 सिर्फ स्वीकार किया है तथा परिवाद पत्र के अन्य सभी बातों से इन्कार किया है और यह भी कहा है कि याची ने अपने वाद पत्र में संदर्भित स्पीडपोस्ट संख्या का उल्लेख नहीं किया है, फिर भी दिनांक 11.07.2014 एक स्पीड पोस्ट संख्या ई.यू. 102509893 आई.एन. दीदारगंज उपडॉकघर, आजमगढ़ से प्राचार्य जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान जौनपुर को बुक कराया गया था उक्त स्पीड पोस्ट को उसी दिन दीदारगंज उपडॉकघर के माध्यम से सूची के क्रमांक 199/271 पर दर्ज कर मऊ आर.एम.एस. को भेज दिया गया, जो विभाग की व्यवस्था व प्रक्रिया के अधीन है। उसी दिन स्पीड पोस्ट को आर.एम.एस.मऊ भेजकर उपडॉकघर दीदारगंज आजमगढ़ तथा विभाग ने अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन जिम्मेदारीपूर्वक किया। स्पीडपोस्ट को अपने गन्तव्य तक पहुंचने के बाद प्राप्तकर्ता द्वारा उक्त स्पीडपोस्ट को लेने से इन्कार कर दिए जाने के फलस्वरूप उसके प्रेषक को विपक्षी द्वारा वापस सुपुर्द कर दिया गया। उक्त स्पीडपोस्ट के वितरण के सम्बन्ध में विपक्षी संख्या 02 ने त्वरित कार्यवाही करते हुए उसे उसके गन्तव्य तक उसी दिन भेज दिया। ऐसा करते हुए विपक्षी ने विभागीय नियमानुसार, जिम्मेदारीपूर्वक अपने कर्तव्यों को निभाया है, उसमें किसी भी स्तर से विपक्षीगण द्वारा सेवा में चूक नहीं की गयी है। याची द्वारा दिए गए कानूनी नोटिस का माकूल जवाब रजिस्टर्ड पत्र संख्या आर.यू. 785848757 आई.एन. दिनांक 13.10.2014 से उसके अधिवक्ता के माध्यम से दिया गया है। परिवादी का परिवाद मनगढ़ंत एवं निराधार है। अतः खारिज किया जाए।

विपक्षी संख्या 01व02 द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षी संख्या 01व02 द्वारा कागज संख्या 23/1व2 दीदारगंज से मऊ आर.एम.एस. भेजी गयी लिस्ट की प्रमाणित प्रति तथा कागज संख्या 23/3 डॉक अधीक्षक जौनपुर के पत्र की प्रमाणित प्रति प्रस्तुत किया गया है।

यहाँ यह उल्लेख कर देना आवश्यक है कि विपक्षी संख्या 03, पर्याप्त अवसर दिए जाने के बावजूद भी अपना जवाबदावा प्रस्तुत करने में असफल रहे, ऐसी स्थिति में परिवाद दिनांक 31.03.2016 को विपक्षी संख्या 03 के विरुद्ध एक पक्षीय अग्रसारित कर दिया गया।

दौरान बहस पुकार कराए जाने पर उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं ने उपस्थित होकर अपना-अपना बहस सुनाया। बहस सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसका पत्र प्राचार्य जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) जौनपुर को विपक्षी संख्या 02 के यहाँ से स्पीडपोस्ट द्वारा दिनांक 11.07.2014 को भेजने के लिए दिया था जिसकी रसीद विपक्षी संख्या 02 ने परिवादी को दिया था, जिसे निर्धारित अन्तिम तिथि दिनांक 21.07.2014 के पूर्व तक पहुंच जाना था जो कि किसी भी स्पीड पोस्ट को पहुंचाने के लिए पर्याप्त समय था। उक्त बातों से विपक्षी द्वारा इन्कार नहीं किया गया है तथा विपक्षीगण द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य कागज संख्या 23/3 में यह स्वीकार किया गया है कि पत्र दिनांक 21.07.2014 निर्धारित अंतिम तिथि के बाद पहुंचा, जिसके कारण उक्त डायट जौनपुर ने पत्र को लेने से इन्कार कर दिया जिससे वह पत्र वापस लेकर परिवादी को वापस कर दिया गया। उपरोक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों के आधार पर तथा प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर यह प्रमाणित होता है कि विपक्षीगण सेवा में कमी के दोषी हैं। इस सन्दर्भ में यदि हम एक न्याय निर्णय “चीफ पोस्ट मास्टर जनरल और दो अन्य बनाम गरिमा गुप्ता (सिंस माइनर थ्रू हर नेचुरल गार्जियन/फॉदर) रिवीजन पिटीशन नं. 876/2017 एन.सी.सी.” का अवलोकन करें तो इसमें माo राष्ट्रीय आयोग ने यह अभिधारित किया है कि किसी भी व्यक्ति का स्पीडपोस्ट पत्र डॉक विभाग द्वारा यदि देर से गन्तव्य स्थान तक पहुंचाया जाता है अथवा गलत पते पर भेजे जाने पर विपक्षी डॉक विभाग की सेवा में कमी मानी जाएगी और उसे इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा।

चूंकि परिवादी डॉयट द्वारा आयोजित कौंसिलिंग में उक्त कारणों से सम्मिलित नहीं हो सका। यदि आवेदन पत्र निर्धारित समय से उक्त डॉयट के केन्द्र पर पहुंच जाता तो यह संभावना थी कि परिवादी नौकरी पा सकता था। इस प्रकार उपरोक्त तथ्यों, परिस्थितियों एवं उपरोक्त न्याय निर्णय के आलोक में हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य है।     

 

आदेश

    परिवाद परिवादी के पक्ष में तथा विपक्षीगण के विरुद्ध स्वीकार किया जाता है और विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे परिवादी को हुई क्षति के रूप में मुo 25,000/- रुपए (रु.पचीस हजार मात्र) अन्दर 30 दिन परिवाद दाखिला की तिथि से अन्तिम भुगतान की तिथि तक 09% वार्षिक ब्याज की दर से परिवादी को अदा करे साथ ही विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाता है कि वहे परिवादी को खर्च मुकदमा के रूप में मुo 5,000/- रुपए (रु.पांच हजार मात्र) भी अदा करे।

 

 

 

 

 

                                                                 गगन कुमार गुप्ता                कृष्ण कुमार सिंह 

                                                                         (सदस्य)                      (अध्यक्ष)

 

दिनांक 20.04.2022

                         यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

 

                                        गगन कुमार गुप्ता                 कृष्ण कुमार सिंह

                                                            (सदस्य)                               (अध्यक्ष)

 

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