Uttar Pradesh

Faizabad

CC/183/2000

Tahdil Verma - Complainant(s)

Versus

Post Office - Opp.Party(s)

28 May 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/183/2000
 
1. Tahdil Verma
Faizabad
...........Complainant(s)
Versus
1. Post Office
FAIZABAD
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।

 

उपस्थित -     (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
        (2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य

              परिवाद सं0-183/2000

               
तहदिल वर्मा पुत्र श्री नगेसर वर्मा नि0 मकसूदनपुर पो0 नेतवारी चतुरपुर जिला फैजाबाद। (मृतक)
1/1.    ब्रह्मादत्त पुत्र तहदिल वर्मा     )
                    ) समस्त निवासी मौजा मकसूदनपुर पो0 नेतवारी
1/2.    राम पियारे पुत्र तहदिल वर्मा    ) चतुरपुर जिला फैजाबाद।
                    )
1/3.    श्रीमती सुनरा पुत्री तहदिल वर्मा    )
                                                            .............. परिवादी
बनाम
1.    प्रवर डाक अधीक्षक प्रधान डाकघर फैजाबाद।
2.    ब्रंाच पोस्ट मास्टर उपडाकघर नेतवारी चतुरपुर जिला फैजाबााद। ......... विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 28.05.2015            
उद्घोषित द्वारा: श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य।
                        निर्णय
    परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी ने एक चालू खाता विपक्षी संख्या 2 के यहां रुपये जमा करने के लिये खोला जिसका खाता संख्या 965428 है। उक्त खाते में परिवादी ने दिनांक 25.09.1984 को रुपये 3,300/- जमा किया और उसके बााद रुपये जमा करता रहा और निकालता रहा। दिनांक 08.04.1986 को हिसाब करने पर पता लगा कि खाते में रुपये 3,811.70 पैसे हैं। जिसकी रसीद उपडाकपाल ने परिवादी को दी। परिवादी ने दिनांक 07.05.1986 को रुपये 1,000/- जमा किया और उसकी रसीद भी परिवादी को मिल गयी। परिवादी ने रुपये 400/- व रुपये 1,100/- विभिन्न तिथियों में जमा किया तब उसका अंकन अपने हाथ से करके परिवादी को पास बुक दे दी, जिसकी रसीद बार बार मंागने पर भी परिवादी को नहीं मिली। बाद में परिवादी को पता लगा कि उपडाकपाल नेतवारी चतुरपुर रामनाथ वर्मा एक बेईमान व धोखे बाज व्यक्ति था उसने विभाग में भी धोखा धड़ी की थी जिस कारण उसे नौकरी से निकाल दिया गया था। चूंकि रामनाथ वर्मा पोस्ट आफिस का कर्मचारी था, इसलिये धोखा धड़ी की समस्त जिम्मेदारी विभाग की है। जिसने परिवादी का अनपढ़ होने का लाभ उठा कर लूट लिया। परिवादी ने विभिन्न तिथियों में दिनांक 30.05.1986 तक रुपये 6,311.70 पैसे जमा किया था और बार बार भुगतान के लिये विपक्षी संख्या 2 के चक्कर लगाता रहा किन्तु उक्त उपडाकपाल ने परिवादी को आज तक भुगतान नहीं किया। दिनांक 31.07.2000 को उपडाकपाल ने भुगतान करने से इन्कार कर दिया। इसलिये परिवादी को परिवाद दाखिल करना पड़ा। परिवादी को दिनांक 30.05.1986 से रुपये 6,311.70 पैसे पर 30.05.2000 तक 16 प्रतिषत वार्शिक ब्याज रुपये 14,138.18 पैसे कुल रुपये 20,499.88 पैसे तथा रुपये 2,000/- क्षतिपूर्ति दिलायी जाय। 
    विपक्षीगण ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा परिवादी के परिवाद के तथ्यों से इन्कार किया है और अपने विषेश कथन में कहा है कि परिवादी ने एक बचत खाता दिनांक 25.01.1983 को रुपये 1,200/- जमा कर के विपक्षी संख्या 2 के यहां खोला था जिसमें दिनांक 27.02.1984 को रुपये 700/- दिनांक 06.08.1984 को रुपये 200/- तथा दिनांक 25.09.1984 को रुपये 1,200/- जमा किया था, इस प्रकार बचत खाते में रुपये 3,300/- जमा था। परिवादी ने विभिन्न तिथियों में दिनांक 16.10.1984 को रुपये 400/- दिनांक 14-02-1985 को रुपये 400/- दिनांक 20.02.1985 को रुपये 600/- दिनांक 09.09.1985 को रुपये 600/- तथा अंत में दिनांक 28.08.1987 को रुपये 1,600/- अपने बचत खाते से रुपये निकाले थे। इसके बाद बचत खाते में मात्र 97/-  रुपये ही बचा है। परिवादी का कथन है कि उसे उपडाकपाल ने सादे कागज पर रसीद दी थी जो स्वीकार किये जाने योग्य नहीं है क्यों कि डाकघर द्वारा निर्धारित फार्म पर रसीद जारी की जाती है जिसकी पुश्टि लेजर कार्ड व पास बुक से होती है। परिवादी बचत खाते मेें जमा रुपये 97/- पर ही ब्याज पाने का अधिकारी है। परिवादी का परिवाद गलत तथ्यों पर आधारित है जो कि खारिज किये जाने योग्य है। परिवादी किसी प्रकार का उपषम पाने का अधिकारी नहीं है।
    परिवादी एवं विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्तागण की बहस को सुना एवं पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना षपथ पत्र, सूची पर दिनांक 25.09.1984 को जमा किये गये रुपये 3,300/- की निर्धारित फार्म पर जारी रसीद की छाया प्रति एवं मूल प्रति, सादे कागज पर डाकखाने की मुहर के साथ दिनांक 08-04-1986 की रसीद रुपये 3,811.70 पैसे की छाया प्रति एवं मूल प्रति, सादे कागज पर डाकखाने की मुहर के साथ दिनांक 07.05.1986 की रसीद रुपये 1,000/- की छाया प्रति एवं मूल प्रति, परिवादी द्वारा आर.टी.आई में मांगी गयी सूचना के पत्र दिनांक 28.05.2013 व 25.06.2013 की छाया प्रति तथा परिवादी ने अपनी लिखित बहस दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षीगण ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना लिखित कथन, जितेन्द्र भूशण पुत्र कन्हई प्रवर डाक अधीक्षक फैजाबाद का षपथ पत्र तथा सूची पर परिवादी के बचत खाते के लेजर की प्रमाणित छाया प्रति दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। परिवादी एवं विपक्षीगण द्वारा दाखिल प्रपत्रों से प्रमाणित है कि परिवादी का बचत खाता विपक्षी संख्या 2 के यहां था। परिवादी ने जो भी रुपया जमा किया वह विपक्षी संख्या 2 के यहां अपने बचत खाते में जमा किया विपक्षी संख्या 2 मंे नियुक्त उपडाकपाल ने परिवादी को एक रसीद निर्धारित फार्म पर रुपये 3,300/- की जारी की है तथा दो रसीदों में एक में रुपये 1,000/- जमा दिखाया गया है और उस पर पोस्ट आफिस की मोहर लगी है उक्त रसीद को विपक्षीगण मना नहीं कर सकते हैं। दूसरी रसीद में रुपये 2,111.70 पैसे तथा रुपये 800/- व रुपये 900/- जमा दिखाये गये हैं, इस रसीद मंे रुपये 2,111.70 पैसे परिवादी के लेजर में चढ़े हुए हैं किन्तु रुपये 800/- तथा रुपये 900/- लेजर में अंकित नहीं हैं। इस प्रकार परिवादी का रुपया 3,300/- $ 800/- $ 900/- $ 1,000/- कुल रुपये 6,000/- परिवादी का विपक्षीगण के पास जमा है जो परिवादी को मिलना चाहिए। विपक्षीगण ने तत्कालीन उपडाकपाल श्री रामनाथ वर्मा को नौकरी से सरकारी धन के गबन के मामले में सेवा से निकाल दिया है। जिसका प्रमाण पत्रावली पर कागज संख्या 41/3 व 41/4 उपलब्ध है। इस प्रकार विपक्षीगण के कर्मचारी के कृत्य के लिये विपक्षीगण उत्तरदायी हैं। चूंकि श्री रामनाथ वर्मा उपडाकपाल को सेवा से निश्काशित कर दिया गया है अतः श्री रामनाथ वर्मा से वसूली नहीं की जा सकती है। इसलिये विपक्षीगण परिवादी को रुपये 6,000/- का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी हैं। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में सफल रहा है। विपक्षीगण ने अपनी सेवा में कमी की है। परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध अंाषिक रुप से स्वीकार एवं अंाषिक रुप से खारिज किये जाने योग्य है। 
आदेश
    परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध अंाषिक रुप से स्वीकार एवं अंाषिक रुप से खारिज किया जाता है। विपक्षीगण को आदेषित किया जाता है कि वह परिवादी को रुपये 6,000/- का भुगतान आदेष की दिनांक से 30 दिन के अन्दर करें। विपक्षीगण परिवादी को परिवाद दाखिल करने की दिनांक से तारोज वसूली की दिनांक तक रुपये 6,000/- पर 4 प्रतिषत साधारण वार्शिक ब्याज का भी भुगतान करेंगे। क्षतिपूर्ति के मद मंे रुपये 2,000/- भी विपक्षीगण परिवादी को भुगतान करेंगे। 
          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)              
              सदस्य                  सदस्या                   अध्यक्ष      
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 28.05.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।

          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)           
              सदस्य                  सदस्या                    अध्यक्ष

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

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