Uttar Pradesh

Azamgarh

CC/195/2014

RANN VIJAY SINGH - Complainant(s)

Versus

POST OFFICE - Opp.Party(s)

PARAS NATH TIWARI

29 Mar 2022

ORDER

 

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग- आजमगढ़।

परिवाद संख्या 195 सन् 2014

प्रस्तुति दिनांक 15.10.2014

                                                                                                निर्णय दिनांक 29.03.2022

रणविजय मौर्य पुत्र श्री विन्ध्याचल मोर्य, ग्राम- कटोही, पोस्ट- मदियापार, तहसील- बूढ़नपुर, जिला- आजमगढ़ (उoप्रo)।   

     .........................................................................................परिवादी।

बनाम

    भारतीय डॉक विभाग द्वारा प्रवर डॉक अधीक्षक आजमगढ़ (उoप्रo)।      

  1. विपक्षी।

उपस्थितिः- कृष्ण कुमार सिंह “अध्यक्ष” तथा गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”

  •  

गगन कुमार गुप्ता “सदस्य”

परिवादी ने अपने परिवाद पत्र में यह कहा है कि उसने दिनांक 22.08.2014 को एक रजिस्टर्ड पत्र माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश को विपक्षी के डॉकघर कप्तानगंज आजमगढ़ से प्रेषित किया। विपक्षी के डॉकघर कप्तानगंज द्वारा प्रिंट आउट निकलने में दिक्कत के कारण रसीद पत्र रजिस्ट्री संख्या आर.यू.295035100आई.एन. दिनांक 22.08.2014 सी.एम.यू.पी. सेक्रेटेट लखनऊ हाथ से लिखकर परिवादी को दिया। दिनांक 22.08.2014 को प्रेषित पत्र के सन्दर्भ में कृत कार्यवाही के बाबत जब परिवादी ने आर.टी.आई. आवेदन के माध्यम से दिनांक 03.09.2014 को जानकारी चाही तो उत्तर प्रदेश शासन लोक शिकायत अनुभाग-1 द्वारा अपने पत्र दिनांक 18 सितम्बर 2014 द्वारा सूचित किया गया कि कार्यालय अभिलेखानुसार दिनांक 22.08.2014 का प्रेषित पत्र प्राप्त नहीं है। दिनांक 22.08.2014 को विपक्षी की शाखा कप्तानगंज आजमगढ़ से प्रेषित रजिस्टर्ड पत्र परिवादी को वापस भी प्राप्त नहीं हुई। ऐसी स्थिति में यह वाद कारण उत्पन्न हुआ। विपक्षी के यहाँ से प्रेषित रजिस्टर्ड पत्र दिनांक 22.08.2014 के सन्दर्भ में उसकी यह जिम्मेदारी थी कि पत्र का वितरण उस पर लिखे पते पर करे अन्यथा की स्थिति में उसे प्रेषक को वापस करा देवे। विपक्षी प्रेषित रजिस्ट्री को जानबूझकर गायब करने का दोषी है। विपक्षी का यह कृत्य सेवा में कमी की परिभाषा में आता है। अतः विपक्षी द्वारा दिनांक 22.08.2014 के रजिस्टर्ड पत्र को सही पते पर प्राप्त नहीं कराने तथा न ही परिवादी को वापस प्राप्त कराने के कारण हुई समस्त हानि मानसिक, आर्थिक, वादखर्च के मद में रुपया 50,000/- की क्षतिपूर्ति विपक्षी से परिवादी को दिलायी जाए। अन्य जो न्यायलय श्रीमान् की दृष्टि से उचित हो विपक्षी से परिवादी को दिलाया जाए।

   परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में परिवादी ने कागज संख्या 6/1 मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश को भेजे गए पत्र की छायाप्रति, कागज संख्या 6/2 उत्तर प्रदेश शासन लोक शिकायत अनुभाग-1 द्वारा भेजी गयी आर.टी.आई. सूचना की छायाप्रति तथा कागज संख्या 6/3 आर.टी.आई. ऐक्ट 2005 के प्रावधानों के तहत सूचना हेतु आवेदन पत्र की छायाप्रति प्रस्तुत किया है।   

कागज संख्या 8क² विपक्षी द्वारा जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है, जिसमें उसने परिवाद पत्र में किए गए कथनों की धारा 01व02 को स्वीकार किया है, शेष सभी कथनों से इन्कार किया है। अतिरिक्त कथन में उसने यह कहा है कि परिवादी द्वारा दिनांक 22.08.2014 को एक पंजीकृत पत्र संख्या आर.यू.295035100आई.एन. बुक की गयी थी, जिसके वितरण हेतु आजमगढ़ आर.एम.एस. को उसी दिन नॉन टी.डी. रजिस्टर्ड लिस्ट बैग संख्या आर.बी.यू. 0484488800 के क्रमांक 3/11 पर अंकित कर भेज दी गयी थी। पंजीकृत पत्र सम्बन्धित पोस्ट ऑफिस लखनऊ को प्राप्त होने के पश्चात् दिनांक 25.08.2014 को मुख्यमंत्री कार्यालय में वितरित कर दी गयी थी। इस जिम्मेदारी को विपक्षी ने बखूबी निभाया है, उसमें किसी भी तरह से किसी भी स्तर पर कार्य के प्रति लापरवाही विपक्षी द्वारा नहीं बरती गयी। विपक्षी पर आरोप निराधार है। परिवादी ने यह परिवाद विपक्षी को केवल हैरान व परेशान करने की नीयत से दाखिल किया है, जो कि पोषणीय नहीं है। अतः खारिज किया जाए।   

विपक्षी द्वारा अपने जवाबदावा के समर्थन में शपथ पत्र प्रस्तुत किया गया है।

प्रलेखीय साक्ष्य में विपक्षी द्वारा कागज संख्या 18/1 भारतीय डॉक विभाग कार्यालय चीफ पोस्ट मास्टर लखनऊ जी.पी.ओ. द्वारा जारी पत्र की छायाप्रति तथा कागज संख्या 18/2व3 लखनऊ जी.पी.ओ. का प्रमाणित प्रतिलिपि वितरण पर्ची की छायाप्रति प्रस्तुत किया गया है।

बहस के दौरान पुकार कराए जाने पर परिवादी अनुपस्थित रहे तथा विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता ने उपस्थित होकर प्रस्तुत परिवाद के विरुद्ध अपना बहस सुनाया। विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता की बहस को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया। विपक्षी द्वारा प्रस्तुत कागज संख्या 18/1,2व3 के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि विपक्षी ने अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन में कोई लापरवाही नहीं बरती है और प्रश्नगत रजिस्ट्री को सही पते पर सही समय में वितरित किया है।

उपरोक्त विवेचन से हमारे विचार से परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं है।

 

                                   आदेश

                                                   परिवाद पत्र खारिज किया जाता है। पत्रावली दाखिल दफ्तर हो।

   

 

 

 

 

                                                                गगन कुमार गुप्ता                कृष्ण कुमार सिंह 

                                             (सदस्य)                             (अध्यक्ष)

 

         दिनांक 29.03.2022

                                   यह निर्णय आज दिनांकित व हस्ताक्षरित करके खुले न्यायालय में सुनाया गया।

 

 

 

                                   गगन कुमार गुप्ता                कृष्ण कुमार सिंह

                                                   (सदस्य)                               (अध्यक्ष)

 

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