राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ
अपील संख्या 1427 सन 2008 सुरक्षित
(जिला उपभोक्ता फोरम, इलाहाबाद के परिवाद केस संख्या-220/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-27-06-2008 के विरूद्ध)
कश्मीरी लाल कालरा पुत्र स्व0 श्री चुन्नी लाल कालरा (मृतक)
- श्रीमती सेन कालरा पत्नी स्व0 श्री कश्मीरी लाल कालरा।
- मनीष कालरा पुत्र श्री कश्मीरी लाल कालरा।
- सिमी मकीझा पुत्री स्व0 कश्मीरी लाल कालरा एवं पत्नी हरीश मखीझा सभी निवासीगण-1107/1, मीरपुर जिला इलाहाबाद।
.......अपीलार्थीगण/परिवादीगण
बनाम
- नेहरूनगर, पोस्ट आफिस इलाहाबाद द्वारा आफीसर, नेहरूनगर, पोस्ट आफिस कम्पाउन्ड इलाहाबाद।
- पोस्ट मास्टर जनरल जी0पी0ओ0 कम्पाउन्ड, इलाहाबाद।
.....प्रत्यर्थीगण/विपक्षीगण
समक्ष:-
- मा0 श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्य।
- मा0 जुगुल किशोर, सदस्य।
अधिवक्ता अपीलार्थी : श्री सर्वेश शर्मा, विद्वान अधिवक्ता।
अधिवक्ता प्रत्यर्थी : डा0 उदयवीर सिंह, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 17-11-2014
मा0 श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित।
निर्णय
मौजूदा अपील जिला उपभोक्ता फोरम, इलाहाबाद के परिवाद केस संख्या-220/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-27-06-2008 के विरूद्ध प्रस्तुत किया गया है, जिसके द्वारा परिवादी का परिवाद खारिज किया गया है।
(2)
संक्षेप में केस के तथ्य इस प्रकार से है कि परिवादी कश्मीरी लाल कालरा पंजाब नेशनल बैंक में मुख्य प्रबन्धक के पद पर कार्यरत थे। दिनांक-31-03-2002 को उन्होंने अवकाश ग्रहण किया और उन्होंने अपना अर्जित आय से पोस्ट आफिस से इन्दिरा विकास पत्र खरीदा, जिसमें दिनांक-31-10-1998 को रजिस्ट्रेशन नं0- 548-550 62-सी-368947 लगायत 62-सी-368966 कुल सं0-20 प्रत्येक का मूल्य 5,000-00 कुल मूल्य एक लाख रूपये तथा दिनांक-01-12-1998 को रजिस्ट्रेशन नं0-570 इन्दिरा विकास पत्र नं0-62- सी-369095 लगायत 62-सी-369100कुल 06 अदद प्रत्येक का मूल्य 5,000-00 रूपये कुल मूल्य 30,000-00 रूपये का था। इस प्रकार से कुल 1,30,000-00 रूपये का इंदिरा विकास पत्र खरीदा। दिनांक-28-02-2004 को दिन में पंजाब नेशनल बैंक सिविल लाइन शाखा इलाहाबाद में स्थित अपने बैंक लाकर नम्बर 312 के संचालन हेतु अपने आवास संख्या-1107/1 मीरापुर शहर इलाहाबाद से चला। वादी अपने उपरोक्त सटीर्फिकेट एवं अन्य महत्वपूर्ण कागजात को सुरक्षित ढंग से लाकर में रखने की नियत से झोला में रखकर स्कूटर के आगे की बासकेट में रखकर बैंक आया। बैंक पहुंचने पर वादी ने जब अपना झोला बासकेट से लेना चाहा तब देखा कि उसका झोला बासकेट से गायब है। उन्होंने दिनांक03-02-04 को सीनियर पोस्ट आफिस जी0पी0ओ0 इलाहाबाद को विस्तृत विवरण के साथ लिखित सूचना दिया कि उसका इंदिरा विकास पत्र खो गया है। दिनांक-01-03-2004 को प्रवर अधीक्षक, डाकघर इलाहाबाद मण्डल इलाहाबाद ने सम्बन्धित पोस्ट आफिस को निर्देश दिया कि खोये हुए इंदिरा विकास पत्रों के आगे उचित टिप्पणी नोट कर दें। दिनांक-05-03-05 को इंदिरा विकास पत्र की प्राथमिकी थाने में दर्ज कराई। दिनांक-30-9-2004 को पोस्ट मास्टर जनरल कार्यालय जी0पी0ओ0 को पत्र भेजा कि डुप्लीकेट सर्टीफिकेट जारी कर दिया जाय। दिनांक-19-01-05 को डायरेक्टर जनरल पोस्ट आफिस डाकभवन नई दिल्ली को एक पत्र भेजा कि कुछ इंदिरा विकास पत्र खो गया है। सम्बन्धित पोस्ट आफिस ने परिवादी
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को आज तक कोई सूचना नहीं दिया और उन्होंने परिपक्व इंदिरा विकास पत्र का भुगतान नहीं दिया।
विपक्षी सं0-1व 2 ने अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल किया जिसमे उन्होंने वाद पत्र के तथ्यों को अस्वीकार किया और यह कहा कि इंदिरा विकास पत्र किसी व्यक्ति के नाम से निर्गत नहीं होते है और न ही किसी व्यक्ति विशेष को अदा किये जाते है, बल्कि इंदिरा विकास पत्र के परिपक्वता पर जो भी व्यक्ति भारत में जहॉ चाहे उसे कैश करा सकता है। प्रतिवाद में यह भी कहा गया है कि जब भी परिवादी इंदिरा विकास पत्र प्रस्तुत करेगा, उसे भुगतान कर दिया जायेगा, लेकिन बिना इंदिरा विकास पत्र के भुगतान किया जाना सम्भव नहीं है। परिवादी ने भारत संघ को पक्षकार नहीं बनाया है। परिवाद गलत तथ्यों पर दायर किया गया है। उन्होंने कहा कि इंदिरा विकास पत्र बिना किसी नाम के विक्रय किया गया था और परिपक्वता अवधि पूरी होने पर उसे भारत वर्ष में किसी भी पोस्ट आफिस में भुनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि इंदिरा विकास पत्र कोई भी व्यक्ति बिना किसी नाम के खरीद सकता है और कहीं भी भुना सकता है और भुगतान करने पर न तो कोई नम्बर अंकित किया जाता है और न कोई नाम पता अंकित किया जाता है। उन्होंने कहा कि परिवादी इंदिरा विकास पत्र का भुगतान जिसे परिवादी ने अंकित किया है, प्राप्त कर लिया होगा और यह नहीं कहा जा सकता कि उसका भुगतान कहॉ प्राप्त किया गया है।
इस सम्बन्ध में दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी गई तथा जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय/आदेश दिनांकित-27-06-2008 का अवलोकन किया गया। इस सम्बन्ध में प्रत्यर्थी पोस्ट आफिस के तरफ से विद्वान अधिवक्ता ने रूलिंग 2009 (3) कन्ज्यूमर प्रोटेक्शन केसेज पेज 261 हरी सिंह बनाम यूनियन आफ इंडिया एवं अन्य को पेश किया, जिसमें यह कहा गया है कि इंदिरा विकास पत्र जो खो गये है, उनको देने के लिए विभाग जिम्मेदार नहीं है। उक्त रूलिंग वाले केस में माननीय उच्चतम
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न्यायालय की रूलिंग ए.आई.आर. 2006 (एस.सी.) 1744 का भी हवाला दिया गया है जो निम्न प्रकार से है:-
“The apex Court in Central Government of India and Others V. Krishnaji Parvetesh Kulkarni AIR 2006 SC 1744, after dealing with Rule 7(2) of the said Rules and Rules 8 to 9 has observed as under:
An IVP is akin to an ordinary currency note. It bears no name of the holder. Just as a lost currency note cannot be replaced, similarly, the question of replacing a lost IVP does not arise. Rule 7(2) makes the position clear that a certificate lost, stolen, mutilated, defaced or destroyed beyond recognition will not be replaced by any Post Office.
इस सम्बन्ध में जिला उपभोक्ता फोरम के निर्णय का अवलोकन किया गया। जिला उपभोक्ता फोरम का निर्णय उपरोक्त रूलिंग व इंदिरा विकास पत्र रूल्स 1986 के अनुरूप है और जिला उपभोक्ता फोरम का निर्णय विधि सम्मत है, उसमें हस्तक्षेप किये जाने की कोई गुंजाइश नही है और अपीलकर्ता की अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश
अपीलकर्ता की अपील खारिज की जाती है तथा जिला उपभोक्ता फोरम, इलाहाबाद के परिवाद केस संख्या-220/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक-27-06-2008 की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपील व्यय स्वयं वहन करेगें।
(राम चरन चौधरी) ( जुगुल किशोर )
पीठासीन सदस्य सदस्य
आर0सी0वर्मा, आशु. ग्रेड-2
कोर्ट नं0-5