Rajasthan

Jaisalmer

CC/32/15

SANKRA RAM - Complainant(s)

Versus

POST OFFICE AND OTHERS - Opp.Party(s)

T.R.GARG

18 Nov 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/32/15
 
1. SANKRA RAM
JAISALMER
...........Complainant(s)
Versus
1. POST OFFICE AND OTHERS
BARMER
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 JUDGES SH. RAMCHARAN MEENA PRESIDENT
  SANTOSH VYAS MEMBER
  MANOHAR SINGH NARAWAT MEMBER
 
For the Complainant:T.R.GARG, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जैसलमेर(राज0)

1. अध्यक्ष    ः श्री रामचरन मीना ।
2. सदस्या   : श्रीमती संतोष व्यास।
3. सदस्य    ः श्री मनोहर सिंह नरावत।        
    
परिवाद प्रस्तुत करने की तिथी - 27.02.2015
मूल परिवाद संख्या:- 32/2015


श्री शकराराम पुत्र श्री चंदनसिंह,  जाति- रावणा राजपूत,
निवासी- ग्राम बंधड़ा हाल-गीता आश्रम कच्ची बस्ती,
जैसलमेर तहसील व जिला जैसलमेर
    
                        ............परिवादी।

बनाम

1.    प्रधान डाकपाल, प्रधान डाकधर, बाड़मेर राजस्थान।
2.    पोस्ट मास्टर, जनरल राजस्थान पष्चिमी क्षेत्र जोधपुर।                                                                 
                            ...........अप्रार्थीगण।

                      
प्रार्थना पत्र अंतर्गत धारा 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986

उपस्थित/-
1.    श्री टीकूराम गर्ग अधिवक्ता परिवादी की ओर से।
2.    अप्रार्थीगण की ओर से सुमित सैनी निरीक्षक ।


ः- निर्णय -ः        दिनांक    ः18.11.2015


1.    परिवादी का सक्षिप्त मे परिवाद इस प्रकार है कि परिवादी के पुत्र देवी सिंह द्वारा डाक जीवन बीमा योजना के तहत् डाक विभाग मे जीवन बीमा पाॅलिसी सं0 आर/आर.जे/जे.डी./ई.ए./200360 दिंनाक 15.05.2001 को बीमा कृत राषि 50,000 रू योजना ई.ए./55 अवधि 33 वर्ष तालिका बी-1 के तहत प्रीमियम राषि 108 रू का भारतीय डाक विभाग मे जीवन बीमा जोखिम के तहत करवाया परिवादी द्वारा पोस्ट आॅफिस बंधड़ा जिला बाड़मेर मे दिनांक 02.04.2001 को प्रथम किस्त 2016 रू से प्रारंभ कर लगातार जनवरी 2012 को 1 मुस्त 1 वर्ष की किस्त 1296 रू जमा कर दिसम्बर 2012 तक की प्रीमियम राषि जमा की गई। परिवादी देवीसिंह की आॅकस्मिक सड़क दूघर्टना मे मृत्यु 12.09.2012 को हो गई। तत्पष्चात् परिवादी द्वारा सभी दस्तावेज व पासबुक की मूल प्रति व पेष कर जमा राषि मय जोखिम राषि के भुगतान बाबत् अप्रार्थी के यहा आवेदन किया गया लेकिन अप्रार्थीगण द्वारा पाॅलिसी की राषि व जोखिम राषि शर्तो के मुताबिक नही कर सेवा मे त्रृटि की है। अप्रार्थीगण का उक्त कत्य सेवा दोष की श्रेणी मे आता है परिवादी द्वारा अप्रार्थीगण से प्रीमियम व जोखिम राषि के साथ मानसिक हर्जाना व परिवाद व्यय अप्रार्थीगण से दिलाये जाने का निवेदन किया।

2.    अप्रार्थीगण की ओर से जवाब पेष कर प्रकट किया कि पाॅलिसी की अवधि 3 वर्ष से कम थी परंतु बीमा धारक ने पाॅलिसी की सात किस्ते पाॅलिसी के बिना रिवाईवल किये जमा करवाई गई है। अर्थात वाईड पाॅलिसी  मे प्रीमियम जमा किया है इसलिए पाॅलिसी डाक बीमा जीवन निधि के नियम 211 के नियम 56 के तहत सून्य हो चूकी है। इसलिए मृत्यु दावें का भुगतान नही किया जा सकता अप्रार्थीगण द्वारा कोई सेवाओं मे त्रुटि नही की गई है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने का निवेदन किया।
      
3    हमने विद्वान अभिभाषक परिवादी व अप्रार्थीगण की बहस सुनी और पत्रावली का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया ।
       
4     विद्वान अभिभाषक परिवादी व अप्रार्थीगण द्वारा की गई बहस पर मनन करने, पत्रावली में पेष किए गए शपथ पत्रों एवं दस्तावेजी साक्ष्य का विवेचन करने तथा सुसंगत विधि को देखने के पष्चात इस प्रकरण को निस्तारित करने हेतु निम्नलिखित विवादित बिन्दु कायम किए जाते है -
1.    क्या परिवादी एक उपभोक्ता की तारीफ में आता है ?
2.    क्या विपक्षी का उक्त कृत्य एक सेवा त्रुटि के दोष की तारीफ में आता है?
3.    अनुतोष क्या होगा ?
    
5     बिन्दु संख्या 1:-  जिसे साबित करने का संपूर्ण दायित्व परिवादी पर है जिसके तहत कि क्या परिवादी उपभोक्ता की तारीफ में आता है अथवा नहीं और मंच का भी सर्वप्रथम यह दायित्व रहता है कि वे इस प्रकार के विवादित बिन्दु पर सबसे पहले विचार करें, क्यों कि जब तक परिवादी एक उपभोक्ता की तारीफ में नहीं आता हो, तब तक उनके द्वारा पेष किये गये परिवाद पर न तो कोई विचार किया जा सकता है और न ही उनका परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के तहत पोषणिय होता है, लेकिन हस्तगत प्रकरण में परिवादी के पुत्र ने डाक जीवन बीमा योजना के तहत् जीवन बीमा पाॅलिसी दिनांक 02.04.2001 को प्रथम किस्त 216 रू जमा कराकर अप्रार्थीगण के यहा पाॅलिसी शुरू कर अपना जीवन बीमा कराया जिसे अप्रार्थीगण द्वारा भी माना गया है। इसलिए हमारी विनम्र राय में परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2; 1द्ध;क्द्ध के तहत एक उपभोक्ता की तारीफ में आता है, फलतः बिन्दु संख्या 1 परिवादी के पक्ष में निस्तारित किया जाता है ।

6.    बिन्दु संख्या 2:-    जिसे भी साबित करने का संपूर्ण दायित्व परिवादी पर है जिसके तहत कि क्या विपक्षी का उक्त कृत्य एक सेवा त्रुटी के दोष की तारीफ में आता है अथवा नहीं ? अप्रार्थीगण की दलील है कि बीमा पाॅलिसी का प्रीमियम दिसम्बर 2012 तक जमा है। बीमा धारक द्वारा पाॅलिसी की स्वीकृति मई 2001 से जून 2002 तक नियमित किस्ते जमा है। उसके पश्चात् जुलाई 2002 से जनवरी 2003 की सात किस्ते पाॅलिसी के बिना रिवाईवल कराये प्रीमियम जमा करवाया गया है। स्वीकृत तिथि से 3 वर्षे से कम की अवधि की पाॅलिसी मे 5़1त्र6 माह के अन्दर पाॅलिसी को बिना रिवाईवल जमा करने के लिए छुट का प्रावधान है लेकिन इस पाॅलिसी की अवधि 3 वर्ष से कम थी परन्तु बीमा धारक ने पाॅलिसी की 7 किस्ते पाॅलिसी के बिना रिवाईवल कराये जमा करा दी। अतः टवपक पाॅलिसी मे प्रीमियम जमा किया गया इसलिए पाॅलिसी डाक जीवन बीमा निधि के नियम 2011 के 56 के तहत् शून्य हो चूकी थी इसलिए परिवादी का जो क्लैम दिनांक 06.02.2014 को खारिज किया गया है। वह विधिसम्मत है। कोई सेवा दोष नही है परिवादी का परिवाद खारिज किया जावें।
7.    इसका प्रबल विरोध करते हुए विद्वान परिवादी अभिभाषक की दलील है कि परिवादी के मृतक पुत्र देवीसिंह ने अपने बीमा पाॅलिसी का प्रीमियम निधारित समय मे जमा कराया है उसने मई 2001 से दिसम्बर 2012 तक प्रीमियम अप्रार्थीगण के यह जमा किया गया था। उसकी मृत्यु सड़क दूर्घटना मे दिनांक 22.09.2012 को हो गई थी जो बीमित पाॅलिसी के अवधि के भीतर है उनकी यह भी दलील है कि 1 जून 2002 तक नियमित प्रीमियम राषि जमा कराई गई है। उसके बाद दिनांक जुलाई 2002 से जनवरी 2003 की प्रीमियम राषि एक मुष्त 712 रू जमा करायी गई है। अतः पाॅलिसी को पूर्व मे टवपक पाॅलिसी करार नही दिया गया था ओर राषि एक साथ अप्रार्थीगण ने बिना किसी ऐतराज के स्वीकार ली थी। तथा बीमा पाॅलिसी को टवपक पाॅलिसी करार दिया गया हो ऐसा भी कोई नोटिस परिवादी को नही दिया गया था। अतः अप्रार्थीगण अपने कृत्य से बाध्य ;म्ेजवचचमकद्ध है अतः परिवादी बीमित राषि 50,000 रू प्राप्त करने का अधिकारी है अतः परिवादी को उक्त राषि मय ब्याज, हर्जाना व परिवाद व्यय के दिलायी जावें।
8.    उभय पक्षों के तर्को पर मनन किया गया कि यह बात सही है कि बीमा धारक द्वारा बीमा पाॅलिसी का प्रीमियम दिसम्बर 2012 तक का जमा है ओर बीमा धारक द्वारा पाॅलिसी की स्वीकृत तिथि मई 2001 से जून 2002 तक नियमित किष्ते जमा है लेकिन उसके पश्चात् जुलाई 2002 से जनवरी 2003 की 7 किष्ते पाॅलिसी को बिना रिवाईवल कराये जमा करवायी गई है। स्वीकृत तिथि से 3 वर्ष की कम की अवधि मे 5़1त्र6 माह तक पाॅलिसी को बिना रिवाईवल प्रीमियम जमा कराये जाने का प्रावधान है लेकिन इस परिवाद मे पाॅलिसी की अवधि 3 वर्ष से कम थी ओर बीमा धारक ने बिना रिवाईवल कराये 7 किष्ते जमा कराई जो ग्रेस पिरीयड के 6 माह के बाद करवायी गई है अतः पाॅलिसी टवपक हो गई, टवपक पाॅलिसी मे किष्ते जमा कराना पाॅलिसी डाक बीमा जीवन निधि के नियम 211 के नियम 56 के तहत शून्य है। परिवादी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज से यह प्रकट है कि उक्त प्रीमियम पाॅलिसी की राषि जनवरी 2002 तक नियमित रूप से जमा करवाई गई उसके बाद दिनांक 15.01.2003 को जुलाई 2002 से जनवरी 2003 की राषि एक मुष्त 772 रू जमा करायी गई जो कि रिवाईवल के समय के बाद जमा कराना प्रकट है लेकिन अप्रार्थीगण द्वारा पाॅलिसी के टवपक हो जाने के उपरान्त भी प्रीमियम की राषि जानबुझ कर बिना विधिक प्रावधान के जमा की जाती रही ओर वह बीमित की मृत्यु से पूर्व प्रीमियम जमा करते रहे। अप्रार्थीगण ने बीमा धारक को पाॅलिसी टवपक घोषित होने के बारे मे कोई सूचना नही दी बल्कि टवपक पाॅलिसी का प्रीमियम जमा कर सेवा दोष कारित किया है। अप्रार्थीगण का यह कृत्य सेवा दोष की श्रेणी मे आता है।

फलतः बिन्दु संख्या 2 परिवादी के पक्ष में निस्तारित किया जाता है ।

9. बिन्दु संख्या 3:- अनुतोष । बिन्दु संख्या 2 परिवादी के पक्ष में निस्तारित होने के फलस्वरूप परिवादी का परिवाद आंषिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है जो स्वीकार किया जाता है, अतः विनम्र राय में परिवादी अप्रार्थीगण से मई 2001 से दिसम्बर 2012 तक जमा सम्पूर्ण प्रीमियम राषि मय ब्याज 9 प्रतिषत वार्षिक प्राप्त करने का अधिकारी है।
साथ ही परिवादी को अप्रार्थीगण से मानसिक हर्जोना पेटे 5,000/- रू. व परिवाद व्यय के 2000/- रू. दिलाये जाना उचित है।

ः-ः आदेश:-ः

        परिणामतः प्रार्थी का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्व आंषिक रूप से स्वीकार किया जाकर अप्रार्थीगण को आदेषित किया जाता है कि वह परिवादी को मई 2001 से दिसम्बर 2012 तक जमा सम्पूर्ण प्रीमियम राषि मय ब्याज 9 प्रतिषत वार्षिक अदायगी तक 2 माह के भीतर-भीतर अदा करे। इसके अलावा मानसिक हर्जाना पेटे रू 5,000/- रूपये पाॅच हजार रूपये एवं परिवाद व्यय पेटे रू 2000/- रूपये दो हजार मात्र 2 माह के भीतर भीतर अदा करे ।


     ( मनोहर सिंह नारावत )             (संतोष व्यास)                     (रामचरन मीना)
  सदस्य,                                  सदस्या                              अध्यक्ष,
जला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,,     जला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,           जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,
         जैसलमेर।                            जैसलमेर।                     जैसलमेर।


    आदेश आज दिनांक 18.11.2015 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।

 

     ( मनोहर सिंह नारावत )              (संतोष व्यास)            (रामचरन मीना)
  सदस्य,                                  सदस्या                             अध्यक्ष,
जला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,       जला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,           जला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच,
         जैसलमेर।                               जैसलमेर।                    जैसलमेर।

 

 
 
[JUDGES SH. RAMCHARAN MEENA]
PRESIDENT
 
[ SANTOSH VYAS]
MEMBER
 
[ MANOHAR SINGH NARAWAT]
MEMBER

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