जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 26/2015
नगेन्द्र पुरोहित पुत्र श्री मुरलीमनोहर पुरोहित, जाति-ब्राह्ाम्ण, निवासी-बंशीवाला मन्दिर के पास नागौर, तहसील व जिला नागौर (राज)। -परिवादी
बनाम
1. पोस्ट मास्टर, मुख्य डाकघर, नागौर।
2. अधीक्षक, डाकघर, बाडीकुआ, नागौर।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री बृजलाल मीणा, अध्यक्ष।
2. श्रीमति राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री देवेन्द्रराज कल्ला, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री सुनिल कुमार कुमावत, शिकायत निरीक्षक, डाकघर, वास्ते अप्रार्थी।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे श दिनांक 05.05.2015
1. परिवाद पत्र के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी का अप्रार्थी संख्या 1 के यहां दिनांक 26.03.1991 को एक पीपीएफ खाता संख्या 15041 खुला हुआ था। अप्रार्थीगण द्वारा दिनांक 02.04.2012 एवं 15.04.2013 को राशि क्रमशः 16097/- रूपये एवं 11954/- रूपये कुल 28051/- रूपये परिवादी के खाते में डेबिट कर दी गई। जानकारी करने पर प्रार्थी को कोई जानकारी नहीं दी गई। अतः परिवादी की उक्त विवादित राशि मय ब्याज परिवादी के खाते में जमा करवाई जावे।
2. अप्रार्थीगण का मुख्य रूप से कहना है कि प्रार्थी पीपीएफ खाते में एक वित वर्ष में अधिकतम 12 जमाएं कराने का नियम है, परन्तु प्रार्थी ने वित वर्ष 2001-2002 में 12 जमाओं के पश्चात् दिनांक 28.03.2002 को 2100/- रूपये एवं दिनांक 30.03.2002 को 20,000/- रूपये की राशि जमा कराई जो कि नियम विरूद्ध थी। अंकेक्षण दल ने 13 वीं व 14 वीं जमा का अनियमित मानते हुए इस पर 2002-2003 से 2008-2009 तक दिये गये अनियमित ब्याज की राशि 16,097/- रूपये एवं इसी प्रकार अंकेक्षण दल के निरीक्षण रिपोर्ट वर्ष 2011-2012 एवं वर्ष 2012-2013 पर अनियमित ब्याज राशि 11,954/- रूपये वसूलने के आदेश दिये गये।
3. खाता खुलवाते समय खाताधारक खाते खुलवाने के आवेदन पत्र एस.बी. 3 में डाक विभाग के साथ एक करार करता है जिसमें स्पष्ट रूप से छपा हुआ है कि मैं/हम (खाताधारक), केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाये गये ऐसे नियमों का पालन करने के लिए सहमत हूं/हैं, जो समय-समय पर खाते को लागू हो।
4. बहस उभय पक्षकारान सुनी गई। पत्रावली का ध्यानपूर्वक अध्ययन एवं मनन किया गया।
5. यह निर्विवाद है कि परिवादी ने अपने पीपीएफ खाते में 12 जमाओं के पश्चात् दिनांक 28.03.2002 को 2100/- रूपये एवं दिनांक 30.03.2002 को 20,000/- रूपये 13 वीं व 14 वीं जमाओं के रूप में जमा कराये। प्रश्न उत्पन होता है कि क्या अंकेक्षण दल ने परिवादी द्वारा जमा कराई गई 13 वीं व 14 वीं जमाओं पर जो ब्याज राशि 28051/- रूपये डेबिट करने सही आदेश दिया?
6. हमारी राय में यह लेश मात्र भी उचित आदेश नहीं है कि परिवादी के 13 वीं व 14 जमाओं पर अप्रार्थीगण द्वारा ब्याज नहीं दिया जावे क्योंकि अप्रार्थीगण ने परिवादी के द्वारा जो उपरोक्त विवादित जमाएं जमा कराई है, उस राशि को अपने काम लिया है। यदि यह राशि परिवादी के पास रहती तो निःसंदेह वह इस पर ब्याज कमा सकता था या कोई अन्य कार्य में निवेश कर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकता था। अप्रार्थीगण की ओर से पीपीएफ स्कीम-1968 प्रस्तुत किया है। उसमें सबसक्रेप्शन किस प्रकार, कितनी बार, कितनी किश्तों में जमा कराया जाएगा, इस सम्बन्ध में क्रम संख्या 5 यह लिखा हुआ है कि 12 से अधिक किश्तें जमा नहीं होंगी, परन्तु प्रश्न उत्पन होता है कि जब अप्रार्थीगण को अपनी स्कीम का सम्पूर्ण ज्ञान था तो परिवादी से 13 वीं व 14 वीं राशि क्यों जमा की गई, तुरन्त अप्रार्थीगण को यह कहना था कि 12 जमाओं के पश्चात् कोई राशि जमा नहीं होगी तो परिवादी किसी भी सूरत में उक्त विवादित राशि जमा नहीं करवाता। अप्रार्थीगण एक साथ दो घोडों पर एक ही समय में सवार नहीं हो सकता। यहां यह भी अवधारणा की जा सकती है कि नियम सामान्य प्रक्रिया का भाग है, परन्तु ऐसे मामलों में जमा कर्ताओं को व्यावहारिक रूप से नियमों की जानकारी नहीं दी जाती है। इसी परिप्रेक्ष्य में यदि परिवादी को इस बात की जानकारी दी जाती कि वह 12 जमाओ ंके पश्चात अन्य कोई जमा नहीं करा सकता तो स्वाभाविक है कि परिवादी अनावश्यक रूप से क्यों विवादित रकम जमा करवाता। इसके अलावा सीपीआर 2011 वोल्यूम 4 में माननीय नेशनल कमीशन ने स्टेट बैंक आॅफ पटियाला बनाम गोपालकृष्ण सिंगला प्रस्तुत किया। माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्धारित किया कि पीपीएफ खाते में अधिक राशि जमा होने पर जमा कर्ता को ब्याज देय होगा। इस पर 6 प्रतिशत ब्याज राशि आधिक्य रकम पर दिलाई।
7. इस प्रकार से परिवादी अपना परिवाद विरूद्ध अप्रार्थीगण साबित करने में सफल रहा। अतः परिवाद निम्न प्रकार स्वीकार किया जाता हैः-
आदेश
8. आदेश दिया जाता है कि अप्रार्थीगण, परिवादी को 12 जमाओं के पश्चात् दिनांक 28.03.2002 को 2100/- रूपये एंव 30.03.2002 को 20,000/- रूपये पर उक्त तारीखों से 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याजदर से ब्याज अदा करें। विवादित आॅडिट निरीक्षण के अनुसार परिवादी के खाते में नामित की गई राशि सही नहीं है। जो निरस्त की जाती है। अप्रार्थीगण परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के रूप में 2500/- रूपये एवं 2500/- रूपये ही परिवाद खर्च के भी अदा करें।
आदेश आज दिनांक 05.05.2015 को लिखाया जाकर खुले न्यायालय में सुनाया गया।
।बलवीर खुडखुडिया। ।बृजलाल मीणा। ।श्रीमति राजलक्ष्मी आचार्य।
सदस्य अध्यक्ष सदस्या