Uttar Pradesh

Barabanki

CC/22/2015

Sadhu Ram - Complainant(s)

Versus

Post Master, Main Post Office, Barabanki & others - Opp.Party(s)

Pankaj Nigam

29 Apr 2023

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, बाराबंकी।

परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि       10.03.2015

अंतिम सुनवाई की तिथि            26.04.2023

निर्णय उद्घोषित किये जाने के तिथि  29.04.2023

परिवाद संख्याः 22/2015

साधू राम पुत्र स्व0 लल्लू राम निवासी के0/291 मोहल्ला कटरा शहर नवाबगंज जिला-बाराबंकी।

द्वारा-श्री पंकज निगम, अधिवक्ता

 

बनाम

1. श्रीमान डाक अधीक्षक मुख्य डाकघर, बाराबंकी।

2. श्रीमान मुख्य पोस्ट मास्टर मुख्य डाकघर बाराबंकी।

3. श्रीमान चीफ पोस्ट मास्टर जनरल हजरतगंज विधान सभा मार्ग लखनऊ।

                              द्वारा-श्री सुनील कुमार मौर्य, ए.डी.जी.सी. सिविल

समक्षः-

माननीय श्री संजय खरे, अध्यक्ष

माननीय श्रीमती मीना सिंह, सदस्य

माननीय श्री एस0 के0 त्रिपाठी, सदस्य

उपस्थितः परिवादी की ओर से -श्री पंकज निगम, एडवोकेट

         विपक्षीगण की ओर से-श्री सुनील कुमार मौर्य, ए.डी.जी.सी. सिविल

द्वारा -संजय खरे, अध्यक्ष

निर्णय

              परिवादी ने यह परिवाद, विपक्षीगण के विरूद्व अंतगर्त धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 प्रस्तुत कर विपक्षीगण से परिवादी को रू0 2250/-मय अठारह प्रतिशत ब्याज सहित तथा शारीरिक, मानसिक, आर्थिक क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 30,000/- तथा वाद व्यय व अधिवक्ता फीस रू0 10,000/-दिलाये जाने का अनुतोष चाहा है।

            परिवादी ने परिवाद में यह अभिकथन किया है कि परिवादी ने एक संयुक्त वरिष्ठ नागरिक बचत खाता सं0-9610153 दिनांक 17.08.2009 को साधूराम व सरोजरानी के नाम से विपक्षी संख्या-01 के यहाँ खुलवाया था जो आगे चलकर खाता सं0-0250824375 हो गया। उक्त खाते में परिवादी ने रू0 50,000/-जमा किया था जिसमे परिवादी को दिनांक 01.12.2009 को रू0 550/-का भुगतान किया गया जो कि नियमो के विरूद्व था। क्लर्क ने बताया कि जो भी ब्याज होगा, आगे परिवादी को मिलेगा। ज्ञात हो कि रू0 50,000/-की जमा धनराशि पर परिवादी को तिमाही ब्याज मिलना था। प्रश्नगत खातें से दिनांक 01.01.2010 को रू0 1,125/-दिनांक 01.04.2010 को रू0 1,125/-, दिनांक 01.07.2010 को रू0 1,125/-, दिनांक 12.10.2010 को रू0 1,125/-, दिनांक 01.01.2011 को रू0 1,225/-का भुगतान किया गया। किन्तु 01.04.2011 को परिवादी अस्वस्थ होने के कारण भुगतान नहीं प्राप्त किया। जब परिवादी दिनांक 01.07.2011 को भुगतान लेने गया तो मात्र रू0 1,125/-का भुगतान किया गया और उसके बाद दिनांक 03.10.2011 को रू0 1,125/-किया। यही नहीं विपक्षी द्वारा दिनांक 02.01.2012 को रू0 1,125/-दिनांक 07.04.2012 को रू0 1,125/-, दिनांक 03.07.2012 को रू0 1,125/-व दिनांक 01.10.2012 को रू0 1,125/-का भुगतान किया गया किन्तु जनवरी 2013 को होने वाले भुगतान को नहीं दिया गया। इसके बाद दिनांक 03.04.2013, 16.07.2013, 01.10.2013, 06.01.2014, 01.04.2014 को प्रत्येक तिथि में रू0 1,125/-का भुगतान किया गया तथा दिनांक 01.07.2014 को रू0 1,180/-का भुगतान किया गया। परिवादी बराबर विपक्षी संख्या-01 के विभाग के कर्मचारी से दो त्रैमासिक ब्याज की धनराशि की मांग करता रहा। पहले भुगतान का आश्वासन दिया गया परन्तु बाद में यह कह दिया गया कि धनराशि का भुगतान कर दिया गया है। परिवादी नाराज होकर उक्त स्कीम को बन्द करने का प्रार्थना पत्र दे दिया और जमा धनराशि को बचत खाता संख्या-0242139500 में स्थानान्तरित हेतु दिया। सम्बन्धित अधिकारी/क्लर्क अजय श्रीवास्तव द्वारा परिवादी की एस0 सी0 एस0 एस0 की पासबुक फाड़ दी गई। परिवादी ने दिनांक 21.08.2014 को हेड पोस्टमास्टर तथा डाक अधीक्षक को प्रार्थना पत्र दिया। दूसरा प्रार्थना पत्र दिनांक 28.08.2014 को दिया कि 01.04.2011 से 31.12.2012 तक के बाउचर निकाले जाय। विपक्षीजन द्वारा परिवादी के प्रार्थना पत्र पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। उपरोक्त कारणो से परिवादी को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अतः परिवादी ने उक्त अनुतोष हेतु प्रस्तुत परिवाद योजित किया है। परिवाद के समर्थन में शपथपत्र दाखिल किया गया है।

            परिवादी ने से सूची से प्रार्थना पत्र दिनांकित 01.10.2014, 28.08.2014 व 21.08.2014, मूल पासबुक तथा पासबुक की छाया प्रति दाखिल की है।

            विपक्षीगण द्वारा अपने वादोत्तर में कहा गया है कि यह स्वीकार है कि परिवादी के सह-खाते एस0 सी0 एस0 एस0 में दिनांक 17.08.2009 को रू0 50,000/-जमा किये गये तथा दिनांक 30.09.2009 को देय ब्याज भुगतान तिथि पर दिनांक 01.12.2009 को रू0 550/-किया गया। परिवादी को दिनांक 01.04.2011 को भी ब्याज राशि मु0 1,125/-का भुगतान किया गया। परिवादी जनवरी 2013 का भुगतान दिनांक 31.12.2012 को किया गया। दिनांक 31.03.2013 को देय धनराशि का भुगतान दिनांक 03.04.2013 को किया गया। दिनांक 17.08.2009 को खाता खोलने के पश्चात् दिनांक 30.09.2009 को भुगतान तिथि पर ब्याज रू0 550/-बनता था जो परिवादी ने दिनांक 01.12.2009 को प्राप्त किया। विदित हो कि उक्त खातें में माह सितम्बर, दिसम्बर, मार्च, जून क्रमशः चार माह का ब्याज लगाया जाता है। यह खाता धारक की मर्जी पर होता है कि वह कब भुगतान प्राप्त करें। दिनांक 30.09.2009 को 43 दिन का ब्याज देय था। दिनांक 31.03.2011 का भुगतान दिनांक 01.04.2011 को रू0 1,125/-परिवादी ने प्राप्त किया तथा दिनांक 31.12.2012 का भुगतान उसी दिन परिवादी ने प्राप्त कर लिया। विदित हो कि दिनांक 31.12.2012 में ब्याज लगने के बाद ब्याज दिनांक 31.03.2013 को ही लगाया गया जिसे दिनांक 03.04.2013 को परिवादी ने प्राप्त किया। दिनांक 01.01.2013 को ब्याज लगाने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता है। परिवादी जमाकर्ता को सभी भुगतान नियमानुसार किया जा चुका है। खाता संयुक्त था, परिवादी को अकेले वाद योजित करने का अधिकार नहीं है। उपरोक्त कारणों से परिवाद निरस्त किये जाने की याचना की है। वादोत्तर के समर्थन में विपक्षीगण द्वारा शपथपत्र पत्र दाखिल किया गया है।

             विपक्षीगण ने सूची दिनांक 04.03.2017 से तीन प्रपत्र दाखिल किया है।

            परिवादी ने सूची दिनांक 21.04.2022 से छः प्रपत्र दाखिल किया है। जिसमे परिवादी की दो मूल पास बुक भी है।

            परिवादी तथा विपक्षीगण की बहस सुनी गई। पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन किया।

            परिवादी ने मुख्य डाकघर बाराबंकी में स्वयं व अपनी पत्नी श्रीमती सरोजरानी के संयुक्त नाम से एस0 सी0 एस0 एस0 खाता दिनांक 17.08.2009 को रू0 50,000/-जमा करके खोला। उक्त खातें में नियमानुसार त्रैमासिक ब्याज रू0 1,125/-प्रत्येक त्रैमास पर देय होता था। इस खाते का अंतिम भुगतान दिनांक 01.07.2014 को किया जाना पासबुक में अंकित है। परिवादी का कथन है कि उसे दिनांक 31.03.2011 को समाप्त होने वाले त्रैमास तथा दिनांक 31.12.2012 को समाप्त होने वाले त्रैमास के ब्याज का भुगतान नहीं किया। इन्हीं दो त्रैमासों का कुल रू0 2,250/- ब्याज सहित भुगतान दिलाने का अनुतोष वर्तमान परिवाद में माँगा है। विपक्षी का कथन है कि परिवादी ने दोनो त्रैमास के ब्याज का भुगतान प्राप्त किया है। विपक्षी की ओर से दिनांक 31.12.2021 को समाप्त होने वाले त्रैमास के ब्याज का भुगतान किये जाने वाले विदड्राल फार्म की मूल प्रति दाखिल की गई है जिसमे रू0 1,125/-परिवादी साधूराम द्वारा हस्ताक्षर कर प्राप्त करना अंकित है। परिवादी ने इस विदड्राल फार्म से दिनांक 31.12.2012 के त्रैमास के ब्याज का भुगतान प्राप्त करने का कोई लिखित खंडन नहीं किया है। यह मूल विदड्राल फार्म साक्ष्य में दाखिल होने के पश्चात् परिवादी की ओर से इस विदड्राल फार्म पर अपने हस्ताक्षर न होने का भी कोई अंकन नहीं किया गया है। परिवादी द्वारा साक्ष्य में दाखिल इस विदड्राल फार्म दिनांक 31.12.2012 का खंडन न किये जाने से यह सिद्व होता है कि परिवादी ने विदड्राल फार्म के माध्यम से अपने हस्ताक्षर से दिनांक 31.12.2012 के त्रैमास के ब्याज का भुगतान रू0 1,125/-प्राप्त किया है।

            इसी प्रकार दिनांक 31.03.2011 के त्रैमास के ब्याज की धनराशि रू0 1,125/-का भुगतान प्राप्त करने के संबंध में खाता संख्या-0250824375 की पासबुक के अवलोकन से विदित है कि उसमे दिनांक 01.04.2011 तथा 31.12.2012 को परिवादी को भुगतान किये जाने की डाकघर की मुहर अंकित है। विपक्षी की ओर से परिवादी के खाते का कम्प्यूटर से प्राप्त विवरण भी दिनांक 04.03.2017 की सूची से दाखिल किया गया है जिसमे दिनांक 31.03.2011 को देय त्रैमासिक ब्याज का भुगतान दिनांक 01.04.2011 को आहरित किया जाना अंकित है। डाकघर द्वारा दिनांक 01.12.2009 से 01.04.2014 तक किये गये साधूराम को त्रैमासिक ब्याज के भुगतान के विवरण में अंकित है। इसी विवरण में दिनांक 31.12.2012 को त्रैमासिक ब्याज का भुगतान साधूराम को किये जाने का अंकन है। दिनांक 01.04.2011 को विपक्षी डाकघर से विभिन्न खातों से किये गये कुल 25 आहरणों का सत्यापित विवरण दाखिल है जिसके क्रम संख्या-15 पर परिवादी के खाते के पुराने नं0-9010153 से रू0 1,125/-का आहरण किया जाना दर्शित है। इस प्रकार सम्बन्धित खातें का कम्प्यूटर से निकाला गया सत्यापित विवरण तथा दिनांक 01.04.2011 को विपक्षी डाकघर से विभिन्न खातों से, जिसमे परिवादी का भी उपरोक्त खाता क्र0 सं0-15 पर अंकित है, से किये गये आहरणों के सत्यापित विवरण से यह पूर्ण रूपेण पुष्ट होता है कि परिवादी द्वारा दिनांक 01.04.2011 को भी रू0 1,125/-त्रैमासिक ब्याज का भुगतान प्राप्त किया गया है।

            परिवादी का तर्क है कि दिनांक 01.04.2011 को किये गये भुगतान का विदड्राल फार्म दाखिल न कर विपक्षी ने प्रमुख साक्ष्य न्यायालय में लाने से छिपाया है। परिवादी का कथन है कि दिनांक 01.04.2011 का विदड्राल फार्म भी साक्ष्य में दाखिल होना चाहिये। इस बिन्दु पर विपक्षी का कथन है कि विदड्राल फार्म डाकघर में नियमानुसार पाँच वर्ष के लिये संरक्षित किये जाते है। इसके पश्चात् उसे नष्ट कर दिया जाता है। इस संबंध में विपक्षी बैंक ने भारत सरकार के डाक एवं संचार विभाग के आदेश नं0-14/2015 दिनांकित 19.10.2015 की प्रति दाखिल की है जिसमे रिकार्ड के संरक्षण के संबंध में बाउचर्स के संरक्षण की अवधि पाँच वर्ष अंकित है। इस संबंध में यह भी स्पष्ट करना उचित होगा कि इस जिला उपभोक्ता आयोग में परिवादी द्वारा विपक्षी से भुगतान से संबंधित अभिलेख दिनांक 04.03.2017 के आदेश से न्यायालय तलब किये गये और उक्त आदेश के अनुपालन में विपक्षी डाकघर ने दिनांक 03.12.2012 का मूल विदड्राल फार्म तथा परिवादी के खाते से त्रैमासिक ब्याज आहरित किये जाने का कम्प्यूटर से सत्यापित विवरण तथा दिनांक 01.04.2011 को विभिन्न खातों से किये गये आहरण के कम्प्यूटर से प्राप्त सत्यापित विवरण की प्रति दाखिल की। विपक्षी का कथन है कि वर्ष 2011 के भुगतान के विदड्राल फार्म पाँच वर्ष की अवधि बीतने के पश्चात् विनष्ट कर दिये गये, इसी कारण दिनांक 01.04.2011 को परिवादी को भुगतान की गई त्रैमासिक ब्याज की धनराशि का विदड्राल फार्म मूल रूप से साक्ष्य में प्रस्तुत कर पाना संभव नहीं है। जिससे स्पष्ट है कि विपक्षी ने दिनांक 01.04.2011 के विदड्राल फार्म की मूल प्रति न दाखिल करने का समुचित कारण स्पष्ट किया है।

            पूर्व के विवेचन से स्पष्ट है कि दिनांक 01.04.2011 को त्रैमासिक ब्याज के भुगतान का मूल विदड्राल फार्म दाखिल न होने पर शेष अभिलेखीय साक्ष्य से इस तथ्य की पूर्ण रूपेण पुष्टि होती है कि परिवादी को दिनांक 01.04.2011 को त्रैमासिक ब्याज का भुगतान विपक्षी द्वारा किया गया।

            उपरोक्त समस्त विवेचन के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि विपक्षी डाकघर द्वारा परिवादी को त्रैमासिक ब्याज का भुगतान किये जाने की सेवा में कोई कमी सिद्व नहीं होती है। परिवादी, परिवाद पत्र में अंकित किसी अनुतोष को प्राप्त करने के अधिकारी नहीं है। अतः वर्तमान परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।

आदेश

परिवाद संख्या-22/2015 निरस्त किया जाता है।

 

(0 एस0 के0 त्रिपाठी)       (मीना सिंह)           (संजय खरे)

     सदस्य                           सदस्य                   अध्यक्ष

यह निर्णय आज दिनांक को  आयोग  के  अध्यक्ष  एंव  सदस्य द्वारा  खुले न्यायालय में उद्घोषित किया गया।

 

(0 एस0 के0 त्रिपाठी)       (मीना सिंह)           (संजय खरे)

     सदस्य                           सदस्य                   अध्यक्ष

दिनांक 29.04.2023

 

 

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