सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ
अपील संख्या 2696 सन 2003
एवं
अपील संख्या 2756 सन 2003
1. डेस्क टू डेस्क कोरियर एण्ड कार्गो लि0 पंजीकृत कार्यालय डीटीडीसी हाउस नम्बर -3, विक्टोरिया रोड, बंग्लौर द्वारा सहायक क्षेत्रीय प्रबन्धक, क्षेत्रीय कार्यालय, रोहित भवन, सप्रूमार्ग, लखनऊ उ0प्र0 ।
2. डेस्क टू डेस्क कोरियर एण्ड कार्गो लि0 जी-313, अबूलेन मेरठ कैण्ट द्वारा एजेन्ट पाल ।
.......अपीलार्थी/प्रत्यर्थी
-बनाम-
पूरन चन्द्र जैन पार्टनर अमीत टेक्सटाइल्स पंचशील गली नम्बर-1, कैलेण्डर मिल बिल्डिंग, 78, चर्च रोड, मेरठ, उ0प्र0 । ।
. .........प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - श्री एस0पी0 पाण्डेय ।
प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता - कोई नहीं ।
दिनांक:-16-04-19
श्री गोवर्धन यादव, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील संख्या 2696 सन 2003 जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या 153 सन 2001 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.04.2003 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है ।
अपील संख्या 2756 सन 2003 जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या 153 सन 2001 के अन्तर्गत इजरा वाद संख्या 217 सन 2003 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 01.10.2003 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी हैं।
चूंकि उभय अपीलें एक ही प्रकरण से संबंधित हैं, अत: उभय अपीलों का निस्तारण एक साथ किया जा रहा है।
संक्षेप में, अपील संख्या 2696 सन 2003 से संबंधित प्रकरण के आवश्यक तथ्य इस प्रकार हैं परिवादी/प्रत्यर्थी ने परिवादी फर्म की तरफ से दिनांक 27.01.2001 को एक लिफाफा अपीलार्थी/विपक्षीगण को कोयम्बटूर पहुचाने के लिए दिया जिसमें 01 लाख रू0 का ड्राफ्ट एवं आवश्यक रखे थे। दिनांक 31.01.2001 को परिवादी/प्रत्यर्थी यह विश्वास करके कि संबंधित लिफाफा गन्तब्य स्थान पर पहुंच गया होगा, अपने कारोबार के संबंध में आरक्षण कराकर कोयम्बटूर गया तो उसे ज्ञात हुआ कि संबंधित लिफाफा अपीलार्थी द्वारा गन्तब्य तक नहीं पहुंचाया गया है जिससे उसे बहुत परेशानी हुयी और जो माल वह क्रय करने हेतु गया था, वह भी क्रय नहीं कर सका और उसे बिना माल के ही वापस आना पड़ा जिसमें उसका 10,444.00 रू0 का खर्च आया । परिवादी/प्रत्यर्थी का कहना है कि भेजा गया लिफाफा अपीलार्थी द्वारा '' नो सर्विस '' की टिप्पणी के साथ वापस कर दिया जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने जिला मंच के समक्ष परिवाद योजित किया।
जिला मंच के समक्ष पर्याप्त तामीली के बावजूद कोई उपस्थित नहीं हुआ, अत: उसके विरूद्ध एक पक्षीय सुनवाई करते हुए निम्न आदेश पारित किया गया :-
'' एतद्द्वारा परिवादी का परिवाद स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि वे परिवादी को अंकन 10,444.00 रू0 एक माह में अदा करें इसके अलावा एक हजार रूपए इस परिवाद का व्यय भी अदा करें। यदि उपरोक्त राशि एक माह में अदा नहीं की जाती है तो उपरोक्त समस्त राशि पर निर्णय की तिथि से भु्गतान की तिथि तक बारह प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज भी देय होगा। ''
अपील संख्या 2756 सन 2003 अपीलार्थी डेस्क टू डेस्क कूरियर एण्ड कार्गो लि0 द्वारा इस आशय से प्रस्तुत की गयी है कि उक्त परिवाद की नोटिस अपीलकर्ता को प्राप्त नहीं हुयी और उसके विरूद्ध एक पक्षीय आदेश पारित कर दिया गया तथा जिसके अनुपालन हेतु परिवादी की ओर से जिला मंच के समक्ष उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 27 के अन्तर्गत इजरा वाद संख्या 217/2003 दिनांक 06.08.2003 को दाखिल की गयी जिसमें जिला मंच ने अपीलकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी की । वस्तुस्थिति की जानकारी होने पर अपीलकर्ता द्वारा जिला मंच के समक्ष रेस्टोरेशन अप्लीकेशन दाखिल किया गया जिसे जिला मंच द्वारा खारिज करते हुए अपीलार्थी को एक वर्ष की सजा से दण्डित कर दिया जिससे क्षुब्ध होकर अपीलार्थी द्वारा जिला मंच द्वारा पारित एक वर्ष की सजा को समाप्त करने हेतु प्रस्तुत की है।
अपील के आधारों में कहा गया है कि जिला मंच का प्रश्नगत निर्णय विधिपूर्ण नहीं है तथा सम्पूर्ण तथ्यों को संज्ञान में लिए बिना प्रश्नगत निर्णय पारित किया गया है जो अपास्त किए जाने योग्य है।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एस0पी0 पाण्डेय के तर्क विस्तारपूर्वक सुने एवं पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों का सम्यक अवलोकन किया। बहस हेतु नोटिस की पर्याप्त तामीली के बावजूद प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट है कि परिवादी/प्रत्यर्थी ने दिनांक 27.01.2001 को एक लिफाफा अपीलार्थी/विपक्षीगण को कोयम्बटूर पहुचाने के लिए दिया जिसमें 01 लाख रू0 का ड्राफ्ट एवं आवश्यक कागजात रखे थे। दिनांक 31.01.2001 को परिवादी/प्रत्यर्थी अपने कारोबार के संबंध में आरक्षण कराकर कोयम्बटूर गया तो उसे ज्ञात हुआ कि संबंधित लिफाफा अपीलार्थी द्वारा नहीं पहुंचाया गया है जिससे उसे बहुत परेशानी हुयी और उसे बिना माल के ही वापस आना पड़ा । परिवादी/प्रत्यर्थी का कहना है कि भेजा गया लिफाफा अपीलार्थी द्वारा '' नो सर्विस '' की टिप्पणी के साथ वापस कर दिया अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि जो लिफाफा कोरियर से भेजा गया था वह कोयम्बटूर से बहुत दूर किसी ग्रामीण एवं दुर्गम इलाके का है जहां पर अपीलकर्ता की सर्विस नहीं है। अपीलकर्ता की कोरियर कम्पनी की सर्विस केवल शहरों एवं नगरों तक ही सीमित है इसलिए उक्त लिफाफा परिवादी को बिना किसी हानि के सकुशल वापस लौटा दिया गया है।अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कम्पनी के नियम एवं शर्तों की धारा-15 की ओर हमार ध्यान आकृष्ट किया गया जिसमें यह उल्लिखित है कि – In the event of damage or loss or mis delivery of a consignment, the maximum liability assumed by D.T.D.C. on a consignment is limited to Rs. 100 unless the sender declares higher value as “declared value for carriage”. And also at the applicable Risk Surcharge there of as “carriers Risk” at the time of tendering the consignment. इस प्रकार कोई कन्साइनमेंट खो जाता है तो कम्पनी १००/- रू० तक की अदायगी हेतु उत्तरदायी होगी।
विद्वान अधिवक्ता अपीलार्थी द्वारा भारतीय नाइटिंग कम्पनी बनाम डी0एच0एल0 वर्ल्ड वाइड एक्सप्रेस कोरियर डिवीजन आफ एयर फ्रेट लि0, 1996 ए0आई0आर0 (एस0सी0) 2508 के मामले में विश्वास व्यक्त किया गया है जिसमें मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है – ‘’ Applicability of provisions to courier service- On account of non-delivery of the cover, the State Commission of National Commission under the Act Could not give relief for damages in excess of the limits prescribed under the Contract. In appropriate case where there is an acute dispute of fact necessarily the Tribunal has to refer the parties to the original Civil Court under CPC. ‘’
मा0 उच्चतम न्यायालय के उपरोक्त निर्णय तथा पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा के आलोक में हमारे विचार से प्रत्यर्थी १००/- रू० क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है। मामले के तथ्य एवं परिस्थितियों के आलोक में 500/- रू० वाद व्यय के रूप में प्रत्यर्थी को दिया जाना न्यायसंगत होगा।
चूंकि मा0 उच्चतम आयोग के उक्त निर्णय के आलोक में अपील संख्या 2696 सन 2003 का निस्तारण उपरोक्तानुसार किया जा रहा है, अत: अपील संख्या 2756/03 के अन्तर्गत जिला मंच द्वारा इजरा वाद संख्या 217 सन 2003 में पारित सजा का कोई औचित्य नही रह जाता है। परिणामत: उभय अपीलों का निस्तारण तद्नुसार किया जा रहा है।
आदेश
अपील 2696 सन 2003 आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या 153 सन 2001 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.04.2003 अपास्त किया जाता है। अपीलार्थी को निर्देशित किया जाता है कि वे प्रत्यर्थी/परिवादी को १००/- (एक सौ) रू०, परिवाद योजित किए जाने की तिथि से धनराशि की अदायगी तक ०९ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज सहित निर्णय की तिथि से एक माह के अन्दर अदा किया जाना सुनिश्चित करें। इसके अतिरिक्त निर्धारित अवधि में 5००/- (पॉच सौ) रू० परिवाद व्यय के रूप में भी प्रत्यर्थी को अदा करें।
अपील संख्या 2756/03 स्वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या 153/2001 के अन्तर्गत इजरा वाद संख्या 217 सन 2003 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 01.10.2003 अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष इन अपीलों का व्यय भार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे।
इस निर्णय की एक प्रति अपील संख्या 2756/03 की पत्रावली में रखी जाए।
(उदय शंकर अवस्थी) (गोवर्धन यादव)
पीठासीन सदस्य सदस्य
कोर्ट-2
(S.K.Srivastav,PA)