Rajasthan

Churu

621/2011

RAMLAL - Complainant(s)

Versus

PNP GHANTAL - Opp.Party(s)

RRP

16 Feb 2015

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. 621/2011
 
1. RAMLAL
VPO KHANDWA CHURU
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Shiv Shankar PRESIDENT
  Subash Chandra MEMBER
  Nasim Bano MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू
अध्यक्ष- षिव शंकर
सदस्य- सुभाष चन्द्र
सदस्या- नसीम बानो
 
परिवाद संख्या-  621/2011
रामलाल पुत्र श्री लेखराम शर्मा जाति ब्राहमण उम्र 55 वर्ष निवासी ग्राम पोस्ट खण्डवा तहसील व जिला चूरू (राजस्थान)
...... परिवादी
बनाम
 
1.    पंजाब नेशनल बैंक शाखा, घण्टेल तहसील व जिला चूरू (राज.) जरिए शाखा प्रबन्धक                                            
......अप्रार्थीगण
दिनांक-   18.03.2015
निर्णय
द्वारा अध्यक्ष- षिव शंकर
1.    श्री राजेन्द्र राजपुरोेहित एडवोकेट  - परिवादी की ओर से
2.    श्री सुरेश शर्मा एडवोकेट         - अप्रार्थीगण की ओर से
 
 
1.    परिवादी ने अपना परिवाद पेष कर बताया कि परिवादी ग्राम खण्डवा तहसील व जिला चूरू का काश्तकार व्यक्ति है जो कि काश्त व मजदूरी कर अपने परिवार का पाल पोषण करता है। परिवादी ने अप्रार्थी से अपनी खातेदारी भूमि पर किसान क्रेडिट कार्ड बनवा रखा है जिसके परिवादी अपनी खरीफ व रबी फसल की बिजाई आदि के लिए समय-समय पर ऋण का लेन-देन करता चला आ रहा है। अप्रार्थी द्वारा परिवादी के किसान क्रेडिट खाता में दिनांक 10.02.2011 को रूपये 3045 व दिनांक 24.03.11 को रूपये 2520 रूपये लिगल एक्सपेन्सेज के नाम से गलत कटौति परिवादी को बगैर सूचना दिए व सूनवायी का अवसर दिए। प्राकृतिक न्याय के सिद्धान्तों के विपरीत कटौति कर ली गयी। जबकि परिवादी द्वारा अप्रार्थी के विरूद्ध कोई कानूनी मजाज, दावा नालिस आदि नहीं की गयी थी। परिवादी दिनांक 13.05.11 को अप्रार्थी के यहां गया तो उसे गलत कटौति का पता चला जिस पर परिवादी द्वारा अप्रार्थी को उक्त कटौति को निरस्त करने का निवेदन किया व अप्रार्थी से उक्त कटौति किस नियम, टैरिफ व परिपत्र को आधार बनाकर की गयी है बताने बाबत कहा गया जिस पर अप्राथी्र द्वारा शीघ्र ही उक्त कटौति को वापस खाता में जमा करने का आश्वासन दिया जाता रहा व परिवादी को आज तक उक्त गलत कटौति बाबत न तो बताया गया है व ना ही खाते में उक्त गलत की गई कटौति राशि को वापस जमा किया गया है जो कि बैंकिग व्यवसाय के विपरीत है व परिवादी ग्राहक उपभोक्ता की नाजायज खिलाफ कायदा राशि काटने से व परिवादी के निवेदन पर वापस जमा नहीं करने से परिवादी को भारी हैरान, परेशानी, मानसिक क्षति, कष्ट-पीड़ा व दुःख उठाना पड़ रहा है जिसकी तमाम क्षतिपूर्ति का दायित्व अप्रार्थी का है। अप्रार्थी द्वारा परिवादी के बार-बार निवेदन के बावजूद गलत कटौति की गई राशि वापिस नहीं लौटाना गम्भीर सेवादोष है व अस्वच्छ व्यापार है। इसलिए परिवादी ने अप्रार्थी बैंक द्वारा की गयी कटौति राशि क्रमशः 3045 व 2520 रू. मय ब्याज, मानसिक प्रतिकर व परिवाद व्यय दिलाने की मांग की है।
2.    अप्रार्थी ने परिवादी के परिवाद का विरोध कर जवाब पेश किया कि परिवादी ने उतरवादी बैंक से ऋण ले रखा है इस कारण परिवादी व उतरवादी के मध्य ऋणी व ऋणदाता का सम्बंध है जिस कारण कानूनन परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है तथा ऋणी व ऋणदाता के मध्य विवाद की स्थिति में परिवाद उपभोक्ता विवाद की श्रेणी में नहीं आता है इस कारण परिवाद माननीय मंच के श्रवणाधिकार का नहीं है। परिवादी द्वारा ऋण लेते समय अपनी कृषि भूमि खसरा नम्बर 168, 200, 360 वाके रोही खण्डवा पट्टा तथा खसरा संख्या 267, 268, 298, 342, 353 वाके रोही खण्डवा पट्टा के अपने हिस्सा को बैंक के पक्ष में बंधक किया गया था तथा उक्त दृष्टि बंधक परिसम्पतियों की प्रतिभूति पर ऋण लिया गया था।
3.    आगे जवाब दिया कि परिवादी द्वारा बैंक के पक्ष में दृष्टि बंधक कृषि भूमि खसरा संख्या 168, 200, 360 वाके रोही खण्डवा पट्टा के सम्बंध में एक दावा संख्या 07/11 राजस्व न्यायालय उपखण्ड अधिकारी चूरू के समक्ष पुरूषोतमलाल आदि द्वारा परिवादी व उतरवादी बैंक के खिलाफ किया गया जिस दावा में विवाद बैंक के पक्ष में दृष्टि बंधक सम्पति बाबत विवाद होने के कारण बैंक द्वारा प्रतिरक्षा किया जाना कानूनन आवश्यक था एवं परिवादी द्वारा दृष्टि बंधक सम्पति के सम्बंध में विवाद की स्थिति में बैंक को प्रतिरक्षा हेतु अधिवक्ता नियुक्त करना पड़ा तथा उस बाबत लीगल फीस व खर्चा राशि का भुगतान भी करना पड़ा जिसके लिए परिवादी उतरवादी है। परिवादी द्वारा बैंक के पक्ष में दृष्टि बंधक कृषि भूमि खसरा नम्बर 267, 268, 298, 342, 353 वाके रोही खण्डवा पट्टा के सम्बंध में एक अन्य दावा संख्या 08/11 रजस्व न्यायालय उपखण्ड अधिकारी, चूरू के समक्ष श्री पुरूषोतमलाल वगैरा ने परिवादी व उतरवादी बैंक के खिलाफ प्रस्तुत किया जिस दावा में भी उतरवादी बैंक द्वारा सम्पति बैंक के पक्ष में दृष्टि बंधक होने के कारण प्रतिरक्षा हेतु अधिवक्ता नियुक्त किया गया तथा लीगल फीस व खर्चा राशि का भुगतान किया गया जिसके लिए परिवादी उतरवादी है। परिवादी द्वारा ऋण लेते समय अनुबन्ध निष्पादित किया गया था जिस अनुबन्ध की शर्त संख्या 2 के अनुसार दृष्टि बंधक सम्पतियों के सम्बंध में बैंक की सभी प्रकार की लागत, खर्चे ऋण के खाता में डेबिट किए जाने का अनुबन्ध परिवादी द्वारा किया गया था फलस्वरूप परिवादी द्वारा बैंक के पक्ष में दृष्टिबंधक सम्पति के सम्बंध में विवाद की स्थिति में बैंक द्वारा वहन किया गया खर्चा विधिपूर्वक परिवादी के ऋण खाता में डेबिट किया गया है जो किसी प्रकार सेवा में त्रुटि नहीं है तथा परिवाद कानूनन स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है।
4.    परिवादी की ओर से परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, बैंक स्टेटमेन्ट, किसान क्रेडिट कार्ड की प्रति, दावा संख्या 07/11 व 08/11 की प्रति, जमाबन्दी की प्रति दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। अप्रार्थी की ओर से ऋण अनुबन्ध पत्र की प्रति, दावा संख्या 07/11 व 08/11 की प्रति, जवाब दावा की प्रति, वचन पत्र दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है।
5.    पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है।
6.    परिवादी अधिवक्ता ने परिवाद के तथ्यों को दौहराते हुए तर्क दिया कि परिवादी ने अप्रार्थी से अपने खातेदारी भूमि पर किसान क्रेडिट कार्ड बनवा रखा है जिसक खाता संख्या 400 है परिवादी उक्त खाते से समय-समय पर फसल की बिजाई हेतु ऋण का लेनदेन करता आ रहा है। अप्रार्थी ने दिनांक 10.02.2011 व 24.03.2011 को क्रमशः 3045 व 2520 रूपये की कटौति बैंकिंग नियम के विरूद्ध लिगल एक्सपेन्सेज के रूप में करते हुए परिवादी के खाते में डेबिट कर दी। परिवादी को उक्त तथ्य का ज्ञान होने पर परिवादी ने अप्रार्थी बैंक से सम्पर्क कर उक्त कटौतियों को निरस्त करने का निवेदन किया तो अप्रार्थी ने उक्त कटौति निरस्त करने से इन्कार कर दिया। अप्रार्थी बैंक द्वारा बैंकिग नियमों के विपरीत परिवादी के खाते से लिगल एक्सपेन्स के रूप में कटौति करना अप्रार्थी का सेवादोष है इसलिए परिवादी अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया। अप्रार्थी अधिवक्ता ने अपनी बहस में परिवादी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए तर्क दिया कि परिवादी के भाई पुरूषोतमलाल ने परिवादी के द्वारा अप्रार्थी बैंक में दृष्टिगत बंधक सम्पतियों के सम्बंध में दो वाद क्रमशः 07/11 व 08/11 उपखण्ड अधिकारी चूरू के समक्ष किये गये थे जिसमें अप्रार्थी बैंक को भी पक्षकार संयोजित किया गया है। अप्रार्थी बैंक को उक्त दावों में बैंक की ओर से पैरवी करने हेतु अधिवक्ता नियुक्त करना पड़ा जिस पर अप्रार्थी बैंक ने परिवादी व अप्रार्थी के मध्य निष्पादित अनुबन्ध की शर्त संख्या 2 के अनुसार उपरोक्त खर्चे परिवादी के खाते में डेबिट कर दिये जो कि बैंकिग नियम व अनुबन्ध के अनुसार ही है। अप्रार्थी बैंक द्वारा कोई सेवादोष नहीं किया गया। अप्रार्थी अधिवक्ता ने परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
7.    हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में परिवादी द्वारा अप्रार्थी बैंक से किसान क्रेडिट कार्ड बनवाना जिस हेतु परिवादी व अप्रार्थी बैंक के मध्य ऋण एग्रीमेन्ट निष्पादित किया जाना, परिवादी के भाई पुरूषोतमलाल के द्वारा परिवादी व अप्रार्थी बैंक के विरूद्ध वाद संख्या 07/11 व 08/11 उपखण्ड मजिस्ट्रेट चूरू के समक्ष किया जाना स्वीकृत तथ्य है। विवादक बिन्दु केवल यह है कि उक्त दावों की पैरवी में लगे खर्चे अप्रार्थी बैंक द्वारा परिवादी के खाते में डेबिट किया जाना अप्रार्थी बैंक का सेवादोष है। अप्रार्थी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि परिवादी व अप्रार्थी के मध्य किसान क्रेडिट कार्ड जारी करने के समय ऋण अनुबन्ध-पत्र निष्पादित किया गया था जिसकी शर्त संख्या 2 के अनुसार अप्रार्थी बैंक दृष्टिबन्धक सम्पति के सम्बंध में विवाद होने पर विधिक खर्चे परिवादी से वसूलने के अधिकारी है। बहस के दौरान अप्रार्थी अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान दृष्टिबंधक करार व वचन पत्र की ओर दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। दृष्टिबन्धक करार जो कि परिवादी व अप्रार्थी बैंक के मध्य दिनांक 28.07.2006 को निष्पादित किया गया था। उक्त दृष्टिबंधक करार की शर्त संख्या 3 इस प्रकार है- ज्ीम ंउवनदज व िंसस बवेज ;इमजूममद ।जजवतदमल ंदक बसपमदजद्ध बींतहमे ंदक मगचमदेमे व िजीम ठंदा ूीपबी जीम ठंदा उंल ींअम चंपक वत पदबनततमक पद ंदल ूंल पद बवददमबजपवद ूपजी जीम ीलचवजीमबंजमक हववके ंदक वजीमत ंेेमजे पदबसनकपदह जीम ेंसम ंदक कपेचवेंस जीमतमव िंदक ंदल वजीमत ेनउ जींज पे ीमतम नदकमत कमबसंतमक ंे कमइपजंइसम जव जीम ंबबवनदजे ंदक पदजमतमेज जीमतमवदण् इसी प्रकार वचन पत्र जो दिनांक 28.07.2006 को निष्पादित हुआ के पृष्ठ संख्या 3 में यह अंकित है कि ज्ींज ंसस बवेजे व िबवससमबजपवद व िकनमेए समहंस मगचमदेमे ंदक वजीमत बींतहमे ेींसस इम चंपक पद बंेम पज इमबवउमे दमबमेेंतल जव तममित जीम उंजजमत जव ं बवससमबजपवद ंहमदज वत जव जीम तमबवनतेम जव मदवितबम चंलउमदज वत वजीमतूपेमण् अप्रार्थी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि परिवादी व अप्रार्थी आपस में ऋण एग्रीमेन्ट की शर्तों से बंधे हुए है। अप्रार्थी द्वारा परिवादी के खाते में की गयी कटौति उक्त एग्रीमेन्ट की शर्तों के अनुसार ही की गयी है। इसलिए परिवाद खारिज करने का तर्क दिया। परिवादी अधिवक्ता ने अप्रार्थी अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि किसी तृतीय पक्ष के द्वारा कोई वाद किया जाता है तो उसके लिए परिवादी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। परिवादी अधिवक्ता का उक्त तर्क मान्य नहीं है क्योंकि पत्रावली पर उपलब्ध वाद-पत्रों के अवलोकन के अनुसार दृष्टिबंधक सम्पति के सम्बंध में विवाद करने वाला परिवादी का भाई है। इसके अतिरिक्त परिवादी ने पत्रावली पर दृष्टिबंधक सम्पति के सम्बंध में उपखण्ड अधिकारी के समक्ष वाद पत्रों में परिवादी के द्वारा जो जवाब दावा दिया गया उसकी प्रतियां प्रस्तुत नहीं की और बिना जवाब दावा के अवलोकन से यह तथ्य साबित नहीं हो सकता कि परिवादी की उपखण्ड अधिकारी चूरू के समक्ष विचाराधीन वादों में स्थिति क्या है अर्थात् परिवादी अप्रार्थी बैंक में दृष्टिबंधक सम्पति के सम्बंध में विवाद मानता है या नहीं ऐसी स्थिति में मंच की राय में अप्रार्थी द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों का न मानने का कोई आधार नहीं है अप्रार्थी अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों से स्पष्ट है कि परिवादी व अप्रार्थी किसान क्रेडिट ऋण जारी करने के समय जो ऋण अनुबन्ध निष्पादित किया गया था। उसकी शर्तों से बंधे हुए है अर्थात् अप्रार्थी बैंक द्वारा यदि ऋण एग्रीमेन्ट के विपरीत कोई शर्त आरोपित की जाती है तो अप्रार्थी बैंक का सेवादोष माना जा सकता है, अन्यथा नहीं। ऐसा ही मत माननीय राष्ट्रीय आयोग उत्तरप्रदेश के द्वारा अपने न्यायिक दृष्टान्त रपती हाउसिंग एण्ड जनरल फायनेन्स लि. बनाम श्रीमति सीता अग्रवाल 1 सी.पी.जे. 2003 पेज 249 में दिया है। उक्त न्यायिक दृष्टान्त में माननीय राष्ट्रीय आयोग ने यह मत दिया कि ॅीमद जीम चंतजपमे ींअम मदजमतमक पदजव ंद ंहतममउमदज ंदक ेमजजसमक जीम जमतउे व िजीम बवदजतंबज जीमद जीमल ंतम इवनदक इल ेनबी बवदजतंबजण् उक्त न्यायिक दृष्टान्त के तथ्य वर्तमान प्रकरण के तथ्यों से पूर्णत चस्पा होते है क्योंकि परिवादी व अप्रार्थी के मध्य ऋण अनुबन्ध पत्र दिनांक 28.07.2006 को निष्पादित हुआ था। जिसमें यह स्पष्ट अंकित है कि दृष्टिबंधक सम्पति के सम्बंध में उद्भूत होने वाले किसी भी प्रकार के खर्चे हेतु परिवादी उत्तरदायी है। मंच की राय में अप्रार्थी बैंक द्वारा परिवादी के खाते से वाद संख्या 07/11 व 08/11 की पैरवी में लगे खर्चे की कटौति किया जाना अप्रार्थी का कोई सेवादोष नहीं है। इसलिए परिवादी का परिवाद अप्रार्थी बैंक के विरूद्ध खारिज किये जाने योग्य है।
         अतः परिवादी का परिवाद अप्रार्थी के विरूद्ध अस्वीकार कर खारिज किया जाता है। पक्षकारान प्रकरण का व्यय अपना-अपना वहन करेंगे। परिवादी चाहे तो अपना प्रकरण सक्षम सिविल न्यायालय में प्रस्तुत करने हेतु स्वतन्त्र है।
 
 
सुभाष चन्द्र              नसीम बानो                षिव शंकर
  सदस्य                 सदस्या                     अध्यक्ष                         
    निर्णय आज दिनांक 18.03.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
    
 
सुभाष चन्द्र              नसीम बानो                षिव शंकर
     सदस्य                सदस्या                     अध्यक्ष     
 

 
 
[HON'BLE MR. Shiv Shankar]
PRESIDENT
 
[ Subash Chandra]
MEMBER
 
[ Nasim Bano]
MEMBER

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