Rajasthan

Churu

56/2013

SHYAM LAL - Complainant(s)

Versus

PNB SARDARSHAR - Opp.Party(s)

RAMNIWAS SAHARAN

12 Jun 2014

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, चूरू
अध्यक्ष- षिव शंकर
सदस्य- सुभाष चन्द्र
सदस्या- नसीम बानो
 
परिवाद संख्या-   56/2013
मोहरादेवी पत्नि श्री जयकरण जाति जाट निवासीनी ग्राम भालेरी तहसील तारानगर जिला चूरू (राजस्थान)
......प्रार्थीया
बनाम
 
1.    बड़ौदा राजस्थान ग्रामीण बैंक शाखा भालेरी तहसील तारानगर जिला चूरू जरिए शाखा प्रबन्धक
2.    बजाज एलाईन्स लाईफ इन्श्योरेन्स कम्पनी, मुख्यालय, जी.ई. प्लाजा एयरपोर्ट रोड़ रावड़ा पोः पूणें महाराष्ट्र जरियए प्रबन्ध निदेशक
                                         ......अप्रार्थीगण
दिनांक-  23.04.2015
निर्णय
द्वारा अध्यक्ष- षिव शंकर
1.    श्री नरेन्द्र शर्मा एडवोकेट    - प्रार्थीया की ओर से
2.    श्री सुरेश शर्मा एडवोकेट व
श्रुति कौशिक एडवोकेट     - अप्रार्थी संख्या 1 की ओर से
3.    श्री अभिषेक टावरी एडवोकेट - अप्रार्थी संख्या 2 की ओर से
 
 
1.    प्रार्थीया ने अपना परिवाद पेष कर बताया कि प्रार्थीया के स्व. पति ने एक बचतखात संख्या 6687 अप्रार्थी संख्या 1 के यहां खुलवाया था व प्रार्थीया के पति ने अप्रार्थी संख्या 1 से किसान क्रेडिट कार्ड भी जारी करवाया गया था। प्रार्थीया व प्रार्थीया का परिवार कृषि कार्य कर अपने परिवार का पालन पोषण करते है अप्रार्थी संख्या 1 के यहां सुरक्षा बीमा मास्टर पोलिसी संख्या 0121670530 व दिनांक 20.02.2009 जारी की गई थी व प्रार्थीया के पति जयकरण से प्रीमियम राशि 5,000 रूपये लेकर दिनांक 25.08.2010 को मेम्बरशीप संख्या 9995066348 तत्काल बीमा जारी कर अप्रार्थी संख्या 1 के द्वारा कहा कि आपको एक लाख पचीस हजार रूपये का बीमा कवर होगा तथा कहाकि बीमा अवधि पांच वर्ष व सालाना प्रीमियम 5,000 रूपये बताया और अप्रार्थी संख्या 1 ने यह भी कहा कि यह बीमा पोलिसी कृषक तथा कामगार के लिए एक उत्कृष्ठ बीमा पेालिसी है तथा उक्त प्रीमियम राशि बीमाधारी से लेकर अप्रार्थी संख्या 2 बीमा कम्पनी को जमा करवा दिए जावेंगे। अप्रार्थी संख्या 1 के द्वारा प्रार्थीया के पति स्व. जयकरण को उक्त पोलिसी के फायदे बताये पर प्रार्थीया के पति स्व. जयकरण ने दिनांक 26.08.2011 को उक्त बीमा पोलिसी की दूसरी किश्त प्रीमियम राशि के 5,000 रूपये जमा करवा दिऐ गये तथा प्रार्थीया के पति के नाम से बाॅण्ड भी पूर्व में जारी कर दिया तथा भविष्य के प्रीमियम अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा प्रार्थीया के पति के बचत खाता से आहरित कर अप्रार्थी संख्या 2 को प्रीमियम राशि भेजी जानी बतायी तथा अप्रार्थी ंसख्या 1 द्वारा कहा गया कि आगामी प्रीमियम राशि दिनांक 25.08.2012 के तीन माह में बैंक द्वारा आहरित कर बीमा कम्पनी को भेजा जाना था। प्रार्थीया के पति जयकरण की मृत्यु बीमा अवधि में दिनांक 14.10.11 को हो गई थी। प्रार्थीया के पति द्वारा बीमा पोलिसी में प्रार्थीनी अपने पति की नोमिनी थी। प्रार्थीया नोमिनी होने पर अप्रार्थी संख्या 1 के कार्यालय में अपने स्व. पित का दावा क्लेम समस्त दस्तावेज के साथ पेश किया।
2.    आगे प्रार्थीया ने बताया कि अप्रार्थी द्वारा शीघ्र ही दावा कर कार्यवाही कर क्ेलम भुगतान किए जाने का आश्वासन दिया जाता रहा व काफी दिनों तक क्ेलम दावा सैटल नहीं किया गया जिस पर प्रार्थीया द्वारा अपने अधिवक्ता के माध्यम से दिनांक 13.04.2012 को एक विधिक नोटिस भी अप्रार्थीगण को प्रेषित करवाया गया जिस पर भी अप्रार्थी द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई व दिनांक 14.04.2012 को एक पत्र द्वारा बिना कोई सुनवाई व आधार के गलत कारण से प्रार्थीया का बीमा क्लेम दावा यह अंकित कर कि प्रार्थीया के स्व. पति जयकरण जाट द्वारा नवीनीकरण बीमा प्रीमियम जमा नहीं करवाने से बीमा दावा निरसत कर दिया गया है। जबकि प्रार्थीया के पति ने जीवन पर जारी मास्टर बीमा पोलिसी संख्या 0121670530 का नवीनीकरण प्रीमियम दिनांक 25.08.2011 को ड्यू था व अप्रार्थी के बताए अनुसार 90 दिन की ग्रेस पिरीयड अवधि थी के हिसाब से माह नवम्बर 2011 की 25 तारीख तक प्रीमियम जमा होना था जो इससे पूर्व जमा हो चुका था। लेकिन प्रार्थीया के पति की मृत्यु दिनंांक 14.10.2011 को हो जाने व मृत्यु के दिन तक बीमा पोलिसी प्रभाव में थी व अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा अप्रार्थी संख्या 2 को स्व प्रीमियम राशि बचत खाता से आहरित कर अप्रार्थी बीमा कमपनी के प्रेषित करनी थी। प्रार्थीया के पति की बीमा पोलिसी योजना विशेष में बीमा पोलिसी थी जो तत्काल बीमा के नाम से ली। उक्त बीमा पोलिसी 125000 रूपये की थी तथा 5,000 रूपये बीमा प्रीमियम था व प्रार्थीया के स्व. पति द्वारा दिए प्रार्थना-पत्र की संख्या बी.आर.जी.बी 57853 में प्रार्थीया पत्नि होने से नोमिनी थी जो दिनांक 25.08.2010 को शुरू हुई थी व दिनांक 25.08.2011 को रिनिवल होनी थी तथा ग्रेस पीरियड तीन माह था। प्रार्थीया का बीमा दावा अप्रार्थी द्वारा बिना कोई आधार के गलत निरस्त कर दिया जबकि प्रार्थीया के पति की मृत्यु के समय बीमा पोलिसी न तो निरस्त थी ना ही रद्ध थी इस कारण दावा भुगतान करने हेतु अप्रार्थी दायित्वाधीन थे। क्लेम दावा संख्या 196521 निरस्त करना सेवादोष है। इसलिए प्रार्थीया ने दावा राशि 1,25,000 रूपये मय ब्याज, मानसिक प्रतिकर व परिवाद व्यय की मांग की है।
3.    अप्रार्थी संख्या 1 ने प्रार्थीया के परिवाद का विरोध कर जवाब पेश किया कि प्रार्थीया के पति द्वारा उत्तरवादी संख्या 2 से पाॅलिसी अनुबन्ध किया गया था जिसके अनुसार प्रतिवर्ष 25 अगस्त तक प्रीमियम (मेम्बरशिप) राशि का भुगतान खाता धारक द्वारा किया जाना आवश्यक था। प्रार्थीया के पति की ओर से दिनांक 25.08.2010 को प्रीमियम जमा करवाया गया था जिसके बाद दिनांक 25.08.2011 तक अगला प्रीमियम जमा कराया जाना आवश्यक था परन्तु बीमा धारक द्वारा उक्त प्रीमियम राशि का भुगतान दिनांक 25.08.2011 तक नहीं किया गया था। दिनांक 25.08.2011 को बीमा धारक खाताधारी के बचत खाता में केवल 517 रूपये ही जमा शेष था इस कारण उतरवादी बैंक द्वारा भी प्रार्थीया के पति के खाता से उक्त प्रीमियम राशि 5,000 रूपये ट्रंासफर कर भुगातन किया जाना संभव नहीं था। इस प्रकार बीमा प्रीमियम हेतु उतरवादी बैंक की सेवा में कोई त्रुटि नहीं रही है। प्रार्थीया के पति द्वारा केसीसी ऋण के दौरान अनुबन्ध किया गया था उसके अनुरूप भी बीमा प्रीमियम भुगतान का दायित्व स्वंय खाता धारक ऋणी का था एवं बैंक का कोई भी दायित्व बीमा प्रीमियम भुगतान के लिए नहीं था इस कारण उतरवादी बैंक की सेवा में कोई त्रुटि नहीं रही है तथा बैंक के खिलाफ परिवाद चलने योग्य नहीं है।
4.    आगे जवाब दिया कि प्रार्थीया के पति द्वारा दिनांक 25.08.2011 की अवधि व्यतीत होने के बाद दिनांक 26.08.2011 को अपने बचत खाता में 5,000 रूपये जमा कराये गये थे परन्तु उतरवादी संख्या 2 बीमा कमपनी को भुगतान हेतु कोई आवेदन व निर्देश उतरवादी संख्या 1 को नहीं दिया गया था। अनुबन्ध के अनुसार प्रीमिय दिनांक 25.08.2011 तक ही जमा कराया जा सकता था। प्रार्थीया द्वारा राशि जमा कराने की तीन माह की अवधि में प्रीमियम राशि आहरित कर बीमा कम्पनी को भिजवाया जाना गलत अंकित किया गया है। जबकि ऐसा कोई प्रावधान नहीं रहा है न ही अनुबन्ध में ऐसी कोई शर्त तैय की हुई थी। इस प्रकार क्नम क्ंजम के बाद बचत खाता में राशि जमा कराने मात्र से उतरवादी बैंक किसी प्रकार प्रीमियम भुगतान के लिए उतरवादी नहीं हो सकता है। खाता धारक के बीमा प्रमाण-पत्र शर्तों में भी ग्रेस पीरियड नहीं दिया गया था। इस प्रकार देय दिनांक के बाद प्रीमियम भुगतान नहीं किया जा सकता था। प्रार्थीया के पति श्री जयकरण के बीमा प्रमाण-पत्र में स्पष्ट शर्त निर्धारित थी कि ‘‘बीमा प्रीमियम विशिष्ठ देय दिनांक को भुगतान किया जाना आवश्यक है एवं देय दिनांक को प्रीमियम भुगतान नहीं करने पर पाॅलसी लेप्स हो जावेगी‘‘। इस प्रकार बीमा धारक खाताधारी द्वारा देय दिनांक 25.08.2011 को प्रीमियम राशि जमा नहीं कराने के कारण उतरवादी बैंक किसी प्रकार बीमा लाभ के लिए उतरदायी नहीं है तथा बैंक के खिलाफ परिवाद चलने योग्य नहीं है। उक्त आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
5.    अप्रार्थी संख्या 2 ने अलग से जवाब पेश कर बताया कि अप्रार्थी बड़ौदा राजस्थान ग्रामीण बैंक द्वारा अप्रार्थी बीमा कम्पनी से मास्टर पाॅलिसी प्राप्त की गई थी जो मास्टर पाॅलिसी संख्या 0121670530 है तथा इस पाॅलिसी हेतु अप्रार्थी बैंक मास्टर पाॅलिसी होल्डर है। तत्पश्चात् बैंक ने ही इस मास्टर पाॅलिसी के तहत अन्य सदस्यों को पाॅलिसी से जोड़ा है एवं अप्रार्थी बैंक ही इस मास्टर पाॅलिसी की ।कउपदपेजतंजवत है जिसके तहत ही मृतक जयकरण को बैंक ने इस पाॅलिसी से मैम्बरशिप पाॅलिसी संख्या 9995066348 के जरिये जोड़ा। हस्तगत परिवाद उतरदाता बीमा कम्पनी के विरूद्ध चलने योग्य नहीं है क्योंकि अप्रार्थी बीमा कम्पनी की सेवाओं में किसी प्रकार का सेवादोष नहीं है। अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने तो मात्र मृतक द्वारा स्वीकृत पाॅलिसी शर्तों की पालना की है जो पाॅलिसी कवर सर्टिफिकेट के क्लाॅज न. 02 व सब क्लोज-डी में स्पष्ट रूप से अंकित व स्वीकृत है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि मास्टर पाॅलिसी होल्डर अप्रार्थी बड़ौदा राजस्थान ग्रामीण बैंक द्वारा मृतक का बीमा रिन्युअल प्रीमियम कभी भी अप्रार्थी बीमा कम्पनी को टेण्डर नहीं किया गया ना ही बीमा कम्पनी को कभी प्रीमियम प्राप्त हुआ, जिस कारण मृतक की बीमा पाॅलिसी कालातित हो गई, इस कारण फण्ड वैल्यू रूपये 3056 मृतक के नाॅमिनी को अदा करने हेतु बीमा कम्पनी दायित्वाधीन थी जो राशि चैक संख्या 8810 दिनांकित 27.01.2012 के जरिये अदा की जा चुकी है। अब प्रार्थीया इस पाॅलिसी के तहत अन्य कोई अनुतोष प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है।
6.    आगे जवाब दिया कि इन्श्योरेन्स अधिनियम की धारा 64 टठ अनुसार भी उतरदाता बीमा कम्पनी क्लेम अदायगी हेतु किसी भी रूप में दायित्वाधीन नहीं है तथा अप्रार्थी बीमा कम्पनी का कृत्य किसी भी रूप में सेवादोष की श्रेणी में नहीं आता है। विवादित बीमा पाॅलिसी बाबत प्रीमियम अदायगी हेतु किसी प्रकार का कोई ग्रेस पीरियड नहीं था अपितु दिनांक 25.08.2011 ही प्रीमियम जमा करवाने के अन्तिम तिथि थी जिस बाबत स्पष्ट रूप से अंकन प्रार्थीया के पति जयकरण के इन्श्योरेन्स सर्टिफिकेट में मौजूद है। बीमा पाॅलिसी एक संविदा है जिसके तहत संविदा की समस्त शर्ते पक्षकारों पर बाध्यकारी है तथा किसी भी पक्षकार द्वारा बीमा संविदा शर्तों के विपरीत कोई कथन नहीं किया जा सकता है, इस कारण भी यह परिवाद ।ससमहंजपव बवदजतं ंिबजनउ दवद मेज ंकउपजजमदकं के सिद्धान्त पर भी खारिज किये जाने योग्य है। प्रार्थीया को कम्पनी द्वारा चैक संख्या 8810 दिनांक 27.01.2012 के जरिये 3056 रूपये अन्तिम रूप से अदा किये जा चूके है जो बिना किसी प्रोटेस्ट के प्रार्थीया ने भुगतान प्राप्त कर लिया है। इस कारण परिवाद चलने योग्य नहीं है।
7.    प्रार्थीया ने अपने परिवाद के समर्थन में स्वंय का शपथ-पत्र, विधिक नोटिस, ए.डी., पासबुक की प्रति, रसीद दिनांक 26.08.2011, 25.08.2010, इन्श्योरेन्स प्रमाण-पत्र, बीमा पोलिसी की प्रति, मृत्यु प्रमाण-पत्र, पत्र दिनांक 14.04.2012 दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। अप्रार्थी संख्या 1 की ओर से सर्टिफिकेट आॅफ इन्श्योरेन्स स्टेटमेन्ट आॅफ अकाउन्टस, पत्र दिनांक 30.01.2012, 05.03.2012, 14.04.2012 दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है। अप्रार्थी संख्या 2 की ओर से श्री केदार उपाध्याय का शपथ-पत्र, पत्र दिनांक 20.12.2011 दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया है।
8.    पक्षकारान की बहस सुनी गई, पत्रावली का ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया, मंच का निष्कर्ष इस परिवाद में निम्न प्रकार से है।
9.    प्रार्थीया अधिवक्ता ने परिवाद के तथ्यों को दौहराते हुए तर्क दिया कि प्रार्थीया के स्व. पति ने अप्रार्थी संख्या 1 के यहां एक बचत खाता संख्या 6687 खुलवाया था। जिस पर किसान क्रेडिट कार्ड भी जारी किया गया था। अप्रार्थी संख्या 1 ने प्रार्थीया के पति की सुरक्षा बाबत बीमा मास्टर पोलिसी संख्या 0121 670530 किया था। उक्त बीमा दिनांक 25.08.2010 से शुरू होकर मेम्बरशिप संख्या 9995066348 प्रार्थीया के पति को जारी किया गया। उक्त बीमा पोलिसी में 5,000 रूपये प्रतिवर्ष प्रीमियम निर्धारित किया गया। उक्त बीमा पोलिसी में 30 दिन का ग्रेस पीरियड भी दिया गया था। प्रार्थीया के पति ने अपनी द्वितीय किश्त दिनांक 26.08.2011 को अप्रार्थी संख्या 1 बैंक में जमा करवायी परन्तु बैंक के टेक्नीकल प्रोब्लम की वजह से प्रार्थीया के पति द्वारा जमा करवायी गयी किश्त की राशि अप्रार्थी बीमा कम्पनी को बैंक द्वारा नहीं भिजवायी गयी। इसी दौरान दिनंाक 14.10.2011 को प्रार्थीया के पति की मृत्यु हो गयी जिस पर प्रार्थीया ने प्रश्नगत पोलिसी के पेटे अप्रार्थीगण के यहां समस्त औपचारिकतांए पूरी करते हुए क्लेम हेतु आवेदन किया। परन्तु अप्रार्थीगण ने प्रार्थीया का क्लेम इस आधार पर खारिज कर दिया कि प्रार्थीया के पति द्वारा ड्यू डेट पर प्रीमियम जमा नहीं करवाने के कारण पोलिसी लेप्स हो गयी। जबकि प्रार्थीया के पति ने समयावधि में अपनी प्रीमियम राशि जमा करवा दी थी। फिर भी अप्रार्थीगण ने अपनी गलत छुपाते हुए बिना किसी आधार के प्रार्थीया का क्लेम अस्वीकार कर दिया। जो अप्रार्थीगण का सेवादेाष है। इसलिए प्रार्थीया अधिवक्ता ने परिवाद स्वीकार करने का तर्क दिया।
10. अप्रार्थी संख्या 1 अधिवक्ता ने अपनी बहस में प्रार्थीया अधिवक्ता के तर्कों का विरोध करते हुए मुख्य तर्क यही दिया कि प्रार्थीया के पति को जारी बीमा प्रमाण-पत्र में प्रतिवर्ष प्रीमियम जमा करवाने हेतु ड्यू डेट 25 अगस्त निश्चित थी। जबकि प्रार्थीया के पति जयकरण ने 26 अगस्त अर्थात् ड्यू डेट के एक दिन बाद जमा करवाया जबकि पोलिसी लेप्स हो चूकी थी। प्रश्नगत पोलिसी में ग्रेस पीरियड का कोई प्रावधान नहीं था व बीमा प्रमाण-पत्र में यह स्पष्ट शर्त निर्धारित थी कि बीमा प्रीमियम विशिष्ट देय दिनांक को भुगतान किया जाना आवश्यक है एवं देय दिनांक को प्रीमियम भुगतान नहीं करने पर पोलिसी लेप्स हो जायेगी। अप्रार्थी संख्या 1 स्वंय बेनिफिसरी है और विधि अनुसार एक बेनिफिसरी दूसरे बेनिफिसरी के विरूद्ध परिवाद लाने का अधिकारी नहीं है। उक्त आधारों पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
11. अप्रार्थी संख्या 2 अधिवक्ता ने अपनी बहस में यह तर्क दिया कि प्रार्थीया के पति का बीमा प्रीमियम का नवीनीकरण दिनांक 25.08.2011 को ड्यू हुआ था। जिसने समय पर बीमा प्रीमियम जमा नहीं करवाने की वजह से बीमा पोलिसी लेप्स हो चूकी थी। प्रश्नगत बीमा पोलिसी में प्रार्थीया के पति को जारी प्रमाण-पत्र के क्लोज 2 व डी. में ग्रेस पीरियड का प्रावधान नहीं था। वर्तमान मास्टर पोलिसी अप्रार्थी बैंक के मास्टर पोलिसी होल्डर था जिसके द्वारा प्रार्थीया के पति का प्रीमियम अप्रार्थी बीमा कम्पनी को भिजवाया जाना था। परन्तु प्रार्थीया के पति का प्रीमियम अप्रार्थी बीमा कम्पनी के पास समयावधि दिनांक 25.08.2011 को नहीं पहुंचा इसलिए प्रार्थीया के पति की पोलिसी लेप्स हो चुकी। अप्रार्थी बीमा कम्पनी का कोई सेवादोष नहीं है। बीमा पोलिसी एक संविदा है जिसके तहत संविदा की समस्त शर्तें पक्षकारों पर बाध्यकारी है। प्रार्थीया का परिवाद ।ससमहंजपव बवदजतं ंिबजनउ दवद मेज ंकउपजजमदकं के सिद्धान्त पर भी खारिज किये जाने योग्य है।
12. हमने उभय पक्षों के तर्कों पर मनन किया। वर्तमान प्रकरण में प्रार्थीया के पति का बीमा अप्रार्थी संख्या 1 के माध्यम से अप्रार्थी संख्या 2 के द्वारा किया जाना जिस हेतु मेम्बरशीप संख्या 9995066348 जारी किया जाना। प्रीमियम राशि 5,000 रूपये होना, प्रार्थीया के पति की मृत्यु दिनांक 14.10.2011 को होना तथा प्रार्थीया का क्लेम पत्र दिनांक 14.04.2012 के माध्यम से अस्वीकृत किया जाना स्वीकृत तथ्य है। विवादक बिन्दु यह है कि प्रश्नगत स्वंय शक्ति सुरक्षा बीमा पोलिसी में ग्रेस पीरियड का कोई प्रावधान नहीं होने के कारण प्रार्थीया के पति की पोलिसी प्रीमियम की राशि निर्धारित ड्यू डेट 25.08.2011 को जमा नहीं करवाने पर लेप्स हो चूकी। अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने अपनी बहस में मुख्य तर्क यही दिया कि प्रश्नगत पोलिसी में ग्रेस पीरियड का कोई प्रावधान नहीं रखा गया था। उक्त तर्कों के सम्बंध में अप्रार्थी संख्या 1 द्वारा बीमा प्रमाण-पत्र की ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। उक्त बीमा प्रमाण-पत्र की प्रति प्रार्थीया अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत की गयी है। बीमा प्रमाण-पत्र जो कि दिनांक 25.08.2010 से प्रारम्भ होना अंकित किया गया है। उक्त प्रमाण-पत्र में पोलिसी का विवरण के साथ कवर कंडीशन अंकित की गयी है जिसमें शर्त संख्या 2 इस प्रकार है कि त्महनसंत चतमउपनउे ंतम चंलंइसम वद जीम ेचमबपपिमक कनम कंजमेण् ज्ीम बवअमतंहम ूवनसक संचेम पद बंेम व िदवद चंलउमदज व िचतमउपनउे पद कनम जपउमण् यह सही है कि उक्त प्रमाण-पत्र में निर्धारित डेट निश्चित है जिसके अनुसार प्रार्थीया क पति को प्रीमियम की राशि 25.08.2011 तक जमा करवानी थी। परन्तु प्रार्थीया के पति के द्वारा प्रीमियम की राशि 26.08.2011 को जमा करवायी गयी। उक्त प्रमाण-पत्र के आधार पर अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने तर्क दिया कि प्रार्थीया का पति स्वंय लापरवाह रहा जिस कारण पोलिसी लेप्स हो गयी। इसलिए उक्त शर्त के आधार पर परिवाद खारिज करने का तर्क दिया।
13. प्रार्थीया अधिवक्ता ने अप्रार्थीगण अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि यह सही है कि प्रार्थीया के पति को जारी प्रमाण-पत्र में ग्रेस पीरियड अंकित नहीं है जबकि पोलिसी में ग्रेस पीरियड विद्यमान है। प्रार्थीया अधिवक्ता ने अपनी बहस के दौरान इस मंच का ध्यान स्वंय शक्ति सुरक्षा पोलिसी की टर्म एण्ड कंडीशन की ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। उक्त बीमा पोलिसी की शर्त संख्या 1 का विवरण दिया जा रहा है। ज्ीम च्तमउपनउ ंउवनदज पद निसस पे चंलंइसम वद च्तमउपनउ क्नम क्ंजमे ूपजीवनज ंदल वइसपहंजपवद नचवद जीम ब्वउचंदल जव पेेनम ं दवजपबम वित जीम ेंउमण् प्द बंेम च्तमउपनउ पे दवज चंपक वद जीम च्तमउपनउ क्नम क्ंजम ंदक इमवितम जीम मगचपतल व िळतंबम च्मतपवक व ि15 कंले वित उवदजीसल तिमुनमदबल व िच्तमउपनउ चंलउमदज ंदक वदम उवदजी इनज दवज समेे जींद 30 कंले वित वजीमत तिमुनमदबल व िच्तमउपनउ च्ंलउमदजए विससवूपदह जीम च्तमउपनउ क्नम क्ंजमए जीम स्पमि प्देनतंदबम ब्वअमत ेींसस संचेमण् डमउइमतेीपच नदकमत जीम हतवनच पदेनतंदबम ेबीमउम ेींसस इम जमतउपदंजमक ंज जीम मगचपतल व ितमअपअंस चमतपवक व ि3 लमंते तिवउ जीम कनम कंजम व िपितेज नदचंपक चतमउपनउण् व्द चंलउमदज व िंसस जीम च्तमउपनउ कनम वित जीम चमतपवक कनतपदह ूीपबी जीम स्पमि प्देनतंदबम ब्वअमत ींे संचेमक ंदक जीम डमउइमत ेंजपेलिपदह जीम नदकमतूतपजपदह तमुनपतमउमदजए प िंदलए व िजीम ब्वउचंदल जीम स्पमि प्देनतंदबम ब्वअमत उंल इम तमअपअमकण् पोलिसी की उक्त शर्त से स्पष्ट है कि प्रश्नगत पोलिसी में ग्रेस पीरियड का प्रावधान रखा था और प्रार्थीया के पति ने ड्यू डेट दिनांक 25.08.2011 के दूसरे दिन दिनांक 26.08.2011 को अपना प्रीमियम जमा करवा दिया था। यह स्वीकृत तथ्य है अप्रार्थीगण अधिवक्ता ने अपनी बहस में मुख्य आपत्ति यही ली थी कि प्रश्नगत मास्टर पोलिसी में ग्रेस पीरियड का कोई प्रावधान नहीं रखा गया। इसलिए उक्त तथ्य को साबित करने का भार अप्रार्थीगण पर था जिससे अप्रार्थीगण प्रश्नगत पोलिसी के नियम व शर्तें पेश कर इस तथ्य को साबित कर सकते थे। परन्तु अप्रार्थीगण ने पत्रावली पर स्वंय शक्ति सुरक्षा पोलिसी की प्रति या नियम व शर्तें जानबूझ कर प्रस्तुत नहीं की इससे यही अवधारणा की जाती है कि यदि अप्रार्थीगण प्रश्नगत पोलिसी के नियम व शर्तें पत्रावली पर प्रस्तुत करते तो वह उनके विरूद्ध पढ़ी जाती। प्रार्थीया द्वारा प्रस्तुत प्रश्नगत पेालिसी की शर्तं संख्या 1 के अनुसार अप्रार्थीगण अधिवक्ता का यह तर्क मानने योग्य नहीं है कि ग्रेस पीरियड का कोई प्रावधान नहीं रखा गया था।
14. अप्रार्थी संख्या 2 अधिवक्ता ने अपनी बहस में यह तर्क दिया कि यदि यह मान लिया जावे कि प्रश्नगत पोलिसी में ग्रेस पीरियड था फिर भी यह स्वीकृत है कि अप्रार्थी संख्या 1 बैंक ने प्रार्थीया के पति द्वारा प्रीमियम पेटे जमा करवायी गयी राशि का भुगतान अप्रार्थी को नहीं किया। इसलिए अप्रार्थी बीमा कम्पनी का कोई दोष नहीं है। यदि अप्रार्थी संख्या 1 की गलती के कारण प्रीमियम राशि अप्रार्थी बीमा कम्पनी के पास नहीं पहुंची है तो उसके लिए अप्रार्थी संख्या 2 को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। बहस के दौरान अप्रार्थी बीमा कम्पनी अधिवक्ता ने इस मंच का ध्यान अप्रार्थी बैंक के द्वारा जारी पत्र दिनांक 20.12.2011 की ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। अप्रार्थी संख्या 1 बैंक ने उक्त पत्र अप्रार्थी संख्या 2 बीमा कम्पनी को लिखते हुए यह अंकित किया है कि ‘‘हमारी शाखा से स्व. श्री जयकरण जाट ने तत्काल बीमा पोलिसी ली थी जिनके मेम्बरसीप नम्बर 57853 है उक्त ग्राहक ने हमारी बैंक के खाते में अपनी नवीनीकरण प्रीमियम राशि क्नम क्ंजम के 25.08.2011 को जमा करवा दिया था पर ज्मबीदपबंस च्तवइसमउ की वजह से खाता डेबीट नहीं हो पाया था। अतः आप से निवेदन है कि उक्त ग्राहक को बीमा मृत्यु दावा भुगतान करने का कष्ट करें।‘‘ उक्त पत्र के आधार पर अप्रार्थी अधिवक्ता ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी की हद तक परिवाद खारिज करने का तर्क दिया। अप्रार्थी बैंक अधिवक्ता ने अप्रार्थी बीमा कम्पनी के अधिवक्ता के तर्कों का विरोध किया और तर्क दिया कि अप्रार्थी बैंक का कृत्य केवल एजेन्ट की हैसियत का रहा है। यदि बीमा पोलिसी में गे्रस पीरियड विद्यमान था तो प्रार्थीया के पति की पोलिसी नियमानुसार चालू अवस्था में थी और चालू अवस्था में प्रार्थीया के पति की मृत्यु हो गयी जिसके लिए केवल बीमा कम्पनी ही क्लेम हेतु उत्तरदायी है। अप्रार्थी संख्या 1 बैंक अधिवक्ता ने अपनी बहस के दौरान इस मंच का ध्यान अपने पत्र दिनांक 05.03.2012 की ओर ध्यान दिलाया जिसका ध्यान पूर्वक अवलोकन किया गया। उक्त पत्र में अप्रार्थी संख्या 1 बैंक ने अपनी शाखा भालेरी को लिखा है जिसमें यह अंकित किया है कि पोलिसी धारक श्री जयकरण जाट द्वारा नवीनीकरण बीमा प्रीमियम जमा नहीं करवाने के कारण बीमा क्लेम निरस्त कर दिया गया है। पत्र के मध्य में पोलिसी का वर्णन करते हुए अप्रार्थी बीमा कम्पनी द्वारा प्राप्त चैककृत राशि 3056 रूपये पोलिसी धारक के खाते में जमा करने का लिखा हुआ है। अप्रार्थीगण अधिवक्ताओं द्वारा दिये गये तर्कों से हम सहमत नहीं है क्योंकि वर्तमान प्रकरण में यह स्वीकृत तथ्य है कि प्रार्थीया के पति ने प्रश्नगत पोलिसी में प्रदत ग्रेस पीरियड के दौरान ड्यू डेट के दूसरे दिन अपनी प्रीमियम राशि दिनांक 26.08.2011 को 5,000 रूपये अप्रार्थी बैंक में जमा करवा दिये थे। यदि बैंक के टेक्नीकल प्रोब्लम के कारण उक्त राशि बीमा कम्पनी को नहीं भिजवायी जा सकी तो उसके लिए अप्रार्थी बैंक उत्तरदायी होने के साथ-साथ अप्रार्थी बीमा कम्पनी भी अपने दायित्व से बच नहीं सकती क्योंकि अप्रार्थी बीमा कम्पनी के द्वारा पत्रावली पर ऐसी कोई साक्ष्य पेश नहीं की जिससे यह साबित हो कि उसने पोलिसी धारक की प्रीमियम की राशि प्राप्त नहीं होने पर पोलिसी धारक या बैंक को कोई नोटिस दिया हो और ना ही अप्राथी बैंक के द्वारा केाई ऐसी साक्ष्य पेश की गयी हो जिससे यह साबित हो कि प्रार्थीया के पति द्वारा जमा करवायी गयी प्रीमियम की राशि अप्रार्थी बीमा कम्पनी के यहां जमा करवाने हेतु कोई सूचना या नोटिस अप्रार्थी बीमा कम्पनी को दिया हो। इस सम्बंध में हम इन्श्योरेन्स एक्ट 1938 की धारा 50 का उल्लेख करना उचित समझते है। धारा 50 इस प्रकार है- छवजपबम व िवचजपवदे ंअंपसंइसम जव जीम ंेेनतमक वद जीम संचेपदह व िं चवसपबल. ।द प्देनतमत ेींससए ख्इमवितम जीम मगचपतल व िजीतमम उवदजीे तिवउ जीम कंजम वद ूीपबी जीम चतमउपनउे पद तमेचमबज व िं चवसपबल व िसपमि पदेनतंदबम ूमतम चंलंइसम इनज दवज चंपकण्, हपअम दवजपबम जव जीम चवसपबल.ीवसकमत पदवितउपदह ीपउ व िजीम चवजपवदे ंअंपसंइसम जव ीपउ ख्नदसमेे जीमेम ंतम ेमज वितजी पद जीम चवसपबल,ण् उक्त धारा से यह स्पष्ट है कि यदि बीमित अवधि में किश्तें समय पर जमा नहीं होती है तो बीमा कम्पनी बीमित को नोटिस देकर सुचित करेगी। परन्तु इस प्रकरण में अप्रार्थी बीमा कम्पनी ने बीमाधारी को उसकी बकाया किश्तों के सम्बंध में ऐसा कोई नोटिस नहीं दिया गया। इसलिए अप्रार्थी बीमा कम्पनी का यह तर्क मानने योग्य नहीं है कि किश्त समय पर जमा करवाने हेतु बीमाधारी स्वंय उत्तरदायी है। ऐसा ही मत माननीय राज्य आयोग ने अपने नवीनतम न्यायिक दृष्टान्त अपील संख्या 856/2011 शिक्षा विभाग बनाम भारतीय जीवन बीमा निगम निर्णय दिनांक 19.12.2014 में दिया है। प्रार्थीया अधिवक्ता द्वारा दिये गये तर्कों दस्तावेजों व बीमा पोलिसी की शर्तों व माननीय राज्य आयोग के न्यायिक दृष्टान्त की रोशनी में यह स्पष्ट है कि प्रार्थीया के पति जयकरण की पोलिसी निरन्तर चालू स्थिति में थी और चालू स्थिति में ही पोलिसी धारक की दिनांक 14.10.2011 को मृत्यु हो गयी। प्रार्थीया द्वारा अप्रार्थीगण के यहां नोमिनी होने के आधार पर नियमानुसार क्लेम आवेदन किया परन्तु अप्रार्थीगण ने पोलिसी में ग्रेस पीरियड होते हुए भी प्रार्थीया के पति की पोलिसी को लेप्स होने के आधार पर क्लेम खारिज कर दिया। मंच की राय में अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य स्पष्ट रूप से सेवादोष है इसलिए प्रार्थीया का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध स्वीकार किये जाने योग्य है।
             अतः प्रार्थीया का परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाकर उसे मंच द्वारा निम्न अनुतोष दिया जा रहा है।
(क.) अप्रार्थी संख्या 2 बीमा कम्पनी को आदेश दिया जाता है कि वह प्रार्थीया को उसके पति द्वारा लिये गये बीमा प्रमाण-पत्र संख्या 9995066348 पोलिसी संख्या 0121670530 में दिया गया बीमाधन की राशि 1,25,000 रूपये अदा करेगी व उक्त राशि पर 9 प्रतिषत वार्षिक दर से साधारण ब्याज आषा गर्ग बनाम यूनाईटेड इंडिया इंष्योरेन्स कम्पनी 2005 सी0 पी0 जे0 पेज 269 एन. सी. की रोषनी में प्रार्थीया के पति की मृत्यु दिनांक 14.10.2011 के 3 माह पष्चात दिनांक 13.01.2012 से ताअदायगी तक अदा करेगी। बीमा कम्पनी अपने द्वारा अदा की गई राशि को समायोजन करने की अधिकारीणी है।    
(ख.) अप्रार्थी संख्या 1 बैंक को आदेष दिया जाता है कि वह प्रार्थीया को 10,000 रू. मानसिक प्रतिकर व 5,000 रू. परिवाद व्यय के रूप में अदा करेगा।
                अप्रार्थीगण को आदेष दिया जाता है कि वह उक्त आदेष की पालना आदेष कि दिनांक से 2 माह के अन्दर-अन्दर करेंगे।
 
सुभाष चन्द्र              नसीम बानो                षिव शंकर
  सदस्य                 सदस्या                    अध्यक्ष                         
    निर्णय आज दिनांक  23.04.2015 को लिखाया जाकर सुनाया गया।
    
 
सुभाष चन्द्र              नसीम बानो                षिव शंकर
     सदस्य                सदस्या                    अध्यक्ष     
 
 
 

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