Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। परिवाद सं0 :- 97/2015 Sitapur Shiksha Sansthan (Sitapur) Trust, 565, Civil Lines, Sitapur (U.P.) 261001 through its Secretary - Complainant
Versus - Punjab National Bank, Mid Corporate Branch, 10, Ashok Marg, Lucknow-226001 through its Assistant General Manager.
- Punjab National Bank, Circle Office, Vibhuti Khand, Gomti Nagar, Lucknow, through its Deputy General Manager.
- Punjab National Bank, Head Office, 7 Bhikaji Cama, Palace New Delhi-110067 through its General Manager.
- Opp. Parties
समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति: परिवादी के विद्वान अधिवक्ता:- श्री नितिन खन्ना विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता:- श्री एस0एम0 बाजपेयी दिनांक:-04.06.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध अंकन 26,48,555/-रू0 की प्राप्ति के लिए, 1,24,639/-रू0 16 प्रतिशत ब्याज की दर से विचारण अवधि के दौरान प्राप्ति के लिए, अंकन 3,00,000/-रू0 मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना के मद में प्राप्ति के लिए तथा 25,000/-रू0 वाद व्यय के मद में प्राप्त करने के लिए प्रस्तुत किया गया है।
- परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी एक चैरिटेबर शैक्षिक संस्थान है। विपक्षी से ऋण प्राप्त करने के लिए सम्पर्क करने पर दिनांक 17 मार्च 2008 को कैपिटल लिमिट तथा टर्म लोन विपक्षी बैंक द्वारा स्वीकार किया गया। अस्थायी वित्तीय कठिनाई के कारण परिवादी का एकाउण्ट दिनांक 13.08.2012 को पुन:विनियमित किया गया और ऐसा करते समय विपक्षी ने ECRA से 6 माह के अंदर रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए कहा गया, जिसमें विफलता पर पैनल इन्टरेस्ट की व्यवस्था की गयी, जिसके लिए परिवादी ने आवश्यक फीस दिनांक 10.11.2012 को अदा की और अंतिम रूप से दिनांक 26.06.2013 को परिवादी फर्म की साख की रेटिंग रिपोर्ट तैयार की। इसके बाद दिनांक 06.10.2014 को भी रिपोर्ट प्राप्त हुई, जिसे विपक्षी बैंक द्वारा स्वीकार किया गया, परंतु इसके बावजूद परिवादी से पैनल इन्टरेस्ट अंकन 17,57,330/-रू0 दिनांक 28.09.2012 को तथा 1,44,639/-रू0 दिनांक 29.12.2012 को वसूल किये गये। ऐसा मनमानी से किया गया। पैनल इंटरेस्ट वसूल किया जाना अवैध है। इस पैनल इंटरेस्ट पर भी 16 प्रतिशत की दर से ब्याज वसूल किया जा रहा है, जो 8,51,225/-रू0 होता है। इस प्रकार कुल 26,48,555/-रू0 की वूसली के लिए दौरान विचारण 16 प्रतिशत की दर से ब्याज की वसूलीके लिए यह परिवाद प्रस्तुत किया गया।
- परिवाद के समर्थन में शपथ पत्र तथा एनेक्जर सं0 1 लगायत 14 प्रस्तुत किया गया।
- विपक्षी बैंक का कथन है कि परिवादी को ऋण प्रदान किया गया है। खाते कन्स्ट्रक्शन के समय लगायी गयी शर्त का अनुपालन नहीं किया गया, इसलिए पैनल इंटरेस्ट वसूला गया है। परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता, इसलिए उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है। लिखित कथन के तथ्य की पुष्टि शपथ पत्र से की गयी।
- दोनों पक्षकारों के विद्धान अधिवक्ता को सुना तथा पत्रावली का अवलोकन किया।
- प्रस्तुत केस में सर्वप्रथम विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में आता है। विपक्षी बैंक की ओर से नजीर Administrator Smt. Tara Bai Desai Charitable Opthalmic Trust Hospital, Jodhpur Versus Managing Director Supreme Elevators India Pvt. Ltd & ors प्रस्तुत की गयी है। इस केस में ट्रस्ट की ओर से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत परिवाद प्रस्तुत किया गया था, जिसे जोधपुर जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा स्वीकार किया गया था। अपील मे राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा निष्कर्ष दिया गया था कि परिवादी उपभोक्ता नहीं है। इस निष्कर्ष को राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग द्वारा भी पुष्ट किया गया था। तत्पश्चात माननीय सर्वोच्च न्यायालय में अपील प्रस्तुत की गयी, जहां पर यह निष्कर्ष दिया गया कि ट्रस्ट भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (1) (एम) में दी गयी व्यक्ति की परिभाषा में शामिल हो सकता है। इस बिन्दु पर स्पष्ट निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए उच्च स्तरीय पीठ के गठन की संतुष्टि की गयी। एक अन्य नजीर Pratibha Pratisthan & Ors. Versus Manager, Canara Bank & ors. IV (2017) CPJ 7 (SC) में व्यवस्था दी गयी है कि ट्रस्ट एक व्यक्ति नहीं है। तदनुसार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (1) (एम) के अंतर्गत उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत करने के लिए अधिकृत नहीं है। दो जजों की पीठ द्वारा पारित किया है। इसी प्रकार तारा बाई देसाई वाला निर्णय भी दो जजों की पीठ द्वारा पारित किया गया। नजीर Lilavati Kirtilal Mehta Medical Trust Versus M/S Unique Shanti Developers & ors. में पारित निर्णय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यवस्था दी गयी हैकि ट्रस्ट को भी उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार प्राप्त है। नजीर Punjab University Versus Unit Trust of India & Ors में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्यवस्था दी गयी है कि विश्व विद्यालय स्थापित है, उपभोक्ता की श्रेणी में आता है, जिनके द्वारा यूटीआई में धन लगाया गया है। उपरोक्त सभी नजीरों के आलोक में कहा जा सकता है परिवादी सीतापुर शिक्षा संस्थान यद्यपि एक ट्रस्ट के अंतर्गत स्थापित है, परंतु इस शिक्षण संस्थान द्वारा विपक्षी बैंक से ऋण प्राप्त किया गया है। अत: दोनों पक्षकारों के मध्य सेवा ग्राह्यता एवं सेवा प्रदाता के संबंध है, इसलिए परिवादी विपक्षी बैंक के विरूद्ध उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत करने के लिए अधिकृत है।
- अब इस बिन्दु पर विचार किया जाता है कि परिवादी किस अनुतोष को प्राप्त करने के लिए अधिकृत है? स्वीकार्य रूप से भी बैंक द्वारा परिवादी को ऋण प्रदान किया गया है। सामान्य ब्याज के अलावा पैनल ब्याज वसूला गया है और पैनल ब्याज इस आधार पर वसूला गया है कि परिवादी ने लोन की लिमिट को रिकन्स्ट्रक्ट करते समय एक शर्त लगायी थी कि ECRA से 6 माह के अंदर क्रेडिट रिपोर्ट प्राप्त की जायेगी, जिसकी विफलता पर पैनल ब्याज देना होगा। यह एकाउण्ट दिनांक 13.08.2012 को रिकन्स्ट्रक्ट हुआ है। परिवादी द्वारा दिनांक 11.10.2012 को ECRA के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करते हुए वांछित फीस जमा कर दी गयी है तथा दिनांक 28.02.2013 को रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी गयी है, परंतु कुछ स्पष्टीकरण प्राप्त करने के कारण पुन: एक मीटिंग हुई और अंतत: दिनांक 26.06.2013 को रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी, इसके पश्चात पुन: दिनांक 06.10.2014 को रिपोर्ट प्राप्त की गयी। अत: चूंकि नियत अवधि के अंतर्गत ECRA द्वारा परिवादी के क्रेडिट के संबंध में रिपोर्ट तैयार की जा चुकी थी। यद्यपि इस रिपोर्ट को बाद में दुरूस्त किया गया। इस स्थिति के बावजूद चूंकि परिवादी की क्रेडिट स्थापित था, इसलिए पैनल ब्याज वसूल करने का कोई अधिकार बैंक को उपलब्ध नहीं था, इसलिए बैंक द्वारा जो पैनल ब्याज वसूल किया गया है, वह अनुचित है तथा परिवादी पैनल ब्याज को वापस प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। परिवादी द्वारा पैनल ब्याज की राशि 26,48,555/-रू0 बतायी गयी है। लिखित कथन में इस राशि पर कोई आपत्ति नहीं की गयी है। परिवादी ने लेखा विवरण से भी इस पैनल ब्याज वसूलने की इस राशि को साबित किया है। लिखित कथन में जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है। इस राशि को कोई चुनौती नहीं दी गयी। अत: परिवादी पैनल ब्याज के रूप में वसूली गयी राशि अंकन 26,48,555/-रू0 प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। यद्यपि इस राशि पर विचारण अवधि के दौरान केवल 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। साथ ही अंतिम भुगतान की तिथि तक भी इसी तरह से ब्याज प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
आदेश परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी बैंक को आदेशित किया जाता है कि पैनल ब्याज के रूप में वसूली गयी राशि अंकन 26,48,555/रू0 (छब्बीस लाख अड़तालीस हजार पांच सौ पचपन मात्र) परिवादी को 06 प्रतिशत ब्याज के साथ जिसकी गणना परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से भुगतान की तिथि की जायेगी, वापस लौटायी जाए तथा परिवाद व्यय के रूप में 25,000/-रू0 परिवादी को अदा करें। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार) संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट नं0 3 | |