Uttar Pradesh

Faizabad

CC/170/2007

Ram Sanjeevin - Complainant(s)

Versus

PNB - Opp.Party(s)

11 Jun 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
Judgement of Faizabad
 
Complaint Case No. CC/170/2007
 
1. Ram Sanjeevin
Faizabad
...........Complainant(s)
Versus
1. PNB
FAIZABAD
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL PRESIDENT
 HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA MEMBER
 HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।

 

उपस्थित -     (1) श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
        (2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य

              परिवाद सं0-170/2007

               
राम संजीवन यादव उम्र लगभग 36 साल पुत्र स्व0 मेवालाल निवासी ग्राम व पोस्ट मुबारकपुर उमरनी थाना इनायतनगर तहसील मिल्कीपुर जिला फैजाबाद।        .............. परिवादी
बनाम
1.    पंजाब नेषनल बैंक षाखा आस्तीकन तहसील मिल्कीपुर थाना इनायतनगर जिला फैजाबाद द्वारा षाखा प्रबन्धक।
2.    नेषनल इंष्योरेन्स कम्पनी लिमिटेड षाखा कार्यालय ‘गीता भवन’ कोलाघाट सिविल लाइन्स जिला सुल्तानपुर।                                ..........  विपक्षीगण
निर्णय दिनाॅंक 11.06.2015            
उद्घोषित द्वारा: श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य।
                        निर्णय
    परिवादी के परिवाद का संक्षेप इस प्रकार है कि परिवादी के पिता स्व0 मेवालाल यादव ने विपक्षी संख्या 1 के यहां से ट्रेक्टर हेतु ऋण लिया था जिसका पंजीकरण संख्या यू पी 42 / 1308 था। ट्रैक्टर के लिये ऋण 1989 में लिया था जिसका पूर्ण भुगतान सन 1995 में कर दिया गया। इस बीच विपक्षी बैंक ट्रैक्टर के प्रीमियम का भुगतान परिवादी से लेता रहा और अपनी इच्छा से परिवादी के पिता के ट्रैक्टर का बीमा कराते रहे। बीमा के कागजात भी विपक्षी संख्या 1 अपने ही पास रखते थे। ट्रैक्टर के खरीदे जाने के बाद से ही विपक्षी संख्या 1 ने परिवादी के पिता के ट्रैक्टर का बीमा कराया जाता रहा है। परिवादी के पिता के ट्रैक्टर का जब एक्सीडेन्ट हुआ तो विपक्षी संख्या 1 से संपर्क करने पर विपक्षी संख्या 1 ने बीमा कम्पनी का नाम गलत रुप से दि न्यू इण्डिया इंष्योरेन्स कम्पनी लि0 बता दिया। परिवादी के पिता ने न्यायालय को दि न्यू इण्डिया इंष्योरेन्स कम्पनी लि0 का नाम बता दिया और पक्षकार बना दिया। न्यायालय में दि न्यू इण्डिया इंष्योरेन्स कम्पनी लि0 के अधिवक्ता ने टैªक्टर का बीमा होने से इन्कार कर दिया तो मोटर दुर्घटना प्रतिकर न्यायाधिकरण कक्ष संख्या 7 फैजाबाद, न्यायालय ने परिवादी पर रुपये 1,52,000/- तथा 6 प्रतिषत वार्शिक ब्याज दर पर मई 2001 से क्लेम की धनराषि अरोपित की जिसके विरुद्ध परिवादी ने माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद खण्ड पीठ लखनऊ में याचिका दाखिल की तो माननीय उच्च न्यायालय ने रुपये 95,000/- जमा कराने के बाद परिवादी को मोटर दुर्घटना प्रतिकर न्यायाधिकरण कक्ष संख्या 7 फैजाबाद, न्यायालय के आदेष के विरुद्ध स्थगन आदेष दिया जो अभी भी प्रभावी है। विपक्षी संख्या 1 द्वारा बीमा कम्पनी का सही पता न दिये जानेे के कारण परिवादी के पिता को मानसिक कश्ट हुआ और उनके इलाज में रुपये 25,000/- खर्च होने के बाद भी उसी परेषानी में उनकी मृत्यु हो गयी। जिससे परिवादी को रुपये 1,00,000/- की क्षति हुई। परिवादी के पिता ने बार बार विपक्षी संख्या 1 से बीमा कवर नोट मांगा तो उन्होंने यह उत्तर दिया कि बीमा कागजात को बैंक में ही रखे जाने का नियम है। जब कि परिवादी के पिता ट्रैक्टर की किष्त व बीमा की किष्त बैंक में ही जमा करते थे। विपक्षी संख्या 1 द्वारा बीमा कम्पनी का सही पता न दिये जाने के कारण परिवादी को रुपये 20,000/- अतिरिक्त खर्च करना पड़ा जिससे परिवादी के बच्चों की षिक्षा दीक्षा नहीं हो पायी और परिवादी को रुपये 50,000/- की क्षति उठानी पड़ी। परिवादी के पिता पेन्षन भोगी थे और रुपये 2,650/- प्रति माह पेन्षन पाते थे, विपक्षी संख्या 1 द्वारा सही पता न देने के कारण 70 वर्श की अवस्था में परिवादी के पिता की मृत्यु हो गयी जो 10 वर्श और जीवित रहते। इस प्रकार परिवादी को रुपये 3,18,000/- की क्षति हुई। दिनांक 15.04.1991 को ट्रैक्टर के दुर्घटना ग्रस्त होने पर एक व्यक्ति की मृत्यु हो गयी और विपक्षी बैंक ने बीमा कम्पनी के कागजात मांगे जाने पर बीमा सम्बन्धी कोई कागजात परिवादी के पिता को नहीं दिये और केवल यह बताया कि टैªक्टर का बीमा यूनाइटेड इण्डिया इंष्योरेन्स कम्पनी लि0 ने किया था। इसीलिये परिवादी ने क्लेम पिटीषन में यूनाइटेड इण्डिया इंष्योरेन्स कम्पनी लि0 को पक्षकार बनाया जिसने क्लेम पिटीषन में अपना जवाब लगा कर प्रष्नगत वाहन यू पी 42 / 1308 को बीमित होने से इन्कार कर दिया। परिवादी ने विपक्षी संख्या 1 से कई बार बीमा कम्पनी के कागजात मंागे मगर उन्होंने नहीं दिये। परिवादी ने लोकवाणी के माध्यम से कागजात मंागे तो जिलाधिकारी द्वारा विपक्षी संख्या 1 को सूचना देने का आदेष दिया गया तब विपक्षी संख्या 1 ने बताया कि प्रष्नगत वाहन नेषनल इंष्योरेन्स कम्पनी लि0 की सुल्तानपुर षाखा अर्थात विपक्षी संख्या 2 से बीमित था और कहा कि दिनांक 25.09.1990 को प्रष्नगत वाहन बीमित था जिसमें नौ टैªक्टरों के प्रीमियम की धनराषि रुपये 11,740/- जमा की गयी थी उसमें रुपये 1,133/- राम संजीवन पुत्र मेवालाल के टैªक्टर का प्रीमियम षामिल था। परिवादी के पिता को विपक्षी संख्या 1 द्वारा बीमा कम्पनी का सही पता न देने से रुपये 5,08,000/- की क्षति उठानी पड़ी। चतुर्थ अपर जिला जज ने परिवादी से कई बार बीमा कवर नोट मांगा जिसे परिवादी विपक्षी संख्या 1 द्वारा न दिये जाने के कारण न्यायालय में प्रस्तुत नहीं कर सका, इसलिये चतुर्थ अपर जिला जज फैजाबाद ने क्लेम की धनराषि का आरोपण परिवादी पर कर दिया। विपक्षी बैंक तथा बीमा कम्पनी ने अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं किया। जब कि परिवादी ने टैªक्टर के समस्त ऋण का भुगतान भी कर दिया है और ब्याज सहित टैªक्टर की बीमा धनराषि का भी भुगतान विपक्षी बैंक को करता रहा है। विपक्षी बैंक ने बीमा के कागजात परिवादी को न दे कर अपनी सेवा में कमी की है। परिवादी वर्श 1991 से विपक्षी बैंक से बीमा के कागजात मांग रहा है जो बैंक ने न तो परिवादी को कागजात दिये और न ही न्यायालय को उपलब्ध कराये। दुर्घटना न्यायाधिकरण ने अपना निर्णय दिनांक 09.05.2007 को दिया है, इसलिये इस प्रकार परिवाद समय सीमा के अन्दर प्रस्तुत किया जा रहा है। परिवादी के ऊपर दुर्घटना न्यायाधिकरण द्वारा आरोपित धनराषि रुपये 5,08,000/- विपक्षीगण से दिलायी जाय, क्षतिपूर्ति रुपये 1,50,000/- ब्याज रुपये 50,000/- तथा परिवाद व्यय दिलाया जाय। 
    विपक्षी संख्या 1 ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा परिवादी के पिता द्वारा टैªक्टर हेतु ऋण सन 1989 में लिया जाना तथा उक्त ऋण की अदायगी सन 1995 में किया जाना स्वीकार किया है। वास्तव में बन्धक टैªक्टर की बीमा कराने की जिम्मेदारी ऋणी की होती है यदि ऋणी बीमा नहीं कराता है तो बैंक ऋणी के खर्चे पर बीमा कराती है। नियमानुसार फोटो कापी बैंक में रखती है और बीमा की मूल कापी ऋणी को दे दी जाती है। पत्रावली को बन्द हुए 13 वर्श हो चुके हैं, इस कारण समुचित जवाब देही संभव नहीं है। बैंक के रिकार्डों के अनुसार परिवादी ने दिनांक 21.06.2006 के पूर्व दुर्घटना या किसी क्लेम पिटीषन के बारे में न तो कोई सूचना बैंक को दी और न ही कागजात ही मंागे। परिवादी ने दिनांक 03.09.2006 को लोकवाणी के माध्यम से प्रष्नगत वाहन के बीमा के सम्बन्ध में सूचना मंागी और विपक्षी बैंक ने उसका उत्तर दिया। परिवादी के पिता के टैªक्टर के बीमा का बैंक ड्राफ्ट विपक्षी संख्या 2 के यहां भेजा जाना स्वीकार है। परिवादी ने प्रष्नगत बीमा के कागजात 16 वर्श बाद मंागे हैं। चूंकि प्रष्नगत ऋण से सम्बन्धित ऋण पत्रावली उपलब्ध नहीं है इसलिये कवर नोट उपलब्ध कराया जाना बैंक के लिये संभव नहीं है। बैंक ने उपलब्ध रिकार्ड के अनुसार परिवादी को दिनांक 18.09.2006 को प्रष्नगत टैªक्टर के बीमा के बारे में बताया जा चुका है। परिवादी या मेवालाल ने सन 2006 के पूर्व कभी कोई सूचना नहीं मांगी। परिवादी ने दिनांक 03.09.2006 को सूचना मांगी तो बैंक ने उपलब्ध रिकार्डों के आधार पर अविलम्ब सूचना दी तथा बताया कि दिनांक 25.09.1990 को टैªक्टर ऋण खाता संख्या 7/170 मेवालाल आदि के नाम था मंे बन्धक टैªक्टर के बाबत बीमा धनराषि रुपये 1,133/- डेबिट कर ड्रफ्ट संख्या 77/90 बहक नेषनल इंष्योरेन्स लि0 जिसमें अन्य वाहनों का बीमा भी षामिल था जो पंजाब नेषनल बैंक षाखा सुल्तानपुर पर देय था भेजा गया। परिवादी किसी प्रकार का उपषम पाने का अधिकारी नहीं है। परिवादी ने विपक्षी बैंक से वर्श 1991 से बीमा के अभिलेख कब मांगे इसका कोई स्पश्ट उल्लेख नहीं है। परिवादी का परिवाद काल बाधित है। परिवादी को यह भी सूचित किया गया कि प्रष्नगत ऋण खाता वर्श 1995 में बन्द हो चुका है और इतने अंतराल के बाद कोई कागजात उपलब्ध कराना सम्भव नहीं है। परिवादी ने विपक्षी को हैरान व परेषान करने के लिये अपना परिवाद दाखिल किया है जो मय हर्जे खर्चे के निरस्त किये जाने योग्य है। विपक्षी बैंक ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवादी का परिवाद पोशणीय नहीं है जो खारिज किये जाने योग्य है।
    विपक्षी बीमा कम्पनी ने अपना उत्तर पत्र प्रस्तुत किया है तथा परिवादी के परिवाद के कथनों से इन्कार किया है। विपक्षी ने परिवादी के परिवाद को 15 वर्श बाद दाखिल किया जाना बताया है जो कि काल बाधित है। वाहन का बीमा कुछ षर्तों व नियमों के आधार पर किया जाता है। प्रीमियम प्राप्त किये जाने के समय कवर नोट दिया जाता है जिस पर सभी नियम व षर्तों का उल्लेख रहता है। परिवादी ने स्वयं बीमा पालिसी नहीं ली है इसलिये परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी मंे नहीं आता है। बिना कवर नोट, बिना पालिसी संख्या तथा बीमा की अवधि के बिना ठीक से उत्तर दिया जाना सम्भव नहीं है। परिवादी को अपना परिवाद प्रमाणित करने के लिये बीमा कवर नोट या पालिसी दाखिल करनी चाहिए। उत्तरदाता ने अपनी सेवा में कोई कमी नहीं की है यदि कोई कमी है तो विपक्षी पंजाब नेषनल बैंक ने की है। परिवादी का परिवाद काल बाधित है जिसका कोई सम्यक कारण नहीं बताया गया है। उपरोक्त वर्णित तथ्यों के आधार पर परिवादी का परिवाद उत्तरदाता के विरुद्ध खारिज किये जाने योग्य है। 
    परिवादी एवं विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्तागणोें की बहस को सुना एवं पत्रावली का भली भंाति परिषीलन किया। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना षपथ पत्र, अपने पिता की बैंक पास बुक की छाया प्रति एवं मूल पास बुक, विपक्षी बैंक के पत्र दिनांक 18-09-2006 की छाया प्रति जो लोकवाणी के उत्तर मंे दिया गया था, विपक्षी बैंक द्वारा जारी प्रमाण पत्र दिनांक 28.02.2007 की छाया प्रति, विपक्षी बैंक के प्रमाण पत्र दिनांक 30-07-2007 की मूल प्रति, परिवादी द्वारा सूची पर दाखिल विपक्षी बैंक को भेजे गये नोटिस दिनांक 22.10.2005 की कार्बन प्रति मय रजिस्ट्री रसीद, लोकवाणी में की गयी षिकायत दिनांक 14.06.2006 की मूल प्रति, विपक्षी बीमा कम्पनी के पत्र दिनांक 17-06-2008 की मूल प्रति, मोटर दुर्घटना प्रतिकर न्यायाधिकरण कक्ष संख्या 7 फैजाबाद के निर्णय दिनांक 09.05.2007 की छाया प्रति, मेवालाल के चिकित्सा प्रमाण पत्र दिनांक 12-02-2014 की मूल प्रति, परिवादी द्वारा विपक्षीगण को जनसूचना में भेजे गये पोस्टल आर्डर के मूल अधपन्ने व रजिट्री रसीद की मूल प्रतियां संख्या 22, माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद, खण्ड पीठ, लखनऊ द्वारा एफ0ए0एफ0ओ0 709 सन 2007 में पारित स्थगन आदेष दिनांक 09.06.2007 की छाया प्रति जो ‘‘मोटर दुर्घटना प्रतिकर न्यायाधिकरण कक्ष संख्या 7 फैजाबाद के निर्णय दिनांक 09.05.2007 के विरुद्ध दिया गया’’, परिवादी के संषोधन प्रार्थना पत्र दिनांक 22.11.2006 की छाया प्रति, विपक्षी सीताराम के आपत्ति प्रार्थना पत्र दिनांक 01.12.2006 की छाया प्रति जो परिवादी के संषोधन प्रार्थना पत्र दिनांक 22-11-2006 के विरुद्ध दिया गया, दिनांक 17.02.2007 की मोटर दुर्घटना प्रतिकर न्यायाधिकरण कक्ष संख्या 7 फैजाबाद की आर्डर षीट की छाया प्रति, लोकवाणी में परिवादी द्वारा की गयी षिकायत दिनांक 03-09-2006 की छाया प्रति, बीमा कवर नोट नेषनल इंष्योरेन्स दिनांक 25.09.1990, 25-09-1990 एवं 21.06.1990 की मूल कार्बन प्रतियां, जनमोर्चा दैनिक समाचार पत्र दिनांक 12 जून 2007 की मूल प्रति, परिवादी का साक्ष्य में षपथ पत्र, परिवादी के पक्ष के समर्थन में लाल बहादुर पुत्र धर्मराज का षपथ पत्र तथा परिवादी ने अपनी लिखित बहस दाखिल की है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षी संख्या 1 बैंक ने अपने पक्ष के समर्थन मंे अपना लिखित कथन दाखिल किया है जो षामिल पत्रावली है। विपक्षी संख्या 2 बीमा कम्पनी ने अपने पक्ष के समर्थन में अपना लिखित कथन दाखिल किया है जो षामिल पत्रावली है। परिवादी एवं विपक्षीगण द्वारा दाखिल प्रपत्रों का गम्भीरता से अवलोकन किया। विपक्षीगणों ने अपने लिखित कथन के अलावा अन्य कोई प्रपत्र या साक्ष्य पत्रावली पर दाखिल नहीं किया है। परिवादी ने अपने पक्ष के समर्थन में जो काजगजात दाखिल किये हैं वह महत्वपूर्ण हैं। परिवादी के पिता के नाम पंजीकृत टैªक्टर से दिनांक 14-04-1991 को रमेष 12 वर्श की मृत्यु हुई जिसमंे मृत्यु का कारण टैªक्टर से एक्सीडेंट होना पाया गया है। मोटर दुर्घटना न्यायाधिकरण कक्ष संख्या 7 फैजाबाद में क्लेम सीताराम आदि ने सन 2001 में दाखिल किया एवं क्लेम का निर्णय दिनांक 09.05.2007 को हुआ। सन 2005 के पूर्व जन सूचना अधिकार अधिनियम का वजूद नहीं था। क्लेम पिटीषन एम0ए0सी0टी0 मंे दाखिल होने के दौरान परिवादी ने विपक्षी बैंक से पूछा था कि परिवादी के पिता के टैªक्टर का बीमा किस बीमा कम्पनी से कराया गया था तो विपक्षी बैंक ने परिवादी को मौखिक बताया कि दि न्यू इण्डिया इंष्योरेन्स कं0 लि0 से प्रष्नगत टैªक्टर का बीमा था। इसलिये परिवादी ने क्लेम पिटीषन में दि न्यू इण्डिया इंष्योरेन्स कं0 लि0 को पक्षकार बनाया। किन्तु बीमा कम्पनी ने अपने जवाब दावे में प्रष्नगत टैªक्टर को अपनी कम्पनी से बीमित होने से मना कर दिया। इसलिये मोटर दुर्घटना न्यायाधिकरण कक्ष संख्या 7 फैजाबाद दि न्यू इण्डिया इंष्योरेन्स कं0 लि0 को वाद पत्र से डिलीट कर दिया। इसी बीच परिवादी ने लोकवाणी मंे दिनांक 03.09.2006 को जिला प्रषासन से षिकायत कर प्रष्नगत टैªक्टर के बीमित होने की षिकायत की जिसमें विपक्षी बैंक ने नेषनल इंष्योरेन्स से प्रष्नगत टैªक्टर को बीमित होना बताया। इसी आधार पर परिवादी ने एक संषोधन प्रार्थना पत्र एम0ए0सी0टी न्यायालय के समक्ष दिनांक 22.11.2006 को दिया जिसका विरोध करते हुए एक प्रार्थना पत्र क्लेम पिटीषन मंे याची सीताराम आदि ने दिनांक 01.12.2006 दिया। जिसके आधार पर पत्रावली बहस में नियत होने के कारण, एम0ए0सी0टी0 न्यायालय ने परिवादी का संषोधन प्रार्थना पत्र दिनांक 22.11.2006 खारिज कर दिया और कारण बताया कि परिवादी ने बीमा सम्बन्धी कोई कागज दाखिल नहीं किया है यह केवल जिला प्रषासन से पत्राचार का मामला है। परिवादी ने उक्त प्रार्थना पत्र व विरोध प्रार्थना पत्र की छाया प्रति दाखिल की है जो पत्रावली पर मौजूद है। परिवादी ने दिनांक 17.02.2007 की एम0ए0सी0टी0 की आर्डर षीट की छाया प्रति भी दाखिल की है जिसमंे परिवादी के संषोधन प्रार्थना पत्र को खारिज किये जाने की बात को कहा गया है। दिनांक 01.03.2007 की आर्डर षीट मंे विपक्षी पंजाब नेषनल बैंक ने जो कागजात दिये उसे पत्रावली पर रखे जाने का आदेष एम0ए0सी0टी0 न्यायालय ने किया है। इस समय तक विपक्षी बैंक ने परिवादी को कोई बीमा कवर नोट नहीं दिया था केवल पत्र द्वारा 18.09.2006 व 28.02.2007 को सूचित किया था कि प्रष्नगत टैªक्टर नेषनल इंष्योरेन्स कम्पनी लि0 से बीमित था। उक्त पत्र की छाया प्रति व मूल प्रति पत्रावली पर उपलब्ध है। परिवादी ने जन सूचना में भी विपक्षी बैंक से 6 बार सूचना मंागी उसके बाद भी विपक्षी बैंक ने परिवादी को बीमा कवर नोट की प्रति नहीं उलब्ध करायी बल्कि केवल सूचना दी कि प्रष्नगत टैªक्टर नेषनल इंष्योरेन्स कं0 लि0 से बीमित था। विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी को सही सूचना समय से न दिये जाने के कारण एम0ए0सी0टी0 न्यायालय में क्लेम पिटीषन में परिवादी के ऊपर क्लेम का अरोपण हो गया जो विपक्षी बैंक की सेवा में कमी को प्रमाणित करता है। विपक्षी बैंक का यह कहना कि परिवादी ने सन 2006 के पूर्व कोई सूचना बीमा के बारे में नहीं मंागी थी यह गलत है क्यों कि परिवादी को विपक्षी बैंक ने मौखिक बीमा कम्पनी का नाम बताया था। परिवादी अपने मन से किसी भी बीमा कम्पनी का नाम क्यों लिखाना चाहेगा। जब परिवादी को बीमा कम्पनी का नाम विपक्षी बैंक से लोकवाणी में षिकायत करने पर मिला तब परिवादी ने क्लेम पिटीषन मंे नेषनल इंष्योरेन्स को जोड़ने का प्रार्थना पत्र दिया जिसे क्लेम न्यायालय ने बहस में पत्रावली होने एवं बीमा के कागज न होने के आधार पर खारिज कर दिया था। जब कि विपक्षी बैंक ने ही बीमा कम्पनी का नाम बताया था। यदि विपक्षी बैंक बीमा कम्पनी का सही नाम पहले ही बता देता तो क्लेम पिटीषन में क्लेम का आरोपण परिवादी के ऊपर नहीं आता। इस प्रकार विपक्षी बैंक ने अपनी सेवा में कमी की है। विपक्षी नेषनल इंष्योरेन्स कं0 लि0 ने अपने पत्र दिनांक 17.06.2008 को परिवादी से बीमा कवर नोट अथवा बीमा पालिसी देने के लिये कहा था, इस प्रकार दिनांक 17.06.2008 तक विपक्षी बैंक ने परिवादी को बीमा कवर नोट नहीं दिया था। परिवादी ने जनमोर्चा दैनिक समाचार पत्र में एक सूचना दिनांक 12.07.2007 को छपवायी जिसमें जिलाधिकारी सुल्तानपुर से प्रष्नगत टैªक्टर के कागजात बीमा कम्पनी से दिलाये जाने की गुहार लगायी तब जा कर परिवादी को बीमा कम्पनी से कवर नोट प्राप्त हो सके। उक्त प्रष्नगत टैªक्टर के बीमा के तीन वर्शों के तीन कवर नोट परिवादी दाखिल किये हैं जो पत्रावली पर मौजूद हैं। विपक्षी बीमा कम्पनी का कहना है कि परिवादी ने बहुत विलम्ब से लगभग 15 वर्शों बाद ट्रैक्टर से दुर्घटना होने की सूचना दी है जो कि काल बाधित है अतः बीमा कम्पनी के विरुद्ध परिवादी का परिवाद खारिज किया जाय। दुर्घटना न्यायाधिकरण ने अपना निर्णय दिनांक 09.05.2007 को दिया है और परिवादी ने अपना परिवाद दिनांक 04-08-2007 को ही दाखिल कर दिया है इसलिये परिवादी का परिवाद समय सीमा के अन्दर है। विपक्षी बैंक ने कहा है कि बीमा की फोटो कापी बैंक में रहती है और मूल कापी ऋणी को दे दी जाती है। विपक्षी बैंक का यह कथन गलत है क्यों कि यदि बीमा की मूल कापी परिवादी के पास होती तो वह पहले ही नेषनल इंष्योरेन्स कम्पनी को क्लेम पिटीषन में पक्षकार बनाता न कि दि न्यू इण्डिया इंष्योरेन्स कं0 लि0 को। क्लेम पिटीषन काफी विलम्ब से प्रस्तुत की गयी जिसमें क्लेम पिटीषन में याचिकाकर्ताओं ने कहा कि मोटर वाहन संषोधन अधिनियम 1994 के अनुसार क्लेम पिटीषन दाखिल करने की समय सीमा समाप्त कर दी गयी है। इसलिये एम0ए0सी0टी0 न्यायालय ने उक्त क्लेम पिटीषन को पोशणीय माना था। इस प्रकार विलम्ब जो हुआ उसके लिये परिवादी ही केवल उत्तरदायी नहीं हैं बल्कि विलम्ब न्यायिक प्रक्रिया में हुआ है जो कि क्षम्य है। परिवादी ने एम0ए0सी0टी0 न्यायालय के आदेष के विरुद्ध एक एफ0ए0एफ0ओ0 पिटीषन 709 सन 2007 माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद, खण्ड पीठ लखनऊ में दाखिल की जिसमें माननीय न्यायालय ने एम0ए0सी0टी0 न्यायालय के आदेष के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी तथा परिवादी से कहा कि सक्षम न्यायायल में अपना परिवाद पुनः दाखिल करें। इसलिये परिवादी ने अपना परिवाद जिला फोरम में दाखिल किया है। विपक्षी बैंक ने अपनी सेवा में कमी की है। परिवादी अपना परिवाद प्रमाणित करने में सफल रहा है। परिवादी अनुतोश पाने का अधिकारी है। विपक्षी संख्या 2 बीमा कम्पनी के विरुद्ध परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है। परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध अंाषिक रुप से स्वीकार एवं अंाषिक रुप से खारिज किये जाने योग्य है।       
आदेश
    परिवादी का परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध अंाशिक रुप से स्वीकार एवं अंाशिक रुप से खारिज किया जाता है। विपक्षी संख्या 2 बीमा कम्पनी के विरुद्ध परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है। विपक्षी संख्या 1 बैंक को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को धनराषि रुपये 1,52,000/- का भुगतान आदेश की दिनांक से 30 दिन के अन्दर करें। विपक्षी संख्या 1 परिवादी को परिवाद दाखिल करने की दिनांक से तारोज वसूली की दिनांक तक रुपये 1,52,000/- पर 9 प्रतिषत साधारण वार्शिक ब्याज का भी भुगतान करेंगे। विपक्षी संख्या 1 परिवादी को क्षतिपूर्ति के मद में रुपये 10,000/- तथा परिवाद व्यय के मद में रुपये 5,000/- का भी भुगतान करेंगे। 
          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)              
              सदस्य                  सदस्या                   अध्यक्ष      
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 11.06.2015 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।

          (विष्णु उपाध्याय)         (माया देवी शाक्य)             (चन्द्र पाल)           
              सदस्य                  सदस्या                     अध्यक्ष

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE MR. CHANDRA PAAL]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. MAYA DEVI SHAKYA]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. VISHNU UPADHYAY]
MEMBER

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