जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम फैजाबाद ।
़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़ ़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़उपस्थितिः-(1) श्री चन्द्र पाल अध्यक्ष
(2) श्रीमती माया देवी शाक्य, सदस्या
(3) श्री विष्णु उपाध्याय, सदस्य
परिवाद सं0-33/2009
राम नेवल पुत्र छोटेलाल निवासी बभनगंवा परगना हवेली अवध तहसील सोहावल जिला फैजाबाद .................... परिवादी
बनाम
1- शाखा प्रबन्धक पंजाब नेशनल बैंक शाखा भदरसा जिला फैजाबाद।
2- अमीन द्वारा उप जिलाधिकारी महोदय सोहावल जिला फैजाबाद ................ विपक्षीगण
निर्णय दि0 07.01.2016
निर्णय
उद्घोषित द्वाराः-श्री चन्द्र पाल, अध्यक्ष
परिवादी ने यह परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध अदेयता प्रमाण-पत्र तथा क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु योजित किया है।
संक्षेप में परिवादी का परिवाद इस प्रकार है कि वर्ष 2001 में परिवादी ने विपक्षी सं0-1 से मु0 30,000=00 बतौर ऋण स्वतः रोजगार योजना के अन्तर्गत लिया था जिससे वह जीविकोपार्जन का साधन कर सके। उक्त योजना में लिये गये ऋण पर मु0 10,000=00 की छूट निर्धारित थी जिससे विपक्षी सं0-1 ने परिवादी को मौखिक रूप से अवगत कराया था। नियमानुसार छूट की राशि अलग कर शेष
( 2 )
बकाया राशि पर ब्याज लगाकर बकाया राशि परिवादी से वसूला जाना चाहिए था लेकिन विपक्षी सं0-1 ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने सम्पूर्ण ऋण राशि ब्याज लगाकर परिवादी के ऋण खाते में चढ़ाते रहे। विपक्षी सं0-1 ने आज तक लिये गये ऋण के बाबत कोई अधिपत्र या पासबुक आदि जारी नहीं किया जिससे परिवादी को घोर असुविधा हुई और यह स्पष्ट रूप से विपक्षी द्वारा सेवा में कमी है। परिवादी विपक्षी सं0-1 का उपभोक्ता है। परिवादी ने जब विपक्षीगण से ऋण से सम्बन्धित जानकारी माॅंगी तो उन्होंने इसकी कोई लिखित जानकारी न देकर वरन मौखिक रूप से कहा कि तुम्हारा मु0 12,000=00 और बाकी है। जिस पर परिवादी ने दि0 08.07.08 को मु0 12,000=00 फिर दिया। जिसकी कोई रसीद न देकर वरन एक कूपन मु0 7,700=00 का विपक्षी सं0-2 द्वारा दिया गया जिसकी छायाप्रति संलग्न है। परिवादी ने जब दि0 31.12.08 को एक प्रार्थना-पत्र अपनी अदेयता प्रमाण-पत्र प्रदान करने के सम्बन्ध में विपक्षी सं0-1 को दिया तो फिर से उन्होंने एक हाथ से लिखा बैंक स्टेटमेन्ट जिसमें मेरे द्वारा बाद में अमीन कपिलदेव सिंह को दिये गये मु0 12,000=00 में से मु0 7000=00 दि0 08.07.08 का दिखाते हुए मेरे ऊपर फिर से मु0 36,500=00 का बकाया दिखाया है। विपक्षी सं0-1 व 2 ने परिवादी का खाता संख्या सही ढंग से संचालित न करके तथा गलत वसूली करके व गलत बकाया दिखा कर अपनी सेवाओं में परिवादी के प्रति कमी की है।
विपक्षी सं0-1 ने अपने जवाब में कहा कि परिवाद पत्र की धारा-4 का कथन निराधार होने के कारण अस्वीकार है। परिवादी ने ऋण लेने के दिनाॅंक से दि0 08.07.2008 तक 3 बार में क्रमशः मु0 1800=00 दि00 24.03.2003 को मु0 500=0 दि0 31.05.2003 को एवं दि0 08.07.2008 को मु0 7000=00 ही प्रश्नगत ऋण खाते में जमा किया। परिवाद पत्र की धारा-8 का कथन जिस प्रकार अभिकथित है स्वीकार नहीं है। प्रश्नगत ऋण खाते में शून्य धनराशि दिखाये जाने का यह अर्थ नहीं है कि ऋण खाते में दि0 15.03.2007 को बकाया धनराशि मु0 43,500=00 परिवादी द्वारा जमा की गयी है। असलियत यह है कि परिवादी के ऋण खाते में दि0 15.03.2007 को उसके ऊपर बकाया धनराशि मु0 43,500=00 को उसके एन0पी0ए0 ऋण खाते से अन्तरित कर प्रोटेस्टेड खाते में डाला गया जिससे उसके ऋण खाते का बकाया शून्य दिखायी पड़ा। प्रश्नगत ऋण खाते में बकाया धनराशि जो प्रोटेस्टेड खाते में अन्तरित की गयी है उसकी वसूली का पूरा अधिकार विपक्षी बैंक को है। परिवादी के ऋण खाते के अवलोकन से ही स्पष्ट है कि उसने ऋण करार की शर्तो का उल्लंघन करते हुए बैंक को देय बकाया किश्तें जमा नहीं की इसी कारण से उसके ऋण खाते में दि0 28.02.2007 तक मु0 43,500=00 बकाया था।
( 3 )
मैं पत्रावली में उपलब्ध साक्ष्य का अवलोकन किया तथा बैंक द्वारा प्रेषित स्टेटमेंट आफ एकाउन्ट का अवलोकन किया। परिवादी ने विपक्षी सं0-1 से मु0 30,000=00 बतौर ऋण स्वतः रोजगार योजना के अन्तर्गत लिया। परिवादी के परिवाद के अनुसार मु0 30,000=00 में से मु0 10,000=00 की छूट निर्धारित थी। परिवादी ने अपने परिवाद में विपक्षी सं0-1 के ऊपर यह आरोप लगाया है कि ऋण के सम्बन्ध में कोई लिखित जानकारी नहीं दी गयी। मु0 12,000=00 बाकी है। दि0 08.07.2008 को मु0 12,000=00 दिया जिसकी कोई रसीद न देकर वरन एक कूपन मु0 7,700=00 का दिया गया। परिवादी ने अपने विरूद्ध गलत वसूली प्रमाण-पत्र जारी होने का कथन किया है। विपक्षी के जवाबदावे के अनुसार परिवादी ने दि0 30.03.2001 से लेकर दि0 08.07.2008 तक केवल तीन बार ही मु0 1800=00 दि0 24.03.2003, मु0 500=00 दि0 31.05.2003 तथा मु0 7000=00 दि0 08.7.2008 को जमा किया। इसके उपरान्त् कोई भी धनराशि जमा नहीं किया है। बैंक के स्टेटमेंट एकाउन्ट के अनुसार भी परिवादी द्वारा यह धनराशि जमा करना साबित होता है। परिवादी के ऊपर दि0 08.07.2008 तक मु0 43,500=00 शेष है। इस प्रकार परिवादी ने ऋण लेने की शर्तो का पालन नहीं किया और अनुबन्ध के शर्तो के अनुसार ऋण की अदायगी नहीं किया है। इस प्रकार परिवादी अपना केस साबित करने में असफल रहा है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।
आदेश
परिवादी का परिवाद खारिज किया जाता है।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष
निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 07.01.2016 को खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित एवं उद्घोषित किया गया।
(विष्णु उपाध्याय) (माया देवी शाक्य) (चन्द्र पाल)
सदस्य सदस्या अध्यक्ष