(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1049/2007
डिवीजनल मैनेजर, लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इंडिया, 172ए/40 एम.जी. मार्ग सिविल लाइन्स, इलाहाबाद व अन्य।
अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम्
पंकज कुमार केसरवानी पुत्र भोलानाथ केसरवानी, निवासी नेतानगर पोस्ट मनजहांपर, जिला कौशाम्बी।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री आलोक रंजन, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 28.02.2023
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-125/2006, पंकज कुमार केसरवानी बनाम मण्डलीय प्रबंधक भारतीय जीवन बीमा निगम व एक अन्य में विद्वान जिला आयोग, कौशाम्बी द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 30.03.2007 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। विद्वान जिला आयोग ने बीमाधारक की मृत्यु पर बीमित राशि अंकन 01 लाख रूपये अदा करने का आदेश पारित किया है।
2. इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर केवल अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक रंजन को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ।
3. बीमाधारक की मृत्यु के पश्चात बीमा कंपनी द्वारा बीमा क्लेम इस आधार पर निरस्त कर दिया गया कि बीमाधारक द्वारा दिनांक 28.12.2001 को एक बीमा पालिसी संख्या-311506186 प्राप्त की गई थी, परन्तु प्रश्नगत बीमा
-2-
पालिसी का प्रस्ताव भरते समय इस तथ्य को छिपाया गया, इसलिए बीमा क्लेम देय नहीं है।
4. अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि चूंकि बीमाधारिका की अपनी कोई आय नहीं थी, वह तृतीय श्रेणी में आती थी, इसलिए अंकन 01 लाख रूपये से अधिक की पालिसी नहीं हो सकती थी। यदि पूर्व की पालिसी का खुलासा किया गया होता तब अंकन 01 लाख रूपये से अधिक की पालिसी जारी नहीं हो सकती थी, इसलिए तथ्यों को छिपाने के पश्चात ली गई पालिसी का क्लेम नकारने का उचित आधार है। विद्वान अधिवक्ता द्वारा अपने तर्क के समर्थन में नजीर, II (2019) CPJ 53 (SC) प्रस्तुत की गई है, जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह व्यवस्था दी गई है कि बीमा रिस्क का मूल्यांकन करने के पश्चात समस्त सूचनाएं उपलब्ध कराना बीमाधारक का दायित्व है, जिसमें पूर्व में ली गई पालिसी का उल्लेख करना भी शामिल है और यदि बीमाधारक द्वारा समस्त सूचनाएं उपलब्ध नहीं करायी जाती हैं तब बीमा क्लेम नकारने का आदेश विधिसम्मत है। अत: इस नजीर में दी गई व्यवस्था को दृष्टिगत रखते हुए कहा जा सकता है कि बीमाधारक द्वारा पूर्व में ली गई पालिसी के तथ्य को छिपाया गया है, इसलिए बीमा क्लेम नकारने का आधार विधिसम्मत है। प्रस्तुत अपील तदनुसार स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
5. प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 30.03.2007 अपास्त किया जाता है।
उभय पक्ष अपील का व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-3