Uttar Pradesh

StateCommission

R/2003/97

Union Of India Telecom - Complainant(s)

Versus

Pawan Kumar Agarwal - Opp.Party(s)

P L Nigam

06 Apr 2015

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
Revision Petition No. R/2003/97
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Union Of India Telecom
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Pawan Kumar Agarwal
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary PRESIDING MEMBER
 
For the Petitioner:
For the Respondent:
ORDER

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

मौखिक

पुनरीक्षण संख्‍या-97/2003

1. यूनियन आफ इंडिया द्वारा सेक्रेटरी डिपार्टमेन्‍ट आफ टेलीकम्‍यूनिकेशन

न्‍यू दिल्‍ली।

2. भारत संचार निगम लि0 द्वारा टी0डी0एम0 जिला बस्‍ती।

                                                .........पुनरीक्षणकर्ता

बनाम्

पवन कुमार अग्रवाल पुत्र श्री जगदीश प्रसाद निवासी पाण्‍डेय बाजार

पोस्‍ट गांधी नगर जनपद बस्‍ती।                       ........प्रत्‍यर्थी

समक्ष:-

1. मा0 श्री राम चरन चौधरी, पीठासीन सदस्‍य।

2. मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित    :कोई नहीं।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित     :कोई नहीं।

दिनांक 07.05.2015

मा0 श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

      दोनों पक्षों की ओर से कोई उपस्थित नहीं आया। पत्रावली का अवलोकन किया गया। जिला फोरम बस्‍ती द्वारा धारा 27 के अंतर्गत विपक्षीगण को एकल व संयुक्‍त रूप से रू. 2000/- अर्थदण्‍ड से दंडित किया गया है।

      संक्षेप में केस के तथ्‍य इस प्रकार है कि प्रस्‍तुत आवेदन पत्र उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 के धारा 27 के अधीन इस कथन के साथ प्रस्‍तुत किया गया है कि परिवादी ने एक परिवाद संख्‍या 216/95 मा0 फोरम के समक्ष प्रस्‍तुत किया था जो दिनांक 31.05.06 को निर्णीत कर दिया गया। निर्णय दि. 31.05.96 के अनुसार विपक्षीगण(निर्णीत ऋणी) द्वारा परिवादी(आज्ञप्तिधारी) के टेलीफोन उपरोक्‍त सकुर्लर दिनांक 09.04.86 के अनुसार वाद जांच फाइनल बिल देना चाहिए था और तब तक परिवादी का टेलीफोन विच्‍छेदित नहीं किया जाना चाहिए था।

      आज्ञप्तिधारी द्वारा यह भी कथन किया गया है कि आदेश दिनांक 31.05.09 का पूर्णरूप से पालन आज तक नहीं किया है जबकि विपक्षीगण को उक्‍त आदेश की पूर्ण जानकारी है। वे इस आदेश की नकल भी ले चुके है और परिवादी द्वारा भी उक्‍त आदेश की काफी विपक्षीगण को दी जा चुकी है। वे नाराज होकर इक्‍सेसिव बिल भेज रहे है और

 

-2-

टेलीफोन विच्‍छेदन की नोटिस भी मनमानी तौर पर दिये है विपक्षीगण उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा 27 के अंतर्गत दण्‍डनीय है।

      जिला मंच के अवलोकन से स्‍पष्‍ट है कि निर्णीत ऋणी ने एक आवेदन पत्र दि. 15.02.03 के साथ अनुपालन रिपोर्ट प्रस्‍तुत किया है व आवेदन पत्र में कहा गया है कि निर्णय दि. 31.05.96 का अनुपालन कर दिया गया है। जिला फोरम ने यह पाया कि चूंकि अनुपालन रिपोर्ट जो प्रस्‍तुत किया गया है वह दि. 27.01.2003 का है, जबकि निर्णय जिसका अनुपालन करना था वह दि. 31.05.96 को पारित किया गया। जिला फोरम ने यह पाया कि निर्णय का अनुपालन समय के अंतर्गत नहीं कहा जा सकता।  जिला फोरम ने धारा 27 के अंतर्गत विपक्षीगण को एकल व संयुक्‍त रूप से रू. 2000/- के अर्थदण्‍ड से दंडित किया है। इस प्रकरण को देखने से स्‍पष्‍ट है कि किसी व्‍यक्ति या अधिकारी कर्मचारी को न तो दंडित किया गया और न ही कोई जवाबतलब किया गया और न ही सुनवाई का मौका दिया गया है व संयुक्‍त रूप से अथवा एकल रूप से दंडित करने का जो आदेश किया गया है वह विधिनुकूल नहीं है। दण्‍ड देने से पहले न्‍यायिक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और न ही मौका दिया गया है, जो निर्णय आदेश दि. 07.05.2003 में पारित किया गया है वह विधि विरूद्ध है और निरस्‍त होने योग्‍य है। तदनुसार पुनरीक्षण स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।

                                    आदेश

      प्रस्‍तुत पुनरीक्षण स्‍वीकार की जाती है।

      उभय पक्ष अपना व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

      इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्‍ध करा दी जाए।

 

         (राम चरन चौधरी)                              (राज कमल गुप्‍ता)                                                                                                                                                   पीठासीन सदस्‍य                                    सदस्‍य

 राकेश, आशुलिपिक

  कोर्ट-5

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary]
PRESIDING MEMBER

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