(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2427/2012
श्रीमती गीता देवी पत्नी श्री गोविन्द तिवारी तथा चार अन्य
बनाम
पैथोलाजी क्लीनिक द्वारा प्रोपराइटर डा0 एच.सी. अरोड़ा
एवं
अपील संख्या-2122/2012
पैथोलाजी क्लीनिक द्वारा प्रोपराइटर डा0 एच.सी. अरोड़ा
बनाम
श्रीमती गीता देवी पत्नी श्री गोविन्द तिवारी तथा छ: अन्य
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
दिनांक : 18.09.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-393/2000, गीता देवी व अन्य बनाम पैथालाजिकल क्लीनिक तथा दो अन्य में विद्वान जिला आयोग, देवरिया द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 9.8.2012 के विरूद्ध अपील संख्या-2427/2012, परिवादीगण की ओर से क्षतिपूर्ति की राशि में बढ़ोत्तरी के लिए प्रस्तुत की गई है, जबकि अपील संख्या-2122/2012 विपक्षी संख्या-1 की ओर से प्रश्नगत निर्णय/आदेश को अपास्त करने के लिए प्रस्तुत की गई है। चूंकि दोनों अपीलें एक ही निर्णय/आदेश से प्रभावित हैं, इसलिए दोनों अपीलों का निस्तारण एक ही निर्णय/आदेश द्वारा एक साथ किया जा रहा है, इस हेतु अपील संख्या-2427/2012 अग्रणी अपील होगी।
2. उपरोक्त दोनों अपीलों में विपक्षी सं0-1 की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री प्रत्यूष त्रिपाठी उपस्थित हैं। परिवादीगण की ओर से कोई
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उपस्थित नहीं है। उपरोक्त दोनों अपीलों में परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता की मृत्यु होने पर इस पीठ के आदेश के अनुपालन में कार्यालय द्वारा परिवादीगण को स्वंय उपस्थित होने अथवा नवीन अधिवक्ता नियुक्त करने हेतु सूचना प्रेषित की गई थी, जिसकी प्रति उपरोक्त दोनों पत्रावलियों पर उपलब्ध हैं, परन्तु परिवादीगण की ओर से कोई उपस्िथत नहीं हुआ। अत: विपक्षी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावलियों का अवलोकन किया गया।
3. विद्वान जिला आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए लापरवाही से तैयार रिपोर्ट के कारण अंकन 1,00,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश 10 प्रतिशत ब्याज के साथ पारित किया है।
4. परिवाद के तथ्यों के अनुसार दिनांक 22.5.2000 को परिवदी सं0-1 गीता देवी का प्रेग्नेन्सी टेस्ट विपक्षी सं0-1 से कराया गया। जांच रिपोर्ट उसी दिन उपलब्ध करा दी गई, जिसमें उल्लेख था कि गीता देवी गर्भ से नहीं हैं। विपक्षी सं0-2 डा0 उपरोक्त रिपोर्ट के आधार पर इलाज करते रहे, जिसके कारण गीता देवी का स्वास्थ्य गिरने लगा, इस पर विपक्षी सं0-2 डा0 द्वारा अल्ट्रासाउण्ड कराने की सलाह दी गई। दिनांक 8.7.2000 को डा0 जायसवाल डायग्नोस्टिक सेन्टर के यहां अल्ट्रासाउण्ड कराया गया, जिनके द्वारा बताया गया कि परिवादी सं0-1 गीता देवी गर्भ से हैं, परन्तु स्वास्थ्य बिगड़ने के कारण वह बच्चा पैदा करने में समर्थ नहीं है, इसलिए दिनांक 11.7.2000 को गर्भपात करा दिया गया। ऐसा विपक्षी सं0-1 की गलत रिपोर्ट के कारण हुआ। तदनुसार क्षतिपूर्ति के लिए उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत किया गया।
5. विपक्षी सं0-1 का कथन है कि स्वंय गीता देवी ने लैब में आकर जांच के लिए यूरिन का सैम्पल नहीं दिया था, बल्कि दूसरे व्यक्ति यूरिन शीशी में भरकर लाए थे और परिवादी सं0-1 गीता देवी का नाम लिखकर
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यूरिन की जांच कराई गई थी। चूंकि यूरिन बाहर से आया था, इसलिए रिपोर्ट पर उसका अंकन '' स्पेसीमेन सेन्ट टू लैब '' किया गया था, इसलिए रेण्डम स्पेसीमेन के रूप में परीक्षण किया गया था। यदि यूरिन प्रात:कालीन का न हो तथा दवाओं का सेवन किया गया हो तब नमूना मिश्रित हो सकता है, जिसके कारण जांच रिपोर्ट प्रभावित होती है। गर्भ के छ: सप्ताह के अन्दर यूरिन जांच कराने पर प्रेग्नेन्सी सामने नहीं आती। छ: से आठ सप्ताह के बीच 2 से 4 प्रतिशत फाल्स रिपोर्ट की संभावना रहती है, इसलिए विपक्षी सं0-1 द्वारा तैयार रिपोर्ट को गलत नहीं बताया जा सकता, इसलिए परिवाद खारिज होने योग्य है।
6. पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग ने निष्कर्ष दिया कि 7 सप्ताह के गर्भ के पश्चात जांच की गई थी, इसलिए 98 प्रतिशत सही परिणाम की अपेक्षा की जा सकती है। तदनुसार उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया।
7. अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि जायसवाल डायग्नोस्टिक सेन्टर द्वारा रिपोर्ट 8.7.2000 को तैयार की गई, जबकि अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1 द्वारा रिपोर्ट दिनांक 22.5.2000 को तैयार की गई, परन्तु गणना करने पर यह अवधि 6 सप्ताह की होती है 6 सप्ताह से कम नहीं होती, परन्तु विद्वान जिला आयोग द्वारा इस बिन्दु पर कोई विचार नहीं किया गया कि लैबोरेटरी का यह कथन है कि मरीज महिला स्वंय उनके पास परीक्षण हेतु यूरिन देने के लिए उपलब्ध नहीं थी। यह यूरिन किसी के द्वारा भिजवाया गया था, इसलिए यह यूरिन अपमिश्रित हो सकता था, जिसमें अन्य दवाए भी उपलब्ध हो सकती थी। लैबोरटरी की ओर से प्रस्तुत शपथ पत्र का कोई खण्डन नहीं किया गया कि लैब में कोई व्यक्ति सैम्पल लेकर आया था और उसे गीता देवी के यूरिन का सैम्पल बताया था। अत: यह सैम्पल सीधे गीता देवी के यूरिन से नहीं
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लिया गया, अपितु उपलब्ध कराया गया, जिसमें समय का गैप हो सकता है और चूंकि दो प्रतिशत की विफलता की गुंजाइश रिपोर्ट तैयार करने में होती है, जबकि प्रस्तुत केस में सैम्पल विशुद्ध सैम्पल की श्रेणी में नहीं माना जा सकता, इसलिए लापरवाही का तथ्य स्थापित नहीं है। अत: विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अस्तित्व में रहने योग्य नहीं है। तदनुसार अपास्त होने और विपक्षी सं0-1 की ओर से प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है। चूंकि विपक्षी सं0-1 की अपील स्वीकार की जाती है, इसलिए क्षतिपूर्ति की राशि में बढ़ोत्तरी के लिए प्रस्तुत की गई अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
8. अपील संख्या-2122/2012 स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 09.08.2012 अपास्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए।
परिवादीगण की ओर से प्रस्तुत अपील संख्या-2427/2012 निरस्त की जाती है।
इस निर्णय/आदेश की मूल प्रति अपील संख्या-2427/2012 में रखी जाए तथा इसकी एक सत्य प्रति संबंधित अपील में भी रखी जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार(
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2