राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
परिवाद संख्या-423/2016
श्रीमती सरोज कुमार पत्नी स्व0 वीरेन्द्र कुमार, निवासी 121 ए,
एबव कैन्ट ड्राई क्लीनर्स, सदर बारी बाजार, लखनऊ व दो अन्य।
...........परिवादिनीगण
बनाम्
पार्श्वनाथ प्लानेट मैसर्स पार्श्वनाथ डेवलपर्स लि0 प्लाट नं0 टीसी-8
टीसी-9, विभूति खंड, गोमती नगर, लखनऊ द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर
व एक अन्य। .......विपक्षीगण
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
परिवादीगण की ओर से उपस्थित : श्री विकास अग्रवाल, विद्वान
अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चडढा,विद्वान अधिवक्ता
दिनांक 01.04.2022
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. यह परिवाद परिवादी का आवंटित फ्लैट संख्या टी 8-104 1675 स्क्वायर फिट वास्तविक भौतिक कब्जा प्रदान करने का आदेश देने के लिए, अंकन रू. 144179/- की मांग को निरस्त करने के लिए तथा अन्य अनुचित मांग को निरस्त करने के लिए, जमा की गई तिथि से वास्तविक कब्जे की तिथि तक जमा धनराशि पर 24 प्रतिशत तक ब्याज प्राप्त करने के लिए तथा कब्जा प्रदान करने में देरी के कारण किराए के रूप में दी राशि अंकन 8 लाख रूपये की प्रतिपूर्ति के लिए, सेवा में कमी के कारण 5 लाख रूपये की क्षतिपूर्ति के लिए, विक्रय पत्र के निष्पादन के समय विपक्षी द्वारा ही मूल्यवृद्धि की राशि अदा करने के आदेश देने के लिए तथा परिवाद व्यय के रूप में रू. 50000/- अदा करने का आदेश देने के लिए, 5 रूपये प्रति
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स्क्वायर फिट की दर से रू. 8375/- की क्षतिपूर्ति का आदेश देने के लिए प्रस्तुत किया गया है।
2. परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादिनी संख्या 1 के पति एवं परिवादी संख्या 2 एव 3 के पिता द्वारा दि. 14.12.2006 को फ्लैट प्राप्त करने के उद्देश्य से पंजीकरण शुल्क 3 लाख रूपये जमा कराएं। फ्लैट का कब्जा जून 2009 में देने का वायदा किया गया। बीबीए दि. 17.05.07 को निष्पादित हुआ, जिसकी कुल कीमत 23 लाख रूपये थी। कार पार्किंग के लिए अतिरिक्त एक लाख रूपये दिए जाने थे। करार के अनुसार प्लान बी यानी सीएलबी प्लान स्वीकार किया गया था। परिवादीगण द्वारा कुल रू. 2081920.75 पैसे मांग पत्र के अनुसार जमा कराए गए हैं। दि. 09.01.2009 को वीरेन्द्र कुमार की मृत्यु हो चुकी है। परिवादीगण अधिकारी हैं। परिवादीगण ने दि. 06.05.15 को रू. 1688/-, दि. 29.07.15 को रू. 51248/- कुल रू. 52936/- जमा किया। इस प्रकार दि. 14.12.06 से 29.07.15 तक रू. 2434856.75 पैसे जमा किए जा चुके हैं। फ्लैट का बेसिक मूल्य 23 लाख रूपये और कार पार्किंग का एक लाख रूपये कुल 24 लाख रूपये था। इस प्रकार परिवादीगण द्वारा रू. 34856.75 पैसे अधिक वसूल लिए गए हैं, जबकि फ्लैट अभी भी तैयार नहीं है। देरी से भुगतान पर विपक्षी 24 प्रतिशत प्रतिवर्ष ब्याज प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। इस प्रकार परिवादी द्वारा 24 प्रतिशत की दर से ब्याज प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। अंकन रू. 2434856.75 पैसे जमा करने के बावजूद विपक्षीगण ने दि. 20.05.13 के पत्र द्वारा रू. 217750/- अतिरिक्त मांगे गए हैं, जो अनुचित व्यापार पद्धति है। विपक्षीगण द्वारा सूचित किया गया कि मार्च 2011 तक फ्लैट तैयार हो जाएगा। दि. 12.02.10 के पत्र द्वारा फ्लैट का
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कब्जा सुपुर्द करने में देरी के तथ्य को स्वीकार किया गया और क्लॉज 10-सी के अनुसार क्षतिपूर्ति को भी स्वीकार किया गया, परन्तु मार्च 2011 में भी कब्जा नहीं दिया गया। बाद में दिसम्बर 2011 तक निर्माण पूर्ण करने का आश्वासन दिया गया, परन्तु यह अवधि भी समाप्त हो चुकी है और दि. 02.03.12 के पत्र द्वारा दिसम्बर 2012 में कब्जा देने का वायदा किया गया। यथार्थ में मौके पर कोई निर्माण गतिविधियां नहीं हैं और अगले 5 वर्ष तक भी कब्जा मिलना संभव नहीं है। विपक्षीगण द्वारा अतिरिक्त रू. 144179/- की मांग की गई जो अनुज्ञेय नहीं है तथा एनेक्सर संख्या 9 के माध्यम से वैट की भी मांग की गई है, जबकि कब्जा 2009 में सुपुर्द किया जाना था, इसलिए वर्ष 2015 में वैट की मांग करना अनुचित है। परिवादीगण वर्ष 2009 से किराए के मकान में रह रहे हैं। यथार्थ में फ्लैट का एरिया नहीं बढ़ाया गया, जबकि मांग पत्र में 1675 के स्थान पर 1780 स्क्वायर फिट फ्लैट एरिया होना कहा गया है। विपक्षी की सेवा में कमी के कारण सैकड़ों आवंटियों को प्रताड़ना कारित हुई। इस आयोग द्वारा दि. 25.02.15 को अंकित बेंच केसों का निस्तारण किया गया। एनसीडीआरसी द्वारा अपील दि. 20.01.16 को निस्तारित की गई। लखनऊ विकास प्राधिकरण ने बिल्डर द्वारा अदायगी कारित करने के कारण योजना निरस्त करने की चेतावनी दी गई, अत: उपरोक्त वर्णित अनुतोषों के लिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
3. लिखित कथन में उल्लेख है कि भवन के कब्जा प्राप्त करने का प्रस्ताव दिया गया है। स्वयं परिवादीगण स्टांप ड्यूटी अदा नहीं कर रहे हैं, इसलिए विक्रय पत्र निष्पादित नहीं हो पा रहा है। करार के अनुसार समय संविदा का सार नहीं है। 36 माह के अंदर निर्माण पूर्ण होने की संभावना
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थी, 06 मास अवधि का ग्रेस पीरियड शामिल था। क्लॉज 10-सी के अनुसार 5 रूपये प्रति स्क्वायर फिट का प्रतिकर देरी के कारण बिल्डर द्वारा देय है। बाजार में मंदी के कारण समय पर निर्माण पूरा कर कब्जा नहीं दिया जा सका, इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि परिवादीगण द्वारा रू. 34856/- अतिरिक्त जमा किए गए हैं। देरी से कब्जा दिए जाने के कारण रू. 242875/- परिवादीगण के खाते में क्रेडिट किए गए हैं तथा विक्रय पत्र लिखाने के लिए स्टांप ड्यूटी, मेन्टीनेन्स शुल्क, वकील फीस आदि की मांग की गई है। फ्लैट पूर्ण रूप से तैयार है, स्वयं परिवादीगण विक्रय पत्र निष्पादित नहीं करा रहे हैं। कंपनी द्वारा सभी आवंटियों को समय-समय पर सूचित किया गया है, निर्माण कार्य जारी रहा है। इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि फिट आउट फ्लैट का कब्जा प्राप्त करने का प्रस्ताव दिया गया था। ऐसा स्वयं बचने के उद्देश्य से किया गया था ताकि आवंटी शीघ्रता से अपनी इच्छा के अनुसार फ्लैट को पूर्ण करा सके। वैट भारत सरकार को दिया जाएगा, इसलिए आवंटी द्वारा वैट की राशि अदा की जाएगी। यह भी उल्लेख किया गया है कि फ्लैट के कुल क्षेत्र में बढ़ोत्तरी हुई है, इसलिए बढ़ोत्तरी वाले क्षेत्र के मूल्य को अदा करने का उत्तरदायित्व आवंटी पर है।
4. दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
5. एनेक्सर संख्या 1 आवंटन पत्र, जिसके अवलोकन से स्पष्ट होता है कि 1775 स्क्वायर फिट का फ्लैट परिवादिनी संख्या 1 के पति और परिवादी संख्या 2 एवं 3 के पिता को 1850 प्रति स्क्वायर फिट की दर से आवंटित किया गया। अंकन एक लाख रूपये की कार पार्किंग शुल्क देय था।
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इस राशि के अलावा आवंटित फ्लैट के लिए किसी प्रकार का अन्य शुल्क देय नहीं है, इसलिए लिखित कथन में इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि परिवादीगण द्वारा अंकन रू. 34856.75 पैसे अधिक जमा किए गए हैं, अत: स्पष्ट है कि परिवादीगण इस राशि को स्टांप शुल्क आदि की राशि में समायोजित कराने के लिए अधिकृत है तथा जमा करने की तिथि से वास्तविक समायोजन की तिथि पर इस राशि पर 9 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज प्राप्त करने के लिए भी अधिकृत है। चूंकि इस तथ्य को लिखित कथन में स्वीकार किया गया है, अत: बगैर साक्ष्य की व्याख्या के इस बिन्दु पर इसी अवसर पर निष्कर्ष दिया जा रहा है।
6. आवंटन पत्र की शर्तों के अनुसार 36 माह के अंतर्गत कब्जा प्रदान किया जाना था। 6 माह का ग्रेस पीरियड भी कब्जा सुपुर्द करने के लिए अनुज्ञेय है, परन्तु परिवादीगण ने स-शपथ द्वारा साबित किया है कि 36 माह व 06 माह यानी 42 माह के पश्चात भी कब्जा प्रदान नहीं कर पाए। विपक्षीगण की ओर से प्रस्तुत लिखित कथन में यह उल्लेख किया गया है कि स्वयं परिवादीगण स्टांप शुल्क की अदायगी नहीं कर रहे हैं, इसलिए कब्जे एवं विक्रय विलेख की कार्यवाही नहीं की जा रही है, परन्तु चूंकि प्राधिकरण से पूर्णतया प्रमाणपत्र प्राप्त करने का कोई उल्लेख लिखित कथन में नहीं किया गया न ही इस आयोग के समक्ष पूर्णत: प्रमाणपत्र विपक्षीगण की ओर से दाखिल किया गया है, इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि भवन निर्माता द्वारा वैधानिक रूप से कब्जा प्राप्त करने से का प्रस्ताव दिया गया, बल्कि इस तथ्य को स्वीकार किया गया है कि अधूरे निर्माण पर ही स्वयं आवंटी द्वारा निर्माण पूर्ण कराने का प्रस्ताव दिया गया था। लिखित कथन का यह उल्लेख जाहिर करता है कि भवन निर्माता द्वारा समयावधि
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के अंदर भवन का निर्माण नहीं किया गया। तदनुसार फ्लैट का कब्जा नियमित समयावधि के अंदर आवंटी को सुपुर्द नहीं किया गया, अत: देरी से कब्जा प्राप्त करने के आधार पर परिवादीगण भवन निर्माता से करार की शर्तों के अनुसार 5 रूपये प्रति स्क्वायर फिट की दर से प्रतिकर प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
7. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जो फ्लैट आवंटित किया गया है उसका एरिया मौके पर अधिक नहीं है, जबकि विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि यथार्थ में परिवादीगण को आवंटित फ्लैट का एरिया 1675 के स्थान पर 1780 स्क्वायर फिट हो गया है, इसलिए अतिरिक्त मूल्य परिवादीगण द्वारा देय है। भवन निर्माता द्वारा जारी लेखा विवरण के अलावा इस आशय का कोई सबूत पत्रावली पर मौजूद नहीं है कि प्रश्नगत फ्लैट का क्षेत्रफल मौके पर यथार्थ में अधिक हो गया है। चूंकि इस तथ्य को साबित करने का भार भवन निर्माता पर है कि मौके पर आवंटित भवन का क्षेत्रफल अधिक है और चूंकि इस तथ्य को साबित नहीं किया गया है, अत: परिवादीगण अतिरिक्त राशि अंकन रू. 144179/- अदा करने के लिए उत्तरदायी नहीं हैं।
8. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह बहस की गई है कि अंतिम लेखा विवरण की मांगी गई अवैध धनराशि को रद्द किया जाए। इस एकाउन्ट में वर्णित रू. 144179/- को रद्द करना उचित पाया गया है। इस विवरण पत्र में 105 स्क्वायर फिट एरिया अतिरिक्त दर्शाया गया है, इसलिए अतिरिक्त राशि की मांग की गई है, परन्तु यथार्थ में मौके पर अतिरिक्त क्षेत्रफल होना साबित नहीं है, इसलिए अंकन रू. 144179/- की राशि वसूलने के लिए प्राधिकरण अधिकृत नहीं है। परिवादीगण का कथन है कि पूर्ण 23
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लाख रूपये की राशि जमा की गई है। विपक्षीगण ने स्वीकार किया है कि 23 लाख रूपये बेसिक मूल्य तथा एक लाख रूपये की कार पार्किंग के अलावा रू. 34856/- अधिक जमा किए गए हैं, अत: अधिक जमा राशि जमा करने के बावजूद रू. 115000/- दिखाया जाना अनुचित है, अत: इस मद में दर्शाई गई बकाया राशि भी रद्द होने योग्य है।
9. विद्युत मीटर की मद में रू. 10200/- की मांग की गई है, यह मांग विधिसम्मत है। विद्युत आपूर्ति के मद में रू. 8000/- की मांग की गई है, यह मांग भी विधिसम्मत है। विद्युत सिक्योरिटी के रूप में रू. 2800/- की मांग भी विधिसम्मत है, परन्तु दि. 27.10.15 से देरी के कारण रू. 91519/- की ब्याज राशि दर्शाई गई है, जबकि परिवादीगण द्वारा जमा की गई रसीदों के अनुसार जब-जब किश्त की मांग की गई उसी समय किश्त अदा की गई है, इसलिए देरी के कारण ब्याज राशि रू. 91519/- दर्शित करने का कोई औचित्य नहीं है, अत: यह राशि रद्द होने योग्य है।
10. अंकन रू. 14404/- सर्विस टैक्स और अंकन रू. 46900/- फ्री होल्ड शुल्क के रूप में मांगे गए हैं, यह राशि पर आवंटी को विधि के अंतर्गत देय है। इस राशि को भवन निर्माता द्वारा अपने पास नहीं रखा जाएगा, अपितु संबंधित प्राधिकारियों को सुपुर्द कर दिया जाएगा, अत: इस राशि की मांग को रद्द नहीं किया जा सकता।
11. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि वास्तविक भौतिक कब्जा प्राप्त करने की तिथि तक परिवादीगण द्वारा अपने द्वारा जमा की गई राशि पर 24 प्रतिशत प्रतिवर्ष का ब्याज प्राप्त करने के लिए अधिकृत है, परन्तु चूंकि कब्जा प्राप्ति में देरी के कारण 5 रूपये स्क्वायर फिट की दर से क्षतिपुर्ति किए जाने का प्रावधान करार में मौजूद है, अत: 24
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प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज अदा करने का आदेश दिया जाना विधिसम्मत नहीं है।
12. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि परिवादिया द्वारा 2009 के बाद से 8 लाख रूपये का किराया अदा किया गया है, इसलिए यह राशि भवन निर्माता द्वारा प्रतिपूर्ति की जानी चाहिए। परिवादी की ओर से अंकन 5 लाख रूपये सेवा में कमी के आधार पर मांगे गए हैं, एक ही मद में दो स्टेज पर क्षतिपूर्ति की मांग नहीं की जा सकती। यह तथ्य स्थापित है कि भवन निर्माता द्वारा समय पर कब्जा सुपुर्द न कर सेवा में कमी कारित की गई है, इसलिए परिवादीगण इस मद में अंकन 5 लाख रूपये की क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत हैं। इस राशि से किराए की राशि का समायोजन हो सकता है। किराए के मद में परिवादीगण अतिरिक्त धनराशि प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं हैं।
13. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि अंतिम कास्ट निर्धारण के समय अतिरिक्त राशि का भुगतान भवन निर्माता कंपनी द्वारा किया जाना चाहिए था। यह अनुतोष काल्पनिक है, जिस दर से भवन आवंटित किया गया है उसी दर पर वास्तविक मूल्य का निर्धारण भवन निर्माता द्वारा किया जाएगा। भवन की जो कीमत दर्शाई गई है वह कीमत संभावित नहीं है, अपितु यथार्थ कीमत है, इसलिए भवन निर्माता द्वारा इस राशि को बढ़ाए जाने का कोई अवसर नहीं है, अत: इस मद में कोई आदेश जारी नहीं किया जा सकता, परन्तु इतना स्पष्ट किया जा सकता है कि भवन निर्माता अतिरिक्त मूल्य परिवादीगण से प्राप्त नहीं करेंगे।
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14. परिवाद व्यय की मद में अंकन रू. 50000/- के अनुतोष की मांग की गई, यह राशि अत्यधिक है। परिवाद व्यय के रूप में रू. 5000/- अदा किए जाने का आदेश दिया जाना विधिसम्मत है।
15. परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा इसी योजना के अंतर्गत विभिन्न आवंटियों के पक्ष में भवन निर्माता के विरूद्ध अंकन रू. 15000/- एवं रू. 20000/- प्रतिमाह क्रमश: 175 स्क्वायर फिट तथा इससे अधिक के फ्लैट के लिए अदा करने का आदेश दिया गया है, परन्तु चूंकि जिला उपभोक्ता मंच ने क्लॉज 10-सी के अनुसार प्रतिकर की राशि अदा करने का आदेश नहीं दिया, इसलिए अंकन रू. 15000/- या रू. 20000/- प्रतिमास की राशि अदा करने का आदेश दिया गया है, जबकि प्रस्तुत केस में ऊपर यह निष्कर्ष दिया गया है कि परिवादीगण कब्जा देरी से प्राप्त करने के कारण देरी की अवधि के दौरान 5 रूपये प्रति स्क्वायर फिट की दर से प्रतिकर प्राप्त करने के लिए अधिकृत हैं, अत: इस राशि को अदा करने का आदेश नहीं दिया जा सकता।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद निम्न प्रकार से स्वीकार किया जाता है:-
(ए). विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि एक माह के अंदर परिवादीगण को पूर्णतया प्रमाणपत्र के साथ आवंटित फ्लैट का वास्तविक भौतिक कब्जा प्रदान किया जाए।
(बी). अंकन रू. 144179/- की मांग, अंकन रू. 115000/- की बकाया को दर्शाने वाले इन्द्रराज तथा अंकन रू. 91519/- ब्याज दर्शित करने वाले इन्द्रराज रद्द किया जाता है। चूंकि परिवादी द्वारा समस्त विक्रय मूल्य के अलावा अंकन रू. 34856/- अधिक जमा किया गया है, अत: इस मद में
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अन्य कोई राशि भवन निर्माता द्वारा परिवादीगण से वसूल नहीं की जाएगी। यद्यपि इस निर्णय के पैरा संख्या 9 में वर्णित इलेक्ट्रिक चार्जेस, वैट तथा फ्री होल्ड परिवादीगण से वसूलने योग्य होगा। परिवादीगण द्वारा जमा राशि 09 प्रतिशत ब्याज सहित परिवादीगण से वसूलने योग्य राशि में समायोजित की जाएगी।
(सी). परिवादीगण मानसिक प्रताड़ना के मद में रू. 5000/- विपक्षीगण से प्राप्त करेंगे।
(डी). परिवादीगण भवन निर्माता क्रेता करार के निष्पादन की तिथि से 42 माह की अवधि समाप्त होने के बाद की तिथि से वास्तविक कब्जा प्रदान करने की तिथि तक 5 रूपये प्रति स्क्वायर फिट की दर से प्रतिकर प्राप्त करेंगे। इन दोनों राशियों पर कोई ब्याज देय नहीं होगा। 3 माह के अंदर भुगतान कर दिया जाए। यदि 3 माह के अंदर भुगतान नहीं किया जाता है तब इन दोनों राशियों पर 09 प्रतिशत परिवाद की दर से साधारण ब्याज देय होगा।
(ई). परिवाद व्यय के रूप में अंकन रू. 5000/- परिवादीगण विपक्षीगण से प्राप्त करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (विकास सक्सेना) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-3