राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उ0प्र0, लखनऊ
(सुरक्षित)
परिवाद सं0- 201/2018
1. भालचन्द्र त्रिपाठी पुत्र श्री लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी, निवासी- एच0आई0जी0 48/2, आवास विकास योजना-2, झूसी इलाहाबाद। वर्तमान पता- 31, पुराना ईदगाह कालोनी निकट बी0एस0एन0एल0 कार्यालय, आगरा।
2. श्रीमती सुनीता त्रिपाठी पत्नी श्री भालचन्द्र त्रिपाठी निवासी- एच0आई0जी0 48/2, आवास विकास योजना-2, झूसी इलाहाबाद। वर्तमान पता- 31, पुराना ईदगाह कालोनी निकट बी0एस0एन0एल0 कार्यालय, आगरा।
.......परिवादीगण
बनाम
1. पार्श्वनाथ डवलपर लिमिटेड (प्लेनेट), प्लाट नम्बर-टीसीजी 8/8 एण्ड 9/9, विभूति खण्ड गोमती नगर लखनऊ। द्वारा सीनियर जनरल मैनेजर/अधिकृत हस्ताक्षरी।
2. पार्श्वनाथ डवलपर लिमिटेड पंजीकृत कार्यालय पार्श्वनाथ टावर नियर शाहदरा मेट्रो स्टेशन शाहदरा दिल्ली 110032, द्वारा निदेशक।
..........विपक्षीगण
समक्ष:-
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
परिवादीगण की ओर से उपस्थित : श्री मालेश कुमार पाण्डेय, विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : श्री राजेश चड्ढा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 14.03.2023
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. प्रस्तुत परिवाद, परिवादीगण भालचन्द्र त्रिपाठी व एक अन्य द्वारा विपक्षीगण पार्श्वनाथ डवलपर लिमिटेड (प्लेनेट) व एक अन्य विरुद्ध धारा 17 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया है।
2. संक्षेप में परिवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादीगण संयुक्त रूप से विपक्षीगण के यहां फ्लैट नं0- टी6-1204ए जिसका क्षेत्रफल 164.09 वर्ग मीटर था और जिसकी कीमत लगभग रू0 25,00,000/- (रू0 पच्चीस लाख) 15,160.6115 प्रति वर्गमीटर की दर से आंकलित की गई थी जिसे रू0 3,44,000/- देकर बुक कराया और उक्त बुकिंग धनराशि देने के उपरांत विपक्षीगण द्वारा दि0 27.06.2007 को अनुबंध परिवादीगण से निष्पादित किया गया जिसके प्रस्तर 10ए में उल्लेख किया गया है कि 36 माह के अन्दर फ्लैट का कार्य पूर्ण हो जायेगा। परिवादीगण द्वारा अनुबंध पत्र के साथ भुगतान चार्ट भी उपलब्ध कराया गया जिसके अनुसार परिवादीगण ने समस्त धनराशि विपक्षी को समयान्तर्गत अदा कर दिया। विपक्षी द्वारा उपरोक्त निष्पादित अनुबंध के 10सी में यह उल्लेख किया गया है कि अनुबंध के प्रस्तर 10ए के अनुसार यदि फ्लैट का निर्माण पूर्ण नहीं हुआ तो 06 माह की अवधि के उपरांत रू053.80पैसे (रू0 5/- प्रति वर्ग फुट) की दर से विपक्षी, परिवादीगण को प्रतिमाह के हिसाब से विलम्ब अवधि का क्षतिपूर्ति भुगतान करेगा। विपक्षी द्वारा दि0 01.04.2017 को आवंटित फ्लैट का विक्रय विलेख परिवादीगण के पक्ष में इस शर्त के साथ निष्पादित किया गया कि शेष बचे हुए कार्य को परिवादीगण स्वयं करा लेगा। विपक्षी द्वारा फ्लैट के निर्माण में हुए विलम्ब के सम्बन्ध में जो क्षतिपूर्ति निर्धारित की गई है उसके अनुसार विपक्षी को 01 अप्रैल 2017 तक क्षतिपूर्ति की धनराशि परिवादीगण को दिया जाना चाहिए था, परन्तु विपक्षी द्वारा सितम्बर 2015 तक ही क्षतिपूर्ति की धनराशि फ्लैट के मूल्य में समायोजित की गई है। ऐसी दशा में परिवादीगण अक्टूबर 2015 से कब्जा प्राप्ति के दि0 16.10.2017 तक लगभग 25 माह की क्षतिपूर्ति रू0220701.05पैसे पाने का अधिकारी था जो कि विपक्षी द्वारा अदा नहीं किया गया। जब परिवादीगण बार-बार अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप फ्लैट के विक्रय विलेख निष्पादित किए जाने के सम्बन्ध में आग्रह किया तो विपक्षी द्वारा कहा गया कि जितना भी पूर्ण स्थिति में फ्लैट निर्मित है उसी अनुरूप आप विक्रय विलेख निष्पादित करा लें और तदोपरांत कब्जा प्रदान कर दिया जायेगा। तत्पश्चात फ्लैट में जो भी निर्माण बचा है उसे स्वयं करा लें और जो भी व्यय आयेगा वह अदा कर दिया जायेगा। तदोपरांत जब परिवादीगण को कब्जा प्रदान किया गया तो परिवादी द्वारा उक्त फ्लैट को पूर्ण कराया गया जिसमें लगभग रू0 3,46,000/- का व्यय हुआ, जिसे विपक्षी द्वारा अदा नहीं किया गया। परिवादीगण द्वारा दि0 29.01.2016 को विलम्ब क्षतिपूर्ति के सम्बन्ध में विपक्षी को जरिए ई-मेल पत्र लिखा गया, परन्तु विपक्षीगण द्वारा कोई उत्तर नहीं दिया गया।
3. परिवादीगण द्वारा परिवाद पत्र में यह भी कहा गया है कि दि0 07.02.2017 को जरिए ई-मेल दो पत्र विपक्षी को लिखे गए जिसमें भौतिक कब्जा के सम्बन्ध में कहा गया है कि पत्र दि0 19.12.2016 के परिप्रेक्ष्य में फ्लैट का शेष कार्य विपक्षी की तरफ से पूरा करा ले रहा हूँ और उसकी धनराशि वापस कर देना, परन्तु विपक्षीगण द्वारा उक्त के सम्बन्ध में कोई धनराशि परिवादीगण को वापस नहीं की गई। विपक्षीगण ने दि0 21.07.2017 को परिवादीगण को लेजर का विवरण दिया जिसमें समस्त चीजों को समायोजित करने के उपरांत यह स्पष्ट किया गया कि परिवादीगण पर कुल रू03071662.07पैसे बकाया था, परन्तु परिवादीगण से कुल 33,76,325/-रू0 जमा कराया गया, जिसमें रू0304662.73पैसे अधिक जमा हैं जिससे व्यथित होकर यह परिवाद योजित किया गया है।
4. विपक्षीगण द्वारा अपना जवाबदावा प्रस्तुत किया गया जिसमें मुख्य रूप से यह कथन किया गया है कि परिवाद पत्र में विपक्षीगण बिल्डर के सीनियर जनरल मैनेजर तथा डायरेक्टर को पक्षकार बनाया गया है जो व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायित्व नहीं रखते हैं। विपक्षीगण द्वारा स्वीकार किया गया है कि परिवाद भालचन्द्र त्रिपाठी तथा उनकी पत्नी श्रीमती सुनीता त्रिपाठी द्वारा आवासीय फ्लैट T6-1204A पार्श्वनाथ प्लेनेट, लखनऊ में दि0 03.05.2007 को बुक कराया था जिसकी कीमत 25,00,000/-रू0 थी। दि0 19.06.2007 को फ्लैट बायर एग्रीमेंट परिवादीगण को भेजा गया तथा विपक्षीगण द्वारा दि0 07.01.2016 को कब्जे का प्रस्ताव प्रेषित किया गया जिसमें विपक्षीगण ने रू0 5,23,625/- देरी की क्षतिपूर्ति का भी प्रस्ताव किए थे। परिवादीगण ने पत्र दिनांकित 27.10.2016 के माध्यम से विपक्षी कम्पनी को कब्जे के लिए सम्पर्क किया और इसलिए विपक्षीगण कम्पनी रू0 5,78,000/- क्रेडिट करने को तैयार हो गई। इस आधार पर एक एफेडेविट कम अण्डर टेकिंग निष्पादित किया गया। विपक्षीगण द्वारा एक एन0ओ0सी0 दि0 03.01.2017 को सम्बन्धित फ्लैट के सम्बन्ध में जारी की गई जिसे परिवादीगण ने स्वीकार किया और इस प्रकार परिवादीगण को भौतिक कब्जा फ्लैट का दे दिया गया। विपक्षीगण ने दि0 01.04.2017 को सेलडीड निष्पादित कर दी है। विपक्षीगण ने कहीं भी सेवा में कमी नहीं की है। फ्लैट बायर एग्रीमेंट में इस बात का उल्लेख था कि करार के अनुसार निर्धारित समय में देरी होने पर विपक्षी कम्पनी करार के अनुसार रू0 5/- प्रति स्क्वायर फिट प्रतिमाह की देनदारी रखती है जो परिवादीगण के खाते में क्रेडिट कर दिया गया है। इसलिए परिवाद का कोई कारण उत्पन्न नहीं होता है। वास्तव में विपक्षीगण ने संविदा के भंग होने के सम्बन्ध में क्षतिपूर्ति की मांग की है जो सिविल न्यायालय में तय हो सकता है। परिवादीगण की ओर से 3,04,662/-रू0 की मांग की गई है। इसके अतिरिक्त 2,20,701/-रू0 की धनराशि की मांग की गई है जो अत्यधिक है एवं इस अधिनियम के अनुसार राज्य उपभोक्ता आयोग के क्षेत्राधिकार के बाहर है। इन आधारों पर परिवाद पत्र निरस्त किए जाने की प्रार्थना की गई है।
5. परिवादी की ओर से परिवाद पत्र के समर्थन में शपथ पत्र एवं अन्य अभिलेख प्रस्तुत किए गए हैं।
6. विपक्षीगण की ओर से लिखित कथन के समर्थन में शपथ पत्र एवं अन्य अभिलेख प्रस्तुत किए गए हैं।
7. हमने परिवादीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री मालेश कुमार पाण्डेय तथा विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री राजेश चड्ढा को सुना एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया।
8. परिवादीगण की ओर से निम्नलिखित तीन धनराशियों की मांग की गई है:-
1. परिवादीगण की अधिक जमा धनराशि रू0304662.73पैसे।
2. रू0 05/- प्रति स्क्वायर फिट के हिसाब से संविदा के अनुसार क्षतिपूर्ति रू0220701.05पैसे।
3.फ्लैट के रहने की स्थिति में ऋण के लिए व्यय धनराशि 3,46,000/-रू0।
9. जहां तक पहली धनराशि का प्रश्न है परिवादीगण का कथन है कि उसके ऊपर कुल रू03071662.07पैसे बकाया थे, किन्तु परिवादीगण ने 3376325/-रू0 जमा कर दिए। ऐसी स्थिति में परिवादीगण का रू0304662.73पैसे अधिक बनता है जो उन्हें देय है। इस सम्बन्ध में विपक्षीगण ने अपने वादोत्तर में कथन किया है कि परिवादीगण का कथन गलत है। परिवादीगण ने कोई भी धनराशि अधिक अदा नहीं की है। इस सम्बन्ध में परिवादीगण को स्पष्ट रूप से दर्शाना चाहिए कि किस प्रकार एवं किन परिस्थितियों में उसके द्वारा अधिक धनराशि अदा की गई। गणना के अनुसार उस पर कुल रू03071662.07पैसे बकाया बनता था तथा किन परिस्थितियों में उसके द्वारा अधिक धनराशि जमा की गई है। उपरोक्त बकाया एवं स्पष्टीकरण के अभाव में यह नहीं माना जा सकता कि परिवादीगण ने अधिक धनराशि जमा कर दी थी, जब कि उक्त धनराशि जमा करने के उपरांत दि0 01 अप्रैल 2017 यह प्रश्नगत सम्पत्ति के सम्बन्ध में विक्रय पत्र निष्पादित किया जा चुका है। अत: किसी भी दृष्टि से यह मानना उचित नहीं है कि परिवादीगण ने रू0304662.73पैसे अधिक जमा किए थे, जिसे वह ब्याज सहित प्राप्त करने का अधिकारी है।
10. परिवादीगण ने दूसरी धनराशि दोनों पक्षों के मध्य हुई संविदा बायर परचेज एग्रीमेंट के अनुसार रू0220701.05पैसे जो 25 माह की क्षतिपूर्ति हेतु है अदा करने की याचना की है। उक्त धनराशि उचित प्रतीत होती है, क्योंकि निर्माणकर्ता विपक्षीगण द्वारा बिना कारण दर्शाये हुए निर्माण में देरी की गई थी एवं परिवादीगण द्वारा एक बड़ी धनराशि दिए जाने के बावजूद उसे एक लम्बे समय से अपनी सम्पत्ति से वंचित होना पड़ा। अत: कब्जा देने की तिथि तक परिवादीगण, उभयपक्ष के मध्य हुई संविदा की शर्त 10(C) के अनुसार 05/-रू0 प्रति वर्ग फिट की दर से क्षतिपूर्ति पाने के अधिकारी हैं। इस धनराशि पर कब्जे की प्रस्तावित तिथि से वास्तविक कब्जे की तिथि तक 09 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज भी देय होगा।
11. परिवादीगण द्वारा तीसरी धनराशि फ्लैट को रहने योग्य बनाने में व्यय हुई धनराशि 3,46,000/-रू0 की मांग की गई है। यह धनराशि उचित प्रतीत नहीं होती है, क्योंकि उभयपक्ष के मध्य हुए करार में ऐसा कोई अंकन नहीं था और कोई उपबंध संविदा में इस प्रकार का नहीं था कि विपक्षीगण अदा करेंगे। इसके अतिरिक्त परिवादीगण द्वारा मांगी गई यह मनमानी धनराशि है। परिवादीगण द्वारा इस सम्बन्ध में कोई समुचित स्पष्टीकरण अथवा साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है। अत: यह धनराशि परिवादीगण को दिलवाया जाना उचित नहीं है।
12. उपरोक्त विवेचना के आधार पर परिवादीगण को रू0220701.05पैसे धनराशि तथा इस धनराशि पर कब्जे की प्रस्तावित तिथि से वास्तविक कब्जे की तिथि तक 09 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज दिलाया जाना उचित है। तदनुसार परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
13 परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि वे रू0220701.05पैसे धनराशि मय 09 प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज कब्जे की प्रस्तावित तिथि से वास्तविक कब्जे की तिथि तक परिवादीगण को अदा करें।
उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0- 02