Uttar Pradesh

StateCommission

A/2002/3004

Uttar Pradesh Power Co. Ltd. - Complainant(s)

Versus

Parmatma Sahai - Opp.Party(s)

Deepak Mehrotra

17 Dec 2020

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2002/3004
( Date of Filing : 02 Dec 2002 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Uttar Pradesh Power Co. Ltd.
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Parmatma Sahai
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 17 Dec 2020
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

                                                        (सुरक्षित)

अपील सं0 :- 3004/2002

(जिला आयोग, फर्रूखाबाद द्वारा परिवाद सं0- 13/1999 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 31/10/2002 के विरूद्ध)

U.P. State Electricity Board, (Now UP Power Corporation Limited),  through Executive Engineer, Electricity Distribution Division, Farrukhabad, Fatehgarh.

 

  1. Appellant

Versus

 

Parmatma Sahai (late)  S/O Late Sri Gouri Shankar Sahai, 1/38 Sangat Fatehgarh, District Farrukhabad and substitute-

  1. Sri yogendra Sahai S/O late Parmatma Sahai
  2. Sri Jitendra Sahai Saxena S/O late Parmatma Sahai
  3. Smt Urmila Saxena W/O late Akhilesh sahai saxena S/O late Parmatma Sahai  
  4. Respondent

समक्ष

  1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य
  2. मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य

उपस्थिति:

अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता:-       श्री दीपक मेहरोत्रा

प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता:-         श्री ओ0पी0 दुवेल

दिनांक:-  09-09-2021

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

  1.    यह अपील अंतर्गत धारा 15 उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत जिला उपभोक्‍ता आयोग, फर्रूखाबाद द्वारा पारित परिवाद सं0 13/1999 मे पारित निर्णय व आदेश दिनांकित 31.10.2002 के विरूद्ध योजित किया गया है।
  2.     मामले के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी ने यह परिवाद इन अभिकथनों के साथ प्रस्‍तुत किया कि परिवादी की मां श्रीमती सूरज देवी के नाम मकान सं0 1/62 संगत फतेहपुर में घरेलू उपभोग विद्युत संयोजन सं0 00232/000481 था जिनकी मृत्‍यु के बाद परिवादी उक्‍त मकान का बतौर वारिस हो गया। जिस कारण परिवादी को बतौर लाभार्थी होने के कारण परिवाद प्रस्‍तुत करने का अधिकार है। प्रस्‍तुत विद्युत संयोजन का मीटर वर्ष 1993 से खराब चला आ रहा था। निरंतर बिल आईडीएफ के आधार पर भेजे गये थे। अनेक बार प्रार्थना पत्र भेजे जाने प्रार्थना पत्र द्वारा अनुरोध किये जाने के बावजूद मीटर परिवर्तित नहीं किया गया। विपक्षी द्वारा दिनांक 28.11.1998 को परिवादी का नया मीटर 20570/530453 लगाया गया। जिसके अनुसार वर्तमान रीडिंग दिनांकित 18.01.1999 यूनिट मात्र है। इस विद्युत संयोजन से परिवादी अपने पुत्र की जीविकोपार्जन हेतु दुकान खोला है जिसका औद्योगिक दर से विपक्षी द्वारा लिये जा रहे हैं। विपक्षी द्वारा मनमाने ढंग से वह विद्युत राशि लगायी जा रही है तथा उनका संशोधन नये लगे मीटर के आधार पर करने को तैयार नहीं है। परिवादी ने अपने अधीनस्‍थ कर्मचारियों के माध्‍यम से निरंतर फर्जी राशि का निर्धारण करने की धमकी परिवादी को देता रहा है। विपक्षी ने परिवादी को बिल दिनांकित 16.02.1999 में जो पाठयांक अंकित किया था पिछली रीडिंग 7 और वर्तमान रीडिंग 125 को भी संशोधित किया और मीटर सं0 पर 20570 आया तथा अवशेष राशि के स्‍थान पर गलत धनराशि ली गयी है। इन पाठयांको का संशोधन किया जाना नितांत आवश्‍यक है। परिवादी ने मीटर की रीडिंग के आधार पर बिल प्रस्‍तुत किये जाने का कथन किया है एवं क्षतिपूर्ति हेतु वाद योजित किया है।
  3.     विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत किया गया जिसमें परिवादी को उपभोक्‍ता न होने का भी कथन किया है एवं यह कहा है कि विद्युत कनेक्‍शन वाणिज्यिक चल रहा है। परिवादी की दुकान पर विद्युत कनेक्‍शन है जिस पर परिवादी 9.450 किलो वाट विद्युत भार का उपभोग करता हुआ पाया गया जो 500 वा‍ट से अधिक है। दिनांकित 04.10.1998 को परिवादी के परिसर को चेक किया गया। उस समय परिवादी अपनी दुकानों  जिनकी सं0 10 है बिना मीटर के डायरेक्‍ट कनेक्‍शन करके कुल भार 9.450 किलो वाट का विद्युत उपभोग करता पाया गया, जिस पर नियमानुसार परिवादी विद्युत एसेसमेंट किया गया और 1,25,151 रूपये 60 पैसे का बिल भेजा गया। परिवादी का मीटर जनवरी 1999 में बदल दिया गया है। रीडिंग प्राप्‍त होने पर उपभोक्‍ता को एन0आर0 बिलों का एडजेस्‍टमेंट दे दिया गया है। परिवादी ने दिनांक 04.10.1998 को विपक्षी द्वारा की गयी रेट के विरूद्ध धारा 24 क्‍न्‍जयूमर रेग्‍यूलेशन के तहत अपील दाखिल की है जो लम्बित है। परिवाद यू0पी0 कन्‍ज्‍यूमर रेग्‍यूलेशन की धारा 24 से बाधित है। श्रवण योग्‍य नहीं है।
  4.     उभय पक्ष को सुनवाई का अवसर देते हुए निम्‍न लिखित बिन्‍दुओं पर निर्णय दिया गया है:-
  1. क्‍या परिवादी का परिवाद श्रवण करने का क्षेत्राधिकार इस मंच को प्राप्‍त है अथवा नहीं।
  2. क्‍या परिवादी को विपक्षी द्वारा भेजा गया बिल दिनांक 19.03.1999 की अदायगी का दायित्‍व परिवादी का है।
  3. क्‍या परिवादी का संयोजन वाणिज्यिक है।

5.     बिन्‍दु सं0 1 पर विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने यह कथन किया है   कि परिवादी से तात्‍कालिक उपखण्‍ड अधिकारी श्री ओझा के विरूद्ध विवाद हुआ तो प्रश्‍नगत विद्युत संयोजन के बावत बिल के विद्युत मूल्‍य को ठीक कराने के संबंध में था और जिसकी शिकायत परिवादी ने विपक्षी अधिकारियों से की। परिवादी के अनुसार फर्जी व कथित चेकिंग की गयी और गलत ढंग से रूपये 1,25,152 रूपये 60 पैसे का निर्धारण विपक्षी द्वारा कर दिया गया। निर्धारण से पूर्व परिवादी को सुनवाई का कोई अवसर नहीं दिया गया। परिवादी ने अपने कथन के समर्थन में 13 दुकानदारों एवं अन्‍य व्‍यक्तियों के हस्‍ताक्षर किये गये एक पत्र प्रस्‍तुत किया गया, जिसमें कथन किया गया कि पिछले कई वर्षों से कोई चेकिंग प्रश्‍नगत परिसर में नहीं हुई है। विद्धान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने विपक्षी के इस कथन को गलत माना कि प्रश्‍नगत संयोजन बिना मीटर के डायरेक्‍ट चल रहा था। विद्धान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने चेकिंग दिनांकित 04.10.1998 को एवं सम्‍पूर्ण तथ्‍य संदिग्‍ध पाया एवं यह माना कि परिवादी से विपक्षी धनराशि वसूलने का अधि‍कारी है।

  1.  
  2. , जिसका निर्धारण करते हुए विद्युत बिल भेजे गये हैं। जिनमें कोई कमी नहीं है। परिवादी ने सुपरिण्‍टेंडेंट इंजीनियर विद्युत निर्धारण के संबंध में अपील प्रस्‍तुत की है। जिसमें उसने अपने किरायेदारों द्वारा अवैध रूप से बिजली प्रयोग करना स्‍वीकार किया है किन्‍तु इस तथ्‍य को परिवादी ने अपने परिवाद में छुपाया है। विद्धान जिला उपभोक्‍ता मंच का निर्णय अत्‍यंत पक्षपातपूर्ण है जो अपास्‍त किये जाने योग्‍य है।
  3. , जिस कारण निर्णय दिनांकित 31.10.2002 विधिक है। प्रश्‍नगत विद्युत कनेक्‍शन खराब हो गया था। उसपर आईडीएफ मे लगातार वर्ष 1998 तक बिल भेजे जाते रहे। परिवादी ने अधिक लिये गये विद्युत बिल को दुरूस्‍त किये जाने का प्रार्थना बार बार की। जिला उपभोक्‍ता आयोग ने उचित प्रकार से यह निष्‍कर्ष दिया है कि कथित रेट दिनांकित 04.10.1998 अपीलार्थी साबित करने में असफल रहे हैं तथा परिवादी ने अनेक पड़ोसियों द्वारा हस्‍ताक्षरित प्रार्थना पत्र दिया है, जिसमें उक्‍त रेट न होने का कथन किया गया है। परिवादी का कथन है कि एसडीओ श्री ओझा द्वारा रूपये 5,000/- की मांग मामले को निपटाने हेतु की गयी थी, जिसमें परिवादी ने नहीं दिया, जिस कारण विद्युत का झूठा आरोप लगाया गया है। पड़ोसियों द्वारा इस बात का भी शपथ पत्र दिया गया है कि परिवादी तथा उसके किरायेदार जनरेटर द्वारा विद्युत का प्रयोग करते थे किन्‍तु जिला उपभोक्‍ता फोरम ने उचित प्रकार से रेट को गलत मानते हुए निष्‍कर्ष दिया है जो मानने योग्‍य है।  
  4.  
  5. , बिना मीटर तथा मुख्‍य मीटर को बाईपास करते हुए कुल 9.450 किलोवाट के अधिभार से विद्युत प्रयोग करते हुए पाया गया। जबकि परिवादी को दिये गये विद्युत कनेक्‍शन का भार 500 वाट था इसपर नियमानुसार एसेसमेंट करते हुए विद्युत मूल्‍य की आपूर्ति शुल्‍क 1,25,151 रूपये 60 पैसे शुल्‍क जमा करने हेतु परिवादी को कहा गया। परिवादी ने यह स्‍वीकार किया है कि उसने उक्‍त चेकिंग व निर्धारण के संबंध में अधीक्षण अभियंता के समक्ष धारा 24 यूपी कन्‍ज्‍यूमर रेग्‍यूलेशन, 1985के अंतर्गत दिनांक 12.04.1999 को अपील दायर की है जो अभी लम्बित है। इस प्रकार परिवादी पर विद्युत चोरी के अभियोग लगाये गये हैं। जिसके संबंध में अपील लम्बित भी है। विद्धान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने अपने निर्णय में यह कथन किया है कि उक्‍त अपील के समानांतर कन्‍ज्‍यूमर फोरम में परिवाद प्रस्‍तुत किया जा सकता है एवं विद्धान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा यह भी निर्णीत किया गया है कि परिवादी ने जो वाद योजित किया है वह क्षतिपूर्ति से संबंधित है और जो इस परिवाद अथवा चेकिंग के विरूद्ध किये गये निर्धारण के विरूद्ध किसी विधिक कार्यवाही को निषेध नहीं करता है।
  6. III (2013) CPJ 1 (SC) उल्‍लेखनीय है इस निर्णय में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि धारा 173, 174 तथा 175 विद्युत अधिनियम, 2003 के प्रकाश में कन्‍ज्‍यूमर फोरम को विद्युत अधिनियम की धारा 126 के अंतर्गत किये गये निर्धारण तथा धारा 135 विद्युत अधिनियम के अंतर्गत विद्युत चोरी के मामले में तथा अवैधानिक रूप से विद्युत का प्रयोग करने के संबंध में कोई निष्‍कर्ष देने का क्षेत्राधिकार नहीं बनता है।
  7.  

            “135. Theft of electricity—(1) Whoever, dishonestly—

        (a) taps, makes or causes to be made any connection with overhead, underground or under water lines or cables, or service wires, or service facilities of a licensee or supplier, as the case may be; or

        (b) tampers a meter, instals or uses a tampered meter, current reversing transformer, loop connection or any other device or method which interferes with accurate or proper registration, calibration or metering of electric current or otherwise results in a manner whereby electricity is stolen or wasted; or

       (c) damages or destroys an electric meter, apparatus, equipment, or wire or causes or allows any of them to be so damaged or destroyed as to interfere with the proper or accurate metering of electricity; or

   (d) uses electricity through a tampered meter; or

   (e) uses electricity for the purpose other than for which the usage of electricity was authorised;

  1. III (2013) CPJ 1 (SC) के अनुसार जिला उपभोक्‍ता आयोग अथवा उपभोक्‍ता न्‍यायालय को नहीं है।
  2.  
  3.  

 

  •  

अपील स्‍वीकार की जाती है। प्रश्‍नगत निर्णय व आदेश अपास्‍त किया जाता है।

अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

 

(विकास सक्‍सेना)(सुशील कुमार)

सदस्‍य सदस्‍य

संदीप आशु0 कोर्ट 3

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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