सुरक्षित
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
अपील संख्या-3279/2002
(जिला उपभोक्ता फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या-178/2000 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 23.10.2002 के विरूद्ध)
मेरठ डेवलेपमेंट अथॉरिटी, मेरठ द्वारा सेक्रेटरी।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
परमानन्द गोयल पुत्र स्व0 रामेश्वर दास, निवासी 146 सी, द्वितीय फ्लोर, किर्लोकरी, नई दिल्ली।
प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
1. माननीय श्री विजय वर्मा, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री राज कमल गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री सर्वेश कुमार शर्मा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से : कोई नहीं।
दिनांक 15.06.2018
मा0 श्री विजय वर्मा, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, विद्वान जिला फोरम, मेरठ द्वारा परिवाद संख्या-178/2000 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 23.10.2002 के विरूद्ध विपक्षी/अपीलार्थी की ओर से योजित की गयी है।
अपील से सम्बन्धित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा दिनांक 29.11.1989 को अपीलार्थी/विपक्षी की शताब्दी नगर योजना में रू0 15,000/- जमा करके 288 वर्ग मीटर भूखण्ड के लिए पंजीकरण कराया गया था। परिवादी को दिनांक 30.01.1990 को पत्र द्वारा बी श्रेणी का भूखण्ड नम्बर 1/145 सेक्टर नं0-8 में आवंटित करने के संबंध में सूचना प्राप्त हुई थी, जिसकी अनुमानित कीमत रू0 1,44,000/- थी, जिस पर परिवादी द्वारा दिनांक 28.02.1990 को धनराशि रू0 30,000/- विपक्षी के पास जमा की गयी थी। परिवादी को भेजे गये पत्र से उसे सन् 1992 तक मकान का कब्जा देने की बात कही गयी थी, किन्तु जब परिवादी मौके पर पहुंचा तो उसे कहीं भी कोई विकास कार्य होता नहीं दिखा, जिसकी शिकायत परिवादी द्वारा विपक्षी से की गयी। परिवादी द्वारा फिर भी दिनांक 18.03.1991 को रू0 12,375, 21.09.1991 को रू0 19,305/-, 20.03.1992 को रू0 18,315/- 19.09.1992 को रू0 17,325/-, 30.03.1993 को रू0 18,335/-, 18.09.1993 को रू0 15,345/-, 19.09.1993 को रू0 14,355/- तथा दिनांक 17.09.1994 को रू0 13,365/- विपक्षी के बैंक में जमा कराये गये थे। विपक्षी द्वारा जल्द ही भुखण्ड का कब्जा देने की बात कही गयी, किन्तु कोई भी कब्जा नहीं दिया गया, जिससे परिवादी को मानसिक आघात हुआ। परिवादी द्वारा सम्पूर्ण जमा धनराशि मय ब्याज के वापस प्राप्त करने हेतु विपक्षी से कहा गया, किन्तु कोई भुगतान नहीं किया गया, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी द्वारा जिला फोरम, मेरठ में एक परिवाद दायर किया गया, जहां पर विपक्षी द्वारा अपना प्रतिवाद पत्र दायर करते हुए मुख्यत: यह कथन किया गया है कि परिवादी द्वारा रू0 15,000/- शताब्दी नगर योजना में विपक्षी के यहां जमा करके भूखण्ड प्राप्त करने हेतु आवेदन किया गया था, जिस पर उसे भूखण्ड संख्या-1/145 सेक्टर 8 में आवंटित किया गया था, जिसकी अनुमानित कीमत रू0 1,44,000/- थी। परिवादी द्वारा रू0 30,000/- आवंटित धनराशि भी जमा करायी गयी थी। परिवादी को भूखण्ड का कब्जा विकसित करके दिया जाना था, किन्तु किसानों के आंदोलन के कारण कब्जा नहीं दिया जा सका। परिवादी को किसी अन्य विकसित सेक्टर में भूखण्ड परिवर्तन कराने हेतु पत्र लिखा गया था, किन्तु परिवादी द्वारा कोई भी सहमति नहीं दी गयी, बल्कि अपनी जमा धनराशि की रसीदों की छायाप्रति दाखिल करते हुए धनराशि की मांग की गयी, जिस पर परिवादी से कहा गया कि वह मूल रसीदें दाखिल अपनी जमा धनराशि नियमानुसार प्राप्त करने का अधिकारी है, किन्तु उसके द्वारा मूल रसीदें दाखिल नहीं की गयी, अत: परिवाद उपरोक्त कारणों से निरस्त होने योग्य है।
उभय पक्ष को सुनने के उपरान्त विद्वान जिला फोरम द्वारा दिनांक 23.10.2002 को निम्नवत् आदेश पारित किया गया :-
'' एतद् द्वारा परिवादी का परिवाद स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी को आदेश दिया जाता है कि वे परिवादी को उसके द्वारा जमा की गयी राशी जमा करने की तिथियों से भुगतान की तिथि तक पन्द्रह प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ एक माह में वापस अदा करें। इसके अलावा विपक्षी परिवादी को इस परिवाद का व्यय दो हजार रूपये एवं तीन हजार रूपये बतौर हर्जाना भी अदा करें। ''
उपरोक्त आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा यह अपील मुख्यत: इन आधारों पर दायर की गयी है कि नियमानुसार धनराशि को ब्याज सहित वापस करने का प्रावधान नहीं है। परिवादी को उसके द्वारा जमा की गयी धनराशि को कटौती करने के उपरांत वापस किया जा सकता है, किन्तु विद्वान जिला फोरम द्वारा गलत तरीके से ब्याज सहित धनराशि वापस करने हेतु आदेश पारित किया गया है, जो निरस्त होने योग्य है और अपील स्वीकार किये जाने योग्य है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री सर्वेश कुमार शर्मा उपस्थित आये। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ। विद्वान अधिवक्ता अपीलार्थी को विस्तार से सुना गया एवं प्रश्नगत निर्णय/आदेश तथा उपलब्ध अभिलेखों का गम्भीरता से परिशीलन किया गया।
इस प्रकरण में यह तथ्य निर्विवादित है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को एक भूखण्ड शताब्दी नगर योजना में अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा आवंटित किया गया था, जिसकी अनुमानित कीमत रू0 1,44,000/- थी। इस तथ्य पर भी कोई प्रतिवाद नहीं किया गया है कि परिवादी द्वारा उक्त भूखण्ड के संबंध में परिवाद पत्र में दर्शायी गयी विभिन्न तिथियों में धनराशि विपक्षी के बैंक में जमा की गयी हैं। विवादित बिन्दु मात्र यह है कि परिवादी के अनुसार उसके द्वारा धनराशि जमा किये जाने के बावजूद भी आवंटित भूखण्ड का कब्जा उसे नहीं दिया गया, जिस कारण उसने अपनी जमा धनराशि मय ब्याज वापस करने हेतु विपक्षी से कहा, किन्तु विपक्षी द्वारा कोई धनराशि वापस न करके सेवा में कमी की गयी है।
अब यह देखा जाना है कि क्या परिवादी को आवंटित भूखण्ड का कब्जा न देकर अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा सेवा में कमी की गयी है या नहीं यदि हां तो उसका प्रभाव।
इस संबंध में यह उल्लेखनीय है कि अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को आवंटित भूखण्ड का कब्जा न दिये जाने के संबंध में यह स्पष्टीकरण दिया गया है कि किसानों के आंदोलन के कारण परिवादी को भूखण्ड का कब्जा नहीं दिया जा सका। अपीलार्थी की ओर से यह भी कहा गया कि परिवादी को उक्त भूखण्ड का कब्जा न दिये जाने के विकल्प में दूसरा भूखण्ड दिये जाने का प्रस्ताव दिया गया था, जिस पर परिवादी द्वारा कोई सहमति नहीं दी गयी, जिसके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि अपीलार्थी द्वारा सेवा में कमी की गयी है। उल्लेखनीय है कि परिवादी को भूखण्ड वर्ष 1990में आवंटित हुआ था और उसके द्वारा विपक्षी के यहां वर्ष 1994 तक धनराशि जमा की गयी, किन्तु उसे कब्जा न देकर वर्ष 1997 यह प्रस्ताव दिया गया था कि वह विकल्प में दूसरा भूखण्ड प्राप्त कर सकता है। नि:संदेह इतने वर्षों के बाद परिवादी को कब्जा न देने पर विकल्प में भूखण्ड के आंवटन के प्रस्ताव को मानने के लिए परिवादी बाध्य नहीं था, जिस कारण से उसके द्वारा नियमानुसार जमा की गयी धनराशि ब्याज सहित मांगे जाने के अनुरोध पर विपक्षी को धनराशि मय ब्याज वापस किया जाना चाहिये था, किन्तु विपक्षी द्वारा ऐसा न करके सेवा में कमी की गयी है। परिणामस्वरूप इस संबंध में अपीलार्थी द्वारा सेवा में कमी किये जाने के संबंध में जो निष्कर्ष निकाला गया है, वह पूर्णतया उचित है। विद्वान जिला फोरम के आदेश द्वारा परिवादी द्वारा जमा की गयी सम्पूर्ण धनराशि मय 15 प्रतिशत ब्याज के वापस किये जाने का जो आदेश पारित किया गया है, उसमें कोई विधिक त्रुटि होना दृष्टिगत नहीं होती है। तदनुसार अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है।
पक्षकारान अपना-अपना अपीलीय व्यय-भार स्वंय वहन करेंगे।
इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि उभयपक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये।
(विजय वर्मा) (राज कमल गुप्ता)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0, कोर्ट-2